Don't ever play with someone's feeling, you could win the game but you could lose that person forever.
Thursday, January 31, 2013
पिता
पिता
पिता वह आग जो पकाता है घड़े को, लेकिन जलाता नहीं जरा भी। वह ऐसी चिंगारी जो जरूरत के वक्त बेटे को तब्दील करता है शोले में।
पिता वह आग जो पकाता है घड़े को, लेकिन जलाता नहीं जरा भी। वह ऐसी चिंगारी जो जरूरत के वक्त बेटे को तब्दील करता है शोले में।
माँ'
माँ'
जिसकी छाया में मैं अपने आप को महफूज़
समझतीहूँ, जो मेरा आदर्श है
जिसकी ममता और प्यार भरा आँचल मुझे
दुनिया से सामना करने की शक्ति देता है
जो साया बनकर हर कदम पर
मेरा साथदेता है
चोट मुझे लगती है तो दर्द उसे होता है
जिसकी छाया में मैं अपने आप को महफूज़
समझतीहूँ, जो मेरा आदर्श है
जिसकी ममता और प्यार भरा आँचल मुझे
दुनिया से सामना करने की शक्ति देता है
जो साया बनकर हर कदम पर
मेरा साथदेता है
चोट मुझे लगती है तो दर्द उसे होता है
Wednesday, January 30, 2013
पिता
पिता
समंदर के जैसा भी है पिता,
जिसकी सतह पर खेलती हैं असंख्य लहरें, तो जिसकी गहराई में है खामोशी ही
खामोशी। वह चखने में भले खारा लगे, लेकिन जब बारिश बन खेतों में आता है तो
हो जाता है मीठे से मीठा।
समंदर के जैसा भी है पिता,
जिसकी सतह पर खेलती हैं असंख्य लहरें, तो जिसकी गहराई में है खामोशी ही
खामोशी। वह चखने में भले खारा लगे, लेकिन जब बारिश बन खेतों में आता है तो
हो जाता है मीठे से मीठा।
माँ
अपने आँचल से ढँककर बच्चे को
दूध पिलाने वाली माँ ये जरूर भूल जाती होगी कि आज उसने खाना खाया है या
नहीं परंतु उसे ये जरूर याद रहता है कि मेरा बच्चा भूखा है। नौ माह तक गर्भ में संतान को पालने वाली माँ ना जाने कितनी शारीरिक तकलीफ सहती है परंतु
अपनी उम्र के उत्तरार्द्ध में जब उसी गर्भ पर बेटे की लात पड़ती है या आपकी बातें उसके दिल को दुखाती है तो वो खामोश रहकर यही कहती है 'मेरे बेटे ने
ये सब गुस्से में किया होगा। वो बहुत अच्छा है।'
अपने आँचल से ढँककर बच्चे को
दूध पिलाने वाली माँ ये जरूर भूल जाती होगी कि आज उसने खाना खाया है या
नहीं परंतु उसे ये जरूर याद रहता है कि मेरा बच्चा भूखा है। नौ माह तक गर्भ में संतान को पालने वाली माँ ना जाने कितनी शारीरिक तकलीफ सहती है परंतु
अपनी उम्र के उत्तरार्द्ध में जब उसी गर्भ पर बेटे की लात पड़ती है या आपकी बातें उसके दिल को दुखाती है तो वो खामोश रहकर यही कहती है 'मेरे बेटे ने
ये सब गुस्से में किया होगा। वो बहुत अच्छा है।'
Monday, January 28, 2013
Sunday, January 27, 2013
जाने भी दो ना
हमारे
रोजमर्रा के जीवन में हर दिन कोई-न-कोई ऐसी घटना घटती ही है, जो हमें आहत
करती है, उद्वेलित करती है। बड़ों की टोका-टोकी या छोटों की जिद्द, सहयोगी
की टीका-टिप्पणी, छल या फिर मीनमेख निकालना ऐसी बातें जो होती तो छोटी
हैं, लेकिन दिल से लगा लेने पर ये बड़ी होती चली जाती हैं और मानसिक क्लेश
का कारण बनती हैं।
छोटी-छोटी बातें जो हमें डिस्टर्ब या उद्वेलित कर देती हैं, उन पर यदि 'जाने भी दो' की खाक डाल दी जाए तो हम बहुत सारी भावनात्मक ऊब-डूब से बच सकते हैं। आखिर ये सच है कि जो नुकसान होना था, वो तो हो ही चुका था। अब उस नुकसान को याद करते हुए मजा खराब करने में क्या तुक है? इससे नुकसान की भरपाई तो नहीं की जा सकती है न...! इसकी बजाय ये सोचा जाए कि यदि नुकसान अपनी वजह से हुआ है तो उसकी पुनरावृत्ति से किस तरह बचा जाए? और यदि नुकसान होने में हमारा कोई हाथ नहीं है तो फिर उस नुकसान को कम कैसे किया जाए?
इसलिए अब जब भी कभी कोई मन दुखाने वाली बात सामने आए या कोई आपका अपना मन दुखा कर चला जाए तो एक गहरी सांस लें और खुद से कहें जाने भी दो ना ..
छोटी-छोटी बातें जो हमें डिस्टर्ब या उद्वेलित कर देती हैं, उन पर यदि 'जाने भी दो' की खाक डाल दी जाए तो हम बहुत सारी भावनात्मक ऊब-डूब से बच सकते हैं। आखिर ये सच है कि जो नुकसान होना था, वो तो हो ही चुका था। अब उस नुकसान को याद करते हुए मजा खराब करने में क्या तुक है? इससे नुकसान की भरपाई तो नहीं की जा सकती है न...! इसकी बजाय ये सोचा जाए कि यदि नुकसान अपनी वजह से हुआ है तो उसकी पुनरावृत्ति से किस तरह बचा जाए? और यदि नुकसान होने में हमारा कोई हाथ नहीं है तो फिर उस नुकसान को कम कैसे किया जाए?
इसलिए अब जब भी कभी कोई मन दुखाने वाली बात सामने आए या कोई आपका अपना मन दुखा कर चला जाए तो एक गहरी सांस लें और खुद से कहें जाने भी दो ना ..
Thursday, January 24, 2013
Wednesday, January 23, 2013
नीयत ही गलत
एक पहुंचे हुए
महात्मा थे। बड़ी संख्या में लोग उन्हें सुनने आते थे। एक दिन महात्मा जी
ने सोचा कि उनके बाद भी धर्मसभा चलती रहे इसलिए क्यों न अपने एक शिष्य को
इस विद्या में
पारंगत किया जाए। उन्होंने एक शिष्य को इसके लिए प्रशिक्षित किया। अब शिष्य प्रवचन करने लगा। समय बीतता गया। सभा में एक सुंदर युवती आने लगी। वह उपदेश सुनने के साथ
प्रार्थना, कीर्तन, नृत्य आदि समारोह में भी सहयोग देती। लोगों को उस युवती का युवक संन्यासी के प्रति लगाव खटकने लगा। एक दिन कुछ लोग महात्मा जी के पास आकर बोले, 'प्रभु,
आपका शिष्य भ्रष्ट हो गया है।' महात्मा जी बोले, 'चलो हम स्वयं देखते हैं'। महात्मा जी आए, सभा आरंभ हुई। युवा संन्यासी ने उपदेश शुरू किया। युवती भी आई। उसने भी रोज की तरह
सहयोग दिया। सभा के बाद महात्मा जी ने लोगों से पूछा, 'क्या युवक संन्यासी प्रतिदिन यही सब करता है। और कुछ तो नहीं करता?' लोगों ने कहा, 'बस यही सब करता है।' महात्मा जी ने
फिर पूछा, 'क्या उसने तुम्हें गलत रास्ते पर चलने का उपदेश दिया? कुछ अधार्मिक करने को कहा?' सभी ने कहा, 'नहीं।' महात्मा जी बोले, 'तो फिर शिकायत क्या है?' कुछ धीमे स्वर उभरे
कि 'इस युवती का इस संन्यासी के साथ मिलना-जुलना अनैतिक है'। महात्मा जी ने कहा, 'मुझे दुख है कि तुम्हारे ऊपर उपदेशों का कोई असर नहीं पड़ा। तुमने ये जानने की कोशिश नहीं की
वो युवती है कौन। वह इस युवक की बहन है। चूंकि तुम सबकी नीयत ही गलत है इसलिए तुमने उन्हें गलत माना। सभी लज्जित हो गए।
पारंगत किया जाए। उन्होंने एक शिष्य को इसके लिए प्रशिक्षित किया। अब शिष्य प्रवचन करने लगा। समय बीतता गया। सभा में एक सुंदर युवती आने लगी। वह उपदेश सुनने के साथ
प्रार्थना, कीर्तन, नृत्य आदि समारोह में भी सहयोग देती। लोगों को उस युवती का युवक संन्यासी के प्रति लगाव खटकने लगा। एक दिन कुछ लोग महात्मा जी के पास आकर बोले, 'प्रभु,
आपका शिष्य भ्रष्ट हो गया है।' महात्मा जी बोले, 'चलो हम स्वयं देखते हैं'। महात्मा जी आए, सभा आरंभ हुई। युवा संन्यासी ने उपदेश शुरू किया। युवती भी आई। उसने भी रोज की तरह
सहयोग दिया। सभा के बाद महात्मा जी ने लोगों से पूछा, 'क्या युवक संन्यासी प्रतिदिन यही सब करता है। और कुछ तो नहीं करता?' लोगों ने कहा, 'बस यही सब करता है।' महात्मा जी ने
फिर पूछा, 'क्या उसने तुम्हें गलत रास्ते पर चलने का उपदेश दिया? कुछ अधार्मिक करने को कहा?' सभी ने कहा, 'नहीं।' महात्मा जी बोले, 'तो फिर शिकायत क्या है?' कुछ धीमे स्वर उभरे
कि 'इस युवती का इस संन्यासी के साथ मिलना-जुलना अनैतिक है'। महात्मा जी ने कहा, 'मुझे दुख है कि तुम्हारे ऊपर उपदेशों का कोई असर नहीं पड़ा। तुमने ये जानने की कोशिश नहीं की
वो युवती है कौन। वह इस युवक की बहन है। चूंकि तुम सबकी नीयत ही गलत है इसलिए तुमने उन्हें गलत माना। सभी लज्जित हो गए।
मुस्कराहट
मनुय के हृदय की जैसी भावना होती है, उसका चेहरा वैसा ही बन जाता है।
चेहरे को देखकर पता लगाया जा सकता है कि व्यक्ति किस स्तर पर जी रहा है।
बचपन से आप किस स्थिति में रह रहे हैं, वैसी ही स्थिति व स्वभाव आपका बनने लगता है।
स्वभाव को बदलना ही साहसी व्यक्तिओं का काम है।
मुस्कराहट इस साहस की या़त्रा को सुगम बनाने में बड़ा आसान करती हैं।
सभी स्थितियों में आनन्द खोजने की आदत डालनी होगी, हर वस्तु के उज्जवल पक्ष को देखने का अभ्यास करना होगा।
यदि हमारा स्वभाव प्रसन्न रहने का नहीं है तो समझना चाहिए कि हम मानसिक रोगी हैं और मानसिक रोगी को इलाज की जरूरत होती है, अतः इलाज के लिए स्पष्ट शब्दों में अपने आन्तरिक मन को यह समझा देना होगा कि जीने के लिए मुस्कराहट जरूरी है।
बाहर की मुस्कराहट भले ही न हो, अन्दर ही अन्दर हमेशा यह मुस्कराहट बनी रहनी चाहिए और अन्दर ही अन्दर जानते रहना चाहिए कि दुनिया है दो दिन का मेला’.
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