Wednesday, April 21, 2010

जिंदगी ने खामोश कर दिया है मुझे

अपने आप से भी

अब मै बात नाही कर पाता हु.

सिकुड कर राख दिया है हालत ने

अपना प्रतिबिम्ब भी देखने को डर लगता है

जिंदगी की सारी परिभाषा भुल सा गया हु

नन्हासा ..कोमल है दिल मेरा

कितने आघात सहेगा ..

मेरी पहचान ही भुल सा गया हु

अब आइना भी मेरी शक्ल होने का

इंकार करता है ..

पर फिर भी सुकून है इस बात का

के तेरे रूह में ..

मेरे पहचान  की ..

एक लौ सी जल रही है

काफी है मेरी सुकून के लिए ...

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