Saturday, July 10, 2010
सच्चा प्रेम
मोहब्बत रूह की खुराक है। यह वह अमृत बूँद है, जो मरे हुए भावों को जिन्दा करती है। यह जिन्दगी की सबसे पाक, सबसे ऊँची, सबसे मुबारक बरकत है।'
मोहब्बत एक एहसास है, जिसे रूह से महसूस किया जा सकता है। यह उस अनादि अनंत ईश्वर की तरह है, जो सृष्टि के कण-कण में विद्यमान है। प्यार, जो हमारे संपूर्ण जीवन में विभिन्न रूपों में सामने आता है। जो यह एहसास दिलाता है कि जिन्दगी कितनी खूबसूरत है। डॉ. महावीरप्रसाद द्विवेदी ने 'प्रेम' की व्याख्या कुछ इस तरह की है कि - 'प्रेम से जीवन को अलौकिक सौंदर्य प्राप्त होता है। प्रेम से जीवन पवित्र और सार्थक हो जाता है। प्रेम जीवन की संपूर्णता है।' सृष्टि में जो कुछ सुकून भरा है, प्रेम है। प्रेम ही है, जो संबंधों को जीवित रखता है। परिवार के प्रति प्रेम, जिम्मेदारी सिखाता है।
प्रेम इंसान को विनम्र बना देता है। रूखे से रूखे और क्रूर से क्रूर इंसान के मन में यदि किसी के प्रति प्रेम की भावना जन्म ले लेती है, तो संपूर्ण प्राणी जगत के लिए वह विनम्र हो जाता है। ऐसे कई उदाहरण हमारे ग्रंथों में मिलते हैं। प्रेम चाहे व्यक्ति विशेष के प्रति हो या ईश्वर के प्रति। आश्चर्यजनक रूप से उसकी सोच, उसका व्यवहार, उसकी वाणी सबकुछ परिवर्तित हो जाता है।
प्यार, जिन्दगी का सबसे हसीन जज्बा है। बोलने में यह जितना मीठा है, उसका एहसास उतना ही खूबसूरत और प्यारा है। प्यार के एहसास को शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता। उसे व्यक्त करने की आवश्यकता भी नहीं होती। व्यक्ति की आँखें, चेहरा, हाव-भाव यहाँ तक कि उसकी साँसें दिल का सब भेद खोल देती हैं।
प्रेम की अनोखी दुनिया में खोकर कोई बाहर आना ही नहीं चाहता। वह जिसे प्यार करता है, खुली आँखों से भी उसी के सपने देखता है। उसके साथ बिताई घड़ियों को बार-बार याद करता है। उसके लिए सजना-सँवरना चाहता है। यही नहीं, औरों से बात करते हुए भी उसी का जिक्र चाहता है। यही प्यार का दीवानापन है और इस दीवानेपन में जो आनंद है, वह संसार की किसी भौतिकता में नहीं है।
प्रेम शाश्वत है। प्रेम सोच-समझकर की जाने वाली चीज नहीं है। कोई कितना भी सोचे, यदि उसे सच्चा प्रेम हो गया तो उसके लिए दुनिया की हर चीज गौण हो जाती है। प्रेम की अनुभूति विलक्षण है। प्यार कब हो जाता है, पता ही नहीं चलता। इसका एहसास तो तब होता है, जब मन सदैव किसी का सामीप्य चाहने लगता है। उसकी मुस्कुराहट पर खिल उठता है। उसके दर्द से तड़पने लगता है। उस पर सर्वस्व समर्पित करना चाहता है, बिना किसी प्रतिदान की आशा के।
'प्रेम चतुर मनुष्यों के लिए नहीं है। वह तो शिशु-से सरल हृदय की वस्तु है।' सच्चा प्रेम प्रतिदान नहीं चाहता, बल्कि उसकी खुशियों के लिए बलिदान करता है। प्रिय की निष्ठुरता भी उसे कम नहीं कर सकती। वास्तव में प्रेम के पथ में प्रेमी और प्रिय दो नहीं, एक हुआ करते हैं। एक की खुशी दूसरे की आँखों में छलकती है और किसी के दुःख से किसी की आँख भर आती है।
प्रेम एक संजीवनी शक्ति है। संसार के हर दुर्लभ कार्य को करने के लिए यह प्यार संबल प्रदान करता है। आत्मविश्वास बढ़ाता है। यह असीम होता है। इसका केंद्र तो होता है लेकिन परिधि नहीं होती।' प्रेम एक तपस्या है, जिसमें मिलने की खुशी, बिछड़ने का दुःख, प्रेम का उन्माद, विरह का ताप सबकुछ सहना होता है। प्रेम की पराकाष्ठा का एहसास तो तब होता है, जब वह किसी से दूर हो जाता है।
'प्रेम अपनी गहराई को वियोग की घड़ियाँ आ पहुँचने तक स्वयं नहीं जानता।' प्रेम विरह की पीड़ा को वही अनुभव कर सकता है, जिसने इसे भोगा है। इस पीड़ा का एहसास भी सुखद होता है। दूरी का दर्द मीठा होता है। वो कसक उठती है मन में कि बयान नहीं किया जा सकता। दूरी प्रेम को बढ़ाती है और पुनर्मिलन का वह सुख देती है, जो अद्वितीय होता है। प्यार के इस भाव को इस रूप को केवल महसूस किया जा सकता है। इसकी अभिव्यक्ति कर पाना संभव नहीं है। बिछोह का दुःख मिलने न मिलने की आशा-आशंका में जो समय व्यतीत होता है, वह जीवन का अमूल्य अंश होता है। उस तड़प का अपना एक आनंद है।
प्यार और दर्द में गहरा रिश्ता है। जिस दिल में दर्द ना हो, वहाँ प्यार का एहसास भी नहीं होता। किसी के दूर जाने पर जो खालीपन लगता है, जो टीस दिल में उठती है, वही तो प्यार का दर्द है। इसी दर्द के कारण प्रेमी हृदय कितनी ही कृतियों की रचना करता है।
प्रेम को लेकर जो साहित्य रचा गया है, उसमें देखा जा सकता है कि जहाँ विरह का उल्लेख होता है, वह साहित्य मन को छू लेता है। उसकी भाषा स्वतः ही मीठी हो जाती है, काव्यात्मक हो जाती है। मर्मस्पर्शी होकर सीधे दिल पर लगती है।
प्रेम में नकारात्मक सोच के लिए कोई जगह नहीं होती। जो लोग प्यार में असफल होकर अपने प्रिय को नुकसान पहुँचाने का कार्य करते हैं, वे सच्चा प्यार नहीं करते। प्रेम सकारण भी नहीं होता। प्रेम तो हो जाने वाली चीज है। किसी के खयालों में खोकर खुद को भुला देना, उसके सभी दर्द अपना लेना, स्वयं को समर्पित कर देना, उसकी जुदाई में दिल में एक मीठी चुभन महसूस करना, हर पल उसका सामीप्य चाहना, उसकी खुशियों में खुश होना, उसके आँसुओं को अपनी आँखों में ले लेना, हाँ यही तो प्यार है। इसे महसूस करो और खो जाओ उस सुनहरी अनोखी दुनिया में, जहाँ सिर्फ सुकून है।
मोहब्बत एक एहसास है, जिसे रूह से महसूस किया जा सकता है। यह उस अनादि अनंत ईश्वर की तरह है, जो सृष्टि के कण-कण में विद्यमान है। प्यार, जो हमारे संपूर्ण जीवन में विभिन्न रूपों में सामने आता है। जो यह एहसास दिलाता है कि जिन्दगी कितनी खूबसूरत है। डॉ. महावीरप्रसाद द्विवेदी ने 'प्रेम' की व्याख्या कुछ इस तरह की है कि - 'प्रेम से जीवन को अलौकिक सौंदर्य प्राप्त होता है। प्रेम से जीवन पवित्र और सार्थक हो जाता है। प्रेम जीवन की संपूर्णता है।' सृष्टि में जो कुछ सुकून भरा है, प्रेम है। प्रेम ही है, जो संबंधों को जीवित रखता है। परिवार के प्रति प्रेम, जिम्मेदारी सिखाता है।
प्रेम इंसान को विनम्र बना देता है। रूखे से रूखे और क्रूर से क्रूर इंसान के मन में यदि किसी के प्रति प्रेम की भावना जन्म ले लेती है, तो संपूर्ण प्राणी जगत के लिए वह विनम्र हो जाता है। ऐसे कई उदाहरण हमारे ग्रंथों में मिलते हैं। प्रेम चाहे व्यक्ति विशेष के प्रति हो या ईश्वर के प्रति। आश्चर्यजनक रूप से उसकी सोच, उसका व्यवहार, उसकी वाणी सबकुछ परिवर्तित हो जाता है।
प्यार, जिन्दगी का सबसे हसीन जज्बा है। बोलने में यह जितना मीठा है, उसका एहसास उतना ही खूबसूरत और प्यारा है। प्यार के एहसास को शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता। उसे व्यक्त करने की आवश्यकता भी नहीं होती। व्यक्ति की आँखें, चेहरा, हाव-भाव यहाँ तक कि उसकी साँसें दिल का सब भेद खोल देती हैं।
प्रेम की अनोखी दुनिया में खोकर कोई बाहर आना ही नहीं चाहता। वह जिसे प्यार करता है, खुली आँखों से भी उसी के सपने देखता है। उसके साथ बिताई घड़ियों को बार-बार याद करता है। उसके लिए सजना-सँवरना चाहता है। यही नहीं, औरों से बात करते हुए भी उसी का जिक्र चाहता है। यही प्यार का दीवानापन है और इस दीवानेपन में जो आनंद है, वह संसार की किसी भौतिकता में नहीं है।
प्रेम शाश्वत है। प्रेम सोच-समझकर की जाने वाली चीज नहीं है। कोई कितना भी सोचे, यदि उसे सच्चा प्रेम हो गया तो उसके लिए दुनिया की हर चीज गौण हो जाती है। प्रेम की अनुभूति विलक्षण है। प्यार कब हो जाता है, पता ही नहीं चलता। इसका एहसास तो तब होता है, जब मन सदैव किसी का सामीप्य चाहने लगता है। उसकी मुस्कुराहट पर खिल उठता है। उसके दर्द से तड़पने लगता है। उस पर सर्वस्व समर्पित करना चाहता है, बिना किसी प्रतिदान की आशा के।
'प्रेम चतुर मनुष्यों के लिए नहीं है। वह तो शिशु-से सरल हृदय की वस्तु है।' सच्चा प्रेम प्रतिदान नहीं चाहता, बल्कि उसकी खुशियों के लिए बलिदान करता है। प्रिय की निष्ठुरता भी उसे कम नहीं कर सकती। वास्तव में प्रेम के पथ में प्रेमी और प्रिय दो नहीं, एक हुआ करते हैं। एक की खुशी दूसरे की आँखों में छलकती है और किसी के दुःख से किसी की आँख भर आती है।
प्रेम एक संजीवनी शक्ति है। संसार के हर दुर्लभ कार्य को करने के लिए यह प्यार संबल प्रदान करता है। आत्मविश्वास बढ़ाता है। यह असीम होता है। इसका केंद्र तो होता है लेकिन परिधि नहीं होती।' प्रेम एक तपस्या है, जिसमें मिलने की खुशी, बिछड़ने का दुःख, प्रेम का उन्माद, विरह का ताप सबकुछ सहना होता है। प्रेम की पराकाष्ठा का एहसास तो तब होता है, जब वह किसी से दूर हो जाता है।
'प्रेम अपनी गहराई को वियोग की घड़ियाँ आ पहुँचने तक स्वयं नहीं जानता।' प्रेम विरह की पीड़ा को वही अनुभव कर सकता है, जिसने इसे भोगा है। इस पीड़ा का एहसास भी सुखद होता है। दूरी का दर्द मीठा होता है। वो कसक उठती है मन में कि बयान नहीं किया जा सकता। दूरी प्रेम को बढ़ाती है और पुनर्मिलन का वह सुख देती है, जो अद्वितीय होता है। प्यार के इस भाव को इस रूप को केवल महसूस किया जा सकता है। इसकी अभिव्यक्ति कर पाना संभव नहीं है। बिछोह का दुःख मिलने न मिलने की आशा-आशंका में जो समय व्यतीत होता है, वह जीवन का अमूल्य अंश होता है। उस तड़प का अपना एक आनंद है।
प्यार और दर्द में गहरा रिश्ता है। जिस दिल में दर्द ना हो, वहाँ प्यार का एहसास भी नहीं होता। किसी के दूर जाने पर जो खालीपन लगता है, जो टीस दिल में उठती है, वही तो प्यार का दर्द है। इसी दर्द के कारण प्रेमी हृदय कितनी ही कृतियों की रचना करता है।
प्रेम को लेकर जो साहित्य रचा गया है, उसमें देखा जा सकता है कि जहाँ विरह का उल्लेख होता है, वह साहित्य मन को छू लेता है। उसकी भाषा स्वतः ही मीठी हो जाती है, काव्यात्मक हो जाती है। मर्मस्पर्शी होकर सीधे दिल पर लगती है।
प्रेम में नकारात्मक सोच के लिए कोई जगह नहीं होती। जो लोग प्यार में असफल होकर अपने प्रिय को नुकसान पहुँचाने का कार्य करते हैं, वे सच्चा प्यार नहीं करते। प्रेम सकारण भी नहीं होता। प्रेम तो हो जाने वाली चीज है। किसी के खयालों में खोकर खुद को भुला देना, उसके सभी दर्द अपना लेना, स्वयं को समर्पित कर देना, उसकी जुदाई में दिल में एक मीठी चुभन महसूस करना, हर पल उसका सामीप्य चाहना, उसकी खुशियों में खुश होना, उसके आँसुओं को अपनी आँखों में ले लेना, हाँ यही तो प्यार है। इसे महसूस करो और खो जाओ उस सुनहरी अनोखी दुनिया में, जहाँ सिर्फ सुकून है।
Friday, July 9, 2010
ISHQ KARNAY K BHI KUCH AADAB HOTAY HAIN..
JAGTI ANKHOON MAI BHI KUCH KHAWAB HOTAY HAIN..
HAR KOI ROO DAY YA ZARORI TU NAHI..... See More
KHUSHK ANKHOON MAI BHI SAYLAB HOTAY HAIN
Mohobbat me shumar kesa, yakeen kesa, guman kesa, urooj kesa, zawal kesa, sawal kesa,jawab kesa? Mohobat to mohobat he, mohobat me hisab kesa?
jana hai toh jao ..kisne roka hai ..mai to khamosh sa baithaa hun ..shayad ..tumne meri dhadkano ko suna hai
पर है उधार तुम पर.. के.. आंख ना भिगोना !!!
तारा तुम्हारे दिल का न्यारा बना हूँ अब भी ...भगवान् जब बुलाएं जाना पड़ा है तब ही ....मुझको भी माँ बुलाया ..उनमे समां गया हूँ ...ये आँख ना भिगोना तुम पर उधार डाला ...जब याद मेरी आये अम्बर निहार लेना..हूँ यहीं आस पास .. तुम ना उदास होना..पर है उधार तुम पर.. के.. आँख ना भिगोना!!
उसके करीब रहकर प्यारा बना हूँ अब भी ..भगवान् जब बुलाएं जाना पड़ा है तब ही....पापा लगता हूँ उड़ रहा....अपना सपना ही जी रहा ,,,छू नहीं पाते हो तो क्या ... मैं तो दिलों में रह रहा ... हूँ यहीं आस पास .. तुम ना उदास होना..पर है उधार तुम पर.. के.. आँख ना भिगोना!!
ओ मेरे प्यारे भैया ..सब कुछ मिला यहाँ पर ..ढेरों यहाँ खिलौने ..गुलशन खिला यहाँ पर..गर याद आ सताए बचपन निहार लेना....यादों के संदूक से खुशियाँ उधार लेना.... रो लेना गर चाहो रोना.. पर ज़िन्दगी को आगे बढ़कर जीना..हूँ यहीं आस पास .. तुम ना उदास होना..पर है उधार तुम पर.. के.. आँख ना भिगोना !!
JAGTI ANKHOON MAI BHI KUCH KHAWAB HOTAY HAIN..
HAR KOI ROO DAY YA ZARORI TU NAHI..... See More
KHUSHK ANKHOON MAI BHI SAYLAB HOTAY HAIN
Mohobbat me shumar kesa, yakeen kesa, guman kesa, urooj kesa, zawal kesa, sawal kesa,jawab kesa? Mohobat to mohobat he, mohobat me hisab kesa?
jana hai toh jao ..kisne roka hai ..mai to khamosh sa baithaa hun ..shayad ..tumne meri dhadkano ko suna hai
पर है उधार तुम पर.. के.. आंख ना भिगोना !!!
तारा तुम्हारे दिल का न्यारा बना हूँ अब भी ...भगवान् जब बुलाएं जाना पड़ा है तब ही ....मुझको भी माँ बुलाया ..उनमे समां गया हूँ ...ये आँख ना भिगोना तुम पर उधार डाला ...जब याद मेरी आये अम्बर निहार लेना..हूँ यहीं आस पास .. तुम ना उदास होना..पर है उधार तुम पर.. के.. आँख ना भिगोना!!
उसके करीब रहकर प्यारा बना हूँ अब भी ..भगवान् जब बुलाएं जाना पड़ा है तब ही....पापा लगता हूँ उड़ रहा....अपना सपना ही जी रहा ,,,छू नहीं पाते हो तो क्या ... मैं तो दिलों में रह रहा ... हूँ यहीं आस पास .. तुम ना उदास होना..पर है उधार तुम पर.. के.. आँख ना भिगोना!!
ओ मेरे प्यारे भैया ..सब कुछ मिला यहाँ पर ..ढेरों यहाँ खिलौने ..गुलशन खिला यहाँ पर..गर याद आ सताए बचपन निहार लेना....यादों के संदूक से खुशियाँ उधार लेना.... रो लेना गर चाहो रोना.. पर ज़िन्दगी को आगे बढ़कर जीना..हूँ यहीं आस पास .. तुम ना उदास होना..पर है उधार तुम पर.. के.. आँख ना भिगोना !!
Thursday, July 8, 2010
kabhi puch kar dekho mujhse apni yaadon ka alam, sari sari raat sitaron se tera zikra kiya karte he
Jis waqt khuda ne tumhe banaya hoga, Ek suroor sa uske dil pe chaya hoga, Pehle socha hoga tujhe jannat mein rakh lun Phir usse mera
khayal aaya hoga.
jindagi malvi a nasib ni vaat che
mot malvu a samay ni vaat che
pan mot pachi pan koi na dil ma jivta revu
a jindagi ma karela karm ni vaat che
Jis waqt khuda ne tumhe banaya hoga, Ek suroor sa uske dil pe chaya hoga, Pehle socha hoga tujhe jannat mein rakh lun Phir usse mera
khayal aaya hoga.
jindagi malvi a nasib ni vaat che
mot malvu a samay ni vaat che
pan mot pachi pan koi na dil ma jivta revu
a jindagi ma karela karm ni vaat che
Tuesday, July 6, 2010
Monday, July 5, 2010
Tere Dhar se
Kahin Na Mile Wo Khushi Chahiye
Dard Kaisa B Ho Bandagi Chahiye
Mujhko Duniya Ki Ab Koi Khuwahish Nhi
Bas Jine ki koi Rah Chahiye
He mere data Mere Moula
Tere He Aage Haath Phelaon
Bas Muje Tere Charano ki Bandagi Chahiye
Tu Ho Jaye Raazi Sanwar Jaun Main
Bas Tere Dar se yahi Karuna Chahiye
Chahe Dubo de Chahe Taira de Mere Data
BaS Tere Darbar ki Khidmat Chahiye
Main Bhatak Jaun To Aasra Dey Mujhe
Teri hi Nigaho ki Rahbari Chahiye
Na karna Mujko Kudh se juda
Bas Teri itni hi to Kripa Chahiye
Dard Kaisa B Ho Bandagi Chahiye
Mujhko Duniya Ki Ab Koi Khuwahish Nhi
Bas Jine ki koi Rah Chahiye
He mere data Mere Moula
Tere He Aage Haath Phelaon
Bas Muje Tere Charano ki Bandagi Chahiye
Tu Ho Jaye Raazi Sanwar Jaun Main
Bas Tere Dar se yahi Karuna Chahiye
Chahe Dubo de Chahe Taira de Mere Data
BaS Tere Darbar ki Khidmat Chahiye
Main Bhatak Jaun To Aasra Dey Mujhe
Teri hi Nigaho ki Rahbari Chahiye
Na karna Mujko Kudh se juda
Bas Teri itni hi to Kripa Chahiye
अकेलापन...
अकेलापन...
अकेले होने का दर्द
बहोत ही होता है
कोई रौशनी ..कोई आशा नजर नहीं आती ..
गुरुभक्ति और गुरुसेवा की साधनारूपी नौका
का अनोखा बहाव
दे जाता है मुझे एक नयी पहचान
मुझसे मुस्कुराकर कहता है के
तुम अकेले नहीं हो ...
निर्भयता ही जीवन है, भय ही मृत्यु है
अकेले होने का दर्द
बहोत ही होता है
कोई रौशनी ..कोई आशा नजर नहीं आती ..
गुरुभक्ति और गुरुसेवा की साधनारूपी नौका
का अनोखा बहाव
दे जाता है मुझे एक नयी पहचान
मुझसे मुस्कुराकर कहता है के
तुम अकेले नहीं हो ...
निर्भयता ही जीवन है, भय ही मृत्यु है
मर्जी उनकी
अब मर्जी उनकी है , सिर्फ़ दिल ही हमारा है ,
अपना दर्द छुपा कर बहुत सह लिया हमने ,
वो दर्द सहे , न सहे , कह भी नही सकते ,
मेरी खुश्क आंखों में है आंसुओ का सैलाब ,
अब ये बहे , न बहे , कह भी नही सकते
अपना दर्द छुपा कर बहुत सह लिया हमने ,
वो दर्द सहे , न सहे , कह भी नही सकते ,
मेरी खुश्क आंखों में है आंसुओ का सैलाब ,
अब ये बहे , न बहे , कह भी नही सकते
Sunday, July 4, 2010
अर्धांगिनी...
अर्धांगिनी... साये की तरह मेरे व्यक्तित्व को सँभालते सँभालते अपना वजूद भी तुम खो देती हो ... ...इतनी एकरूप हो जाती हो तुम मुझसे , के धुप में अब तुम्हारा अपना साया भी नजर नही आता ...!
महसूस होता है जैसे तुमने स्वयं को विलय कर दिया है मुझमे ... मेरी फ़िक्र करती तुम्हारी निगाहें मुझे खिंच लाती है हर शाम ..भीड़ भाड़ भरी दुनिया से ... ! मेरी छोटीसी तकलीफ का एहसास रुका देता है ...तुम्हारी धडकन ...! तुम्हारी नजरों का क्षितिज ही .. मै हुं और मेरे इर्द गिर्द ही बसी है तुम्हारी दुनिया ...
कौन हो तुम ? 'अर्धागिनी' हो तुम मेरी और काश ... मेरे अंदर का 'पुरुष' इस बात को समझ पाता
महसूस होता है जैसे तुमने स्वयं को विलय कर दिया है मुझमे ... मेरी फ़िक्र करती तुम्हारी निगाहें मुझे खिंच लाती है हर शाम ..भीड़ भाड़ भरी दुनिया से ... ! मेरी छोटीसी तकलीफ का एहसास रुका देता है ...तुम्हारी धडकन ...! तुम्हारी नजरों का क्षितिज ही .. मै हुं और मेरे इर्द गिर्द ही बसी है तुम्हारी दुनिया ...
कौन हो तुम ? 'अर्धागिनी' हो तुम मेरी और काश ... मेरे अंदर का 'पुरुष' इस बात को समझ पाता
Saturday, July 3, 2010
Zindagi
Kuch Masum se Jajbat bhi hai
Kuch Un-dekhay Sapney Hain,
Chal raha tha raho me Dundhnta huwa Apni Manjil ko
Yahi soch dil ko sahara bhi de rahi thi
Tufan mein kashti ko kinare bhi milte hain
jahaan mein logon ko sahare bhi milte hain
duniya mein sabse pyari hai zindagi
Jo mere moula Rubru Karati hai muje Tumse
Par kya kare Mere data Teri Banyai Yah Zindagi
Har kadam pe imtihaan leti hai Zindagi
Her waqt naye Kushiya deti hai Zindagi
Nahi Hai Koi shikwa Zindagi se
Apse Milke ki rah bhi to batati hai Zindagi
Kaise ada karu Shukar Is Zindagi ka
Payar ke Samunder me Dubhoti bhi hai Zindagi
Labo pe hasi aur Dil ko Sakun bhi deti hai Zindagi
Kar lo Pyar Zindagi se kyoki Pyar ki Malika hai Zindagi
Karo Aitbar Had se jyada , Karo Pyar Sagar se jyada
kyoki Jine ki Rah Batati hai Zindagi
Kabi Hasati Hai , Kabhi Rulati Hai Zindagi
Par Har lamho me Payar Jatati hai Zindagi
Kuch Un-dekhay Sapney Hain,
Chal raha tha raho me Dundhnta huwa Apni Manjil ko
Yahi soch dil ko sahara bhi de rahi thi
Tufan mein kashti ko kinare bhi milte hain
jahaan mein logon ko sahare bhi milte hain
duniya mein sabse pyari hai zindagi
Jo mere moula Rubru Karati hai muje Tumse
Par kya kare Mere data Teri Banyai Yah Zindagi
Har kadam pe imtihaan leti hai Zindagi
Her waqt naye Kushiya deti hai Zindagi
Nahi Hai Koi shikwa Zindagi se
Apse Milke ki rah bhi to batati hai Zindagi
Kaise ada karu Shukar Is Zindagi ka
Payar ke Samunder me Dubhoti bhi hai Zindagi
Labo pe hasi aur Dil ko Sakun bhi deti hai Zindagi
Kar lo Pyar Zindagi se kyoki Pyar ki Malika hai Zindagi
Karo Aitbar Had se jyada , Karo Pyar Sagar se jyada
kyoki Jine ki Rah Batati hai Zindagi
Kabi Hasati Hai , Kabhi Rulati Hai Zindagi
Par Har lamho me Payar Jatati hai Zindagi
Wednesday, June 30, 2010
Monday, June 28, 2010
Saturday, June 12, 2010
Dil ki bat samaj sako to samaj lo
Main aasmaan se aaya ek insaan hoon,
Main rehta hoon is dharti pai, par khwab aasmaan ke hi dekhta hoon,
Main khush hota hoon jab sab khush hote hai,
Main rota hoon jab kisi ke aankh Main aansoo hote hai,
Main sabke chehre pai muskurahat lana chahta hoon,
Khud ko bhulakar Main sabke saath muskurana chahta hoon,
Har dard har gum ko Main mita dena chahta hoon,
Har kisi ki zindagi Main Main sukh ka sagar chahta hoon,
Shayad hoon Main is duniya se anjaan
Par fir bhi kahin na kahin hoon Main apno ki jaan.
Main rehta hoon is dharti pai, par khwab aasmaan ke hi dekhta hoon,
Main khush hota hoon jab sab khush hote hai,
Main rota hoon jab kisi ke aankh Main aansoo hote hai,
Main sabke chehre pai muskurahat lana chahta hoon,
Khud ko bhulakar Main sabke saath muskurana chahta hoon,
Har dard har gum ko Main mita dena chahta hoon,
Har kisi ki zindagi Main Main sukh ka sagar chahta hoon,
Shayad hoon Main is duniya se anjaan
Par fir bhi kahin na kahin hoon Main apno ki jaan.
Friday, June 11, 2010
तमन्ना
अब हम थक गए है बच्चो..
अब इन हातो में ताकत कहा ?
इन कि लकीरे देखने तक की
...नहीं थी फुर्सत हमें..
अब एक एक लकिरो को
गिनने के सिवा बचा क्या है ?
हजारो पलो को हम ने जिया है
ख़ुशी और गमो से
इन्ही हातो ने तुम्हे थामे रखा था
हर उस मोड़ पे
जहा जहा तुम गिर गए थे ..
हर मुसीबत झेली थी तुम्हारे लिए ..
हर पल को कुर्बान किया था
तुम्हारे ख़ुशी के लिए ..
बच्चो ,
हर बार की तरह इस महीने
और इस महीने से आगे,
पैसे न भेजना ..
तुम आ जाना..
तुम्हरे लिये आँखे बिछाये बैठा हु
एक बार गले लगाने को मन करता है ..
इस बार तुम आ जाना बेटा ..
सिर्फ तुम आ जाना
अब हम थक गए है बच्चो..
अब इन हातो में ताकत कहा ?
इन कि लकीरे देखने तक की
...नहीं थी फुर्सत हमें..
अब एक एक लकिरो को
गिनने के सिवा बचा क्या है ?
हजारो पलो को हम ने जिया है
ख़ुशी और गमो से
इन्ही हातो ने तुम्हे थामे रखा था
हर उस मोड़ पे
जहा जहा तुम गिर गए थे ..
हर मुसीबत झेली थी तुम्हारे लिए ..
हर पल को कुर्बान किया था
तुम्हारे ख़ुशी के लिए ..
बच्चो ,
हर बार की तरह इस महीने
और इस महीने से आगे,
पैसे न भेजना ..
तुम आ जाना..
तुम्हरे लिये आँखे बिछाये बैठा हु
एक बार गले लगाने को मन करता है ..
इस बार तुम आ जाना बेटा ..
सिर्फ तुम आ जाना
Monday, June 7, 2010
Tuesday, June 1, 2010
har manzar me har raste par...
hum sath tumhare rehte hain...
hum chashm-e-tasveer se aksar...
tum ko dekhte rehte hain...
kuch khwaab sajaa kar aankho me...
...hum pehro tum ko sochte hain...
har lamha tum par marte hain...
hum tumko dekh kar jeete hain...
hum aisi mohabbat karte hain...
hum aisi mohabbat karte hain...!!!
Sunday, May 30, 2010
सॉरी
सॉरी वास्तव में बहुत ही प्यारा शब्द है। हर रिश्ते में कभी न कभी मतभेद हो ही जाते हैं। बेहतर यह है कि रिश्तों में अहंकार हावी न होने दें। विवादों या लड़ाई-झगड़ से दूर रहने का एक आसान उपाय है अहंकार छोड़ देना और सॉरी बोलना सीख लेना। हालांकि सॉरी बोलना भी एक कला है जो हर किसी को नहीं आती। यह भी एक हुनर की तरह ही है जिसे आप जितना जल्दी हो सके, सीख लें। आपके दोस्तों, पति-पत्नी, बॉस, माता-पिता आदि से अपने संबंधों को बनाए रखने के लिए यह बेहद जरूरी है।
अपनी ओर से विवादों को बढ़ने का मौका कभी नहीं देना चाहिए। रिश्ते में नाराजगी आने के बाद जीवन नरक की तरह लगने लगता है। कई बार हालात इस तरह के बन जाते हैं कि हम समझ नहीं पाते और संबंधों में कटुता बढ़ती चली जाती है लेकिन सॉरी बोलने से इसका समाधान किया जा सकता है।
लेकिन हमें पता ही नहीं होता कि सॉरी बोलें तो कैसे? सॉरी बोलने का सही तरीका आपके जीवन में आने वाली अनेक कठिनाइयों को दूर कर सकता है जिससे काफी हद तक रिश्तों में आई कड़वाहट कम हो सकती है। हम सॉरी बोलने से केवल इसलिए कतराते हैं कि कहीं हम गलत साबित न हो जाएं। लेकिन ऐसा नहीं है। जब हम सॉरी बोलते हैं तो वास्तव में हम महानता की और बढ़ते हैं।
हमें सॉरी इस तरह से कहनी चाहिए जिससे हमारे जीवनसाथी, दोस्त या रिश्तेदार को ऐसा लगे कि हम अपने किए पर वास्तव में शर्मिंदा हैं और हमें अपनी गलती का अहसास हो गया है। हम कई बार सॉरी बोलने में काफी असहजता महसूस करते हैं। लेकिन सॉरी बोलने से आत्मा तो पवित्र होती ही है, साथ ही मन की पीड़ा भी दूर हो जाती है।
अपनी ओर से विवादों को बढ़ने का मौका कभी नहीं देना चाहिए। रिश्ते में नाराजगी आने के बाद जीवन नरक की तरह लगने लगता है। कई बार हालात इस तरह के बन जाते हैं कि हम समझ नहीं पाते और संबंधों में कटुता बढ़ती चली जाती है लेकिन सॉरी बोलने से इसका समाधान किया जा सकता है।
लेकिन हमें पता ही नहीं होता कि सॉरी बोलें तो कैसे? सॉरी बोलने का सही तरीका आपके जीवन में आने वाली अनेक कठिनाइयों को दूर कर सकता है जिससे काफी हद तक रिश्तों में आई कड़वाहट कम हो सकती है। हम सॉरी बोलने से केवल इसलिए कतराते हैं कि कहीं हम गलत साबित न हो जाएं। लेकिन ऐसा नहीं है। जब हम सॉरी बोलते हैं तो वास्तव में हम महानता की और बढ़ते हैं।
हमें सॉरी इस तरह से कहनी चाहिए जिससे हमारे जीवनसाथी, दोस्त या रिश्तेदार को ऐसा लगे कि हम अपने किए पर वास्तव में शर्मिंदा हैं और हमें अपनी गलती का अहसास हो गया है। हम कई बार सॉरी बोलने में काफी असहजता महसूस करते हैं। लेकिन सॉरी बोलने से आत्मा तो पवित्र होती ही है, साथ ही मन की पीड़ा भी दूर हो जाती है।
आपा खोकर कही गई बातें अक्सर दिल में गहरा घाव बना जाती हैं। ये घाव जब अपनों के दिए हुए हों, तब तो पीड़ा और भी सालती है। खासकर जब कोई दिल से आपके लिए कुछ करता है और बदले में आप उसे कुछ भी उलटा-सीधा कह जाते हैं। कभी सालों-साल वो शब्द मन को सालते रहते हैं तो कभी ऐसे शब्द दिलों में दूरियाँ आने का कारण भी बन जाते हैं।
सोच-समझकर बोलना केवल दूसरों से आपके रिश्तों को प्रगाढ़ ही नहीं करता बल्कि उनके मन में आपके लिए सम्मान भी पैदा करता है। इतना ही नहीं इससे आपको एक और फायदा यह होता है कि आप किसी का दिल दुखाने से बच जाते हैं। गुस्से या अहंकारवश कहे गए शब्द भले ही उस समय आपके लिए मायने न रखते हों, लेकिन जब अकेले में आप उन पर मनन करें तो पाएँगे कि ऐसे शब्द आपने कैसे इस्तेमाल कर लिए? या फिर अगर ऐसे शब्द आपके साथ प्रयोग में लाए जाते तो? इसलिए किसी भी स्थिति में तौलकर बोलना व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खूबी होती है। जो लोग इस बात को समझते हैं वे सभी की प्रशंसा के पात्र बनते हैं।
सोच-समझकर बोलना केवल दूसरों से आपके रिश्तों को प्रगाढ़ ही नहीं करता बल्कि उनके मन में आपके लिए सम्मान भी पैदा करता है। इतना ही नहीं इससे आपको एक और फायदा यह होता है कि आप किसी का दिल दुखाने से बच जाते हैं। गुस्से या अहंकारवश कहे गए शब्द भले ही उस समय आपके लिए मायने न रखते हों, लेकिन जब अकेले में आप उन पर मनन करें तो पाएँगे कि ऐसे शब्द आपने कैसे इस्तेमाल कर लिए? या फिर अगर ऐसे शब्द आपके साथ प्रयोग में लाए जाते तो? इसलिए किसी भी स्थिति में तौलकर बोलना व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खूबी होती है। जो लोग इस बात को समझते हैं वे सभी की प्रशंसा के पात्र बनते हैं।
haan aaj sharm se mera sir jhukta hai..is baat ko soch kar,ki main bhi khud ko insaan kehta hoon aur shayad dusro ko peeche choD kar khud ko aage le jaata hoon. magar ..ab nahi hai mujhe is raah par chalna,apni insaniyat ko khudgarzi ke liye bechna khud ko kho kar nahi hain mujhe jeena, ek kosish zaroor karunga, zindagi ko jeene ke aihmiyat dekar jeeyunga.
Ghamon ne ansoo bahakar mujse ye kaha,Saath na chhodo hamara tumse ye he iltaja,Tumhare saath rehkar hum bhi muskurane lage the,Tum jab humein bayan karke logon ko hasane lage the,Ab pad chuki hai aadat hamein muskurane ki,Bhala har gham ko saza kyun ho rulane ki,Ye sunkar humne ghamon ko gale se lagaya,Phir kai mehfilon mein humne logon ko hansaya.
मेंहदी हरी दिखती है लेकिन उसमें लाली छुपी है। ऐसे यह देह नश्वर है लेकिन उसमें शाश्वत चेतना छपी है। उस चेतना का जो दीदार कर लेता है उसने सब कुछ कर लिया। उसका जो अनादर कर देता है, मानो उसने अपने जीवन का अनादर कर लिया। अपने आपका वह दुश्मन हो गया।
Monday, May 24, 2010
मैं आपकी बेटी हूं पापा
यह बात मैं ममी से भी कर सकती हूं, लेकिन आपकी तो मैं हमेशा से लाडली रही हूं। इसलिए लगता है कि आप मेरी बात को अच्छी तर
ह समझोगे। आपने मुझे डाइनिंग टेबल पर बहुत डांटा, लेकिन मेरा कसूर क्या है? पिछले 20 साल में मैंने पहली बार आपकी ऊंची आवाज सुनी, वरना आज तक पता ही नहीं था कि डांट का मतलब क्या होता है। आपने फ्रेंड्स, करियर, पढ़ाई को लेकर टोका जरूर, लेकिन पापा इतनी ऊंची आवाज।
आपने ही तो मुझे अपनी बात रखना सिखाया है और आज आप ही उस बात को सुनने के लिए तैयार नहीं हो! मैंने कहा क्या, यही न कि मैं उस लड़के से शादी नहीं करना चाहती, तो मैंने गलत क्या किया? मैं उस लड़के को जानती नहीं हूं, तो उससे जिंदगी भर का रिश्ता कैसे बांध लूं पापा?
उसकी हां हुई और आपने भी मान लिया कि यह शादी होकर रहेगी। इस सबके बीच में मैं कहां हूं पापा, आपकी बेटी कहां है? आज तक घर में फर्नीचर भी मेरी पसंद के बिना आप नहीं लाए, ममी खाना बनाने से पहले मेरी पसंद के बारे में जरूर पूछती हैं, लेकिन आज आप मेरी बात सुने बिना ही मेरी शादी कर देना चाहते हैं।
ठीक है, आज आपके दबाव में आकर मैं शादी कर लेती हूं, लेकिन पापा, कल अगर मैं दुखी रही, तो क्या आपकी आंखों में आंसू नहीं आएंगे? आप भी तो आराम से नहीं बैठ पाओगे न। क्या तब आप अपने फैसले को सही ठहरा पाओगे? मानती हूं कि जिंदगी समझौते का नाम है, लेकिन जानबूझ कर गड्ढे में गिरना और फिर निकलने की कोशिश करना समझौता नहीं होता न पापा।
मैं आपकी बेटी हूं पापा, आपको मुझ पर विश्वास करना होगा। जब आप सिर पर हाथ रखकर मुझे समझदार कहते हो, तो क्यों मेरे इस फैसले में आपको मेरी समझदारी नहीं दिखती है। मैंने यह नहीं कहा मैं शादी नहीं करूंगी, लेकिन बिना किसी को जाने व समझे नहीं। आपकी ऊंची आवाज में मेरी आवाज दब सकती है पापा, लेकिन दिल से सोचेंगे तो मेरी बात की गहराई को आप जरूर समझ पाएंगे।
आपने ही तो मुझे अपनी बात रखना सिखाया है और आज आप ही उस बात को सुनने के लिए तैयार नहीं हो! मैंने कहा क्या, यही न कि मैं उस लड़के से शादी नहीं करना चाहती, तो मैंने गलत क्या किया? मैं उस लड़के को जानती नहीं हूं, तो उससे जिंदगी भर का रिश्ता कैसे बांध लूं पापा?
उसकी हां हुई और आपने भी मान लिया कि यह शादी होकर रहेगी। इस सबके बीच में मैं कहां हूं पापा, आपकी बेटी कहां है? आज तक घर में फर्नीचर भी मेरी पसंद के बिना आप नहीं लाए, ममी खाना बनाने से पहले मेरी पसंद के बारे में जरूर पूछती हैं, लेकिन आज आप मेरी बात सुने बिना ही मेरी शादी कर देना चाहते हैं।
ठीक है, आज आपके दबाव में आकर मैं शादी कर लेती हूं, लेकिन पापा, कल अगर मैं दुखी रही, तो क्या आपकी आंखों में आंसू नहीं आएंगे? आप भी तो आराम से नहीं बैठ पाओगे न। क्या तब आप अपने फैसले को सही ठहरा पाओगे? मानती हूं कि जिंदगी समझौते का नाम है, लेकिन जानबूझ कर गड्ढे में गिरना और फिर निकलने की कोशिश करना समझौता नहीं होता न पापा।
मैं आपकी बेटी हूं पापा, आपको मुझ पर विश्वास करना होगा। जब आप सिर पर हाथ रखकर मुझे समझदार कहते हो, तो क्यों मेरे इस फैसले में आपको मेरी समझदारी नहीं दिखती है। मैंने यह नहीं कहा मैं शादी नहीं करूंगी, लेकिन बिना किसी को जाने व समझे नहीं। आपकी ऊंची आवाज में मेरी आवाज दब सकती है पापा, लेकिन दिल से सोचेंगे तो मेरी बात की गहराई को आप जरूर समझ पाएंगे।
Saturday, May 15, 2010
Monday, May 10, 2010
रिश्ते
दुनिया में रिश्ते केवल रक्त सिंचित हों, यह कतई जरूरी नहीं। मन से बने रिश्ते इससे भी कहीं गहरे हो सकते हैं और ऐसा एक रिश्ता आपके लिए जिंदगीभर सबसे बड़ी ताकत बनकर रहता है। चाहे वे सगे-संबंधी हों, मित्र हों, सहयोगी हों, पड़ोसी हों या फिर मात्र परिचित हों। केवल खुशियों को बाँटते समय ही नहीं, कठिनाइयों में साथ निभाते समय भी ये रिश्ते आपका संबल बनकर उभरते हैं। यदि मुसीबत में कोई आपके काम आता है तो वह आपका सच्चा हितचिंतक है। आपकी जिंदगी में कोई व्यक्ति ऐसा जरूर हो जो विपरीत समय पर आपको सही मार्गदर्शन दे सके और उलझन सुलझाने में आपकी मदद कर सके।
Sunday, May 9, 2010
माँ! एक ऐसा शब्द है, जिसे याद करते ही मन में एक फुरफुरी-सी दौड़ने लगती है। चाहे वह कोई भी माँ, किसी की भी माँ हो सभी के लिए एक समान ही यह गरिमामय भाव अंतर्मन में होता है। माँ को जितने भी शब्दों से नवाजा जाएँ वे अपने आप में कम ही रहेंगे। क्योंकि माँ वो गरिमामय शब्द है जिसकी व्याख्या करना बहुत ही मुश्किल है।
माँ का सफर जन्म होने के दिन से ही शुरू हो जाता है। सभी को यह लगता है कि एक बेटी ने जन्म लिया है इसका मतलब है उसे अपनी जिंदगी में सीढ़ी दर सीढ़ी काम करते ही चले जाना है। पहले एक बेटी, फिर एक युवती, फिर एक बहू और पत्नी फिर आता है माँ बनने का सफर।
माँ बनने के साथ ही उसके अपने सारे हक, उसकी अपनी सारी इच्छाएँ और महत्वाकांक्षाएँ भुला कर उसे अपने कर्तव्यों को निभाने की जिम्मेदारी निभाना पड़ता है। फिर भले ही इन सब में उसकी इच्छा हो ना हो। उसे इन सारे दौर से गुजरना ही पड़ता है। चाहे मन से,चाहे बेमन से लेकिन उसके जन्म के साथ ही ये सारे उसके साथी बन जाते हैं।
उसके माँ बनने के पूर्व ही ससुराल वालों की निगाहें उस पल का इंतजार कर रही होती है कि वह बेटे की माँ बनती है या बेटी की। माँ बनना ससुराल वालों के लिए इतना मायने नहीं रखता जितना उसका बेटे को जन्म देना मायने रखता है।
बेटा-बेटी की आस लिए माँ बनने का उसका यह सफर सही मायने में यही से शुरू हो जाता है। अगर बेटे की माँ बन गई तो वह ससुराल वालों की आँखों का तारा बन जाती है। अगर बेटी को जन्म दिया है तो इस दुख के साथ कि 'बेटी जनी है'। उसको तानों और कष्टों में ही अपना जीवन गुजारना पड़ता है। यह तब बात और भी ज्यादा दुखद हो जाती है जब वह दो-तीन बेटियों को जन्म दे चुकी होती हैं। वह खुद जो अभी-अभी माँ बनी है, वह माँ क्या चाहती है, उसे बेटा पसंद है या बेटी?इस बात से किसी को कोई सरोकार नहीं होता। उसके दिल में चल रही कशमकश से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता! फर्क पड़ता है तो सिर्फ उस माँ को जिसने अभी-अभी उस बच्चे को जन्म दिया है। उस माँ का मन कचोटकर रह जाता है पर फिर भी क्या लोग उसके मन की भावनाएँ, उसके मन की उलझन को समझने की कोशिश करते हैं? नहीं करते...!
फिर भी वो माँ अपने सारे गमों को भुलाकर, जीवन में आ रही हर परेशानी को अपने से दूर रखकर अपना सारा प्यार-दुलार अपने बच्चे पर उँडेल देती है। अपनी मातृत्व की छाँव उस पर बनाए रखती है। ऐसी माँ के 'आदर' स्वरूप सिर्फ एक दिन 'मदर्स डे' मनाकर कभी भी नहीं किया जा सकता। ऐसी माँ के लिए तो मानव जीवन ही कुर्बान होना चाहिए।
ऐसी देवी माँ हो या साधारण माँ जिसने भगवानों से लेकर कई महापुरुषों, कई वीरांगनाओं और वीरों को जन्म दिया है। जिसने देश-दुनिया को कई अविस्मरणीय संतानों ने नवाजा है, ऐसी माँ के लिए तो हर दिन मनाया गया मातृ दिवस भी कम पड़ जाएगा। उसके उपकारों के आगे हमारी हर पूजा छोटी है, हर उपहार कम है। ऐसी जननी को मातृ दिवस यानी मदर्स डे पर मेरा शत-शत नमन....। हे माँ ! आपकी महिमा अपरंपार है...।
माँ का सफर जन्म होने के दिन से ही शुरू हो जाता है। सभी को यह लगता है कि एक बेटी ने जन्म लिया है इसका मतलब है उसे अपनी जिंदगी में सीढ़ी दर सीढ़ी काम करते ही चले जाना है। पहले एक बेटी, फिर एक युवती, फिर एक बहू और पत्नी फिर आता है माँ बनने का सफर।
माँ बनने के साथ ही उसके अपने सारे हक, उसकी अपनी सारी इच्छाएँ और महत्वाकांक्षाएँ भुला कर उसे अपने कर्तव्यों को निभाने की जिम्मेदारी निभाना पड़ता है। फिर भले ही इन सब में उसकी इच्छा हो ना हो। उसे इन सारे दौर से गुजरना ही पड़ता है। चाहे मन से,चाहे बेमन से लेकिन उसके जन्म के साथ ही ये सारे उसके साथी बन जाते हैं।
उसके माँ बनने के पूर्व ही ससुराल वालों की निगाहें उस पल का इंतजार कर रही होती है कि वह बेटे की माँ बनती है या बेटी की। माँ बनना ससुराल वालों के लिए इतना मायने नहीं रखता जितना उसका बेटे को जन्म देना मायने रखता है।
बेटा-बेटी की आस लिए माँ बनने का उसका यह सफर सही मायने में यही से शुरू हो जाता है। अगर बेटे की माँ बन गई तो वह ससुराल वालों की आँखों का तारा बन जाती है। अगर बेटी को जन्म दिया है तो इस दुख के साथ कि 'बेटी जनी है'। उसको तानों और कष्टों में ही अपना जीवन गुजारना पड़ता है। यह तब बात और भी ज्यादा दुखद हो जाती है जब वह दो-तीन बेटियों को जन्म दे चुकी होती हैं। वह खुद जो अभी-अभी माँ बनी है, वह माँ क्या चाहती है, उसे बेटा पसंद है या बेटी?इस बात से किसी को कोई सरोकार नहीं होता। उसके दिल में चल रही कशमकश से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता! फर्क पड़ता है तो सिर्फ उस माँ को जिसने अभी-अभी उस बच्चे को जन्म दिया है। उस माँ का मन कचोटकर रह जाता है पर फिर भी क्या लोग उसके मन की भावनाएँ, उसके मन की उलझन को समझने की कोशिश करते हैं? नहीं करते...!
फिर भी वो माँ अपने सारे गमों को भुलाकर, जीवन में आ रही हर परेशानी को अपने से दूर रखकर अपना सारा प्यार-दुलार अपने बच्चे पर उँडेल देती है। अपनी मातृत्व की छाँव उस पर बनाए रखती है। ऐसी माँ के 'आदर' स्वरूप सिर्फ एक दिन 'मदर्स डे' मनाकर कभी भी नहीं किया जा सकता। ऐसी माँ के लिए तो मानव जीवन ही कुर्बान होना चाहिए।
ऐसी देवी माँ हो या साधारण माँ जिसने भगवानों से लेकर कई महापुरुषों, कई वीरांगनाओं और वीरों को जन्म दिया है। जिसने देश-दुनिया को कई अविस्मरणीय संतानों ने नवाजा है, ऐसी माँ के लिए तो हर दिन मनाया गया मातृ दिवस भी कम पड़ जाएगा। उसके उपकारों के आगे हमारी हर पूजा छोटी है, हर उपहार कम है। ऐसी जननी को मातृ दिवस यानी मदर्स डे पर मेरा शत-शत नमन....। हे माँ ! आपकी महिमा अपरंपार है...।
'माँ, तुम भी ना! बहुत सवाल करती हो? मैं और सुमि तुम्हें कितनी बार तो बता चुके हैं। एक बार ठीक से समझ लिया करो ना! पच्चीसों बार पूछ चुकी हो, रामी बुआ के बेटे की शादी का कार्यक्रम। समय पर आपको ले चलेंगे ना!' भुनभुनाता हुआ बेटा बोले जा रहा था, ''अभी मुझे ऑफिस में देर हो रही है। सुमि! माँ को सारे कार्यक्रम जरा एक बार और बता देना। अब बार-बार मत पूछना माँ! कहते हुए बेटा बैग उठाकर निकल गया।
माँ की आँखें भर आई। आजकल कोई बात याद ही नहीं रहती, पर फिर भी बरसों पुरानी बातें याद थीं। यही मुन्ना दिन में सौ मर्तबा पूछता रहता था- माँ, बताओ ना! तितली का रंग हाथ में क्यों लग गया? क्या वो पीले रंग से होली खेल कर आई है? माँ, हम मंदिर जाते हैं तो भगवान बोलते क्यों नहीं? भगवान सुनते कैसे हैं? बताओ ना माँ?
आँखें भर आने से माँ की आँखें धुँधलाने लगी थी।
माँ की आँखें भर आई। आजकल कोई बात याद ही नहीं रहती, पर फिर भी बरसों पुरानी बातें याद थीं। यही मुन्ना दिन में सौ मर्तबा पूछता रहता था- माँ, बताओ ना! तितली का रंग हाथ में क्यों लग गया? क्या वो पीले रंग से होली खेल कर आई है? माँ, हम मंदिर जाते हैं तो भगवान बोलते क्यों नहीं? भगवान सुनते कैसे हैं? बताओ ना माँ?
आँखें भर आने से माँ की आँखें धुँधलाने लगी थी।
माँ, समूची धरती पर बस यही एक रिश्ता है जिसमें कोई छल कपट नहीं होता। कोई स्वार्थ, कोई प्रदूषण नहीं होता। इस एक रिश्ते में निहित है अनंत गहराई लिए छलछलाता ममता का सागर। शीतल, मीठी और सुगंधित बयार का कोमल अहसास। इस रिश्ते की गुदगुदाती गोद में ऐसी अनुभूति छुपी है मानों नर्म-नाजुक हरी ठंडी दूब की भावभीनी बगिया में सोए हों।
माँ, इस एक शब्द को सुनने के लिए नारी अपने समस्त अस्तित्व को दाँव पर लगाने को तैयार हो जाती है। नारी अपनी संतान को एक बार जन्म देती है। लेकिन गर्भ की अबोली आहट से लेकर उसके जन्म लेने तक वह कितने ही रूपों में जन्म लेती है। यानी एक शिशु के जन्म के साथ ही स्त्री के अनेक खूबसूरत रूपों का भी जन्म होता है।
पल- पल उसके ह्रदय समुद्र में ममता की उद्दाम लहरें आलोडि़त होती है। अपने हर 'ज्वार' के साथ उसका रोम-रोम अपनी संतान पर न्योछावर होने को बेकल हो उठता है। नारी अपने कोरे कुँवारे रूप में जितनी सलोनी होती है उतनी ही सुहानी वह विवाहिता होकर लगती है लेकिन उसके नारीत्व में संपूर्णता आती है माँ बन कर। संपूर्णता के इस पवित्र भाव को जीते हुए वह एक अलौकिक प्रकाश से भर उठती है। उसका चेहरा अपार कष्ट के बावजूद हर्ष से चमकने लगता है। उसकी आँखों में खुशियों के सैकड़ों दीप झिलमिलाने लगते हैं।
माँ के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए एक दिवस नहीं एक सदी भी कम है। किसी ने कहा है ना कि सारे सागर की स्याही बना ली जाए और सारी धरती को कागज मान कर लिखा जाए तब भी माँ की महिमा नहीं लिखी जा सकती। मातृ दिवस पर हर माँ को उसके अनमोल मातृत्व की बधाई।
माँ, इस एक शब्द को सुनने के लिए नारी अपने समस्त अस्तित्व को दाँव पर लगाने को तैयार हो जाती है। नारी अपनी संतान को एक बार जन्म देती है। लेकिन गर्भ की अबोली आहट से लेकर उसके जन्म लेने तक वह कितने ही रूपों में जन्म लेती है। यानी एक शिशु के जन्म के साथ ही स्त्री के अनेक खूबसूरत रूपों का भी जन्म होता है।
पल- पल उसके ह्रदय समुद्र में ममता की उद्दाम लहरें आलोडि़त होती है। अपने हर 'ज्वार' के साथ उसका रोम-रोम अपनी संतान पर न्योछावर होने को बेकल हो उठता है। नारी अपने कोरे कुँवारे रूप में जितनी सलोनी होती है उतनी ही सुहानी वह विवाहिता होकर लगती है लेकिन उसके नारीत्व में संपूर्णता आती है माँ बन कर। संपूर्णता के इस पवित्र भाव को जीते हुए वह एक अलौकिक प्रकाश से भर उठती है। उसका चेहरा अपार कष्ट के बावजूद हर्ष से चमकने लगता है। उसकी आँखों में खुशियों के सैकड़ों दीप झिलमिलाने लगते हैं।
माँ के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए एक दिवस नहीं एक सदी भी कम है। किसी ने कहा है ना कि सारे सागर की स्याही बना ली जाए और सारी धरती को कागज मान कर लिखा जाए तब भी माँ की महिमा नहीं लिखी जा सकती। मातृ दिवस पर हर माँ को उसके अनमोल मातृत्व की बधाई।
आज मातृ दिवस है। यह दिन 'मात्र' दिवस बन कर ना रह जाए, इसलिए शब्दों के गंधरहित फूल और भावनाओं के छलछलाते अर्घ्य
आप हमारे दिल के सबसे करीब होतीं है। इस गहराई का अंदाजा इस बात से लगा सकतीं है कि यह बात हम कभी जुबान पर नहीं ला पाते, और जो बात जुबान पर नहीं आ पाती वही सबसे सच्ची होती है। तो यह हुआ पहला अपराध- हम कभी नहीं कहते कि आप हमारे लिए कितनी स्पेशल है, जबकि सच यही है।
हम उस वक्त कभी फ्री नहीं होते जब आपको हमसे कुछ कहना होता है। हमें हमेशा लगता है कि आपसे तो हम बाद में भी बात कर लेंगे(यह बात और है कि वो 'बाद' कभी नहीं आता) या फिर माँ की बातें हमेशा इतनी एक-सी होती है कि हमें लगभग रट चुकी होती है।
लू से बचने के लिए गुलाब जल मिलाकर रूई के फाहे कान में लगाना, भूखे मत रहना, शाम को जल्दी घर आ जाना, गाड़ी धीरे चलाना, दोस्तों के साथ कहीं बिना बताएँ मत जाना, 'ऐसी-वैसी' आदत मत डालना,दवाई समय पर लेना, तबियत का ख्याल रखना, तुम ठीक तो हो ना, आज परेशान क्यों लग रहे हो, थके हुए क्यों हो?
कहाँ गए थे, कितनी बजे आओगे, किसके साथ जा रहे हो, सबका फोन नंबर देकर जाओ, थोड़ा पढ़ भी लिया करों, ट्यूशन पर देर नहीं हो रही, टेप धीमे चलाया करो, मोबाइल को चुल्हे में डाल दूँगी, रात को इसे बंद क्यो नहीं करते, दिन भर एसएमएस, 24 घंटे लैपटॉप...
हाँ, तो इन सारी हिदायतों के नॉनस्टॉप प्रसारण की वजह से हम आपको लेकर लापरवाह हो जाते हैं लेकिन सारी संतानों की तरफ से मेरा ऑनेस्ट कन्फेशन कि यह सारी बातें हमें आपके सामने कितनी ही बुरी लगे लेकिन अकेले में या शहर से बाहर जब पिज्जा-बर्गर से पेट भरते हैं, या हल्के से जुकाम में भी बेहाल हो जाते हैं तब बेहद शिद्दत से याद आती है। और यकीन मानिए कि गाड़ी चलाते समय आपकी आवाज कानों में गुँजती है और हम गाड़ी की रफ्तार कम कर लेते हैं।
खाना खाते समय आप सामने नजर आतीं है और हम धीरे-धीरे चबा-चबाकर खाना शुरु कर देते हैं। विश्वास कीजिए कि हमारे दिल-दिमाग पर आप ही का असली राज है। अपराध तो स्वीकारना होगा कि हम आपकी बातों को आपके सामने गंभीरता से नहीं लेते।
कभी-कभी हमें लगता है आप हमें शरीर से तो बड़े होते हुए देखना चाहती है लेकिन मन से हमें बच्चे के रूप में ही पसंद करतीं है।
माँ से भी कोई माफी माँगता है भला? ना, माँ तो वह, जो अपनी होती है, बहुत अच्छी होती है और उससे माफी नहीं माँगी जाती इसीलिए तो वह सबसे स्पेशल होती है। क्योंकि वह कभी नहीं रूठती। कभी भी नहीं। दुनिया की सारी मम्मियों, दुनिया के सारे बच्चे आज आपको आई लव यू कहना चाहते हैं। आप सुन रही है ना?
आप हमारे दिल के सबसे करीब होतीं है। इस गहराई का अंदाजा इस बात से लगा सकतीं है कि यह बात हम कभी जुबान पर नहीं ला पाते, और जो बात जुबान पर नहीं आ पाती वही सबसे सच्ची होती है। तो यह हुआ पहला अपराध- हम कभी नहीं कहते कि आप हमारे लिए कितनी स्पेशल है, जबकि सच यही है।
हम उस वक्त कभी फ्री नहीं होते जब आपको हमसे कुछ कहना होता है। हमें हमेशा लगता है कि आपसे तो हम बाद में भी बात कर लेंगे(यह बात और है कि वो 'बाद' कभी नहीं आता) या फिर माँ की बातें हमेशा इतनी एक-सी होती है कि हमें लगभग रट चुकी होती है।
लू से बचने के लिए गुलाब जल मिलाकर रूई के फाहे कान में लगाना, भूखे मत रहना, शाम को जल्दी घर आ जाना, गाड़ी धीरे चलाना, दोस्तों के साथ कहीं बिना बताएँ मत जाना, 'ऐसी-वैसी' आदत मत डालना,दवाई समय पर लेना, तबियत का ख्याल रखना, तुम ठीक तो हो ना, आज परेशान क्यों लग रहे हो, थके हुए क्यों हो?
कहाँ गए थे, कितनी बजे आओगे, किसके साथ जा रहे हो, सबका फोन नंबर देकर जाओ, थोड़ा पढ़ भी लिया करों, ट्यूशन पर देर नहीं हो रही, टेप धीमे चलाया करो, मोबाइल को चुल्हे में डाल दूँगी, रात को इसे बंद क्यो नहीं करते, दिन भर एसएमएस, 24 घंटे लैपटॉप...
हाँ, तो इन सारी हिदायतों के नॉनस्टॉप प्रसारण की वजह से हम आपको लेकर लापरवाह हो जाते हैं लेकिन सारी संतानों की तरफ से मेरा ऑनेस्ट कन्फेशन कि यह सारी बातें हमें आपके सामने कितनी ही बुरी लगे लेकिन अकेले में या शहर से बाहर जब पिज्जा-बर्गर से पेट भरते हैं, या हल्के से जुकाम में भी बेहाल हो जाते हैं तब बेहद शिद्दत से याद आती है। और यकीन मानिए कि गाड़ी चलाते समय आपकी आवाज कानों में गुँजती है और हम गाड़ी की रफ्तार कम कर लेते हैं।
खाना खाते समय आप सामने नजर आतीं है और हम धीरे-धीरे चबा-चबाकर खाना शुरु कर देते हैं। विश्वास कीजिए कि हमारे दिल-दिमाग पर आप ही का असली राज है। अपराध तो स्वीकारना होगा कि हम आपकी बातों को आपके सामने गंभीरता से नहीं लेते।
कभी-कभी हमें लगता है आप हमें शरीर से तो बड़े होते हुए देखना चाहती है लेकिन मन से हमें बच्चे के रूप में ही पसंद करतीं है।
माँ से भी कोई माफी माँगता है भला? ना, माँ तो वह, जो अपनी होती है, बहुत अच्छी होती है और उससे माफी नहीं माँगी जाती इसीलिए तो वह सबसे स्पेशल होती है। क्योंकि वह कभी नहीं रूठती। कभी भी नहीं। दुनिया की सारी मम्मियों, दुनिया के सारे बच्चे आज आपको आई लव यू कहना चाहते हैं। आप सुन रही है ना?
'माँ
'माँ, नहीं जानती
आप मेरे लिए क्या हो
सोच के धरातल पर
कई मील आगे चलती
कर्म-बीजों की गठरी थामें
क्षण-क्षण, कण-कण को संजोती
आप हमारे लिए आस्था-पुँज हो
ऊर्जा का निज स्त्रोत हो
जिसका लेशमात्र भी गर
हमसे विकसित हो पाया
तो वह आपका सच्चा अभिनंदन होगा।
इस दिवस पर सार्थक नमन होगा।'
आप मेरे लिए क्या हो
सोच के धरातल पर
कई मील आगे चलती
कर्म-बीजों की गठरी थामें
क्षण-क्षण, कण-कण को संजोती
आप हमारे लिए आस्था-पुँज हो
ऊर्जा का निज स्त्रोत हो
जिसका लेशमात्र भी गर
हमसे विकसित हो पाया
तो वह आपका सच्चा अभिनंदन होगा।
इस दिवस पर सार्थक नमन होगा।'
Wednesday, May 5, 2010
Thursday, April 29, 2010
किताबों में नदियाँ होती हैं
किताबें खुद ज्ञान की नदियाँ होती हैं।
किताबों में सुंदर पेड़ होते हैं
किताबें खुद शिक्षा का पेड़ होती हैं।
किताबों में सुगंधित फूल सजे होते हैं
किताबें खुद देर तक मन में महकती है।
किताबों में चिड़िया उड़ती है
किताबें खुद मनोरंजन करती चिड़िया होती है।
किताबों से दोस्त बनते हैं
किताबें खुद एक अच्छी और सच्ची दोस्त होती है।
किताबें खुद ज्ञान की नदियाँ होती हैं।
किताबों में सुंदर पेड़ होते हैं
किताबें खुद शिक्षा का पेड़ होती हैं।
किताबों में सुगंधित फूल सजे होते हैं
किताबें खुद देर तक मन में महकती है।
किताबों में चिड़िया उड़ती है
किताबें खुद मनोरंजन करती चिड़िया होती है।
किताबों से दोस्त बनते हैं
किताबें खुद एक अच्छी और सच्ची दोस्त होती है।
दूर गगन में
जिस दिन सूरज थोडा भी न पिघले
और सड़कों पर बिखरा हो सूनापन
ऐसी किसी जलती दोपहर में तुम आना
सूखे पत्तों को समेटकर हम
आँगन का एक कोना चुनेंगे
नीम की ठंडी छाँव तले बैठ हम
हरियाली का सपना बुनेंगे
तुम आँखे मूँद लेना
मोगरे की महकती कलियों की
होगी एक सुंदर पतवार
मधुमालती के झूले को
हम उस पतवार से चलाएँगे
और दूर गगन में उड़ जाएँगे
उन हिम शिखरों तक, जहाँ से
बहती होगी गंगा-सी धवल धार
फिर तुम आँखे खोलना और देखना
कि तीखी धूप वाली दोपहरी
बदल गई है सिंदूरी शाम में
और चाँदनी के दीये जल उठें हैं
देवदार की कतार में।
दुःख के हिरन चौकड़ी भर कर
अँधेरे में विलीन हो गए है।
एक-दूजे का हाथ थाम हम
किसी पहाड़ी राग में खो गए हैं। दीपाली
जिस दिन सूरज थोडा भी न पिघले
और सड़कों पर बिखरा हो सूनापन
ऐसी किसी जलती दोपहर में तुम आना
सूखे पत्तों को समेटकर हम
आँगन का एक कोना चुनेंगे
नीम की ठंडी छाँव तले बैठ हम
हरियाली का सपना बुनेंगे
तुम आँखे मूँद लेना
मोगरे की महकती कलियों की
होगी एक सुंदर पतवार
मधुमालती के झूले को
हम उस पतवार से चलाएँगे
और दूर गगन में उड़ जाएँगे
उन हिम शिखरों तक, जहाँ से
बहती होगी गंगा-सी धवल धार
फिर तुम आँखे खोलना और देखना
कि तीखी धूप वाली दोपहरी
बदल गई है सिंदूरी शाम में
और चाँदनी के दीये जल उठें हैं
देवदार की कतार में।
दुःख के हिरन चौकड़ी भर कर
अँधेरे में विलीन हो गए है।
एक-दूजे का हाथ थाम हम
किसी पहाड़ी राग में खो गए हैं। दीपाली
Wednesday, April 28, 2010
Tuesday, April 27, 2010
ओस की बूंद सी होती है बेटियां पिताजी की दुलारी और जान से प्यारी होती है बेटियां स्पर्श अगर खुरदुरा हो तो रोती है बेटियां रोशन करेगा बेटा तो केवल एक ही कुल को दो दो कुलो की लाज होती है बेटियां ..हीरा अगर है बेटा तो सच्चा मोती होती है बेटियां ..कांटो की राह पर चलकर औरों की राहों मे फूल बिछाती है ...बेटियां ..कहने को परायी अमानत होती है बेटियां ..पर बेटो से बढकर अपनी पर बेटो से बढकर अपनी होती है बेटियां
Monday, April 26, 2010
जीवन — सरोबार है जीवंत हर रंग सी !
जीवन — 14-हजार योनियों पश्चात मिली रब की नेमत सी !
जीवन — सदिच्छाओं का है दूसरा नाम !
जीवन — जन्मान्तरों के शुभ कर्मों का सुखद परिणाम !
जीवन — चिलचिलाती दोपहर की धूप में आगे बढ़ने का अहसास !...
जीवन — कंठ-चुभती सूचियों के बोध से निजात की तीखी प्यास !
जीवन — ठहराव, स्थिरता, भरते घावों का अहसास !
जीवन — एक संन्यास समाज में तब्दीली का
जीवन — 14-हजार योनियों पश्चात मिली रब की नेमत सी !
जीवन — सदिच्छाओं का है दूसरा नाम !
जीवन — जन्मान्तरों के शुभ कर्मों का सुखद परिणाम !
जीवन — चिलचिलाती दोपहर की धूप में आगे बढ़ने का अहसास !...
जीवन — कंठ-चुभती सूचियों के बोध से निजात की तीखी प्यास !
जीवन — ठहराव, स्थिरता, भरते घावों का अहसास !
जीवन — एक संन्यास समाज में तब्दीली का
Sunday, April 25, 2010
सुखी रहना है तो सबको सूख दो, सहयोग लेना है तो पहले सहयोग दो, सबके प्रति अच्छा ही सोचो, सम्मान चाहिए तो सबको सम्मान दो, अपनी जिम्मेवारी ठीक से निबाहो, सबसे निस्वार्थ प्रेम करो तो प्रेम मिलेगा, इसलिए पहले देना सिखों फिर स्वतः मिलेगा 1 सुख का भंडार आपके पास भरा है वह किसी दुकान पर नहीं मिलता 1 बांटो तो बढेगा 1
Thursday, April 22, 2010
जब तुम्हारे दिल में मेरे लिए प्यार उमड़ आये,
और वो तुम्हारी आँखो से छलक सा जाए.......
मुझसे अपनी दिल के बातें सुनने को
यह दिल तुम्हारा मचल सा जाए..........
तब एक आवाज़ दे कर मुझको बुलाना
दिया है जो प्यार का वचन सजन,
तुम अपनी इस प्रीत को निभाना ............
तन्हा रातों में जब सनम
नींद तुम्हारी उड़ सी जाये.......
सुबह की लाली में भी मेरे सजन,
तुमको बस अक़्स मेरा ही नज़र आये......
चलती ठंडी हवा के झोंके ....
जब मेरी ख़ुश्बू तुम तक पहुंचाए .
तब तुम अपना यह रूप सलोना ....
आ के मुझे एक बार दिखा जाना
दिया है जो प्यार का वचन साजन
तुम अपनी इस प्रीत को निभा जाना
और वो तुम्हारी आँखो से छलक सा जाए.......
मुझसे अपनी दिल के बातें सुनने को
यह दिल तुम्हारा मचल सा जाए..........
तब एक आवाज़ दे कर मुझको बुलाना
दिया है जो प्यार का वचन सजन,
तुम अपनी इस प्रीत को निभाना ............
तन्हा रातों में जब सनम
नींद तुम्हारी उड़ सी जाये.......
सुबह की लाली में भी मेरे सजन,
तुमको बस अक़्स मेरा ही नज़र आये......
चलती ठंडी हवा के झोंके ....
जब मेरी ख़ुश्बू तुम तक पहुंचाए .
तब तुम अपना यह रूप सलोना ....
आ के मुझे एक बार दिखा जाना
दिया है जो प्यार का वचन साजन
तुम अपनी इस प्रीत को निभा जाना
Wednesday, April 21, 2010
TRUE LOVE
सुबह का समय था। करीब 8.30 बज रहे थे। 80 की उम्र के एक बुजुर्ग मेरे पास अपने अँगूठे पर लगे टाँकों को कटवाने के लिए आए हुए थे। वे थोड़ी हड़बड़ी में लग रहे थे। पूछने पर उन्होंने बताया कि उन्हें 9 बजे किसी से मिलने के लिए जाना है।
मैंने उन्हें थोड़ी देर रुकने का इशारा किया। मैं भी अधिक मरीजों के बीच व्यस्त नहीं था, इसलिए मैंने अपने मरीज का निरीक्षण निपटाकर उनके अँगूठे का उपचार प्रारंभ किया।
निरीक्षण के बाद मैंने दूसरे चिकित्सक को उनके अँगूठे पर लगी पुरानी पट्टी को हटाकर दोबारा मरहम-पट्टी के आदेश दिए, मगर वे महाशय इतनी हड़बड़ी में थे कि उन्हें अपने अँगूठे की दोबारा मरहम-पट्टी की भी चिंता नहीं थी।
उन्होंने इसके लिए मना कर दिया। वजह पूछने पर उन्होंने बताया कि वे अपनी पत्नी से मिलने अस्पताल जा रहे हैं। जब मैंने उनकी पत्नी के विषय में जानना चाहा, तो उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी एल्जाइमर नामक बीमारी से ग्रसित है और उन्हें अस्पताल में अपनी पत्नी के साथ सुबह का नाश्ता करने जाना है।
मुझे लगा कि शायद उनके देर से पहुँचने पर उनकी पत्नी उन पर नाराज होंगी। इस बात को मैंने मन में न रखते हुए उनसे पूछ ही लिया। इस पर उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी उन्हें पूरी तरह से भूल चुकी है और उन्हें पिछले पाँच सालों से नहीं पहचान रही है।
मैं अचंभे में पड़ गया। मैंने उनसे पूछा कि ‘‘यह जानते हुए कि वे आपको पूरी तरह से भूल चुकी हैं, आप उनसे मिलने हर रोज जाते हैं?’’
बदले में उनके जवाब ने मुझे पूरी तरह से झकझोर दिया। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘वह अब मुझे नहीं जानती है, पर मैं अब भी जानता हूँ कि वह कौन है...।’’
यह सुनकर मैं बहुत मुश्किल से उनके जाने तक अपने आँसू रोक पाया। मुझे लगा कि शायद यह वही प्यार है जिसे पाने में मैं अपनी पूरी जिंदगी लगा सकता हूँ।
सच्चा प्यार उन सब बातों से ऊपर है, जो हैं, जो नहीं हैं या फिर जो हो ही नहीं सकती हैं...।
मैंने उन्हें थोड़ी देर रुकने का इशारा किया। मैं भी अधिक मरीजों के बीच व्यस्त नहीं था, इसलिए मैंने अपने मरीज का निरीक्षण निपटाकर उनके अँगूठे का उपचार प्रारंभ किया।
निरीक्षण के बाद मैंने दूसरे चिकित्सक को उनके अँगूठे पर लगी पुरानी पट्टी को हटाकर दोबारा मरहम-पट्टी के आदेश दिए, मगर वे महाशय इतनी हड़बड़ी में थे कि उन्हें अपने अँगूठे की दोबारा मरहम-पट्टी की भी चिंता नहीं थी।
उन्होंने इसके लिए मना कर दिया। वजह पूछने पर उन्होंने बताया कि वे अपनी पत्नी से मिलने अस्पताल जा रहे हैं। जब मैंने उनकी पत्नी के विषय में जानना चाहा, तो उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी एल्जाइमर नामक बीमारी से ग्रसित है और उन्हें अस्पताल में अपनी पत्नी के साथ सुबह का नाश्ता करने जाना है।
मुझे लगा कि शायद उनके देर से पहुँचने पर उनकी पत्नी उन पर नाराज होंगी। इस बात को मैंने मन में न रखते हुए उनसे पूछ ही लिया। इस पर उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी उन्हें पूरी तरह से भूल चुकी है और उन्हें पिछले पाँच सालों से नहीं पहचान रही है।
मैं अचंभे में पड़ गया। मैंने उनसे पूछा कि ‘‘यह जानते हुए कि वे आपको पूरी तरह से भूल चुकी हैं, आप उनसे मिलने हर रोज जाते हैं?’’
बदले में उनके जवाब ने मुझे पूरी तरह से झकझोर दिया। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘वह अब मुझे नहीं जानती है, पर मैं अब भी जानता हूँ कि वह कौन है...।’’
यह सुनकर मैं बहुत मुश्किल से उनके जाने तक अपने आँसू रोक पाया। मुझे लगा कि शायद यह वही प्यार है जिसे पाने में मैं अपनी पूरी जिंदगी लगा सकता हूँ।
सच्चा प्यार उन सब बातों से ऊपर है, जो हैं, जो नहीं हैं या फिर जो हो ही नहीं सकती हैं...।
प्रेम वह मधुर अहसास है जो जीवन में मिठास घोल देता है
विशुद्ध प्रेम वही है जो प्रतिदान में कुछ पाने की लालसा नहीं रखता। आत्मा की गहराई तक विद्यमान आसक्ति ही सच्चे प्यार का प्रमाण है।
सच्चे प्यार का अहसास किया जा सकता। इसे शब्दों में अभिव्यक्त करना न केवल मुश्किल है बल्कि असंभव भी है। सच्चे प्यार में गहराई इतनी होती है कि चोट लगे एक को, तो दर्द दूसरे को होता है, एक के चेहरे की उदासी से दूसरे की आँखें छलछला आती हैं। सच्चे प्रेम का 'पुष्प' कोमल भावनाओं की भूमि पर आपसी विश्वास और मन की पवित्रता के संरक्षण में ही खिलता और महकता है।
विशुद्ध प्रेम वही है जो प्रतिदान में कुछ पाने की लालसा नहीं रखता। आत्मा की गहराई तक विद्यमान आसक्ति ही सच्चे प्यार का प्रमाण है।
सच्चे प्यार का अहसास किया जा सकता। इसे शब्दों में अभिव्यक्त करना न केवल मुश्किल है बल्कि असंभव भी है। सच्चे प्यार में गहराई इतनी होती है कि चोट लगे एक को, तो दर्द दूसरे को होता है, एक के चेहरे की उदासी से दूसरे की आँखें छलछला आती हैं। सच्चे प्रेम का 'पुष्प' कोमल भावनाओं की भूमि पर आपसी विश्वास और मन की पवित्रता के संरक्षण में ही खिलता और महकता है।
कई भावनाओ का रस
मेरे रक्त के हर बूंद बूंद में छटपटाता है
मेरा मन सागर की लहरों की तरह उछलता है
आकाश की ऊंचाई और सागर की
गहराई से होकर गुजरता हूँ मै
साँसे है के थम ने का नाम नहीं लेती
आसमानी खुशबु से सुगन्धित हो जाता हु मै
बारिश की बूंदों से वर्षित हो जाता हु मै
दिल दिमाग तहस नहस ओ जाता है
और कागज लेकर
मुझपे गुजरने वाली हर दास्ता को
शब्दबद्ध करने की कोशिश करता हु..
मेरे रक्त के हर बूंद बूंद में छटपटाता है
मेरा मन सागर की लहरों की तरह उछलता है
आकाश की ऊंचाई और सागर की
गहराई से होकर गुजरता हूँ मै
साँसे है के थम ने का नाम नहीं लेती
आसमानी खुशबु से सुगन्धित हो जाता हु मै
बारिश की बूंदों से वर्षित हो जाता हु मै
दिल दिमाग तहस नहस ओ जाता है
और कागज लेकर
मुझपे गुजरने वाली हर दास्ता को
शब्दबद्ध करने की कोशिश करता हु..
जिंदगी ने खामोश कर दिया है मुझे
अपने आप से भी
अब मै बात नाही कर पाता हु.
सिकुड कर राख दिया है हालत ने
अपना प्रतिबिम्ब भी देखने को डर लगता है
जिंदगी की सारी परिभाषा भुल सा गया हु
नन्हासा ..कोमल है दिल मेरा
कितने आघात सहेगा ..
मेरी पहचान ही भुल सा गया हु
अब आइना भी मेरी शक्ल होने का
इंकार करता है ..
पर फिर भी सुकून है इस बात का
के तेरे रूह में ..
मेरे पहचान की ..
एक लौ सी जल रही है
काफी है मेरी सुकून के लिए ...
अपने आप से भी
अब मै बात नाही कर पाता हु.
सिकुड कर राख दिया है हालत ने
अपना प्रतिबिम्ब भी देखने को डर लगता है
जिंदगी की सारी परिभाषा भुल सा गया हु
नन्हासा ..कोमल है दिल मेरा
कितने आघात सहेगा ..
मेरी पहचान ही भुल सा गया हु
अब आइना भी मेरी शक्ल होने का
इंकार करता है ..
पर फिर भी सुकून है इस बात का
के तेरे रूह में ..
मेरे पहचान की ..
एक लौ सी जल रही है
काफी है मेरी सुकून के लिए ...
Tuesday, April 20, 2010
ऊँचाई से आगाह इसी क्षण हुआ हूँ। देखता हूँ कि दोनों चपटी चट्टानें एक गहरी वादी के ऊपर कहीं टिकी झूल रही हैं। और उनके साथ साथ मैं भी। वादी में झाँकने से डरता हूँ। इस डर का रंग भी नीला है। इस पर पत्थर रखकर वादी में झाँकता हूँ तो महसस होता है उसकी आँखों में झाँक लिया हो। दो झिलमिलाती झीलों में पड़े दो नीले पत्थर मेरी निगाहों को रोक कर नाकार कर देते हैं।
नीला रंग मुझे प्रिय है। मेरे अंधेरे का रंग नीला है। मेरे अरमानों का कसक नीली है। आकाश जब निर्दोष हो तो उसका रंग भी नीला होता है। उसकी आँखें नीली न होती हुई भी नीली हैं। हर दर्द का रंग नीला होता है। नसें नीली होती हैं। अंत का उजाला नीला होता है। जख्म के इर्दगिर्द कई बार एक नीला हाला सा बन जाता है। हब्शियों के संगीत का रंगी नीला है। मेरे खून में जो तृष्णा दौड़ती रहती है, उसका रंग नीला है। स्मृति का रंग नीला है। मिरियम का प्रिय रंग नीला था। भूख का भय नीला होता है। कृष्ण का रंग नीला है।
मेरी आँखों के नीचे पड़े फड़फडा़ते इस कागज के कोरेपन में भी नीलाहट की अनेक संभावनाएँ छिपी बैठी हैं जिसकी प्रतीक्षा में ही शायद मैं इस पर किसी बुत या बाघ की तरह झुका हुआ हूँ।
नीला रंग मुझे प्रिय है। मेरे अंधेरे का रंग नीला है। मेरे अरमानों का कसक नीली है। आकाश जब निर्दोष हो तो उसका रंग भी नीला होता है। उसकी आँखें नीली न होती हुई भी नीली हैं। हर दर्द का रंग नीला होता है। नसें नीली होती हैं। अंत का उजाला नीला होता है। जख्म के इर्दगिर्द कई बार एक नीला हाला सा बन जाता है। हब्शियों के संगीत का रंगी नीला है। मेरे खून में जो तृष्णा दौड़ती रहती है, उसका रंग नीला है। स्मृति का रंग नीला है। मिरियम का प्रिय रंग नीला था। भूख का भय नीला होता है। कृष्ण का रंग नीला है।
मेरी आँखों के नीचे पड़े फड़फडा़ते इस कागज के कोरेपन में भी नीलाहट की अनेक संभावनाएँ छिपी बैठी हैं जिसकी प्रतीक्षा में ही शायद मैं इस पर किसी बुत या बाघ की तरह झुका हुआ हूँ।
वेद हमारे पूजनीय ग्रंथ हैं। वेदों का एक उपदेश है-'उद्यानं वे पुरुष. नावयानम्।' अर्थात मनुष्य का जन्म इस दुनिया में इसलिए हुआ है कि वह निरंतर प्रगति करे, आगे बढ़ता रहे, कभी नीचे की तरफ नहीं जाए। जिस प्रकार यदि गेंद को ऊपर की ओर उछाला जाए तो एक हद तक वह ऊपर जाएगी, उसके बाद नीचे आने लगेगी। उसी प्रकार जिस दिन मनुष्य की उन्नति रुक गई, उस दिन उसकी अवनति प्रारंभ हो जाएगी। अतः हर सुबह की शुरुआत में हम यह सोचें कि जो भी कार्य हम कर रहे हैं उसे बेहतर कैसे करें?
दुनिया की कोई कृति त्रुटिरहित नहीं, उसमें बेहतरी की संभावना होती है। हर दिन हमारी नीयत में यदि हम विनम्रता चाहते हैं तो ईश्वर से प्रार्थना करें कि वे कार्य के दिन- ईमानदारी हमें हमारे कार्य में बख्शें, हर दिन उन्नति के नए शिखर पर पहुँच, हम स्वयं का परिवार का और समाज-राष्ट्र का नाम रोशन करें। एक वादा स्वयं से करें कि चाहे हम झाडू ही क्यों न लगाएँ, पर वह पिकासो की पेटिंग की तरह अद्वितीय हो।
तुम ...
शबनम की तरह
तुम जो हलके से
उतर आती थी
मेरे बदन पर हर सुबह
मेरे दिल की नमी के लिए...
वो काफी होता था ..मेरे दिनभर के लिए ..
चांदनी की तरह उतर आती थी तुम
मेरे तन बदन पर हर शाम ..
वो काफी होता था
मेरे रात भर के लिए ..
तेरी खुशबु ..तेरी बाते ..
तेरी मुस्कराहट . ..तेरी बाहे..
काफी होता था
मेरे जिंदगी भर के लिए ..
अब तेरे साये से भी हटने को
दिल नहीं करता ..
खुदा से दुआ मांगता हु के .
तेरे हातो की हिना में मुझे सजाये रख
वो काफी होगा
मेरे आखरी सांस के लिये
शबनम की तरह
तुम जो हलके से
उतर आती थी
मेरे बदन पर हर सुबह
मेरे दिल की नमी के लिए...
वो काफी होता था ..मेरे दिनभर के लिए ..
चांदनी की तरह उतर आती थी तुम
मेरे तन बदन पर हर शाम ..
वो काफी होता था
मेरे रात भर के लिए ..
तेरी खुशबु ..तेरी बाते ..
तेरी मुस्कराहट . ..तेरी बाहे..
काफी होता था
मेरे जिंदगी भर के लिए ..
अब तेरे साये से भी हटने को
दिल नहीं करता ..
खुदा से दुआ मांगता हु के .
तेरे हातो की हिना में मुझे सजाये रख
वो काफी होगा
मेरे आखरी सांस के लिये
See the faults, but do not establish them within you. After seeing the faults, immediately establish flawlessness, becoming free of concern and hence forth resolve to not indulge in sins. Thereafter if someone says you are sinful, then become joyful and tell them at one time it was so, but now I it not so. In other words, do not see the sins of the past in the present
Dayena Patel: Beholding a saint, his touch, listening to his command, and anointing your head with the dust from his lotus feet are all far fetched, but he who thinks about the saint in his mind, he becomes purified and eligible for God Realization
Dayena Patel: Beholding a saint, his touch, listening to his command, and anointing your head with the dust from his lotus feet are all far fetched, but he who thinks about the saint in his mind, he becomes purified and eligible for God Realization
आपसी विश्वास
संत कबीर रोज सत्संग किया करते थे। दूर-दूर से लोग उनकी बात सुनने आते थे। एक दिन सत्संग खत्म होने पर भी
एक आदमी बैठा ही रहा। कबीर ने इसका कारण पूछा तो वह बोला, 'मुझे आपसे कुछ पूछना है। मैं गृहस्थ हूं, घर में सभी लोगों से मेरा झगड़ा होता रहता है। मैं जानना चाहता हूं कि मेरे यहां गृह क्लेश क्यों होता है और वह कैसे दूर हो सकता है?'
कबीर थोड़ी देर चुप रहे, फिर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, 'लालटेन जलाकर लाओ'। कबीर की पत्नी लालटेन जलाकर ले आई। वह आदमी भौंचक देखता रहा। सोचने लगा इतनी दोपहर में कबीर ने लालटेन क्यों मंगाई। थोड़ी देर बाद कबीर बोले, 'कुछ मीठा दे जाना।' इस बार उनकी पत्नी मीठे के बजाय नमकीन देकर चली गई। उस आदमी ने सोचा कि यह तो शायद पागलों का घर है। मीठा के बदले नमकीन, दिन में लालटेन। वह बोला, 'कबीर जी मैं चलता हूं।'
कबीर ने पूछा, 'आपको अपनी समस्या का समाधान मिला या अभी कुछ संशय बाकी है?' वह व्यक्ति बोला, 'मेरी समझ में कुछ नहीं आया।' कबीर ने कहा, 'जैसे मैंने लालटेन मंगवाई तो मेरी घरवाली कह सकती थी कि तुम क्या सठिया गए हो। इतनी दोपहर में लालटेन की क्या जरूरत। लेकिन नहीं, उसने सोचा कि जरूर किसी काम के लिए लालटेन मंगवाई होगी। मीठा मंगवाया तो नमकीन देकर चली गई। हो सकता है घर में कोई मीठी वस्तु न हो। यह सोचकर मैं चुप रहा। इसमें तकरार क्या? आपसी विश्वास बढ़ाने और तकरार में न फंसने से विषम परिस्थिति अपने आप दूर हो गई।' उस आदमी को हैरानी हुई। वह समझ गया कि कबीर ने यह सब उसे बताने के लिए किया था। कबीर ने फिर कहा,' गृहस्थी में आपसी विश्वास से ही तालमेल बनता है। आदमी से गलती हो तो औरत संभाल ले और औरत से कोई त्रुटि हो जाए तो पति उसे नजरअंदाज कर दे। यही गृहस्थी का मूल मंत्र है।'
संत कबीर रोज सत्संग किया करते थे। दूर-दूर से लोग उनकी बात सुनने आते थे। एक दिन सत्संग खत्म होने पर भी
एक आदमी बैठा ही रहा। कबीर ने इसका कारण पूछा तो वह बोला, 'मुझे आपसे कुछ पूछना है। मैं गृहस्थ हूं, घर में सभी लोगों से मेरा झगड़ा होता रहता है। मैं जानना चाहता हूं कि मेरे यहां गृह क्लेश क्यों होता है और वह कैसे दूर हो सकता है?'
कबीर थोड़ी देर चुप रहे, फिर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, 'लालटेन जलाकर लाओ'। कबीर की पत्नी लालटेन जलाकर ले आई। वह आदमी भौंचक देखता रहा। सोचने लगा इतनी दोपहर में कबीर ने लालटेन क्यों मंगाई। थोड़ी देर बाद कबीर बोले, 'कुछ मीठा दे जाना।' इस बार उनकी पत्नी मीठे के बजाय नमकीन देकर चली गई। उस आदमी ने सोचा कि यह तो शायद पागलों का घर है। मीठा के बदले नमकीन, दिन में लालटेन। वह बोला, 'कबीर जी मैं चलता हूं।'
कबीर ने पूछा, 'आपको अपनी समस्या का समाधान मिला या अभी कुछ संशय बाकी है?' वह व्यक्ति बोला, 'मेरी समझ में कुछ नहीं आया।' कबीर ने कहा, 'जैसे मैंने लालटेन मंगवाई तो मेरी घरवाली कह सकती थी कि तुम क्या सठिया गए हो। इतनी दोपहर में लालटेन की क्या जरूरत। लेकिन नहीं, उसने सोचा कि जरूर किसी काम के लिए लालटेन मंगवाई होगी। मीठा मंगवाया तो नमकीन देकर चली गई। हो सकता है घर में कोई मीठी वस्तु न हो। यह सोचकर मैं चुप रहा। इसमें तकरार क्या? आपसी विश्वास बढ़ाने और तकरार में न फंसने से विषम परिस्थिति अपने आप दूर हो गई।' उस आदमी को हैरानी हुई। वह समझ गया कि कबीर ने यह सब उसे बताने के लिए किया था। कबीर ने फिर कहा,' गृहस्थी में आपसी विश्वास से ही तालमेल बनता है। आदमी से गलती हो तो औरत संभाल ले और औरत से कोई त्रुटि हो जाए तो पति उसे नजरअंदाज कर दे। यही गृहस्थी का मूल मंत्र है।'
बहुत देर कर दी'
एक धनी व्यक्ति की माँ अक्सर बीमार रहती थी। माँ रोज बेटे-बहू को कहती थी कि बेटा, मुझे डॉक्टर के पास ले चल। बेटा भी रोज पत्नी को कह देता, माँ को ले जाना, मैं तो फैक्टरी के काम में व्यस्त रहता हूँ। क्या तुम माँ का चेकअप नहीं करा सकती हो? पत्नी भी लापरवाही से उत्तर दे देती, पिछले साल गई तो थी, डॉक्टर ने कोई ऑपरेशन का कहा है। जब तकलीफ होगी ले जाना और वह अपने काम में लग जाती। बेटा भी ब्रीफकेस उठाकर चलता हुआ बोल जाता कि माँ तुम भी थोड़ी सहनशक्ति रखा करो।
फैक्टरी की पार्किंग में उस व्यक्ति को हमेशा एक निर्धन लड़का मिलता था। वह पार्किंग के पास ही बूट पॉलिश करता रहता। और जब कभी बूट पॉलिश का काम नहीं होता, तब वह वहाँ रखी गाड़ियों को कपड़े से साफ करता। गाड़ी वाले उसे जो भी 2-4 रुपए देते उसे ले लेता। धनी व्यक्ति और अन्य दूसरे लोग भी रोज मिलने से उसे पहचानने लग गए थे। लड़का भी जिस साहब से 5 रुपए मिलते उस साहब को लंबा सलाम ठोकता था।
एक दिन की बात है धनी व्यक्ति शाम को मीटिंग लेकर अपने कैबिन में आकर बैठा। उसको एक जरूरी फोन पर जानकारी मिली, जो उसके घर से था। घर का नंबर मिलाया तो नौकर ने कहा 'साहब आपको 11 बजे से फोन कर रहे हैं। माताजी की तबीयत बहुत खराब हो गई थी, इसलिए बहादुर और रामू दोनों नौकर उन्हें सरकारी अस्पताल ले गए हैं।' धनी व्यक्ति फोन पर दहाड़ा, 'क्या मेम साहब घर पर नहीं हैं?' वह डरकर बोला, 'वे तो सुबह 10 बजे ही आपके जाने के बाद चली गईं। साहब घर पर कोई नहीं था और हमें कुछ समझ में नहीं आया। माताजी ने ही हमें मुश्किल से कहा, 'बेटा मुझे सरकारी अस्पताल ले चलो, तो माली और बहादुर दोनों रिक्शा में ले गए और साहब मैं मेम साहब का रास्ता देखने के लिए और आपको फोन करने के लिए घर पर रुक गया।'
धनी व्यक्ति ने गुस्से एवं भारीपन से फोन रखा और लगभग दौड़ते हुए गाड़ी निकालकर तेज गति से सरकारी अस्पताल की ओर निकल पड़ा। जैसे ही रिसेप्शन की ओर बढ़ा, उसने सोचा कि यहीं से जानकारी ले लेता हूँ। 'सलाम साहब' एकाएक धनी व्यक्ति चौंका, उसे यहाँ कौन सलाम कर रहा है?
'अरे तुम वही गरीब लड़के हो?' और उसका हाथ पकड़े उसकी बूढ़ी माँ थी। धनी व्यक्ति ने आश्चर्य से पूछा, 'अरे तुम यहाँ, क्या बात है?' लड़का बोला, 'साहब, मेरी माँ बीमार थी। 15 दिनों से यहीं भर्ती थी। इसीलिए पैसे इकट्ठे करता था।' और ऊपर हाथ करके बोला, 'भगवान आप जैसे लोगों का भला करे जिनके आशीर्वाद से मेरी माँ ठीक हो गई। आज ही छुट्टी मिली है। घर जा रहा हूँ। मगर साहब आप यहाँ कैसे?'
धनी व्यक्ति जैसे नींद से जागा हो। 'हाँ' कहकर वह रिसेप्शन की ओर बढ़ गया। वहाँ से जानकारी लेकर लंबे-लंबे कदम से आगे बढ़ता गया। सामने से उसे दो डॉक्टर आते मिले। उसने अपना परिचय दिया और माँ के बारे में पूछा।
'ओ आई एम सॉरी, शी इज नो मोर, आपने बहुत देर कर दी' कहते हुए डॉक्टर आगे निकल गए। वह हारा-सा सिर पकड़ कर वहीं बेंच पर बैठ गया। सामने गरीब लड़का चला जा रहा था और उसके कंधे पर हाथ रखे धीरे-धीरे उसकी माँ जा रही थी।
फैक्टरी की पार्किंग में उस व्यक्ति को हमेशा एक निर्धन लड़का मिलता था। वह पार्किंग के पास ही बूट पॉलिश करता रहता। और जब कभी बूट पॉलिश का काम नहीं होता, तब वह वहाँ रखी गाड़ियों को कपड़े से साफ करता। गाड़ी वाले उसे जो भी 2-4 रुपए देते उसे ले लेता। धनी व्यक्ति और अन्य दूसरे लोग भी रोज मिलने से उसे पहचानने लग गए थे। लड़का भी जिस साहब से 5 रुपए मिलते उस साहब को लंबा सलाम ठोकता था।
एक दिन की बात है धनी व्यक्ति शाम को मीटिंग लेकर अपने कैबिन में आकर बैठा। उसको एक जरूरी फोन पर जानकारी मिली, जो उसके घर से था। घर का नंबर मिलाया तो नौकर ने कहा 'साहब आपको 11 बजे से फोन कर रहे हैं। माताजी की तबीयत बहुत खराब हो गई थी, इसलिए बहादुर और रामू दोनों नौकर उन्हें सरकारी अस्पताल ले गए हैं।' धनी व्यक्ति फोन पर दहाड़ा, 'क्या मेम साहब घर पर नहीं हैं?' वह डरकर बोला, 'वे तो सुबह 10 बजे ही आपके जाने के बाद चली गईं। साहब घर पर कोई नहीं था और हमें कुछ समझ में नहीं आया। माताजी ने ही हमें मुश्किल से कहा, 'बेटा मुझे सरकारी अस्पताल ले चलो, तो माली और बहादुर दोनों रिक्शा में ले गए और साहब मैं मेम साहब का रास्ता देखने के लिए और आपको फोन करने के लिए घर पर रुक गया।'
धनी व्यक्ति ने गुस्से एवं भारीपन से फोन रखा और लगभग दौड़ते हुए गाड़ी निकालकर तेज गति से सरकारी अस्पताल की ओर निकल पड़ा। जैसे ही रिसेप्शन की ओर बढ़ा, उसने सोचा कि यहीं से जानकारी ले लेता हूँ। 'सलाम साहब' एकाएक धनी व्यक्ति चौंका, उसे यहाँ कौन सलाम कर रहा है?
'अरे तुम वही गरीब लड़के हो?' और उसका हाथ पकड़े उसकी बूढ़ी माँ थी। धनी व्यक्ति ने आश्चर्य से पूछा, 'अरे तुम यहाँ, क्या बात है?' लड़का बोला, 'साहब, मेरी माँ बीमार थी। 15 दिनों से यहीं भर्ती थी। इसीलिए पैसे इकट्ठे करता था।' और ऊपर हाथ करके बोला, 'भगवान आप जैसे लोगों का भला करे जिनके आशीर्वाद से मेरी माँ ठीक हो गई। आज ही छुट्टी मिली है। घर जा रहा हूँ। मगर साहब आप यहाँ कैसे?'
धनी व्यक्ति जैसे नींद से जागा हो। 'हाँ' कहकर वह रिसेप्शन की ओर बढ़ गया। वहाँ से जानकारी लेकर लंबे-लंबे कदम से आगे बढ़ता गया। सामने से उसे दो डॉक्टर आते मिले। उसने अपना परिचय दिया और माँ के बारे में पूछा।
'ओ आई एम सॉरी, शी इज नो मोर, आपने बहुत देर कर दी' कहते हुए डॉक्टर आगे निकल गए। वह हारा-सा सिर पकड़ कर वहीं बेंच पर बैठ गया। सामने गरीब लड़का चला जा रहा था और उसके कंधे पर हाथ रखे धीरे-धीरे उसकी माँ जा रही थी।
इतनी बड़ी दुनिया हैं
बहुत सारे लोग हैं
प्यार करने के बजाय वे झगड़ते क्यों हैं
मेरे पास बहुत सा प्यार बचा हैं
इस आकाश कों बाँहों में भर लेने के बाद
नदी की लहरों के साथ साथ बहने के पश्चात भी
प्यासे मरुथल की तरह सागर कों ओढ़ लेने के उपरान्त भी
मेरा प्रेम ख़त्म नही हुवा हैं
सैकड़ों बार मेरी देह मर चूकी हैं
लेकिन उस अनंत प्रेम कों पाने के लिये
मुझे जन्म लेना ही पड़ता हैं
लेकिन हर बार यह धरती मुझे छल जाती हैं
खेतों के धान ..
फूलों से भरे बाग़
सावन की भींगी रात
पूनम के चन्दा की आश
सब मुझ पर हँसते हैं
मैं मनुष्य हूँ न ..उनकी तरह खुल कर जी नहीं पाता
बहुत सारे लोग हैं
प्यार करने के बजाय वे झगड़ते क्यों हैं
मेरे पास बहुत सा प्यार बचा हैं
इस आकाश कों बाँहों में भर लेने के बाद
नदी की लहरों के साथ साथ बहने के पश्चात भी
प्यासे मरुथल की तरह सागर कों ओढ़ लेने के उपरान्त भी
मेरा प्रेम ख़त्म नही हुवा हैं
सैकड़ों बार मेरी देह मर चूकी हैं
लेकिन उस अनंत प्रेम कों पाने के लिये
मुझे जन्म लेना ही पड़ता हैं
लेकिन हर बार यह धरती मुझे छल जाती हैं
खेतों के धान ..
फूलों से भरे बाग़
सावन की भींगी रात
पूनम के चन्दा की आश
सब मुझ पर हँसते हैं
मैं मनुष्य हूँ न ..उनकी तरह खुल कर जी नहीं पाता
Monday, April 19, 2010
न गीता हूं ना क़ुरान हूं मैं
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं
गीता क़ुरान तो बहुतों ने पढ़ी होंगी
यह सच्चे आदर्शों के पेचीदा दस्तावेज़ हैं
बिल्कुल आसान हूं मैं
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं
न क़ौम की न नस्ल की
न मुल्क की न मज़हब की दीवारें
साथ नहीं हैं धर्म के सहारे,
पाएगा तू तुझे मुझमें ऐसा करिश्माईं दर्पण हूं मैं
बंट चुके हैं लोग बंटी हुई हैं ज़मीनें
जो न बंट सके ऐसी पानी की धार हूं
जिसे कोइ तोड़ न सके ऐसा आसमान हूं मैं
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं
खुदा ईश्वर की बात बाद में
पहले तू तुझे समझ ले
मैं क्या हूं मुझे समझा दे,
जिसे कोई अब तक न समझ सका हो
ऐसा एक अरमान हूं मैं
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं
खुदा तो निराकार हैं,
मैं तो एक आकार हूं
जो करता इस जहां को साकार हूं
जिसे अब तक कोइ साबित न कर सका हो
ऐसा एक अविष्कार हूं
इन पेड़ों, बादलों, ज़मीनों, आबो हवाओं में जो बसा है
उसी की पहचान हूं मैं
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं ।।
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं
गीता क़ुरान तो बहुतों ने पढ़ी होंगी
यह सच्चे आदर्शों के पेचीदा दस्तावेज़ हैं
बिल्कुल आसान हूं मैं
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं
न क़ौम की न नस्ल की
न मुल्क की न मज़हब की दीवारें
साथ नहीं हैं धर्म के सहारे,
पाएगा तू तुझे मुझमें ऐसा करिश्माईं दर्पण हूं मैं
बंट चुके हैं लोग बंटी हुई हैं ज़मीनें
जो न बंट सके ऐसी पानी की धार हूं
जिसे कोइ तोड़ न सके ऐसा आसमान हूं मैं
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं
खुदा ईश्वर की बात बाद में
पहले तू तुझे समझ ले
मैं क्या हूं मुझे समझा दे,
जिसे कोई अब तक न समझ सका हो
ऐसा एक अरमान हूं मैं
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं
खुदा तो निराकार हैं,
मैं तो एक आकार हूं
जो करता इस जहां को साकार हूं
जिसे अब तक कोइ साबित न कर सका हो
ऐसा एक अविष्कार हूं
इन पेड़ों, बादलों, ज़मीनों, आबो हवाओं में जो बसा है
उसी की पहचान हूं मैं
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं ।।
जरूरत है कुछ नई उमंग, नये उत्साह की
नये जोश, आत्मविश्वास की
जो कुछ करने का दिल में हौसला पैदा करे
जिससे छू सकें हम उन ऊंचाइयों को।
ऐसे एहसास की
ज़रूरत है,
जो प्रगति का रास्ता दिखाता रहे
शोलों पर भी चलने का ढंग सिखाता रहे
ऐसे ज्योतिर्मय प्रकाश की
ज़रूरत है
कुछ नई उमंग नए उत्साह की
नये जोश आत्मविश्वास की।
जो हमारे जीवन में खुशियां लाए
उस प्रस्फुटित कली जैसे
जो सारे जग को महकाए
कोयल सी मधुर वाणी वाली ऐसी आवाज़ की
ज़रूरत है।
जो भर दे रग-रग में देशभक्ति की भावना
जिससे लहर दौड़ उठे चारों ओर
बस एक शब्द सद्भावना-सद्भावना
ज़रूरत है ऐसे आगाज़ की
ज़रूरत है कुछ नई उमंग नये उत्साह की
नये जोश आत्मविश्वास की।।
नये जोश, आत्मविश्वास की
जो कुछ करने का दिल में हौसला पैदा करे
जिससे छू सकें हम उन ऊंचाइयों को।
ऐसे एहसास की
ज़रूरत है,
जो प्रगति का रास्ता दिखाता रहे
शोलों पर भी चलने का ढंग सिखाता रहे
ऐसे ज्योतिर्मय प्रकाश की
ज़रूरत है
कुछ नई उमंग नए उत्साह की
नये जोश आत्मविश्वास की।
जो हमारे जीवन में खुशियां लाए
उस प्रस्फुटित कली जैसे
जो सारे जग को महकाए
कोयल सी मधुर वाणी वाली ऐसी आवाज़ की
ज़रूरत है।
जो भर दे रग-रग में देशभक्ति की भावना
जिससे लहर दौड़ उठे चारों ओर
बस एक शब्द सद्भावना-सद्भावना
ज़रूरत है ऐसे आगाज़ की
ज़रूरत है कुछ नई उमंग नये उत्साह की
नये जोश आत्मविश्वास की।।
मैं
अगर रख सको तो एक निशानी हूं मैं
खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूं मैं
रोक पाए न जिसको ये सारी दुनिया
वह एक बूंद आंख का पानी हूं मैं
सबको प्यार देने की आदत है हमें
अपनी अलग पहचान बनाने की आदत हैं हमें
कितना भी गहरा जख्म दे कोई
उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है हमें
इस अजनबी दुनिया में अकेला ख्वाब हूं मैं
सवालों से खफा छोटा सा जवाब हूं मैं
जो समझ न सके मुझे , उनके लिए "कौन"
जो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूं मैं
आंख से देखोगे तो खुशी पाओगे
दिल से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूं मैं
अगर रख सको तो निशानी , खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूं मैं।।
खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूं मैं
रोक पाए न जिसको ये सारी दुनिया
वह एक बूंद आंख का पानी हूं मैं
सबको प्यार देने की आदत है हमें
अपनी अलग पहचान बनाने की आदत हैं हमें
कितना भी गहरा जख्म दे कोई
उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है हमें
इस अजनबी दुनिया में अकेला ख्वाब हूं मैं
सवालों से खफा छोटा सा जवाब हूं मैं
जो समझ न सके मुझे , उनके लिए "कौन"
जो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूं मैं
आंख से देखोगे तो खुशी पाओगे
दिल से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूं मैं
अगर रख सको तो निशानी , खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूं मैं।।
क्यों
क्या क्या आप बता सकते हैं
क्यों जन्म लेने से पहले ही
मार दी जाती हैं लड़कियां
क्यों हर खुशी से पहले
दुख का कारण बनती हैं लड़कियां
क्यों उसके विश्वास को
लड़कों की ख्वाहिश के सामने
झुका दिया जाता है
क्यों उनकी परछाई को
हर शुभ कार्य से पहले
अशुभ मान लिया जाता है
क्यों उसे पैदा होते ही
चूल्हा चक्की में झोंक दिया जाता है
क्यों शिक्षा का दान देने से पहले ही
कन्यदान कर दिया जाता है
क्यों मेहन्दी के मिटने से पहले ही
दहेज के लोभ में
जला दी जाती हैं लड़कियां ??
क्या आप बता सकते हैं मुझे
इस क्यों का कारण
क्या आपके पास है इस क्यों का जवाब??
नहीं
आपके पास नहीं है,
क्योंकि आप ही हैं
इस क्यों का कारण
और यही है मेरे क्यों की वजह।।
क्यों जन्म लेने से पहले ही
मार दी जाती हैं लड़कियां
क्यों हर खुशी से पहले
दुख का कारण बनती हैं लड़कियां
क्यों उसके विश्वास को
लड़कों की ख्वाहिश के सामने
झुका दिया जाता है
क्यों उनकी परछाई को
हर शुभ कार्य से पहले
अशुभ मान लिया जाता है
क्यों उसे पैदा होते ही
चूल्हा चक्की में झोंक दिया जाता है
क्यों शिक्षा का दान देने से पहले ही
कन्यदान कर दिया जाता है
क्यों मेहन्दी के मिटने से पहले ही
दहेज के लोभ में
जला दी जाती हैं लड़कियां ??
क्या आप बता सकते हैं मुझे
इस क्यों का कारण
क्या आपके पास है इस क्यों का जवाब??
नहीं
आपके पास नहीं है,
क्योंकि आप ही हैं
इस क्यों का कारण
और यही है मेरे क्यों की वजह।।
विश्वास करें किसी भी रिश्ते को बेहतर तरह से निभाने का मूल मंत्र है, उस पर सौ फीसद विश्वास करना। किसी तरह का भय या शक दिल में जहां रखा आपने, समझिए प्रेम से दूर कर रहे हैं खुद को। विश्वास टूटने के भय से पहले ही उस पर शंकालू निगाह रखना, आपको कमजोर करता जाता है। प्रेम तो छूटता ही है, जो चीजें आपके पास होनी थीं, वे भी दूर होती जाती हैं।
Sunday, April 18, 2010
तुम ही तुम बसे हो सर्वस्व में !
तुम भी तुम हो और मैं भी तुम !
तुम्हीं से जीवन.. मरण तुम्हीं से !
साँसों में बसा वो नाम तुम्हीं हो !
सुबह का पहला ख्वाब तुम्हीं हो !
साँझ की पहली याद तुम्हीं हो !
पहले हो रब से मेरा रब तुम्हीं हो !
जाओ दिल से तो याद करूँ तुम्हें !
न जाती दिल से वो याद तुम्हीं हो !
मेरे हर दिन, हर शाम हर रात हर ख्वाब मे नाम तुम्हारा है....
मझधार बन गया मेरा अब माझी,..... क्योंकि दूर किनारा है.......
नही फ़िक्र मुझे ना ही है ज़रूरत किसी की झूंठी हमदर्दी की......
मेरे पास अब भी जीने को तेरी यादों का सहारा है....................
तुम भी तुम हो और मैं भी तुम !
तुम्हीं से जीवन.. मरण तुम्हीं से !
साँसों में बसा वो नाम तुम्हीं हो !
सुबह का पहला ख्वाब तुम्हीं हो !
साँझ की पहली याद तुम्हीं हो !
पहले हो रब से मेरा रब तुम्हीं हो !
जाओ दिल से तो याद करूँ तुम्हें !
न जाती दिल से वो याद तुम्हीं हो !
मेरे हर दिन, हर शाम हर रात हर ख्वाब मे नाम तुम्हारा है....
मझधार बन गया मेरा अब माझी,..... क्योंकि दूर किनारा है.......
नही फ़िक्र मुझे ना ही है ज़रूरत किसी की झूंठी हमदर्दी की......
मेरे पास अब भी जीने को तेरी यादों का सहारा है....................
सीप में मोती पलते हैं ज्यूँ , रख सीने में दर्द सजाकर
रुसवा अपना प्यार न करना, पागल अपने अश्क बहा कर
घोर निराशा के अंधियारे, घेरें जब-जब तुझको, ऐ दिल
रौशन राहें कर ले अपनी, आशाओं की शम्मा जला कर
आँसू एक न ज़ाया करना, ये दौलत अनमोल है प्यारे
दिल के जख़्मों को सीना है, इस पानी को तार बनाकर
श्रद्धा और विश्वास ही तो हैं, इन्सानी ...जीवन के जौहर
रुसवा अपना प्यार न करना, पागल अपने अश्क बहा कर
घोर निराशा के अंधियारे, घेरें जब-जब तुझको, ऐ दिल
रौशन राहें कर ले अपनी, आशाओं की शम्मा जला कर
आँसू एक न ज़ाया करना, ये दौलत अनमोल है प्यारे
दिल के जख़्मों को सीना है, इस पानी को तार बनाकर
श्रद्धा और विश्वास ही तो हैं, इन्सानी ...जीवन के जौहर
जीवन एक ऐसा रंगमंच है जिसमें कब, कहाँ, किसे
किससे प्यार हो जाए कहना बहुत ही मुश्किल है।
क्योंकि उस प्यारे से
प्यार की झलक पाने को
इंसान तरस जाता है
उसकी आवाज, उसकी हँसी
सुनने को तक इंसान
को वक्त का
इंतजार करना पड़ता है।
जिसने सही मायने में
किसी से प्यार किया हो
सही मायने में अपना
दिल किसी ऐसे इंसान
के नाम लिख दिया हो
जो वास्तव में
बहुत ही प्यारा हो।
प्यार दिल से
निकलने वाली उस तड़प
का नाम है
जिसमें एक झलक पाने की
ललक भी कितना जीना
मुश्किल कर देती है।
अगर दिलों के
वे दोनों बादशाह
जब समझ लें उस तड़प को
तो मुश्किल नहीं है समझना
प्यार के सही मायने को।
किससे प्यार हो जाए कहना बहुत ही मुश्किल है।
क्योंकि उस प्यारे से
प्यार की झलक पाने को
इंसान तरस जाता है
उसकी आवाज, उसकी हँसी
सुनने को तक इंसान
को वक्त का
इंतजार करना पड़ता है।
जिसने सही मायने में
किसी से प्यार किया हो
सही मायने में अपना
दिल किसी ऐसे इंसान
के नाम लिख दिया हो
जो वास्तव में
बहुत ही प्यारा हो।
प्यार दिल से
निकलने वाली उस तड़प
का नाम है
जिसमें एक झलक पाने की
ललक भी कितना जीना
मुश्किल कर देती है।
अगर दिलों के
वे दोनों बादशाह
जब समझ लें उस तड़प को
तो मुश्किल नहीं है समझना
प्यार के सही मायने को।
बंधन
प्यार और दोस्ती का बंधन,
बड़ा ही प्यारा होता है
दिल से दिल को मिलाने वाला
यह बंधन
बहुत ही खास
और महत्वपूर्ण होता है।
उस प्यार की परिभाषा
को वह इंसान ही जाने
जो प्यार को सिर्फ
प्यार के नजरिए से देखे
किसी और नजरिए से नहीं।
प्यार का रिश्ता
वह अनमोल धागा है
जो एक बार
बँध जाए तो फिर
उसे तोड़ना या छोड़ना
बहुत ही मुश्किल होता है।
प्यार का बंधन
विश्वास की नींव
पर टिका हुआ होता है
जो कभी टूटता नहीं है
अगर दोनों में विश्वास
की वह मजबूत कड़ी
कायम है
तो बहुत आसान है
प्यार का बंधन निभाना।
प्यार और दोस्ती
का वह अनजाना बंधन
इंसान को सबसे ऊँचा
बना देता है
जब उसमें निखार आता है।
बड़ा ही प्यारा होता है
दिल से दिल को मिलाने वाला
यह बंधन
बहुत ही खास
और महत्वपूर्ण होता है।
उस प्यार की परिभाषा
को वह इंसान ही जाने
जो प्यार को सिर्फ
प्यार के नजरिए से देखे
किसी और नजरिए से नहीं।
प्यार का रिश्ता
वह अनमोल धागा है
जो एक बार
बँध जाए तो फिर
उसे तोड़ना या छोड़ना
बहुत ही मुश्किल होता है।
प्यार का बंधन
विश्वास की नींव
पर टिका हुआ होता है
जो कभी टूटता नहीं है
अगर दोनों में विश्वास
की वह मजबूत कड़ी
कायम है
तो बहुत आसान है
प्यार का बंधन निभाना।
प्यार और दोस्ती
का वह अनजाना बंधन
इंसान को सबसे ऊँचा
बना देता है
जब उसमें निखार आता है।
वो शख्स
जीवन पलट सकता है
आसमाँ पलट सकता है
दुनिया पलट सकती है
लेकिन वो शख्स
कभी धोखा नहीं दे सकता
वो शख्स कभी नहीं पलट सकता
वो शख्स सारी दुनिया बदल
जाएगी लेकिन
वो नहीं बदल सकता
इतना अटूट विश्वास
है मुझे उस पर
दुनिया बेमानी हो
सकती है
समय बेमानी हो
सकता है
लेकिन वो जो मेरे दिल में
घर कर चुका है
मेरे दिल दुनिया में
मेरे खयालों में
हर वक्त रहता है
उसकी सादगी, उसका प्यार
जो मेरे दिल में
समाया हुआ है
वह कभी झूठ नहीं
हो सकता।
वो शख्स
जिसको देखने, उसकी हँसी सुनने,
उसकी मात्र एक झलक देखने को
जिसका दिल, आत्मा
तरस रही हो,
कहीं भी, दुनिया के किसी
भी कोने में
उसके बगैर जिसका
मन ना लग रहा हो
वो शख्स कैसे पलट सकता है।
आसमाँ पलट सकता है
दुनिया पलट सकती है
लेकिन वो शख्स
कभी धोखा नहीं दे सकता
वो शख्स कभी नहीं पलट सकता
वो शख्स सारी दुनिया बदल
जाएगी लेकिन
वो नहीं बदल सकता
इतना अटूट विश्वास
है मुझे उस पर
दुनिया बेमानी हो
सकती है
समय बेमानी हो
सकता है
लेकिन वो जो मेरे दिल में
घर कर चुका है
मेरे दिल दुनिया में
मेरे खयालों में
हर वक्त रहता है
उसकी सादगी, उसका प्यार
जो मेरे दिल में
समाया हुआ है
वह कभी झूठ नहीं
हो सकता।
वो शख्स
जिसको देखने, उसकी हँसी सुनने,
उसकी मात्र एक झलक देखने को
जिसका दिल, आत्मा
तरस रही हो,
कहीं भी, दुनिया के किसी
भी कोने में
उसके बगैर जिसका
मन ना लग रहा हो
वो शख्स कैसे पलट सकता है।
सम्मान करें
याद रखिए सम्मान देने से ही मिलता है। आप अपने जीवन साथी का सम्मान करेंगे तभी दूसरे भी उसे सम्मानित नजरों से देखेंगे। यदि आपने ही उसके बारे में अनाप-शनाप बोलना शुरू कर दिया तो दूसरों को कैसे रोकेंगे। अपनी नाराजगी या नापसंद जरूर बताएं उसे। पर यह ख्याल रखें, कि उसका सम्मान किसी भी तरह दुखे नहीं।
स्वीकारें
जिसे आप प्यार करते हैं, उसे संपूर्णता के साथ स्वीकारें। उसकी अच्छाइयों को अपना लेना और कमियों का चुन-चुन कर सुबह-शाम गिनाते फिरना, आपके प्यार के लिए बिल्कुल अच्छा नहीं है। जो है, जैसा है, उसको भर दीजिए प्यार से। संपूर्णता में प्यार करें। कमियों को कमियों की तरह लेना ही छोड़ दें। क्योंकि कोई भी परफेक्ट नहीं हो सकता। कुछ कमियां तो आपमें भी होंगी।
विश्वास करें
किसी भी रिश्ते को बेहतर तरह से निभाने का मूल मंत्र है, उस पर सौ फीसद विश्वास करना। किसी तरह का भय या शक दिल में जहां रखा आपने, समझिए प्रेम से दूर कर रहे हैं खुद को। विश्वास टूटने के भय से पहले ही उस पर शंकालू निगाह रखना, आपको कमजोर करता जाता है। प्रेम तो छूटता ही है, जो चीजें आपके पास होनी थीं, वे भी दूर होती जाती हैं।
मेरी बहन
छोटी बहन ढेर से सवाल पूछती मुझसे
मेरे देर से घर लौटने पर
सवाल अक्सर इतने हुआ करते
कि उसे शब्दों और आँखों
दोनों का सहारा लेना पड़ता
अपने तर्कों और बताये जाने वाले
कारणों से उसे संतुष्ट कर पाना
थोड़ा मुश्किल जरूर होता मगर असंभव नहीं
कभी-कभी बहुत प्यार आता मुझे उस पर
मातृवत स्नेह से भर जाता मन
जब कोई हठ कर बैठती मुझसे
रूठी हुई छोटी बहन को मनाते हुए
बहुत भला लगता मुझको
हर हठ जो पूरी हो जाती और जो अधूरी रह जाती
सोच में कैद होकर हो जाती हमेशा के लिए
कितने ही क्षण ऐसे आये जिनमें मेरा ही नहीं
उसका भी मन भर गया किसी कसैले स्वाद से
लगता था उन क्षणों में
यह प्रत्यंचा जाने कितनी और तनेगी
लेकिन बस एक प्यारी हँसी
जो गलबहियाँ डालकर भेंट करती मुझे
बस सब कुछ भुला देती मेरी छोटी बहन
मेरे देर से घर लौटने पर
सवाल अक्सर इतने हुआ करते
कि उसे शब्दों और आँखों
दोनों का सहारा लेना पड़ता
अपने तर्कों और बताये जाने वाले
कारणों से उसे संतुष्ट कर पाना
थोड़ा मुश्किल जरूर होता मगर असंभव नहीं
कभी-कभी बहुत प्यार आता मुझे उस पर
मातृवत स्नेह से भर जाता मन
जब कोई हठ कर बैठती मुझसे
रूठी हुई छोटी बहन को मनाते हुए
बहुत भला लगता मुझको
हर हठ जो पूरी हो जाती और जो अधूरी रह जाती
सोच में कैद होकर हो जाती हमेशा के लिए
कितने ही क्षण ऐसे आये जिनमें मेरा ही नहीं
उसका भी मन भर गया किसी कसैले स्वाद से
लगता था उन क्षणों में
यह प्रत्यंचा जाने कितनी और तनेगी
लेकिन बस एक प्यारी हँसी
जो गलबहियाँ डालकर भेंट करती मुझे
बस सब कुछ भुला देती मेरी छोटी बहन
तुम्हारे बिना मेरा जीवन था अधूरा
तुमसे मिलकर मुझे प्यार मिल गया पूरा
मुझे कभी मत कहना अलबिदा ........
अब जी न सकूंगा तुम्हारे बिना
कोई बात नहीं मुझसे कभी न मिलना
लेकिन चुपचाप ही -
मेरे मन उपवन में फूलों सा खिलना
सुन लिया करता हूँ मैं तुम्हारे ह्रदय की बात
लगता हैं मुझे मेरा दिल धड़कता हैं अब
तुम्हारे दिल के साथ
कोई जरूरी तो नहीं -कि -
चाँद हमेशा हो अम्बर के पास
कभी पूनम हैं तो कभी अमावश की रात
पर आकाश के मन में बुझती नही
कभी चांदनी से मिलने की आश KISHOR
तुमसे मिलकर मुझे प्यार मिल गया पूरा
मुझे कभी मत कहना अलबिदा ........
अब जी न सकूंगा तुम्हारे बिना
कोई बात नहीं मुझसे कभी न मिलना
लेकिन चुपचाप ही -
मेरे मन उपवन में फूलों सा खिलना
सुन लिया करता हूँ मैं तुम्हारे ह्रदय की बात
लगता हैं मुझे मेरा दिल धड़कता हैं अब
तुम्हारे दिल के साथ
कोई जरूरी तो नहीं -कि -
चाँद हमेशा हो अम्बर के पास
कभी पूनम हैं तो कभी अमावश की रात
पर आकाश के मन में बुझती नही
कभी चांदनी से मिलने की आश KISHOR
Saturday, April 17, 2010
हजारों ख्वाहिशें
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमाँ लेकिन फिर भी कम निकले।
सचमुच हम इंसान कभी भी अपनी स्थिति से संतुष्ट नहीं हो सकते। जितनी भी खुशियाँ हमारी झोली में डाल दी जाएँ, हमें वे नाकाफी लगती हैं।
हर दिन दिल में नए अरमान हिचकोले लेने लगते हैं। हमारी बस यही तमन्ना होती है कि जीवन की हर खुशी पर हमारा कब्जा हो। कोई भी पहलू किसी भी रूप में फीका न रह जाए। जिंदगी में तमाम तरह की मिठास और हर प्रकार के रंग भरने के लिए हम बेताब हो जाते हैं
बहुत निकले मेरे अरमाँ लेकिन फिर भी कम निकले।
सचमुच हम इंसान कभी भी अपनी स्थिति से संतुष्ट नहीं हो सकते। जितनी भी खुशियाँ हमारी झोली में डाल दी जाएँ, हमें वे नाकाफी लगती हैं।
हर दिन दिल में नए अरमान हिचकोले लेने लगते हैं। हमारी बस यही तमन्ना होती है कि जीवन की हर खुशी पर हमारा कब्जा हो। कोई भी पहलू किसी भी रूप में फीका न रह जाए। जिंदगी में तमाम तरह की मिठास और हर प्रकार के रंग भरने के लिए हम बेताब हो जाते हैं
साथी
थोड़े में ही जीवन का मजा है। यह जरूरी नहीं कि आपके साथी आपके महँगे गिफ्ट से ही खुश हो, बल्कि प्यार के छोटे-छोटे पल भी उन्हें ढेर सारी खुशियाँ दे सकते हैं। अगर आप उनके बारे में सोचते भी हैं तो वह इसी बात पर खुश हो जाती हैं। यह पता करें कि उनका सबसे पसंदीदा फूल कौन-सा है और केवल एक फूल खरीद कर आप उन्हें सरप्राइज कर सकते हैं। यह छोटा सा फूल भी एहसास दिलाने के लिए काफी है कि आप उन्हें कितना चाहते हैं।
उन्हें साथ लेकर पिकनिक पर जाएँ। यह छोटी सी चीज आपके साथी को ढेर सारी खुशियाँ देगी। तारों भरी रात में उनके साथ घूमने जाएँ और इस दौरान उनकी बातों को ध्यान से सुनें। यह काफी रोमांटिक क्षण होता है।
छोटी चीजों से उन्हें सरप्राइज दें। छोटी-छोटी कैण्डी उन्हें काफी खुशी दे सकती है। रात को सोने से पहले उन्हें कहकर जाएँ कि आप सारी रात उनके ही बारे में सोचते रहेंगे। उनसे कहें कि उनकी आवाज सुने बिना आपको नींद नहीं आएगी।
यदि वह आपको केवल आपके पैसे के लिए चाहती है तो वह आपके लायक नहीं है। रिश्ते की शुरूआत में ही इस बात को साफ कर दें कि आपके क्या सपने हैं और आप उनसे क्या अपेक्षाएँ रखते हैं।
कभी भी उनसे कोई बात झूठ न कहे। यह आपको मुसीबत में डाल सकता है। अगर कहीं आपका झूठ पकड़ा गया तो फिर से वह विश्वास पाना असंभव हो जाता है।
यह सच है कि आपका साथ ही आपके साथी की सबसे बड़ी खुशी होती है। अगर वह आपसे सचमुच प्यार करती है तो आपकी उपस्थिति से बढ़कर और कोई खुशी उनके लिए नहीं हो सकती।
उन्हें साथ लेकर पिकनिक पर जाएँ। यह छोटी सी चीज आपके साथी को ढेर सारी खुशियाँ देगी। तारों भरी रात में उनके साथ घूमने जाएँ और इस दौरान उनकी बातों को ध्यान से सुनें। यह काफी रोमांटिक क्षण होता है।
छोटी चीजों से उन्हें सरप्राइज दें। छोटी-छोटी कैण्डी उन्हें काफी खुशी दे सकती है। रात को सोने से पहले उन्हें कहकर जाएँ कि आप सारी रात उनके ही बारे में सोचते रहेंगे। उनसे कहें कि उनकी आवाज सुने बिना आपको नींद नहीं आएगी।
यदि वह आपको केवल आपके पैसे के लिए चाहती है तो वह आपके लायक नहीं है। रिश्ते की शुरूआत में ही इस बात को साफ कर दें कि आपके क्या सपने हैं और आप उनसे क्या अपेक्षाएँ रखते हैं।
कभी भी उनसे कोई बात झूठ न कहे। यह आपको मुसीबत में डाल सकता है। अगर कहीं आपका झूठ पकड़ा गया तो फिर से वह विश्वास पाना असंभव हो जाता है।
यह सच है कि आपका साथ ही आपके साथी की सबसे बड़ी खुशी होती है। अगर वह आपसे सचमुच प्यार करती है तो आपकी उपस्थिति से बढ़कर और कोई खुशी उनके लिए नहीं हो सकती।
सहनशीलता
गलत बात को सहन करना बिलकुल सही नहीं, लेकिन सही बात के लिए गलती स्वीकार लेना, झुक जाना और आपसी उलझन को धैर्य से सुलझा लेना, रिश्तों को नई जान डाल देता है।
दांपत्य दो प्राणों को जोड़ने हेतु मानव जीवन का सबसे बड़ा सेतु है। पति-पत्नी सुख-दुःख में अटूट साथी और सहभागी होते हैं। उनमें सागर से भी गहरा प्यार होता है। यही रिश्ता परिवार का आधार होता है, लेकिन आपस में अनबन या रूठना स्वाभाविक भी है, जरूरी भी है, क्योंकि तकरार में ही मनुहार के इजहार का मजा है। छाँव का सुख धूप झेलने के बाद ही मिलता है।
कहने से ज्यादा लाभ सहने में है। दो लोगों के बीच या परिवार में कहासुनी और झड़प होना कोई अनहोनी बात नहीं है, किंतु यह अनबन दूध में खटाई की तरह न हो। किसी भी बात को मन में गाँठ बनाकर रखने से मतभेद, मनभेद में बदल जाता है, जिससे एक-दूसरे पर मर-मिटने का दावा करने वाला रिश्ता हँसी-उड़ाऊ बन जाता है।
अनबन से आप अनमने स्थायी रूप से न रहें, थोड़ी-सी तकरार के बाद जहाँ के तहाँ प्यार के मुकाम पर पहुँच जाएँ। इसके लिए बस यही अचूक रामबाण फार्मूला है 'रात गई बात गई।' इस धारणा से 'बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध लेय' की उक्ति चरितार्थ होने लगती है। एक-दूसरे के प्रति बना अलगाव, लगाव में बदल जाता है। संबंध पारे की तरह बिखरने तथा दिल से उतरने से बच जाता है। यह सात जन्मों और सात फेरों वाला रिश्ता कहलाता है। इसलिए यह सपने में भी टूटने न पाए, हाथ से हाथ न छूट पाए, इसके लिए समझ, संयम, समझौता और स्वयं की गलतियों के एहसास की जरूरत है।
यदि झुकाना आता है तो झुकना भी आना चाहिए। याद रखिए अहम से बनी हुई बात बिगड़ती है तो 'हम' से बिगड़ी हुई बात भी बन जाती है।
कोई भी बात या प्रसंग हो अपने दिल में न रखकर आईने की तरह साफगोई अपनाने से एक-दूसरे के भ्रम दूर हो जाते हैं। दिल और जुबान में एकरूपता रहे, क्योंकि आचरण का दोहरापन संबंधों को खंडित कर देता है। रिश्ते और ईमानदारी में चोली-दामन का नाता होना चाहिए। पति-पत्नी से बढ़कर कोई नजदीकी रिश्ता नहीं होता। अतः पति व पत्नी को चाहिए कि वे संबंध की महत्ता समझें न कि उलझें। आवेश में आदमी अंधा होता है।
अंधावेश पाँव पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होता है। इसलिए बहुत संभलकर बोलें। गुस्से में हृदय-विदारक शब्द न बोल जाएँ, क्योंकि ऐसा सभी कहते हैं कि गोली के घाव भर जाते हैं, लेकिन बोली के घाव कभी नहीं भरते। 'जो हुआ सो हुआ, आगे की देखो' की मानसिकता को जीवन के सुख का मंत्र समझें। दांपत्य जीवन के अलावा यह बात सभी विषयों और रिश्तों पर लागू होती है। सहनशीलता कवच है, यह कभी न भूलें।
दांपत्य दो प्राणों को जोड़ने हेतु मानव जीवन का सबसे बड़ा सेतु है। पति-पत्नी सुख-दुःख में अटूट साथी और सहभागी होते हैं। उनमें सागर से भी गहरा प्यार होता है। यही रिश्ता परिवार का आधार होता है, लेकिन आपस में अनबन या रूठना स्वाभाविक भी है, जरूरी भी है, क्योंकि तकरार में ही मनुहार के इजहार का मजा है। छाँव का सुख धूप झेलने के बाद ही मिलता है।
कहने से ज्यादा लाभ सहने में है। दो लोगों के बीच या परिवार में कहासुनी और झड़प होना कोई अनहोनी बात नहीं है, किंतु यह अनबन दूध में खटाई की तरह न हो। किसी भी बात को मन में गाँठ बनाकर रखने से मतभेद, मनभेद में बदल जाता है, जिससे एक-दूसरे पर मर-मिटने का दावा करने वाला रिश्ता हँसी-उड़ाऊ बन जाता है।
अनबन से आप अनमने स्थायी रूप से न रहें, थोड़ी-सी तकरार के बाद जहाँ के तहाँ प्यार के मुकाम पर पहुँच जाएँ। इसके लिए बस यही अचूक रामबाण फार्मूला है 'रात गई बात गई।' इस धारणा से 'बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध लेय' की उक्ति चरितार्थ होने लगती है। एक-दूसरे के प्रति बना अलगाव, लगाव में बदल जाता है। संबंध पारे की तरह बिखरने तथा दिल से उतरने से बच जाता है। यह सात जन्मों और सात फेरों वाला रिश्ता कहलाता है। इसलिए यह सपने में भी टूटने न पाए, हाथ से हाथ न छूट पाए, इसके लिए समझ, संयम, समझौता और स्वयं की गलतियों के एहसास की जरूरत है।
यदि झुकाना आता है तो झुकना भी आना चाहिए। याद रखिए अहम से बनी हुई बात बिगड़ती है तो 'हम' से बिगड़ी हुई बात भी बन जाती है।
कोई भी बात या प्रसंग हो अपने दिल में न रखकर आईने की तरह साफगोई अपनाने से एक-दूसरे के भ्रम दूर हो जाते हैं। दिल और जुबान में एकरूपता रहे, क्योंकि आचरण का दोहरापन संबंधों को खंडित कर देता है। रिश्ते और ईमानदारी में चोली-दामन का नाता होना चाहिए। पति-पत्नी से बढ़कर कोई नजदीकी रिश्ता नहीं होता। अतः पति व पत्नी को चाहिए कि वे संबंध की महत्ता समझें न कि उलझें। आवेश में आदमी अंधा होता है।
अंधावेश पाँव पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होता है। इसलिए बहुत संभलकर बोलें। गुस्से में हृदय-विदारक शब्द न बोल जाएँ, क्योंकि ऐसा सभी कहते हैं कि गोली के घाव भर जाते हैं, लेकिन बोली के घाव कभी नहीं भरते। 'जो हुआ सो हुआ, आगे की देखो' की मानसिकता को जीवन के सुख का मंत्र समझें। दांपत्य जीवन के अलावा यह बात सभी विषयों और रिश्तों पर लागू होती है। सहनशीलता कवच है, यह कभी न भूलें।
You are my air The sun in my day The moon in my night The spring in my step You are my everything. You are the stars in the sky The birds in the trees The shimmer, the sparkle, the shine. Without the light you put into my life I would be nothing A single leaf on the ground in autumn, Lost, forgotten, alone.
जन्नत
ऐ खुदा
मै तो तेरा ही था
तुने ही तो मुझे जिंदगी की सुबह दी थी
तेरे रस्ते पर चलना
काटो का ताज था ..
गिर गया मै , फिर संभला
फिर खड़ा हुवा ..
कभी टुटा , कभी समेटा
इस दिल को कितने बार
कांच की तरह संभाला..
तेरी दि हुवी पाक रूह को
पाक ही रखने की कोशिश की
हजारो कोशिश के बाद
आज इस मुकाम पर हु
तेरे दीदार का प्यासा हु
तेरे पास आना चाहता हु ..
ऐ खुदा ..
नहीं चाहिए जन्नत मुझे
ना ही चाहिए जहन्नुम ..
बस यही इल्ताजा है मेरी
मुझे वैसा हि ले ले अपने पास
जैसे मां के पेट मे
मै था एक रक्त कि बूंद ...
जनम से लेकर मरण तक
का सफ़र न पुछ मुझे
और न पुछ कोई हिसाब और किताब
मै बताने लायक नहीं हु...
मै तो तेरा ही था
तुने ही तो मुझे जिंदगी की सुबह दी थी
तेरे रस्ते पर चलना
काटो का ताज था ..
गिर गया मै , फिर संभला
फिर खड़ा हुवा ..
कभी टुटा , कभी समेटा
इस दिल को कितने बार
कांच की तरह संभाला..
तेरी दि हुवी पाक रूह को
पाक ही रखने की कोशिश की
हजारो कोशिश के बाद
आज इस मुकाम पर हु
तेरे दीदार का प्यासा हु
तेरे पास आना चाहता हु ..
ऐ खुदा ..
नहीं चाहिए जन्नत मुझे
ना ही चाहिए जहन्नुम ..
बस यही इल्ताजा है मेरी
मुझे वैसा हि ले ले अपने पास
जैसे मां के पेट मे
मै था एक रक्त कि बूंद ...
जनम से लेकर मरण तक
का सफ़र न पुछ मुझे
और न पुछ कोई हिसाब और किताब
मै बताने लायक नहीं हु...
Tuesday, April 13, 2010
जिंदगी ..
क्यों होता है ये ..
आंसू छलक आते है
न जाने क्यों ..
ऐसे ही आखो में तैरने लगते है ..
मुझे किसी ने कहा था
कभी जीवन में आंसू न निकालना
जीते रहना ..लढते रहना
जबतक लक्ष्य को नही पाये
तबतक जिंदगी से न हारना
मै भी बड़ा कठोर बन गया
ह्रदय को विशाल की जगह मजबूत कर दिया
हजारो भावनाओ को क़त्ल कर दिया
जिंदगी को कई जगह हरा दिया..
इतना कठोर हो गया
के आखे पत्थर सी हो गयी..
पर न जाने क्यों ऐसा क्यों होता है ...
आजकल एक हवा का झोका भी मुझे रुला देता है ..
आंसू छलक आते है
न जाने क्यों ..
ऐसे ही आखो में तैरने लगते है ..
मुझे किसी ने कहा था
कभी जीवन में आंसू न निकालना
जीते रहना ..लढते रहना
जबतक लक्ष्य को नही पाये
तबतक जिंदगी से न हारना
मै भी बड़ा कठोर बन गया
ह्रदय को विशाल की जगह मजबूत कर दिया
हजारो भावनाओ को क़त्ल कर दिया
जिंदगी को कई जगह हरा दिया..
इतना कठोर हो गया
के आखे पत्थर सी हो गयी..
पर न जाने क्यों ऐसा क्यों होता है ...
आजकल एक हवा का झोका भी मुझे रुला देता है ..
फकीर
जिसके जीवन में सच्चा प्रेम आ जाता है उसका आचरण भी बदल जाता है बाहर से उसे फिर दिखावा करने की जरुरत नहीं पड़ती
जो प्रभु के प्रेम में इतना आगे बड जाता है, प्रभु वियोग में तड़पता रहता है, सुध नहीं उसे किसी बात की, उसने तन, मन, धन, अहंकार सब कुछ समर्पित कर दिया प्रभु के आगे, प्रेम में अहंकार आड़े आ जाता है, अहंकार बोलेंगा भई मै क्यों झुकू? और प्रेम में तो झुकना ही है, डूबना ही है, जीते जी मरना ही है
उसे अपने शरीर का होश नहीं है, कैसा भी वस्त्र मिला पहनलिया, कैसा भी रुखा-सुखा मिला खा लिया, उसकी न ही खुद की कोई इच्छा है, न ही किसी से कोई उम्मीद, उसने न ही किसी से कुछ लेना है, न ही किसी को कुछ देना है, उसके पास जो कुछ है वो उसने पहले ही प्रभु को समर्पित कर दिया है वो खली है, फकीर है बस जपता रहता है प्रभु का नाम.....
बस उसी की तड़प... उसी की चिंता... उसी की लगन... उसी की प्यास, खंजर.....प्रभु के नाम का खंजर उसके सिने में खुपा रहता है....उसी का दर्द सिने में लिए वो घूमता रहता है, उसी की तड़प में जी रहा है... उसी का नाम रट रहा है, न रात में सोने की चिंता है, न दिन में खाने-पिने की, न ही मान-बड़ाई की...
जो प्रभु के प्रेम में इतना आगे बड जाता है, प्रभु वियोग में तड़पता रहता है, सुध नहीं उसे किसी बात की, उसने तन, मन, धन, अहंकार सब कुछ समर्पित कर दिया प्रभु के आगे, प्रेम में अहंकार आड़े आ जाता है, अहंकार बोलेंगा भई मै क्यों झुकू? और प्रेम में तो झुकना ही है, डूबना ही है, जीते जी मरना ही है
उसे अपने शरीर का होश नहीं है, कैसा भी वस्त्र मिला पहनलिया, कैसा भी रुखा-सुखा मिला खा लिया, उसकी न ही खुद की कोई इच्छा है, न ही किसी से कोई उम्मीद, उसने न ही किसी से कुछ लेना है, न ही किसी को कुछ देना है, उसके पास जो कुछ है वो उसने पहले ही प्रभु को समर्पित कर दिया है वो खली है, फकीर है बस जपता रहता है प्रभु का नाम.....
बस उसी की तड़प... उसी की चिंता... उसी की लगन... उसी की प्यास, खंजर.....प्रभु के नाम का खंजर उसके सिने में खुपा रहता है....उसी का दर्द सिने में लिए वो घूमता रहता है, उसी की तड़प में जी रहा है... उसी का नाम रट रहा है, न रात में सोने की चिंता है, न दिन में खाने-पिने की, न ही मान-बड़ाई की...
Monday, April 12, 2010
ऐ खुदा..
ऐ खुदा..
जीवन से लेकर मरण तक
हजारो सुख दुःख के पल जीते जीते
न जाने आदमी कितनी मंजिले पार करता है
सर उठा के जीने के लिए
कितनी बार मन को
गिरवी रखता है..
उधार का सुख . ,
मज़बूरी का दुःख..
माँ के गोदी से निकल कर
इस ज़माने में तीथर बिथर हो जाता है..
रोटी , कपडा और मकान के चक्कर में
आम आदमी आम ही रह जाता है..
मान.. अपमान..
कितने बार उठेगा ..कितने बार गिरेगा..
हक की आवाज दबाई जाती है
चिल्लाओ तो लोग दीवाना कहते है
रूठो तो लोग बावरा कहते है..
अकेला कबतक लढु मै ज़माने से..
ऐ खुदा ..
एक हि दुवा है तुझसे
या तो कोई दिशा दे दे मुझको
या मुझे
दिशाहीन कर दे ..
जीवन से लेकर मरण तक
हजारो सुख दुःख के पल जीते जीते
न जाने आदमी कितनी मंजिले पार करता है
सर उठा के जीने के लिए
कितनी बार मन को
गिरवी रखता है..
उधार का सुख . ,
मज़बूरी का दुःख..
माँ के गोदी से निकल कर
इस ज़माने में तीथर बिथर हो जाता है..
रोटी , कपडा और मकान के चक्कर में
आम आदमी आम ही रह जाता है..
मान.. अपमान..
कितने बार उठेगा ..कितने बार गिरेगा..
हक की आवाज दबाई जाती है
चिल्लाओ तो लोग दीवाना कहते है
रूठो तो लोग बावरा कहते है..
अकेला कबतक लढु मै ज़माने से..
ऐ खुदा ..
एक हि दुवा है तुझसे
या तो कोई दिशा दे दे मुझको
या मुझे
दिशाहीन कर दे ..
जीवन में कैसी देरी है ,
जीवन में कैसी जल्दी है ,
जीवन में क्या खो जाना है ,
जीवन में क्या मिल जाना है ,
मेरी आँखों से तुम देखो
जग जाना और पहचाना है.
नहीं अकेले इस सागर में
लहर-लहर का मिल जाना है.
मेरे शब्द उठा कर देखो
शब्द गीत हर हो जाना है.
सागर अपने मन -दर्पण में
चाँद समेटे रख सकता है ,
और हवाओं का ये आँचल
सुमन झोली में भर सकता है ,
जीवन में कैसी जल्दी है ,
जीवन में क्या खो जाना है ,
जीवन में क्या मिल जाना है ,
मेरी आँखों से तुम देखो
जग जाना और पहचाना है.
नहीं अकेले इस सागर में
लहर-लहर का मिल जाना है.
मेरे शब्द उठा कर देखो
शब्द गीत हर हो जाना है.
सागर अपने मन -दर्पण में
चाँद समेटे रख सकता है ,
और हवाओं का ये आँचल
सुमन झोली में भर सकता है ,
माँग लो आज मुझको मुझी से तुम,
फिर न कहना कि मौका न मिला,
लगा है मेरा आज सर्वस्व दांव पर,
लूट मची है तुम भी भर लो दामन,
प्रेम बचा है अंतर में.. है भरा ठूँस-2,
यूँ भी है अधिकार तुम्हारा मुझ पर,
लगे हैं मेले चारों तरफ लूटखोरों के,
फिर क्यों पीछे तू भी रहे आ लूट मुझे,
जी रहा हूँ जीवन तेरी आशा से रहित,
नहीं है तू.. अब लग रही बोलियाँ हैं,
मन बैठा सोच रहा कौन घडी थी वह,
मैंने जब तुझसे लगाया अपना दिल,
"तीस बरस" बाकी जीवन के तेरे बिन,
बिन तेरे अब उनको जी पाउँगा कैसे,
एक पहर भी अब जी पाना मुश्किल है,
अरसा है लम्बा अब जी पाउँगा कैसे,
माँग लो आज मुझको मुझी से तुम,
फिर न कहना कि मौका न मिला,
लगा है मेरा आज सर्वस्व दांव पर !!
फिर न कहना कि मौका न मिला,
लगा है मेरा आज सर्वस्व दांव पर,
लूट मची है तुम भी भर लो दामन,
प्रेम बचा है अंतर में.. है भरा ठूँस-2,
यूँ भी है अधिकार तुम्हारा मुझ पर,
लगे हैं मेले चारों तरफ लूटखोरों के,
फिर क्यों पीछे तू भी रहे आ लूट मुझे,
जी रहा हूँ जीवन तेरी आशा से रहित,
नहीं है तू.. अब लग रही बोलियाँ हैं,
मन बैठा सोच रहा कौन घडी थी वह,
मैंने जब तुझसे लगाया अपना दिल,
"तीस बरस" बाकी जीवन के तेरे बिन,
बिन तेरे अब उनको जी पाउँगा कैसे,
एक पहर भी अब जी पाना मुश्किल है,
अरसा है लम्बा अब जी पाउँगा कैसे,
माँग लो आज मुझको मुझी से तुम,
फिर न कहना कि मौका न मिला,
लगा है मेरा आज सर्वस्व दांव पर !!
Sunday, April 11, 2010
निकल कर देखा.. अपनी माँ के उदर से उसने,
अनजानी.. कुछ मिचमिचाती अपनी आँखों से,
सारा जहान था दिख रहा अजनबी सा उसको,
लग रही माँ भी उसकी.. अजनबी सी उसको,
बना फिर इक नया.. माँ से पहचान का नाता,फिर भी
अकसर.. क्यूँ लगती माँ अजनबी सी,
गोद में जनम ले रहा.. नाता नया जनम के बाद,
है कैसी विडम्बना.. कैसा है.. यह नाते पर नाता,
बनने के बाद बनाना पड़ता.. फिर एक नया नाता,
है कितना अपनापन.. समाया होता इसमें भी,
हर रोज़ है आती.. एक नयी हरकत भोली मासूम,
जुड़ता हर रोज़.. एक नया अहसास भी...
है कैसी विडम्बना.. कैसा है.. यह नाते पर नाता,
बनने के बाद बनाना पड़ता.. फिर एक नया नाता...
अनजानी.. कुछ मिचमिचाती अपनी आँखों से,
सारा जहान था दिख रहा अजनबी सा उसको,
लग रही माँ भी उसकी.. अजनबी सी उसको,
बना फिर इक नया.. माँ से पहचान का नाता,फिर भी
अकसर.. क्यूँ लगती माँ अजनबी सी,
गोद में जनम ले रहा.. नाता नया जनम के बाद,
है कैसी विडम्बना.. कैसा है.. यह नाते पर नाता,
बनने के बाद बनाना पड़ता.. फिर एक नया नाता,
है कितना अपनापन.. समाया होता इसमें भी,
हर रोज़ है आती.. एक नयी हरकत भोली मासूम,
जुड़ता हर रोज़.. एक नया अहसास भी...
है कैसी विडम्बना.. कैसा है.. यह नाते पर नाता,
बनने के बाद बनाना पड़ता.. फिर एक नया नाता...
शुष्क धरती की प्यास बुझाने को ,
पानी की एक बूंद ही काफी है !
किसी की जिंदगी बसाने को ,
प्यार भरी एक साँस ही काफी है !
जीवन के मोती बनाती है सीप बहुत ,
उसे पानी की एक बूंद ही काफी है !
जीते हैं जो हर वक़्त सडको पर नंगे भूखे ,
उनको तो एक जून की रोटी ही काफी है !
जीते हैं जो हर रोज औरों के लिए,
उनका एक पल ही जीना काफी है !
जो मरता है हर पल धरा बचाने को ,
उसे खुद को एक कण ही काफी है !
सूख, उजड़ रही है मानवता यहाँ ,
इसे बचाने को एक 'चीर' ही काफी है !
पानी की एक बूंद ही काफी है !
किसी की जिंदगी बसाने को ,
प्यार भरी एक साँस ही काफी है !
जीवन के मोती बनाती है सीप बहुत ,
उसे पानी की एक बूंद ही काफी है !
जीते हैं जो हर वक़्त सडको पर नंगे भूखे ,
उनको तो एक जून की रोटी ही काफी है !
जीते हैं जो हर रोज औरों के लिए,
उनका एक पल ही जीना काफी है !
जो मरता है हर पल धरा बचाने को ,
उसे खुद को एक कण ही काफी है !
सूख, उजड़ रही है मानवता यहाँ ,
इसे बचाने को एक 'चीर' ही काफी है !
नन्ही कली
एक नन्ही दुलारी कली
जन्म लेकर कितनी खुशियाँ लाए
कहते है साथ उसके लक्ष्मी आए
वो अपने आप में ही है हर देवी का रूप
उसे पाकर ना जाने मैने कितने आशीर्वाद पाए
तमन्ना रखती हूँ ,वो फुलो सी खिले
इस से पहले की वो अपने भंवर से मिले
उसके संग मैं अनुभव करना चाहू
मेरा बचपन,वो अनमोल क्षण
जब कभी मेरी आँखें लगे भरी भरी
मेरी ही मा बन,मुझ पे ममता लूटाती सारी
वो ही मुस्कान और हिम्मत मेरी
एक नन्ही दुलारी कली
ईश्वर से मुझे तोहफे में मिली.
जन्म लेकर कितनी खुशियाँ लाए
कहते है साथ उसके लक्ष्मी आए
वो अपने आप में ही है हर देवी का रूप
उसे पाकर ना जाने मैने कितने आशीर्वाद पाए
तमन्ना रखती हूँ ,वो फुलो सी खिले
इस से पहले की वो अपने भंवर से मिले
उसके संग मैं अनुभव करना चाहू
मेरा बचपन,वो अनमोल क्षण
जब कभी मेरी आँखें लगे भरी भरी
मेरी ही मा बन,मुझ पे ममता लूटाती सारी
वो ही मुस्कान और हिम्मत मेरी
एक नन्ही दुलारी कली
ईश्वर से मुझे तोहफे में मिली.
Saturday, April 10, 2010
आपसे जुड़े ज्यादातर रिश्ते ऐसे होते हैं जिनको आप किसी न किसी नाम से पुकारते हैं। उन रिश्तों के बारे में सोचने की आपको जरूरत ही नहीं पड़ती है। उनके प्रति आपका फर्ज एवं अधिकार मानो जन्म से ही समझा दिया गया होता है इसीलिए बिना किसी विचार-विमर्श के सहजता से आप उसे निभाते चले जाते हैं।
कुछ ऐसे होते हैं जो आपका दुख-दर्द सुन तो लेते हैं पर उससे ज्यादा वे और कुछ नहीं करते। जिनसे आपकी महीनों बात नहीं होती पर मुसीबत में आप उन्हें फोन करते हैं और आपकी बातों और आवाज से उन्हें लगता है कि आपको उनकी हमदर्दी की जरूरत है। वह आपसे परेशानी पूछते हैं, आपको दिलासा देते हैं और उनसे कुछ बन पड़ता है तो वे आपके लिए करते भी हैं।
पर, कई बार आप एक विचित्र से रिश्ते में पड़ जाते हैं। न तो उसका कोई नाम होता है और न ही आपको यह पता होता है कि आपका उस व्यक्ति पर कितना अधिकार है। इतना ही नहीं, आपका उस व्यक्ति के प्रति क्या कर्तव्य होना चाहिए यह भी आप नहीं समझ पाते हैं। कभी आप उससे हफ्तों नहीं मिलते और जब मिलते हैं तो खूब अधिकार से झगड़ा करते हैं। आपकी यही ख्वाहिश होती है कि आपको वह मनाए, आपकी सारी शिकायतों पर माफी माँगे, कान पकड़े और सारी गलतियों को सर आँखों पर ले। आपको दिल व जान से प्यारा होता है।
कुछ ऐसे होते हैं जो आपका दुख-दर्द सुन तो लेते हैं पर उससे ज्यादा वे और कुछ नहीं करते। जिनसे आपकी महीनों बात नहीं होती पर मुसीबत में आप उन्हें फोन करते हैं और आपकी बातों और आवाज से उन्हें लगता है कि आपको उनकी हमदर्दी की जरूरत है। वह आपसे परेशानी पूछते हैं, आपको दिलासा देते हैं और उनसे कुछ बन पड़ता है तो वे आपके लिए करते भी हैं।
पर, कई बार आप एक विचित्र से रिश्ते में पड़ जाते हैं। न तो उसका कोई नाम होता है और न ही आपको यह पता होता है कि आपका उस व्यक्ति पर कितना अधिकार है। इतना ही नहीं, आपका उस व्यक्ति के प्रति क्या कर्तव्य होना चाहिए यह भी आप नहीं समझ पाते हैं। कभी आप उससे हफ्तों नहीं मिलते और जब मिलते हैं तो खूब अधिकार से झगड़ा करते हैं। आपकी यही ख्वाहिश होती है कि आपको वह मनाए, आपकी सारी शिकायतों पर माफी माँगे, कान पकड़े और सारी गलतियों को सर आँखों पर ले। आपको दिल व जान से प्यारा होता है।
Friday, April 9, 2010
सुख-दुख
कुछ ऐसा लिखो जिससे खुशी के वक्त पढ़ें तो गम याद आ जाए और गम के वक्त पढ़ें तो खुशी के पल याद आएँ। बीरबल ने कुछ देर सोचा, फिर कागज पर यह वाक्य लिखकर बादशाह को दिया- यह वक्त गुजर जाएगा। सच! इन चार शब्दों के वाक्य में जीवन की कितनी बड़ी सच्चाई छुपी है।
सभी जानते हैं कि सुख-दुख जीवन के दो पहलू हैं जिनका क्रमानुसार आना-जाना लगा ही रहता है। किंतु हम सब कुछ जानते-समझते हुए भी दोनों ही वक्त अपनी भावनाओं-संवेदनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाते। जब खुशियों के पल हमारी झोली में होते हैं तो उस समय हम स्वयं में ही इतने मग्न हो जाते हैं कि क्या अच्छा क्या बुरा, इस पर कभी विचार नहीं करते हैं।
अपनी किस्मत व भाग्य पर इठलाते हुए अन्य की तुलना में श्रेष्ठ समझते हैं और अहंकारवश कुछ ऐसे कार्य तक कर देते हैं जिनसे स्वयं का हित और दूसरे का अहित हो सकता है। इस क्षणिक सुख को स्थायी मानते हुए ही जीने लगते हैं और वास्तव में यही सोच अपना लेते हैं कि अब हमें क्या चाहिए, सब कुछ तो मिल गया। बस! एक इसी भ्रांति के कारण स्वयं को उतने योग्य व सफल साबित नहीं कर पाते जितना कि कर सकते थे।
इसी तरह दुःखद घड़ी में भी अपना आपा खो बेसुध होकर सब भूल जाते हैं। छोटे-से छोटे दुःख तक में धैर्य-संयम नहीं रख पाते। बुद्धि-विवेक व आत्मबल होने के बावजूद स्वयं को इतना दयनीय, असहाय व बेचारा महसूस करते हैं कि आत्मसम्मान, स्वाभिमान तक से समझौता कर लेते हैं। यही कारण है कि सब कुछ होते हुए भी उम्रभर अयोग्य-असफल होने लगते हैं।
कहने का सार यह है कि जो भी छोटी-सी जिंदगी हमें मिली है उसमें सुख व दुख दोनों ही से हमारा वास्ता होगा, यही शाश्वत सत्य है। इस सच को हम जितनी जल्दी स्वीकार कर लेंगे उतना ही हमारे लिए अच्छा रहेगा, क्योंकि फिर ऐसा समय आने पर हम अपने संवेगों पर काबू कर उन्हें स्थिर रख सकेंगे।
सभी जानते हैं कि सुख-दुख जीवन के दो पहलू हैं जिनका क्रमानुसार आना-जाना लगा ही रहता है। किंतु हम सब कुछ जानते-समझते हुए भी दोनों ही वक्त अपनी भावनाओं-संवेदनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाते। जब खुशियों के पल हमारी झोली में होते हैं तो उस समय हम स्वयं में ही इतने मग्न हो जाते हैं कि क्या अच्छा क्या बुरा, इस पर कभी विचार नहीं करते हैं।
अपनी किस्मत व भाग्य पर इठलाते हुए अन्य की तुलना में श्रेष्ठ समझते हैं और अहंकारवश कुछ ऐसे कार्य तक कर देते हैं जिनसे स्वयं का हित और दूसरे का अहित हो सकता है। इस क्षणिक सुख को स्थायी मानते हुए ही जीने लगते हैं और वास्तव में यही सोच अपना लेते हैं कि अब हमें क्या चाहिए, सब कुछ तो मिल गया। बस! एक इसी भ्रांति के कारण स्वयं को उतने योग्य व सफल साबित नहीं कर पाते जितना कि कर सकते थे।
इसी तरह दुःखद घड़ी में भी अपना आपा खो बेसुध होकर सब भूल जाते हैं। छोटे-से छोटे दुःख तक में धैर्य-संयम नहीं रख पाते। बुद्धि-विवेक व आत्मबल होने के बावजूद स्वयं को इतना दयनीय, असहाय व बेचारा महसूस करते हैं कि आत्मसम्मान, स्वाभिमान तक से समझौता कर लेते हैं। यही कारण है कि सब कुछ होते हुए भी उम्रभर अयोग्य-असफल होने लगते हैं।
कहने का सार यह है कि जो भी छोटी-सी जिंदगी हमें मिली है उसमें सुख व दुख दोनों ही से हमारा वास्ता होगा, यही शाश्वत सत्य है। इस सच को हम जितनी जल्दी स्वीकार कर लेंगे उतना ही हमारे लिए अच्छा रहेगा, क्योंकि फिर ऐसा समय आने पर हम अपने संवेगों पर काबू कर उन्हें स्थिर रख सकेंगे।
बन्नो हमारी
लाडो हमारी है चाँदतारा,
वो चाँदतारा वर माँगती है
बन्नो हमारी है चाँदतारा,
वो चाँदतारा वर माँगती है॥
ढोलक की थाप और घर में गूँजते ये विवाह के गीत सुन मन मयूर नाच उठता है। बेटी के ब्याह की सोच-सोच ही ऐसा लगने लगता है, मानो सारे जहाँ की खुशियाँ हाथ लग गई हों, सारे सपने पूरे हो गए हों। सच ही तो है! बेटी के जन्म के साथ उसको स्पर्श करते ही न जाने कितने रंग-बिरंगे खुशियों की सौगात से परिपूर्ण सपने आँखों में तैरने लगते हैं।
ज्यों-ज्यों वो बड़ी होती जाती है, त्यों-त्यों ख्वाब के साकार होने की इच्छा भी माता-पिता की बलवती होने लगती है और वे तन-मन धन से उन्हें पूरा करने में लग जाते हैं।
यही फिर उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य रह जाता है कि बेटी को सिर्फ और सिर्फ सुखी संसार ही मिले। कैसी भी परेशानी अथवा दुःख की घड़ी सदा-सदा कोसों दूर रहे।
वो चाँदतारा वर माँगती है
बन्नो हमारी है चाँदतारा,
वो चाँदतारा वर माँगती है॥
ढोलक की थाप और घर में गूँजते ये विवाह के गीत सुन मन मयूर नाच उठता है। बेटी के ब्याह की सोच-सोच ही ऐसा लगने लगता है, मानो सारे जहाँ की खुशियाँ हाथ लग गई हों, सारे सपने पूरे हो गए हों। सच ही तो है! बेटी के जन्म के साथ उसको स्पर्श करते ही न जाने कितने रंग-बिरंगे खुशियों की सौगात से परिपूर्ण सपने आँखों में तैरने लगते हैं।
ज्यों-ज्यों वो बड़ी होती जाती है, त्यों-त्यों ख्वाब के साकार होने की इच्छा भी माता-पिता की बलवती होने लगती है और वे तन-मन धन से उन्हें पूरा करने में लग जाते हैं।
यही फिर उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य रह जाता है कि बेटी को सिर्फ और सिर्फ सुखी संसार ही मिले। कैसी भी परेशानी अथवा दुःख की घड़ी सदा-सदा कोसों दूर रहे।
उम्र भी जी लो...
बरसते हुए बादल, शायद ही कभी गरजते,
बयां कर जाते बहुत कुछ, मगर कभी कुछ ना कहते.
तुम्हारी हर छोटी छोटी बात, और हर एक बात मुझे बहुत ही भाती है,
ऐसा कोई पल नहीं, जिसमे तुम्हारी याद नहीं आती है.
इतने शांत होकर भी इतने नटखट हो,
कभी एकदम बुज़ुर्ग तो कभी बच्चे हो,
लगते बहुत अच्छे हो, मगर एक ही शिकायत है,
कभी अपनी उम्र भी जी लो...
बयां कर जाते बहुत कुछ, मगर कभी कुछ ना कहते.
तुम्हारी हर छोटी छोटी बात, और हर एक बात मुझे बहुत ही भाती है,
ऐसा कोई पल नहीं, जिसमे तुम्हारी याद नहीं आती है.
इतने शांत होकर भी इतने नटखट हो,
कभी एकदम बुज़ुर्ग तो कभी बच्चे हो,
लगते बहुत अच्छे हो, मगर एक ही शिकायत है,
कभी अपनी उम्र भी जी लो...
Wednesday, April 7, 2010
Mere Guruvar
sab se pyar nam , subse dulara nam , man bhavan aur man mohak nam , tera hi nam , jis ne visaru kabhi , jise japta rahu har dam , jise na bhulu me kabhi bhulu bhale apne aap ko bas na bhulu teri mahima , tere gungan , tera didhar , tera dharsh aur teri karuna kripa , vo hi to hai sahara , vohi to hi mera kinara , vohi sacha sathi , mera mit aur mera hamdam , har pal har xhan bas apne nam ma dan dena , apne simran ka dan dena , apne didar ka diyan dena mere Guruvar
naresh motwani: mera data , mere ram ,mere dukh bhanjan ,mere moula , mere sache sathi , tere bin na koi aur sahara , bas le le apni sharan me baksh le muje mere har gunaho ke liye , nahi janta kya jiwan hai , nahi janta kya tera simran aur puja hai bas dil de betha hu tuje ab is dil se kabhi dur mat karna mere data
naresh motwani: mera data , mere ram ,mere dukh bhanjan ,mere moula , mere sache sathi , tere bin na koi aur sahara , bas le le apni sharan me baksh le muje mere har gunaho ke liye , nahi janta kya jiwan hai , nahi janta kya tera simran aur puja hai bas dil de betha hu tuje ab is dil se kabhi dur mat karna mere data
Thursday, April 1, 2010
realisation of god
A Blessing
The man whispered,
"God, speak to me"
and a meadowlark sang.
But, the man did not hear.
So the man yelled,
"God, speak to me"
and the thunder rolled across the sky.
But, the man did not listen.
The man looked around and said,
"God let me see you."
And a star shined brightly.
But the man did not see.
And, the man shouted,
"God show me a miracle."
And, a life was born.
But, the man did not notice.
So, the man cried out in despair,
"Touch me God, and let me know you are here."
Whereupon, God reached down and touched the man.
But, the man brushed the butterfly away ...
and walked on.
I found this to be a great reminder that God is always around us in the little and simple things that we take for granted. Don't miss out on a blessing because it isn't packaged the way that you expect.
The man whispered,
"God, speak to me"
and a meadowlark sang.
But, the man did not hear.
So the man yelled,
"God, speak to me"
and the thunder rolled across the sky.
But, the man did not listen.
The man looked around and said,
"God let me see you."
And a star shined brightly.
But the man did not see.
And, the man shouted,
"God show me a miracle."
And, a life was born.
But, the man did not notice.
So, the man cried out in despair,
"Touch me God, and let me know you are here."
Whereupon, God reached down and touched the man.
But, the man brushed the butterfly away ...
and walked on.
I found this to be a great reminder that God is always around us in the little and simple things that we take for granted. Don't miss out on a blessing because it isn't packaged the way that you expect.
dil ek mandir
bas dil ko to mandir banana hai aur usme murat sajani hai apne pratam ki voh pritam jo kabhi juda nahi hota , kabhi nahi bichadta , kabhi hamse alag nahi hota , bhichadta hai yah sansar , bhichadti hai yah sansari vastue jo kabhi hamari nahi thi par galti se ham apni samaj bethate hai , jinke liye mare mare firte hai , rat din rote rahate hai voh sab to bichad jayega par jo kabhi nahi bhichdega , kabhi hamese juda nahi hoga use kab ham prit karenge , kab dil me mandir me use sajayenge ,kab tak bahar gumte rahenge , kyo nahi ham dil ke mandir me dubate ,kyo hamari mati mari gayi hai , kab tak sansare ke bandanome dubate rahenge , kab tak sabko kush karte phirte rahenege , kayo nahi ham apne atma deva ko kush karte , kyo nahi ham unke liye apni prit ki dori ko kaste , kab tak ............................................................................................... samay ka panchi udta ja raha hai , har din chutta ja raha hai , bas kahi der na ho jaye
Wednesday, March 31, 2010
लाडो हमारी है चाँदतारा, वो चाँदतारा वर माँगती है
बन्नो हमारी है चाँदतारा, वो चाँदतारा वर माँगती है॥
ढोलक की थाप और घर में गूँजते ये विवाह के गीत सुन मन मयूर नाच उठता है। बेटी के ब्याह की सोच-सोच ही ऐसा लगने लगता है, मानो सारे जहाँ की खुशियाँ हाथ लग गई हों, सारे सपने पूरे हो गए हों। सच ही तो है! बेटी के जन्म के साथ उसको स्पर्श करते ही न जाने कितने रंग-बिरंगे खुशियों की सौगात से परिपूर्ण सपने आँखों में तैरने लगते हैं।
ज्यों-ज्यों वो बड़ी होती जाती है, त्यों-त्यों ख्वाब के साकार होने की इच्छा भी माता-पिता की बलवती होने लगती है और वे तन-मन धन से उन्हें पूरा करने में लग जाते हैं।
यही फिर उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य रह जाता है कि बेटी को सिर्फ और सिर्फ सुखी संसार ही मिले। कैसी भी परेशानी अथवा दुःख की घड़ी सदा-सदा कोसों दूर रहे। लेकिन सपना जब तक सपना रहता है तभी तक अच्छा लगता है, क्योंकि हकीकत बन जब सामने आता है तो जरूरी नहीं जैसा आपने देखा-सोचा, बिलकुल वैसा ही यथार्थ में भी दिखाई दे, थोड़ा-बहुत अदल-बदल तो हो ही जाता है।
इसीलिए कहा गया है कि जो माता-पिता आपसी सूझ-बूझ व समझदारी से सपने व सच्चाई में ठीक सामंजस्य स्थापित कर लेते हैं। वे फिर स्वयं के साथ-साथ बेटी के सुखद भविष्य की भी नींव रख लेते हैं अन्यथा उनके साथ-साथ ताउम्र उसे भी परेशानी उठानी पड़ती है।
बचपन से लेकर आज तक जो भी उनकी भावी दामाद को लेकर इच्छाएँ-आकांक्षाएँ थीं, सब वे एक ही लड़के में देखना चाहते थे। नतीजतन जितने भी रिश्ते आते, सभी में कुछ न कुछ कमी उन्हें नजर आ ही जाती। कभी संयुक्त परिवार है तो कभी खानदान ज्यादा ऊँचा नहीं लग रहा।
कभी लड़के का रूप-रंग सलोना है तो कभी लड़के की कम आय ही नजर आने लगती। बेटी 27 साल की हो गई। अब न तो उसमें वो मासूमियत-रौनक रह गई, जो पहले थी साथ ही माता-पिता का भी धैर्य व हिम्मत धीरे-धीरे जवाब देने लगी। अब तो हर पल उन्हें यही लगता, बड़ी भूल कर दी जो इतने नुक्स निकाले।
कई अच्छे-अच्छे रिश्ते बिना वजह ही हाथ से निकल जाने दिए। जहाँ पहले मनमाफिक सब कुछ मिल जाता, वहीं अब मन को समझा कहीं न कहीं बात पक्की करनी ही होगी, नहीं तो देर होती जाएगी।
ऐसा कई माता-पिताओं के साथ होता है और अच्छे-अच्छे के चक्कर में वे इधर-उधर भटकते ही रहते हैं। समझदारी व बुद्धिमत्ता से न सोच पाने के कारण फिर बाद में जैसे-तैसे समझौता करना ही पड़ता है और जिंदगीभर यही अफसोस दिल में रह जाता है कि हमारी बेटी को ज्यादा सुख-खुशियाँ मिल सकती थीं, यदि हमने वास्तविकता को पहचान हवा में सपने न बुने होते।
ऐसे ही मेरी परिचिता की बेटी साधारण रंग-रूप की है। पढ़ाई-लिखाई या फिर अन्य क्षेत्र में भी औसत दर्जे की ही रही है किंतु उसे भी चाहिए- सपनों का-सा राजकुमार, जो जिन्ना की भाँति पलक झपकते ही उसकी हर इच्छा पूरी कर दे। पलभर में सारे सुख-साधन उपलब्ध करा दे। आजकल इस तरह की विचारधारा का एक बड़ा कारण व्यक्ति की अपरिपक्व सोच तथा आर्थिक स्थिति का मजबूत होना भी है, क्योंकि पैसे के बल पर वे सब कुछ पाना चाहते हैं।
जब माता-पिता लड़का देख रिश्ते तय करने जाते हैं तो एक खरीददार की तरह ही उनका व्यवहार हो जाता है कि जब पैसा अच्छा देंगे तो माल भी अच्छा ही चाहिए। कहीं किसी प्रकार की कोई कमी नहीं होनी चाहिए। बस! यही संकीर्ण मानसिकता व सोच का ढंग ही उनकी परेशानी का कारण बन जाता है, जो कि आज नहीं तो कल उन्हें पछताने के लिए मजबूर करता ही है।
कहते हैं न जोड़ियाँ स्वर्ग में बनती हैं। हम तो केवल यहाँ थोड़ी-बहुत दौड़भाग कर उनको मिलाते हैं, गठबंधन कराते हैं अतः बेटी हो या बेटा, दोनों ही जब विवाह योग्य हो जाएँ तो उनके लिए उन्हीं के अनुरूप दामाद अथवा बहू चुनें। जरूरत से ज्यादा नुक्ताचीनी या फिर मन में वहम पालना उचित नहीं होता।
जहाँ भी, जब भी यथायोग्य जोड़ा मिले, खुशी-खुशी बिना किसी शंका व चिंता के बच्चों को उनके सुखद भविष्य का आशीर्वाद देकर नवजीवन में प्रवेश करने की अनुमति दें और ईश्वर से प्रार्थना कर दीर्घायु तथा सदा सुखी रहने की कामना करें।
बन्नो हमारी है चाँदतारा, वो चाँदतारा वर माँगती है॥
ढोलक की थाप और घर में गूँजते ये विवाह के गीत सुन मन मयूर नाच उठता है। बेटी के ब्याह की सोच-सोच ही ऐसा लगने लगता है, मानो सारे जहाँ की खुशियाँ हाथ लग गई हों, सारे सपने पूरे हो गए हों। सच ही तो है! बेटी के जन्म के साथ उसको स्पर्श करते ही न जाने कितने रंग-बिरंगे खुशियों की सौगात से परिपूर्ण सपने आँखों में तैरने लगते हैं।
ज्यों-ज्यों वो बड़ी होती जाती है, त्यों-त्यों ख्वाब के साकार होने की इच्छा भी माता-पिता की बलवती होने लगती है और वे तन-मन धन से उन्हें पूरा करने में लग जाते हैं।
यही फिर उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य रह जाता है कि बेटी को सिर्फ और सिर्फ सुखी संसार ही मिले। कैसी भी परेशानी अथवा दुःख की घड़ी सदा-सदा कोसों दूर रहे। लेकिन सपना जब तक सपना रहता है तभी तक अच्छा लगता है, क्योंकि हकीकत बन जब सामने आता है तो जरूरी नहीं जैसा आपने देखा-सोचा, बिलकुल वैसा ही यथार्थ में भी दिखाई दे, थोड़ा-बहुत अदल-बदल तो हो ही जाता है।
इसीलिए कहा गया है कि जो माता-पिता आपसी सूझ-बूझ व समझदारी से सपने व सच्चाई में ठीक सामंजस्य स्थापित कर लेते हैं। वे फिर स्वयं के साथ-साथ बेटी के सुखद भविष्य की भी नींव रख लेते हैं अन्यथा उनके साथ-साथ ताउम्र उसे भी परेशानी उठानी पड़ती है।
बचपन से लेकर आज तक जो भी उनकी भावी दामाद को लेकर इच्छाएँ-आकांक्षाएँ थीं, सब वे एक ही लड़के में देखना चाहते थे। नतीजतन जितने भी रिश्ते आते, सभी में कुछ न कुछ कमी उन्हें नजर आ ही जाती। कभी संयुक्त परिवार है तो कभी खानदान ज्यादा ऊँचा नहीं लग रहा।
कभी लड़के का रूप-रंग सलोना है तो कभी लड़के की कम आय ही नजर आने लगती। बेटी 27 साल की हो गई। अब न तो उसमें वो मासूमियत-रौनक रह गई, जो पहले थी साथ ही माता-पिता का भी धैर्य व हिम्मत धीरे-धीरे जवाब देने लगी। अब तो हर पल उन्हें यही लगता, बड़ी भूल कर दी जो इतने नुक्स निकाले।
कई अच्छे-अच्छे रिश्ते बिना वजह ही हाथ से निकल जाने दिए। जहाँ पहले मनमाफिक सब कुछ मिल जाता, वहीं अब मन को समझा कहीं न कहीं बात पक्की करनी ही होगी, नहीं तो देर होती जाएगी।
ऐसा कई माता-पिताओं के साथ होता है और अच्छे-अच्छे के चक्कर में वे इधर-उधर भटकते ही रहते हैं। समझदारी व बुद्धिमत्ता से न सोच पाने के कारण फिर बाद में जैसे-तैसे समझौता करना ही पड़ता है और जिंदगीभर यही अफसोस दिल में रह जाता है कि हमारी बेटी को ज्यादा सुख-खुशियाँ मिल सकती थीं, यदि हमने वास्तविकता को पहचान हवा में सपने न बुने होते।
ऐसे ही मेरी परिचिता की बेटी साधारण रंग-रूप की है। पढ़ाई-लिखाई या फिर अन्य क्षेत्र में भी औसत दर्जे की ही रही है किंतु उसे भी चाहिए- सपनों का-सा राजकुमार, जो जिन्ना की भाँति पलक झपकते ही उसकी हर इच्छा पूरी कर दे। पलभर में सारे सुख-साधन उपलब्ध करा दे। आजकल इस तरह की विचारधारा का एक बड़ा कारण व्यक्ति की अपरिपक्व सोच तथा आर्थिक स्थिति का मजबूत होना भी है, क्योंकि पैसे के बल पर वे सब कुछ पाना चाहते हैं।
जब माता-पिता लड़का देख रिश्ते तय करने जाते हैं तो एक खरीददार की तरह ही उनका व्यवहार हो जाता है कि जब पैसा अच्छा देंगे तो माल भी अच्छा ही चाहिए। कहीं किसी प्रकार की कोई कमी नहीं होनी चाहिए। बस! यही संकीर्ण मानसिकता व सोच का ढंग ही उनकी परेशानी का कारण बन जाता है, जो कि आज नहीं तो कल उन्हें पछताने के लिए मजबूर करता ही है।
कहते हैं न जोड़ियाँ स्वर्ग में बनती हैं। हम तो केवल यहाँ थोड़ी-बहुत दौड़भाग कर उनको मिलाते हैं, गठबंधन कराते हैं अतः बेटी हो या बेटा, दोनों ही जब विवाह योग्य हो जाएँ तो उनके लिए उन्हीं के अनुरूप दामाद अथवा बहू चुनें। जरूरत से ज्यादा नुक्ताचीनी या फिर मन में वहम पालना उचित नहीं होता।
जहाँ भी, जब भी यथायोग्य जोड़ा मिले, खुशी-खुशी बिना किसी शंका व चिंता के बच्चों को उनके सुखद भविष्य का आशीर्वाद देकर नवजीवन में प्रवेश करने की अनुमति दें और ईश्वर से प्रार्थना कर दीर्घायु तथा सदा सुखी रहने की कामना करें।
Monday, March 29, 2010
હે પ્રભુ,
હે પ્રભુ,
સંજોગો વિકટ હોય ત્યારે,સુંદર રીતે કેમ જીવવું? તે મને શીખવ.
બધી બાબતો અવળી પડતી હોય ત્યારે, હાસ્ય અને આનંદ કેમ ન ગુમાવવાં? તે મને શીખવ.
પરિસ્થિતિ ગુસ્સો પ્રેરે તેવી હોય ત્યારે, શાંતિ કેમ રાખવી? તે મને શીખવ.
કામ અતિશય મુશ્કેલ લાગતું હોય ત્યારે, ખંતથી તેમાં લાગ્યા કેમ રહેવું? તે મને શીખવ.
કઠોર ટીકા ને નિંદાનો વરસાદ વરસે ત્યારે, તેમાંથી મારા ખપનું ગ્રહણ કેમ કરી લેવું? તે મને શીખવ.
પ્રલોભનો, પ્રશંસા, ખુશામતની વચ્ચે તટસ્થ કેમ રહેવું? ત મને શીખવ.
ચારે બાજુથી મુશ્કેલીઓ ઘેરી વળે,શ્રધ્ધા ડગુમગુ થઈ જાય,
નિરાશાની ગર્તામાં મન ડૂબી જાય ત્યારે, ધૈર્ય અને શાંતિથી તારી કૃપાની પ્રતીક્ષા કેમ કરવી? તે મને શીખવ.
સંજોગો વિકટ હોય ત્યારે,સુંદર રીતે કેમ જીવવું? તે મને શીખવ.
બધી બાબતો અવળી પડતી હોય ત્યારે, હાસ્ય અને આનંદ કેમ ન ગુમાવવાં? તે મને શીખવ.
પરિસ્થિતિ ગુસ્સો પ્રેરે તેવી હોય ત્યારે, શાંતિ કેમ રાખવી? તે મને શીખવ.
કામ અતિશય મુશ્કેલ લાગતું હોય ત્યારે, ખંતથી તેમાં લાગ્યા કેમ રહેવું? તે મને શીખવ.
કઠોર ટીકા ને નિંદાનો વરસાદ વરસે ત્યારે, તેમાંથી મારા ખપનું ગ્રહણ કેમ કરી લેવું? તે મને શીખવ.
પ્રલોભનો, પ્રશંસા, ખુશામતની વચ્ચે તટસ્થ કેમ રહેવું? ત મને શીખવ.
ચારે બાજુથી મુશ્કેલીઓ ઘેરી વળે,શ્રધ્ધા ડગુમગુ થઈ જાય,
નિરાશાની ગર્તામાં મન ડૂબી જાય ત્યારે, ધૈર્ય અને શાંતિથી તારી કૃપાની પ્રતીક્ષા કેમ કરવી? તે મને શીખવ.
હે પરમાત્મા,
હે પરમાત્મા,
મને તારી શાંતિનું વાહન બનાવ.
જ્યાં ધિક્કાર છે ત્યાં હું પ્રેમ વાવું.
જ્યાં ઘાવ થયો છે ત્યાં ક્ષમા
જ્યાં શંકા છે ત્યાં શ્રધ્ધા
જ્યાં હતાશા છે ત્યાં આશા
જ્યાં અંધકાર છે ત્યાં પ્રકાશ
જ્યાં શોક છે ત્યાં આનંદ.
હે દિવ્ય સ્વામી, એવું કરો કે,
હું આશ્વાસન મેળવવા નહિ, આપવા ચાહું
મને બધાં સમજે એ કરતાં હું બધાંને સમજવા ચાહું.
મને કોઈ પ્રેમ આપે એ કરતાં હું કોઈને પ્રેમ આપવા ચાહું.
કારણ કે,આપવામાં જ આપણને મળે છે;
ક્ષમા કરવામાં જ આપણે ક્ષમા પામીએ છીએ.
મૃત્ય પામવામાં જ આપણે શાશ્વત જીવનમાં જન્મીએ છીએ
મને તારી શાંતિનું વાહન બનાવ.
જ્યાં ધિક્કાર છે ત્યાં હું પ્રેમ વાવું.
જ્યાં ઘાવ થયો છે ત્યાં ક્ષમા
જ્યાં શંકા છે ત્યાં શ્રધ્ધા
જ્યાં હતાશા છે ત્યાં આશા
જ્યાં અંધકાર છે ત્યાં પ્રકાશ
જ્યાં શોક છે ત્યાં આનંદ.
હે દિવ્ય સ્વામી, એવું કરો કે,
હું આશ્વાસન મેળવવા નહિ, આપવા ચાહું
મને બધાં સમજે એ કરતાં હું બધાંને સમજવા ચાહું.
મને કોઈ પ્રેમ આપે એ કરતાં હું કોઈને પ્રેમ આપવા ચાહું.
કારણ કે,આપવામાં જ આપણને મળે છે;
ક્ષમા કરવામાં જ આપણે ક્ષમા પામીએ છીએ.
મૃત્ય પામવામાં જ આપણે શાશ્વત જીવનમાં જન્મીએ છીએ
भोर के तारे ने एक दिन कहा मुझसे
तुम क्षण भर के लिए मुझ पर
अपनी दृष्टि स्थिर रखना
मैं जैसे ही टूटकर गिरने लगूँ
तुम अपने प्रिय की चाह करना
देखी नहीं जाती क्योंकि मुझसे
तुम्हारी आँखों में सूनेपन की छाया।
इतना स्वार्थी हो नहीं सकता किन्तु
तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम
मेरे सुख के लिए टूटने को तैयार
दूर आकाश में टिमटिमाता
वह तारा ही तो एकमात्र साक्षी है
प्रतीक्षा की उन अनगिनत रातों का।
मुझसे बिना पूछे जो बहती थीं
उसकी मूक सांत्वना की छाया में
वो अश्रुधाराएँ चाँदी सी चमकती थी।
तुमसे कभी कह न सकी
वो तमाम बातें और
दिल के सूनेपन में लिखी हुई
यादों की किताब के सारे पन्ने
मैंने उसको ही सुनाए थे
उसने भी सहानुभूति के आँसू
प्रभात में पँखुरियों पर बिखराए थे।
इसलिए मैं खोना नहीं चाहती
विरह का वो अनमोल साथी
बस इतना भर चाहती हूँ
मेरे न रहने पर कभी
जब तुम निहारों सूना आकाश
तो वह नन्हा सितारा झिलमिलाए
बड़े जतन से सहेजी हुई
मेरे अर्थहीन प्रेम की गाथा
चुपके से तुमको कह सुनाए
तुम्हारी आँखों पर ठहरी बूँदों को
मेरा तर्पण समझकर मुस्कुराए।
तुम क्षण भर के लिए मुझ पर
अपनी दृष्टि स्थिर रखना
मैं जैसे ही टूटकर गिरने लगूँ
तुम अपने प्रिय की चाह करना
देखी नहीं जाती क्योंकि मुझसे
तुम्हारी आँखों में सूनेपन की छाया।
इतना स्वार्थी हो नहीं सकता किन्तु
तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम
मेरे सुख के लिए टूटने को तैयार
दूर आकाश में टिमटिमाता
वह तारा ही तो एकमात्र साक्षी है
प्रतीक्षा की उन अनगिनत रातों का।
मुझसे बिना पूछे जो बहती थीं
उसकी मूक सांत्वना की छाया में
वो अश्रुधाराएँ चाँदी सी चमकती थी।
तुमसे कभी कह न सकी
वो तमाम बातें और
दिल के सूनेपन में लिखी हुई
यादों की किताब के सारे पन्ने
मैंने उसको ही सुनाए थे
उसने भी सहानुभूति के आँसू
प्रभात में पँखुरियों पर बिखराए थे।
इसलिए मैं खोना नहीं चाहती
विरह का वो अनमोल साथी
बस इतना भर चाहती हूँ
मेरे न रहने पर कभी
जब तुम निहारों सूना आकाश
तो वह नन्हा सितारा झिलमिलाए
बड़े जतन से सहेजी हुई
मेरे अर्थहीन प्रेम की गाथा
चुपके से तुमको कह सुनाए
तुम्हारी आँखों पर ठहरी बूँदों को
मेरा तर्पण समझकर मुस्कुराए।
Sunday, March 28, 2010
Friday, March 26, 2010
मेरा नसीब
वो आँखों से दूर दिल के करीब था , मैं उसका वो मेरा नसीब था , ना कभी मिला ना जुदा हुआ , रिश्ता हम दोनों का कितना अजीब था !!
Thursday, March 25, 2010
Woh pehchan woh mulakat woh adhuri si baat
teri yaad satati hai mujhe har din har raat,
Woh maasumiyat mein sarabor jo lafz the tere
yun laga jaise dil ke ankahe ehsaas the mere,
Main khamoshi se sunti rahi teri baaton ko
aur pyar se sehlati rahi teri yaadon ko,
Apne jazbaton ko bayaan kar ke tu khamoshi se chala gaya
anjaane mein hee sahi apne liye mere ehsaas ko tu aur jaga gaya
teri yaad satati hai mujhe har din har raat,
Woh maasumiyat mein sarabor jo lafz the tere
yun laga jaise dil ke ankahe ehsaas the mere,
Main khamoshi se sunti rahi teri baaton ko
aur pyar se sehlati rahi teri yaadon ko,
Apne jazbaton ko bayaan kar ke tu khamoshi se chala gaya
anjaane mein hee sahi apne liye mere ehsaas ko tu aur jaga gaya
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Yeh dosti khusbo hai mehkay rahhna
Ham rahein ap k dil mein hamesha k lia... See more
Itne jaga dil mein hamare liye banae rakhna...