ऐ खुदा..
जीवन से लेकर मरण तक
हजारो सुख दुःख के पल जीते जीते
न जाने आदमी कितनी मंजिले पार करता है
सर उठा के जीने के लिए
कितनी बार मन को
गिरवी रखता है..
उधार का सुख . ,
मज़बूरी का दुःख..
माँ के गोदी से निकल कर
इस ज़माने में तीथर बिथर हो जाता है..
रोटी , कपडा और मकान के चक्कर में
आम आदमी आम ही रह जाता है..
मान.. अपमान..
कितने बार उठेगा ..कितने बार गिरेगा..
हक की आवाज दबाई जाती है
चिल्लाओ तो लोग दीवाना कहते है
रूठो तो लोग बावरा कहते है..
अकेला कबतक लढु मै ज़माने से..
ऐ खुदा ..
एक हि दुवा है तुझसे
या तो कोई दिशा दे दे मुझको
या मुझे
दिशाहीन कर दे ..
Monday, April 12, 2010
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