Friday, April 9, 2010

सुख-दुख

कुछ ऐसा लिखो जिससे खुशी के वक्त पढ़ें तो गम याद आ जाए और गम के वक्त पढ़ें तो खुशी के पल याद आएँ। बीरबल ने कुछ देर सोचा, फिर कागज पर यह वाक्य लिखकर बादशाह को दिया- यह वक्त गुजर जाएगा। सच! इन चार शब्दों के वाक्य में जीवन की कितनी बड़ी सच्चाई छुपी है।


सभी जानते हैं कि सुख-दुख जीवन के दो पहलू हैं जिनका क्रमानुसार आना-जाना लगा ही रहता है। किंतु हम सब कुछ जानते-समझते हुए भी दोनों ही वक्त अपनी भावनाओं-संवेदनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाते। जब खुशियों के पल हमारी झोली में होते हैं तो उस समय हम स्वयं में ही इतने मग्न हो जाते हैं कि क्या अच्छा क्या बुरा, इस पर कभी विचार नहीं करते हैं।

अपनी किस्मत व भाग्य पर इठलाते हुए अन्य की तुलना में श्रेष्ठ समझते हैं और अहंकारवश कुछ ऐसे कार्य तक कर देते हैं जिनसे स्वयं का हित और दूसरे का अहित हो सकता है। इस क्षणिक सुख को स्थायी मानते हुए ही जीने लगते हैं और वास्तव में यही सोच अपना लेते हैं कि अब हमें क्या चाहिए, सब कुछ तो मिल गया। बस! एक इसी भ्रांति के कारण स्वयं को उतने योग्य व सफल साबित नहीं कर पाते जितना कि कर सकते थे।

इसी तरह दुःखद घड़ी में भी अपना आपा खो बेसुध होकर सब भूल जाते हैं। छोटे-से छोटे दुःख तक में धैर्य-संयम नहीं रख पाते। बुद्धि-विवेक व आत्मबल होने के बावजूद स्वयं को इतना दयनीय, असहाय व बेचारा महसूस करते हैं कि आत्मसम्मान, स्वाभिमान तक से समझौता कर लेते हैं। यही कारण है कि सब कुछ होते हुए भी उम्रभर अयोग्य-असफल होने लगते हैं।

कहने का सार यह है कि जो भी छोटी-सी जिंदगी हमें मिली है उसमें सुख व दुख दोनों ही से हमारा वास्ता होगा, यही शाश्वत सत्य है। इस सच को हम जितनी जल्दी स्वीकार कर लेंगे उतना ही हमारे लिए अच्छा रहेगा, क्योंकि फिर ऐसा समय आने पर हम अपने संवेगों पर काबू कर उन्हें स्थिर रख सकेंगे।

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