किताबों में नदियाँ होती हैं
किताबें खुद ज्ञान की नदियाँ होती हैं।
किताबों में सुंदर पेड़ होते हैं
किताबें खुद शिक्षा का पेड़ होती हैं।
किताबों में सुगंधित फूल सजे होते हैं
किताबें खुद देर तक मन में महकती है।
किताबों में चिड़िया उड़ती है
किताबें खुद मनोरंजन करती चिड़िया होती है।
किताबों से दोस्त बनते हैं
किताबें खुद एक अच्छी और सच्ची दोस्त होती है।
Thursday, April 29, 2010
दूर गगन में
जिस दिन सूरज थोडा भी न पिघले
और सड़कों पर बिखरा हो सूनापन
ऐसी किसी जलती दोपहर में तुम आना
सूखे पत्तों को समेटकर हम
आँगन का एक कोना चुनेंगे
नीम की ठंडी छाँव तले बैठ हम
हरियाली का सपना बुनेंगे
तुम आँखे मूँद लेना
मोगरे की महकती कलियों की
होगी एक सुंदर पतवार
मधुमालती के झूले को
हम उस पतवार से चलाएँगे
और दूर गगन में उड़ जाएँगे
उन हिम शिखरों तक, जहाँ से
बहती होगी गंगा-सी धवल धार
फिर तुम आँखे खोलना और देखना
कि तीखी धूप वाली दोपहरी
बदल गई है सिंदूरी शाम में
और चाँदनी के दीये जल उठें हैं
देवदार की कतार में।
दुःख के हिरन चौकड़ी भर कर
अँधेरे में विलीन हो गए है।
एक-दूजे का हाथ थाम हम
किसी पहाड़ी राग में खो गए हैं। दीपाली
जिस दिन सूरज थोडा भी न पिघले
और सड़कों पर बिखरा हो सूनापन
ऐसी किसी जलती दोपहर में तुम आना
सूखे पत्तों को समेटकर हम
आँगन का एक कोना चुनेंगे
नीम की ठंडी छाँव तले बैठ हम
हरियाली का सपना बुनेंगे
तुम आँखे मूँद लेना
मोगरे की महकती कलियों की
होगी एक सुंदर पतवार
मधुमालती के झूले को
हम उस पतवार से चलाएँगे
और दूर गगन में उड़ जाएँगे
उन हिम शिखरों तक, जहाँ से
बहती होगी गंगा-सी धवल धार
फिर तुम आँखे खोलना और देखना
कि तीखी धूप वाली दोपहरी
बदल गई है सिंदूरी शाम में
और चाँदनी के दीये जल उठें हैं
देवदार की कतार में।
दुःख के हिरन चौकड़ी भर कर
अँधेरे में विलीन हो गए है।
एक-दूजे का हाथ थाम हम
किसी पहाड़ी राग में खो गए हैं। दीपाली
Wednesday, April 28, 2010
Tuesday, April 27, 2010
ओस की बूंद सी होती है बेटियां पिताजी की दुलारी और जान से प्यारी होती है बेटियां स्पर्श अगर खुरदुरा हो तो रोती है बेटियां रोशन करेगा बेटा तो केवल एक ही कुल को दो दो कुलो की लाज होती है बेटियां ..हीरा अगर है बेटा तो सच्चा मोती होती है बेटियां ..कांटो की राह पर चलकर औरों की राहों मे फूल बिछाती है ...बेटियां ..कहने को परायी अमानत होती है बेटियां ..पर बेटो से बढकर अपनी पर बेटो से बढकर अपनी होती है बेटियां
Monday, April 26, 2010
जीवन — सरोबार है जीवंत हर रंग सी !
जीवन — 14-हजार योनियों पश्चात मिली रब की नेमत सी !
जीवन — सदिच्छाओं का है दूसरा नाम !
जीवन — जन्मान्तरों के शुभ कर्मों का सुखद परिणाम !
जीवन — चिलचिलाती दोपहर की धूप में आगे बढ़ने का अहसास !...
जीवन — कंठ-चुभती सूचियों के बोध से निजात की तीखी प्यास !
जीवन — ठहराव, स्थिरता, भरते घावों का अहसास !
जीवन — एक संन्यास समाज में तब्दीली का
जीवन — 14-हजार योनियों पश्चात मिली रब की नेमत सी !
जीवन — सदिच्छाओं का है दूसरा नाम !
जीवन — जन्मान्तरों के शुभ कर्मों का सुखद परिणाम !
जीवन — चिलचिलाती दोपहर की धूप में आगे बढ़ने का अहसास !...
जीवन — कंठ-चुभती सूचियों के बोध से निजात की तीखी प्यास !
जीवन — ठहराव, स्थिरता, भरते घावों का अहसास !
जीवन — एक संन्यास समाज में तब्दीली का
Sunday, April 25, 2010
सुखी रहना है तो सबको सूख दो, सहयोग लेना है तो पहले सहयोग दो, सबके प्रति अच्छा ही सोचो, सम्मान चाहिए तो सबको सम्मान दो, अपनी जिम्मेवारी ठीक से निबाहो, सबसे निस्वार्थ प्रेम करो तो प्रेम मिलेगा, इसलिए पहले देना सिखों फिर स्वतः मिलेगा 1 सुख का भंडार आपके पास भरा है वह किसी दुकान पर नहीं मिलता 1 बांटो तो बढेगा 1
Thursday, April 22, 2010
जब तुम्हारे दिल में मेरे लिए प्यार उमड़ आये,
और वो तुम्हारी आँखो से छलक सा जाए.......
मुझसे अपनी दिल के बातें सुनने को
यह दिल तुम्हारा मचल सा जाए..........
तब एक आवाज़ दे कर मुझको बुलाना
दिया है जो प्यार का वचन सजन,
तुम अपनी इस प्रीत को निभाना ............
तन्हा रातों में जब सनम
नींद तुम्हारी उड़ सी जाये.......
सुबह की लाली में भी मेरे सजन,
तुमको बस अक़्स मेरा ही नज़र आये......
चलती ठंडी हवा के झोंके ....
जब मेरी ख़ुश्बू तुम तक पहुंचाए .
तब तुम अपना यह रूप सलोना ....
आ के मुझे एक बार दिखा जाना
दिया है जो प्यार का वचन साजन
तुम अपनी इस प्रीत को निभा जाना
और वो तुम्हारी आँखो से छलक सा जाए.......
मुझसे अपनी दिल के बातें सुनने को
यह दिल तुम्हारा मचल सा जाए..........
तब एक आवाज़ दे कर मुझको बुलाना
दिया है जो प्यार का वचन सजन,
तुम अपनी इस प्रीत को निभाना ............
तन्हा रातों में जब सनम
नींद तुम्हारी उड़ सी जाये.......
सुबह की लाली में भी मेरे सजन,
तुमको बस अक़्स मेरा ही नज़र आये......
चलती ठंडी हवा के झोंके ....
जब मेरी ख़ुश्बू तुम तक पहुंचाए .
तब तुम अपना यह रूप सलोना ....
आ के मुझे एक बार दिखा जाना
दिया है जो प्यार का वचन साजन
तुम अपनी इस प्रीत को निभा जाना
Wednesday, April 21, 2010
TRUE LOVE
सुबह का समय था। करीब 8.30 बज रहे थे। 80 की उम्र के एक बुजुर्ग मेरे पास अपने अँगूठे पर लगे टाँकों को कटवाने के लिए आए हुए थे। वे थोड़ी हड़बड़ी में लग रहे थे। पूछने पर उन्होंने बताया कि उन्हें 9 बजे किसी से मिलने के लिए जाना है।
मैंने उन्हें थोड़ी देर रुकने का इशारा किया। मैं भी अधिक मरीजों के बीच व्यस्त नहीं था, इसलिए मैंने अपने मरीज का निरीक्षण निपटाकर उनके अँगूठे का उपचार प्रारंभ किया।
निरीक्षण के बाद मैंने दूसरे चिकित्सक को उनके अँगूठे पर लगी पुरानी पट्टी को हटाकर दोबारा मरहम-पट्टी के आदेश दिए, मगर वे महाशय इतनी हड़बड़ी में थे कि उन्हें अपने अँगूठे की दोबारा मरहम-पट्टी की भी चिंता नहीं थी।
उन्होंने इसके लिए मना कर दिया। वजह पूछने पर उन्होंने बताया कि वे अपनी पत्नी से मिलने अस्पताल जा रहे हैं। जब मैंने उनकी पत्नी के विषय में जानना चाहा, तो उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी एल्जाइमर नामक बीमारी से ग्रसित है और उन्हें अस्पताल में अपनी पत्नी के साथ सुबह का नाश्ता करने जाना है।
मुझे लगा कि शायद उनके देर से पहुँचने पर उनकी पत्नी उन पर नाराज होंगी। इस बात को मैंने मन में न रखते हुए उनसे पूछ ही लिया। इस पर उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी उन्हें पूरी तरह से भूल चुकी है और उन्हें पिछले पाँच सालों से नहीं पहचान रही है।
मैं अचंभे में पड़ गया। मैंने उनसे पूछा कि ‘‘यह जानते हुए कि वे आपको पूरी तरह से भूल चुकी हैं, आप उनसे मिलने हर रोज जाते हैं?’’
बदले में उनके जवाब ने मुझे पूरी तरह से झकझोर दिया। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘वह अब मुझे नहीं जानती है, पर मैं अब भी जानता हूँ कि वह कौन है...।’’
यह सुनकर मैं बहुत मुश्किल से उनके जाने तक अपने आँसू रोक पाया। मुझे लगा कि शायद यह वही प्यार है जिसे पाने में मैं अपनी पूरी जिंदगी लगा सकता हूँ।
सच्चा प्यार उन सब बातों से ऊपर है, जो हैं, जो नहीं हैं या फिर जो हो ही नहीं सकती हैं...।
मैंने उन्हें थोड़ी देर रुकने का इशारा किया। मैं भी अधिक मरीजों के बीच व्यस्त नहीं था, इसलिए मैंने अपने मरीज का निरीक्षण निपटाकर उनके अँगूठे का उपचार प्रारंभ किया।
निरीक्षण के बाद मैंने दूसरे चिकित्सक को उनके अँगूठे पर लगी पुरानी पट्टी को हटाकर दोबारा मरहम-पट्टी के आदेश दिए, मगर वे महाशय इतनी हड़बड़ी में थे कि उन्हें अपने अँगूठे की दोबारा मरहम-पट्टी की भी चिंता नहीं थी।
उन्होंने इसके लिए मना कर दिया। वजह पूछने पर उन्होंने बताया कि वे अपनी पत्नी से मिलने अस्पताल जा रहे हैं। जब मैंने उनकी पत्नी के विषय में जानना चाहा, तो उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी एल्जाइमर नामक बीमारी से ग्रसित है और उन्हें अस्पताल में अपनी पत्नी के साथ सुबह का नाश्ता करने जाना है।
मुझे लगा कि शायद उनके देर से पहुँचने पर उनकी पत्नी उन पर नाराज होंगी। इस बात को मैंने मन में न रखते हुए उनसे पूछ ही लिया। इस पर उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी उन्हें पूरी तरह से भूल चुकी है और उन्हें पिछले पाँच सालों से नहीं पहचान रही है।
मैं अचंभे में पड़ गया। मैंने उनसे पूछा कि ‘‘यह जानते हुए कि वे आपको पूरी तरह से भूल चुकी हैं, आप उनसे मिलने हर रोज जाते हैं?’’
बदले में उनके जवाब ने मुझे पूरी तरह से झकझोर दिया। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘वह अब मुझे नहीं जानती है, पर मैं अब भी जानता हूँ कि वह कौन है...।’’
यह सुनकर मैं बहुत मुश्किल से उनके जाने तक अपने आँसू रोक पाया। मुझे लगा कि शायद यह वही प्यार है जिसे पाने में मैं अपनी पूरी जिंदगी लगा सकता हूँ।
सच्चा प्यार उन सब बातों से ऊपर है, जो हैं, जो नहीं हैं या फिर जो हो ही नहीं सकती हैं...।
प्रेम वह मधुर अहसास है जो जीवन में मिठास घोल देता है
विशुद्ध प्रेम वही है जो प्रतिदान में कुछ पाने की लालसा नहीं रखता। आत्मा की गहराई तक विद्यमान आसक्ति ही सच्चे प्यार का प्रमाण है।
सच्चे प्यार का अहसास किया जा सकता। इसे शब्दों में अभिव्यक्त करना न केवल मुश्किल है बल्कि असंभव भी है। सच्चे प्यार में गहराई इतनी होती है कि चोट लगे एक को, तो दर्द दूसरे को होता है, एक के चेहरे की उदासी से दूसरे की आँखें छलछला आती हैं। सच्चे प्रेम का 'पुष्प' कोमल भावनाओं की भूमि पर आपसी विश्वास और मन की पवित्रता के संरक्षण में ही खिलता और महकता है।
विशुद्ध प्रेम वही है जो प्रतिदान में कुछ पाने की लालसा नहीं रखता। आत्मा की गहराई तक विद्यमान आसक्ति ही सच्चे प्यार का प्रमाण है।
सच्चे प्यार का अहसास किया जा सकता। इसे शब्दों में अभिव्यक्त करना न केवल मुश्किल है बल्कि असंभव भी है। सच्चे प्यार में गहराई इतनी होती है कि चोट लगे एक को, तो दर्द दूसरे को होता है, एक के चेहरे की उदासी से दूसरे की आँखें छलछला आती हैं। सच्चे प्रेम का 'पुष्प' कोमल भावनाओं की भूमि पर आपसी विश्वास और मन की पवित्रता के संरक्षण में ही खिलता और महकता है।
कई भावनाओ का रस
मेरे रक्त के हर बूंद बूंद में छटपटाता है
मेरा मन सागर की लहरों की तरह उछलता है
आकाश की ऊंचाई और सागर की
गहराई से होकर गुजरता हूँ मै
साँसे है के थम ने का नाम नहीं लेती
आसमानी खुशबु से सुगन्धित हो जाता हु मै
बारिश की बूंदों से वर्षित हो जाता हु मै
दिल दिमाग तहस नहस ओ जाता है
और कागज लेकर
मुझपे गुजरने वाली हर दास्ता को
शब्दबद्ध करने की कोशिश करता हु..
मेरे रक्त के हर बूंद बूंद में छटपटाता है
मेरा मन सागर की लहरों की तरह उछलता है
आकाश की ऊंचाई और सागर की
गहराई से होकर गुजरता हूँ मै
साँसे है के थम ने का नाम नहीं लेती
आसमानी खुशबु से सुगन्धित हो जाता हु मै
बारिश की बूंदों से वर्षित हो जाता हु मै
दिल दिमाग तहस नहस ओ जाता है
और कागज लेकर
मुझपे गुजरने वाली हर दास्ता को
शब्दबद्ध करने की कोशिश करता हु..
जिंदगी ने खामोश कर दिया है मुझे
अपने आप से भी
अब मै बात नाही कर पाता हु.
सिकुड कर राख दिया है हालत ने
अपना प्रतिबिम्ब भी देखने को डर लगता है
जिंदगी की सारी परिभाषा भुल सा गया हु
नन्हासा ..कोमल है दिल मेरा
कितने आघात सहेगा ..
मेरी पहचान ही भुल सा गया हु
अब आइना भी मेरी शक्ल होने का
इंकार करता है ..
पर फिर भी सुकून है इस बात का
के तेरे रूह में ..
मेरे पहचान की ..
एक लौ सी जल रही है
काफी है मेरी सुकून के लिए ...
अपने आप से भी
अब मै बात नाही कर पाता हु.
सिकुड कर राख दिया है हालत ने
अपना प्रतिबिम्ब भी देखने को डर लगता है
जिंदगी की सारी परिभाषा भुल सा गया हु
नन्हासा ..कोमल है दिल मेरा
कितने आघात सहेगा ..
मेरी पहचान ही भुल सा गया हु
अब आइना भी मेरी शक्ल होने का
इंकार करता है ..
पर फिर भी सुकून है इस बात का
के तेरे रूह में ..
मेरे पहचान की ..
एक लौ सी जल रही है
काफी है मेरी सुकून के लिए ...
Tuesday, April 20, 2010
ऊँचाई से आगाह इसी क्षण हुआ हूँ। देखता हूँ कि दोनों चपटी चट्टानें एक गहरी वादी के ऊपर कहीं टिकी झूल रही हैं। और उनके साथ साथ मैं भी। वादी में झाँकने से डरता हूँ। इस डर का रंग भी नीला है। इस पर पत्थर रखकर वादी में झाँकता हूँ तो महसस होता है उसकी आँखों में झाँक लिया हो। दो झिलमिलाती झीलों में पड़े दो नीले पत्थर मेरी निगाहों को रोक कर नाकार कर देते हैं।
नीला रंग मुझे प्रिय है। मेरे अंधेरे का रंग नीला है। मेरे अरमानों का कसक नीली है। आकाश जब निर्दोष हो तो उसका रंग भी नीला होता है। उसकी आँखें नीली न होती हुई भी नीली हैं। हर दर्द का रंग नीला होता है। नसें नीली होती हैं। अंत का उजाला नीला होता है। जख्म के इर्दगिर्द कई बार एक नीला हाला सा बन जाता है। हब्शियों के संगीत का रंगी नीला है। मेरे खून में जो तृष्णा दौड़ती रहती है, उसका रंग नीला है। स्मृति का रंग नीला है। मिरियम का प्रिय रंग नीला था। भूख का भय नीला होता है। कृष्ण का रंग नीला है।
मेरी आँखों के नीचे पड़े फड़फडा़ते इस कागज के कोरेपन में भी नीलाहट की अनेक संभावनाएँ छिपी बैठी हैं जिसकी प्रतीक्षा में ही शायद मैं इस पर किसी बुत या बाघ की तरह झुका हुआ हूँ।
नीला रंग मुझे प्रिय है। मेरे अंधेरे का रंग नीला है। मेरे अरमानों का कसक नीली है। आकाश जब निर्दोष हो तो उसका रंग भी नीला होता है। उसकी आँखें नीली न होती हुई भी नीली हैं। हर दर्द का रंग नीला होता है। नसें नीली होती हैं। अंत का उजाला नीला होता है। जख्म के इर्दगिर्द कई बार एक नीला हाला सा बन जाता है। हब्शियों के संगीत का रंगी नीला है। मेरे खून में जो तृष्णा दौड़ती रहती है, उसका रंग नीला है। स्मृति का रंग नीला है। मिरियम का प्रिय रंग नीला था। भूख का भय नीला होता है। कृष्ण का रंग नीला है।
मेरी आँखों के नीचे पड़े फड़फडा़ते इस कागज के कोरेपन में भी नीलाहट की अनेक संभावनाएँ छिपी बैठी हैं जिसकी प्रतीक्षा में ही शायद मैं इस पर किसी बुत या बाघ की तरह झुका हुआ हूँ।
वेद हमारे पूजनीय ग्रंथ हैं। वेदों का एक उपदेश है-'उद्यानं वे पुरुष. नावयानम्।' अर्थात मनुष्य का जन्म इस दुनिया में इसलिए हुआ है कि वह निरंतर प्रगति करे, आगे बढ़ता रहे, कभी नीचे की तरफ नहीं जाए। जिस प्रकार यदि गेंद को ऊपर की ओर उछाला जाए तो एक हद तक वह ऊपर जाएगी, उसके बाद नीचे आने लगेगी। उसी प्रकार जिस दिन मनुष्य की उन्नति रुक गई, उस दिन उसकी अवनति प्रारंभ हो जाएगी। अतः हर सुबह की शुरुआत में हम यह सोचें कि जो भी कार्य हम कर रहे हैं उसे बेहतर कैसे करें?
दुनिया की कोई कृति त्रुटिरहित नहीं, उसमें बेहतरी की संभावना होती है। हर दिन हमारी नीयत में यदि हम विनम्रता चाहते हैं तो ईश्वर से प्रार्थना करें कि वे कार्य के दिन- ईमानदारी हमें हमारे कार्य में बख्शें, हर दिन उन्नति के नए शिखर पर पहुँच, हम स्वयं का परिवार का और समाज-राष्ट्र का नाम रोशन करें। एक वादा स्वयं से करें कि चाहे हम झाडू ही क्यों न लगाएँ, पर वह पिकासो की पेटिंग की तरह अद्वितीय हो।
तुम ...
शबनम की तरह
तुम जो हलके से
उतर आती थी
मेरे बदन पर हर सुबह
मेरे दिल की नमी के लिए...
वो काफी होता था ..मेरे दिनभर के लिए ..
चांदनी की तरह उतर आती थी तुम
मेरे तन बदन पर हर शाम ..
वो काफी होता था
मेरे रात भर के लिए ..
तेरी खुशबु ..तेरी बाते ..
तेरी मुस्कराहट . ..तेरी बाहे..
काफी होता था
मेरे जिंदगी भर के लिए ..
अब तेरे साये से भी हटने को
दिल नहीं करता ..
खुदा से दुआ मांगता हु के .
तेरे हातो की हिना में मुझे सजाये रख
वो काफी होगा
मेरे आखरी सांस के लिये
शबनम की तरह
तुम जो हलके से
उतर आती थी
मेरे बदन पर हर सुबह
मेरे दिल की नमी के लिए...
वो काफी होता था ..मेरे दिनभर के लिए ..
चांदनी की तरह उतर आती थी तुम
मेरे तन बदन पर हर शाम ..
वो काफी होता था
मेरे रात भर के लिए ..
तेरी खुशबु ..तेरी बाते ..
तेरी मुस्कराहट . ..तेरी बाहे..
काफी होता था
मेरे जिंदगी भर के लिए ..
अब तेरे साये से भी हटने को
दिल नहीं करता ..
खुदा से दुआ मांगता हु के .
तेरे हातो की हिना में मुझे सजाये रख
वो काफी होगा
मेरे आखरी सांस के लिये
See the faults, but do not establish them within you. After seeing the faults, immediately establish flawlessness, becoming free of concern and hence forth resolve to not indulge in sins. Thereafter if someone says you are sinful, then become joyful and tell them at one time it was so, but now I it not so. In other words, do not see the sins of the past in the present
Dayena Patel: Beholding a saint, his touch, listening to his command, and anointing your head with the dust from his lotus feet are all far fetched, but he who thinks about the saint in his mind, he becomes purified and eligible for God Realization
Dayena Patel: Beholding a saint, his touch, listening to his command, and anointing your head with the dust from his lotus feet are all far fetched, but he who thinks about the saint in his mind, he becomes purified and eligible for God Realization
आपसी विश्वास
संत कबीर रोज सत्संग किया करते थे। दूर-दूर से लोग उनकी बात सुनने आते थे। एक दिन सत्संग खत्म होने पर भी
एक आदमी बैठा ही रहा। कबीर ने इसका कारण पूछा तो वह बोला, 'मुझे आपसे कुछ पूछना है। मैं गृहस्थ हूं, घर में सभी लोगों से मेरा झगड़ा होता रहता है। मैं जानना चाहता हूं कि मेरे यहां गृह क्लेश क्यों होता है और वह कैसे दूर हो सकता है?'
कबीर थोड़ी देर चुप रहे, फिर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, 'लालटेन जलाकर लाओ'। कबीर की पत्नी लालटेन जलाकर ले आई। वह आदमी भौंचक देखता रहा। सोचने लगा इतनी दोपहर में कबीर ने लालटेन क्यों मंगाई। थोड़ी देर बाद कबीर बोले, 'कुछ मीठा दे जाना।' इस बार उनकी पत्नी मीठे के बजाय नमकीन देकर चली गई। उस आदमी ने सोचा कि यह तो शायद पागलों का घर है। मीठा के बदले नमकीन, दिन में लालटेन। वह बोला, 'कबीर जी मैं चलता हूं।'
कबीर ने पूछा, 'आपको अपनी समस्या का समाधान मिला या अभी कुछ संशय बाकी है?' वह व्यक्ति बोला, 'मेरी समझ में कुछ नहीं आया।' कबीर ने कहा, 'जैसे मैंने लालटेन मंगवाई तो मेरी घरवाली कह सकती थी कि तुम क्या सठिया गए हो। इतनी दोपहर में लालटेन की क्या जरूरत। लेकिन नहीं, उसने सोचा कि जरूर किसी काम के लिए लालटेन मंगवाई होगी। मीठा मंगवाया तो नमकीन देकर चली गई। हो सकता है घर में कोई मीठी वस्तु न हो। यह सोचकर मैं चुप रहा। इसमें तकरार क्या? आपसी विश्वास बढ़ाने और तकरार में न फंसने से विषम परिस्थिति अपने आप दूर हो गई।' उस आदमी को हैरानी हुई। वह समझ गया कि कबीर ने यह सब उसे बताने के लिए किया था। कबीर ने फिर कहा,' गृहस्थी में आपसी विश्वास से ही तालमेल बनता है। आदमी से गलती हो तो औरत संभाल ले और औरत से कोई त्रुटि हो जाए तो पति उसे नजरअंदाज कर दे। यही गृहस्थी का मूल मंत्र है।'
संत कबीर रोज सत्संग किया करते थे। दूर-दूर से लोग उनकी बात सुनने आते थे। एक दिन सत्संग खत्म होने पर भी
एक आदमी बैठा ही रहा। कबीर ने इसका कारण पूछा तो वह बोला, 'मुझे आपसे कुछ पूछना है। मैं गृहस्थ हूं, घर में सभी लोगों से मेरा झगड़ा होता रहता है। मैं जानना चाहता हूं कि मेरे यहां गृह क्लेश क्यों होता है और वह कैसे दूर हो सकता है?'
कबीर थोड़ी देर चुप रहे, फिर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, 'लालटेन जलाकर लाओ'। कबीर की पत्नी लालटेन जलाकर ले आई। वह आदमी भौंचक देखता रहा। सोचने लगा इतनी दोपहर में कबीर ने लालटेन क्यों मंगाई। थोड़ी देर बाद कबीर बोले, 'कुछ मीठा दे जाना।' इस बार उनकी पत्नी मीठे के बजाय नमकीन देकर चली गई। उस आदमी ने सोचा कि यह तो शायद पागलों का घर है। मीठा के बदले नमकीन, दिन में लालटेन। वह बोला, 'कबीर जी मैं चलता हूं।'
कबीर ने पूछा, 'आपको अपनी समस्या का समाधान मिला या अभी कुछ संशय बाकी है?' वह व्यक्ति बोला, 'मेरी समझ में कुछ नहीं आया।' कबीर ने कहा, 'जैसे मैंने लालटेन मंगवाई तो मेरी घरवाली कह सकती थी कि तुम क्या सठिया गए हो। इतनी दोपहर में लालटेन की क्या जरूरत। लेकिन नहीं, उसने सोचा कि जरूर किसी काम के लिए लालटेन मंगवाई होगी। मीठा मंगवाया तो नमकीन देकर चली गई। हो सकता है घर में कोई मीठी वस्तु न हो। यह सोचकर मैं चुप रहा। इसमें तकरार क्या? आपसी विश्वास बढ़ाने और तकरार में न फंसने से विषम परिस्थिति अपने आप दूर हो गई।' उस आदमी को हैरानी हुई। वह समझ गया कि कबीर ने यह सब उसे बताने के लिए किया था। कबीर ने फिर कहा,' गृहस्थी में आपसी विश्वास से ही तालमेल बनता है। आदमी से गलती हो तो औरत संभाल ले और औरत से कोई त्रुटि हो जाए तो पति उसे नजरअंदाज कर दे। यही गृहस्थी का मूल मंत्र है।'
बहुत देर कर दी'
एक धनी व्यक्ति की माँ अक्सर बीमार रहती थी। माँ रोज बेटे-बहू को कहती थी कि बेटा, मुझे डॉक्टर के पास ले चल। बेटा भी रोज पत्नी को कह देता, माँ को ले जाना, मैं तो फैक्टरी के काम में व्यस्त रहता हूँ। क्या तुम माँ का चेकअप नहीं करा सकती हो? पत्नी भी लापरवाही से उत्तर दे देती, पिछले साल गई तो थी, डॉक्टर ने कोई ऑपरेशन का कहा है। जब तकलीफ होगी ले जाना और वह अपने काम में लग जाती। बेटा भी ब्रीफकेस उठाकर चलता हुआ बोल जाता कि माँ तुम भी थोड़ी सहनशक्ति रखा करो।
फैक्टरी की पार्किंग में उस व्यक्ति को हमेशा एक निर्धन लड़का मिलता था। वह पार्किंग के पास ही बूट पॉलिश करता रहता। और जब कभी बूट पॉलिश का काम नहीं होता, तब वह वहाँ रखी गाड़ियों को कपड़े से साफ करता। गाड़ी वाले उसे जो भी 2-4 रुपए देते उसे ले लेता। धनी व्यक्ति और अन्य दूसरे लोग भी रोज मिलने से उसे पहचानने लग गए थे। लड़का भी जिस साहब से 5 रुपए मिलते उस साहब को लंबा सलाम ठोकता था।
एक दिन की बात है धनी व्यक्ति शाम को मीटिंग लेकर अपने कैबिन में आकर बैठा। उसको एक जरूरी फोन पर जानकारी मिली, जो उसके घर से था। घर का नंबर मिलाया तो नौकर ने कहा 'साहब आपको 11 बजे से फोन कर रहे हैं। माताजी की तबीयत बहुत खराब हो गई थी, इसलिए बहादुर और रामू दोनों नौकर उन्हें सरकारी अस्पताल ले गए हैं।' धनी व्यक्ति फोन पर दहाड़ा, 'क्या मेम साहब घर पर नहीं हैं?' वह डरकर बोला, 'वे तो सुबह 10 बजे ही आपके जाने के बाद चली गईं। साहब घर पर कोई नहीं था और हमें कुछ समझ में नहीं आया। माताजी ने ही हमें मुश्किल से कहा, 'बेटा मुझे सरकारी अस्पताल ले चलो, तो माली और बहादुर दोनों रिक्शा में ले गए और साहब मैं मेम साहब का रास्ता देखने के लिए और आपको फोन करने के लिए घर पर रुक गया।'
धनी व्यक्ति ने गुस्से एवं भारीपन से फोन रखा और लगभग दौड़ते हुए गाड़ी निकालकर तेज गति से सरकारी अस्पताल की ओर निकल पड़ा। जैसे ही रिसेप्शन की ओर बढ़ा, उसने सोचा कि यहीं से जानकारी ले लेता हूँ। 'सलाम साहब' एकाएक धनी व्यक्ति चौंका, उसे यहाँ कौन सलाम कर रहा है?
'अरे तुम वही गरीब लड़के हो?' और उसका हाथ पकड़े उसकी बूढ़ी माँ थी। धनी व्यक्ति ने आश्चर्य से पूछा, 'अरे तुम यहाँ, क्या बात है?' लड़का बोला, 'साहब, मेरी माँ बीमार थी। 15 दिनों से यहीं भर्ती थी। इसीलिए पैसे इकट्ठे करता था।' और ऊपर हाथ करके बोला, 'भगवान आप जैसे लोगों का भला करे जिनके आशीर्वाद से मेरी माँ ठीक हो गई। आज ही छुट्टी मिली है। घर जा रहा हूँ। मगर साहब आप यहाँ कैसे?'
धनी व्यक्ति जैसे नींद से जागा हो। 'हाँ' कहकर वह रिसेप्शन की ओर बढ़ गया। वहाँ से जानकारी लेकर लंबे-लंबे कदम से आगे बढ़ता गया। सामने से उसे दो डॉक्टर आते मिले। उसने अपना परिचय दिया और माँ के बारे में पूछा।
'ओ आई एम सॉरी, शी इज नो मोर, आपने बहुत देर कर दी' कहते हुए डॉक्टर आगे निकल गए। वह हारा-सा सिर पकड़ कर वहीं बेंच पर बैठ गया। सामने गरीब लड़का चला जा रहा था और उसके कंधे पर हाथ रखे धीरे-धीरे उसकी माँ जा रही थी।
फैक्टरी की पार्किंग में उस व्यक्ति को हमेशा एक निर्धन लड़का मिलता था। वह पार्किंग के पास ही बूट पॉलिश करता रहता। और जब कभी बूट पॉलिश का काम नहीं होता, तब वह वहाँ रखी गाड़ियों को कपड़े से साफ करता। गाड़ी वाले उसे जो भी 2-4 रुपए देते उसे ले लेता। धनी व्यक्ति और अन्य दूसरे लोग भी रोज मिलने से उसे पहचानने लग गए थे। लड़का भी जिस साहब से 5 रुपए मिलते उस साहब को लंबा सलाम ठोकता था।
एक दिन की बात है धनी व्यक्ति शाम को मीटिंग लेकर अपने कैबिन में आकर बैठा। उसको एक जरूरी फोन पर जानकारी मिली, जो उसके घर से था। घर का नंबर मिलाया तो नौकर ने कहा 'साहब आपको 11 बजे से फोन कर रहे हैं। माताजी की तबीयत बहुत खराब हो गई थी, इसलिए बहादुर और रामू दोनों नौकर उन्हें सरकारी अस्पताल ले गए हैं।' धनी व्यक्ति फोन पर दहाड़ा, 'क्या मेम साहब घर पर नहीं हैं?' वह डरकर बोला, 'वे तो सुबह 10 बजे ही आपके जाने के बाद चली गईं। साहब घर पर कोई नहीं था और हमें कुछ समझ में नहीं आया। माताजी ने ही हमें मुश्किल से कहा, 'बेटा मुझे सरकारी अस्पताल ले चलो, तो माली और बहादुर दोनों रिक्शा में ले गए और साहब मैं मेम साहब का रास्ता देखने के लिए और आपको फोन करने के लिए घर पर रुक गया।'
धनी व्यक्ति ने गुस्से एवं भारीपन से फोन रखा और लगभग दौड़ते हुए गाड़ी निकालकर तेज गति से सरकारी अस्पताल की ओर निकल पड़ा। जैसे ही रिसेप्शन की ओर बढ़ा, उसने सोचा कि यहीं से जानकारी ले लेता हूँ। 'सलाम साहब' एकाएक धनी व्यक्ति चौंका, उसे यहाँ कौन सलाम कर रहा है?
'अरे तुम वही गरीब लड़के हो?' और उसका हाथ पकड़े उसकी बूढ़ी माँ थी। धनी व्यक्ति ने आश्चर्य से पूछा, 'अरे तुम यहाँ, क्या बात है?' लड़का बोला, 'साहब, मेरी माँ बीमार थी। 15 दिनों से यहीं भर्ती थी। इसीलिए पैसे इकट्ठे करता था।' और ऊपर हाथ करके बोला, 'भगवान आप जैसे लोगों का भला करे जिनके आशीर्वाद से मेरी माँ ठीक हो गई। आज ही छुट्टी मिली है। घर जा रहा हूँ। मगर साहब आप यहाँ कैसे?'
धनी व्यक्ति जैसे नींद से जागा हो। 'हाँ' कहकर वह रिसेप्शन की ओर बढ़ गया। वहाँ से जानकारी लेकर लंबे-लंबे कदम से आगे बढ़ता गया। सामने से उसे दो डॉक्टर आते मिले। उसने अपना परिचय दिया और माँ के बारे में पूछा।
'ओ आई एम सॉरी, शी इज नो मोर, आपने बहुत देर कर दी' कहते हुए डॉक्टर आगे निकल गए। वह हारा-सा सिर पकड़ कर वहीं बेंच पर बैठ गया। सामने गरीब लड़का चला जा रहा था और उसके कंधे पर हाथ रखे धीरे-धीरे उसकी माँ जा रही थी।
इतनी बड़ी दुनिया हैं
बहुत सारे लोग हैं
प्यार करने के बजाय वे झगड़ते क्यों हैं
मेरे पास बहुत सा प्यार बचा हैं
इस आकाश कों बाँहों में भर लेने के बाद
नदी की लहरों के साथ साथ बहने के पश्चात भी
प्यासे मरुथल की तरह सागर कों ओढ़ लेने के उपरान्त भी
मेरा प्रेम ख़त्म नही हुवा हैं
सैकड़ों बार मेरी देह मर चूकी हैं
लेकिन उस अनंत प्रेम कों पाने के लिये
मुझे जन्म लेना ही पड़ता हैं
लेकिन हर बार यह धरती मुझे छल जाती हैं
खेतों के धान ..
फूलों से भरे बाग़
सावन की भींगी रात
पूनम के चन्दा की आश
सब मुझ पर हँसते हैं
मैं मनुष्य हूँ न ..उनकी तरह खुल कर जी नहीं पाता
बहुत सारे लोग हैं
प्यार करने के बजाय वे झगड़ते क्यों हैं
मेरे पास बहुत सा प्यार बचा हैं
इस आकाश कों बाँहों में भर लेने के बाद
नदी की लहरों के साथ साथ बहने के पश्चात भी
प्यासे मरुथल की तरह सागर कों ओढ़ लेने के उपरान्त भी
मेरा प्रेम ख़त्म नही हुवा हैं
सैकड़ों बार मेरी देह मर चूकी हैं
लेकिन उस अनंत प्रेम कों पाने के लिये
मुझे जन्म लेना ही पड़ता हैं
लेकिन हर बार यह धरती मुझे छल जाती हैं
खेतों के धान ..
फूलों से भरे बाग़
सावन की भींगी रात
पूनम के चन्दा की आश
सब मुझ पर हँसते हैं
मैं मनुष्य हूँ न ..उनकी तरह खुल कर जी नहीं पाता
Monday, April 19, 2010
न गीता हूं ना क़ुरान हूं मैं
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं
गीता क़ुरान तो बहुतों ने पढ़ी होंगी
यह सच्चे आदर्शों के पेचीदा दस्तावेज़ हैं
बिल्कुल आसान हूं मैं
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं
न क़ौम की न नस्ल की
न मुल्क की न मज़हब की दीवारें
साथ नहीं हैं धर्म के सहारे,
पाएगा तू तुझे मुझमें ऐसा करिश्माईं दर्पण हूं मैं
बंट चुके हैं लोग बंटी हुई हैं ज़मीनें
जो न बंट सके ऐसी पानी की धार हूं
जिसे कोइ तोड़ न सके ऐसा आसमान हूं मैं
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं
खुदा ईश्वर की बात बाद में
पहले तू तुझे समझ ले
मैं क्या हूं मुझे समझा दे,
जिसे कोई अब तक न समझ सका हो
ऐसा एक अरमान हूं मैं
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं
खुदा तो निराकार हैं,
मैं तो एक आकार हूं
जो करता इस जहां को साकार हूं
जिसे अब तक कोइ साबित न कर सका हो
ऐसा एक अविष्कार हूं
इन पेड़ों, बादलों, ज़मीनों, आबो हवाओं में जो बसा है
उसी की पहचान हूं मैं
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं ।।
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं
गीता क़ुरान तो बहुतों ने पढ़ी होंगी
यह सच्चे आदर्शों के पेचीदा दस्तावेज़ हैं
बिल्कुल आसान हूं मैं
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं
न क़ौम की न नस्ल की
न मुल्क की न मज़हब की दीवारें
साथ नहीं हैं धर्म के सहारे,
पाएगा तू तुझे मुझमें ऐसा करिश्माईं दर्पण हूं मैं
बंट चुके हैं लोग बंटी हुई हैं ज़मीनें
जो न बंट सके ऐसी पानी की धार हूं
जिसे कोइ तोड़ न सके ऐसा आसमान हूं मैं
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं
खुदा ईश्वर की बात बाद में
पहले तू तुझे समझ ले
मैं क्या हूं मुझे समझा दे,
जिसे कोई अब तक न समझ सका हो
ऐसा एक अरमान हूं मैं
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं
खुदा तो निराकार हैं,
मैं तो एक आकार हूं
जो करता इस जहां को साकार हूं
जिसे अब तक कोइ साबित न कर सका हो
ऐसा एक अविष्कार हूं
इन पेड़ों, बादलों, ज़मीनों, आबो हवाओं में जो बसा है
उसी की पहचान हूं मैं
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं
मुझको पढ़, इंसान हूं मैं ।।
जरूरत है कुछ नई उमंग, नये उत्साह की
नये जोश, आत्मविश्वास की
जो कुछ करने का दिल में हौसला पैदा करे
जिससे छू सकें हम उन ऊंचाइयों को।
ऐसे एहसास की
ज़रूरत है,
जो प्रगति का रास्ता दिखाता रहे
शोलों पर भी चलने का ढंग सिखाता रहे
ऐसे ज्योतिर्मय प्रकाश की
ज़रूरत है
कुछ नई उमंग नए उत्साह की
नये जोश आत्मविश्वास की।
जो हमारे जीवन में खुशियां लाए
उस प्रस्फुटित कली जैसे
जो सारे जग को महकाए
कोयल सी मधुर वाणी वाली ऐसी आवाज़ की
ज़रूरत है।
जो भर दे रग-रग में देशभक्ति की भावना
जिससे लहर दौड़ उठे चारों ओर
बस एक शब्द सद्भावना-सद्भावना
ज़रूरत है ऐसे आगाज़ की
ज़रूरत है कुछ नई उमंग नये उत्साह की
नये जोश आत्मविश्वास की।।
नये जोश, आत्मविश्वास की
जो कुछ करने का दिल में हौसला पैदा करे
जिससे छू सकें हम उन ऊंचाइयों को।
ऐसे एहसास की
ज़रूरत है,
जो प्रगति का रास्ता दिखाता रहे
शोलों पर भी चलने का ढंग सिखाता रहे
ऐसे ज्योतिर्मय प्रकाश की
ज़रूरत है
कुछ नई उमंग नए उत्साह की
नये जोश आत्मविश्वास की।
जो हमारे जीवन में खुशियां लाए
उस प्रस्फुटित कली जैसे
जो सारे जग को महकाए
कोयल सी मधुर वाणी वाली ऐसी आवाज़ की
ज़रूरत है।
जो भर दे रग-रग में देशभक्ति की भावना
जिससे लहर दौड़ उठे चारों ओर
बस एक शब्द सद्भावना-सद्भावना
ज़रूरत है ऐसे आगाज़ की
ज़रूरत है कुछ नई उमंग नये उत्साह की
नये जोश आत्मविश्वास की।।
मैं
अगर रख सको तो एक निशानी हूं मैं
खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूं मैं
रोक पाए न जिसको ये सारी दुनिया
वह एक बूंद आंख का पानी हूं मैं
सबको प्यार देने की आदत है हमें
अपनी अलग पहचान बनाने की आदत हैं हमें
कितना भी गहरा जख्म दे कोई
उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है हमें
इस अजनबी दुनिया में अकेला ख्वाब हूं मैं
सवालों से खफा छोटा सा जवाब हूं मैं
जो समझ न सके मुझे , उनके लिए "कौन"
जो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूं मैं
आंख से देखोगे तो खुशी पाओगे
दिल से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूं मैं
अगर रख सको तो निशानी , खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूं मैं।।
खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूं मैं
रोक पाए न जिसको ये सारी दुनिया
वह एक बूंद आंख का पानी हूं मैं
सबको प्यार देने की आदत है हमें
अपनी अलग पहचान बनाने की आदत हैं हमें
कितना भी गहरा जख्म दे कोई
उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है हमें
इस अजनबी दुनिया में अकेला ख्वाब हूं मैं
सवालों से खफा छोटा सा जवाब हूं मैं
जो समझ न सके मुझे , उनके लिए "कौन"
जो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूं मैं
आंख से देखोगे तो खुशी पाओगे
दिल से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूं मैं
अगर रख सको तो निशानी , खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूं मैं।।
क्यों
क्या क्या आप बता सकते हैं
क्यों जन्म लेने से पहले ही
मार दी जाती हैं लड़कियां
क्यों हर खुशी से पहले
दुख का कारण बनती हैं लड़कियां
क्यों उसके विश्वास को
लड़कों की ख्वाहिश के सामने
झुका दिया जाता है
क्यों उनकी परछाई को
हर शुभ कार्य से पहले
अशुभ मान लिया जाता है
क्यों उसे पैदा होते ही
चूल्हा चक्की में झोंक दिया जाता है
क्यों शिक्षा का दान देने से पहले ही
कन्यदान कर दिया जाता है
क्यों मेहन्दी के मिटने से पहले ही
दहेज के लोभ में
जला दी जाती हैं लड़कियां ??
क्या आप बता सकते हैं मुझे
इस क्यों का कारण
क्या आपके पास है इस क्यों का जवाब??
नहीं
आपके पास नहीं है,
क्योंकि आप ही हैं
इस क्यों का कारण
और यही है मेरे क्यों की वजह।।
क्यों जन्म लेने से पहले ही
मार दी जाती हैं लड़कियां
क्यों हर खुशी से पहले
दुख का कारण बनती हैं लड़कियां
क्यों उसके विश्वास को
लड़कों की ख्वाहिश के सामने
झुका दिया जाता है
क्यों उनकी परछाई को
हर शुभ कार्य से पहले
अशुभ मान लिया जाता है
क्यों उसे पैदा होते ही
चूल्हा चक्की में झोंक दिया जाता है
क्यों शिक्षा का दान देने से पहले ही
कन्यदान कर दिया जाता है
क्यों मेहन्दी के मिटने से पहले ही
दहेज के लोभ में
जला दी जाती हैं लड़कियां ??
क्या आप बता सकते हैं मुझे
इस क्यों का कारण
क्या आपके पास है इस क्यों का जवाब??
नहीं
आपके पास नहीं है,
क्योंकि आप ही हैं
इस क्यों का कारण
और यही है मेरे क्यों की वजह।।
विश्वास करें किसी भी रिश्ते को बेहतर तरह से निभाने का मूल मंत्र है, उस पर सौ फीसद विश्वास करना। किसी तरह का भय या शक दिल में जहां रखा आपने, समझिए प्रेम से दूर कर रहे हैं खुद को। विश्वास टूटने के भय से पहले ही उस पर शंकालू निगाह रखना, आपको कमजोर करता जाता है। प्रेम तो छूटता ही है, जो चीजें आपके पास होनी थीं, वे भी दूर होती जाती हैं।
Sunday, April 18, 2010
तुम ही तुम बसे हो सर्वस्व में !
तुम भी तुम हो और मैं भी तुम !
तुम्हीं से जीवन.. मरण तुम्हीं से !
साँसों में बसा वो नाम तुम्हीं हो !
सुबह का पहला ख्वाब तुम्हीं हो !
साँझ की पहली याद तुम्हीं हो !
पहले हो रब से मेरा रब तुम्हीं हो !
जाओ दिल से तो याद करूँ तुम्हें !
न जाती दिल से वो याद तुम्हीं हो !
मेरे हर दिन, हर शाम हर रात हर ख्वाब मे नाम तुम्हारा है....
मझधार बन गया मेरा अब माझी,..... क्योंकि दूर किनारा है.......
नही फ़िक्र मुझे ना ही है ज़रूरत किसी की झूंठी हमदर्दी की......
मेरे पास अब भी जीने को तेरी यादों का सहारा है....................
तुम भी तुम हो और मैं भी तुम !
तुम्हीं से जीवन.. मरण तुम्हीं से !
साँसों में बसा वो नाम तुम्हीं हो !
सुबह का पहला ख्वाब तुम्हीं हो !
साँझ की पहली याद तुम्हीं हो !
पहले हो रब से मेरा रब तुम्हीं हो !
जाओ दिल से तो याद करूँ तुम्हें !
न जाती दिल से वो याद तुम्हीं हो !
मेरे हर दिन, हर शाम हर रात हर ख्वाब मे नाम तुम्हारा है....
मझधार बन गया मेरा अब माझी,..... क्योंकि दूर किनारा है.......
नही फ़िक्र मुझे ना ही है ज़रूरत किसी की झूंठी हमदर्दी की......
मेरे पास अब भी जीने को तेरी यादों का सहारा है....................
सीप में मोती पलते हैं ज्यूँ , रख सीने में दर्द सजाकर
रुसवा अपना प्यार न करना, पागल अपने अश्क बहा कर
घोर निराशा के अंधियारे, घेरें जब-जब तुझको, ऐ दिल
रौशन राहें कर ले अपनी, आशाओं की शम्मा जला कर
आँसू एक न ज़ाया करना, ये दौलत अनमोल है प्यारे
दिल के जख़्मों को सीना है, इस पानी को तार बनाकर
श्रद्धा और विश्वास ही तो हैं, इन्सानी ...जीवन के जौहर
रुसवा अपना प्यार न करना, पागल अपने अश्क बहा कर
घोर निराशा के अंधियारे, घेरें जब-जब तुझको, ऐ दिल
रौशन राहें कर ले अपनी, आशाओं की शम्मा जला कर
आँसू एक न ज़ाया करना, ये दौलत अनमोल है प्यारे
दिल के जख़्मों को सीना है, इस पानी को तार बनाकर
श्रद्धा और विश्वास ही तो हैं, इन्सानी ...जीवन के जौहर
जीवन एक ऐसा रंगमंच है जिसमें कब, कहाँ, किसे
किससे प्यार हो जाए कहना बहुत ही मुश्किल है।
क्योंकि उस प्यारे से
प्यार की झलक पाने को
इंसान तरस जाता है
उसकी आवाज, उसकी हँसी
सुनने को तक इंसान
को वक्त का
इंतजार करना पड़ता है।
जिसने सही मायने में
किसी से प्यार किया हो
सही मायने में अपना
दिल किसी ऐसे इंसान
के नाम लिख दिया हो
जो वास्तव में
बहुत ही प्यारा हो।
प्यार दिल से
निकलने वाली उस तड़प
का नाम है
जिसमें एक झलक पाने की
ललक भी कितना जीना
मुश्किल कर देती है।
अगर दिलों के
वे दोनों बादशाह
जब समझ लें उस तड़प को
तो मुश्किल नहीं है समझना
प्यार के सही मायने को।
किससे प्यार हो जाए कहना बहुत ही मुश्किल है।
क्योंकि उस प्यारे से
प्यार की झलक पाने को
इंसान तरस जाता है
उसकी आवाज, उसकी हँसी
सुनने को तक इंसान
को वक्त का
इंतजार करना पड़ता है।
जिसने सही मायने में
किसी से प्यार किया हो
सही मायने में अपना
दिल किसी ऐसे इंसान
के नाम लिख दिया हो
जो वास्तव में
बहुत ही प्यारा हो।
प्यार दिल से
निकलने वाली उस तड़प
का नाम है
जिसमें एक झलक पाने की
ललक भी कितना जीना
मुश्किल कर देती है।
अगर दिलों के
वे दोनों बादशाह
जब समझ लें उस तड़प को
तो मुश्किल नहीं है समझना
प्यार के सही मायने को।
बंधन
प्यार और दोस्ती का बंधन,
बड़ा ही प्यारा होता है
दिल से दिल को मिलाने वाला
यह बंधन
बहुत ही खास
और महत्वपूर्ण होता है।
उस प्यार की परिभाषा
को वह इंसान ही जाने
जो प्यार को सिर्फ
प्यार के नजरिए से देखे
किसी और नजरिए से नहीं।
प्यार का रिश्ता
वह अनमोल धागा है
जो एक बार
बँध जाए तो फिर
उसे तोड़ना या छोड़ना
बहुत ही मुश्किल होता है।
प्यार का बंधन
विश्वास की नींव
पर टिका हुआ होता है
जो कभी टूटता नहीं है
अगर दोनों में विश्वास
की वह मजबूत कड़ी
कायम है
तो बहुत आसान है
प्यार का बंधन निभाना।
प्यार और दोस्ती
का वह अनजाना बंधन
इंसान को सबसे ऊँचा
बना देता है
जब उसमें निखार आता है।
बड़ा ही प्यारा होता है
दिल से दिल को मिलाने वाला
यह बंधन
बहुत ही खास
और महत्वपूर्ण होता है।
उस प्यार की परिभाषा
को वह इंसान ही जाने
जो प्यार को सिर्फ
प्यार के नजरिए से देखे
किसी और नजरिए से नहीं।
प्यार का रिश्ता
वह अनमोल धागा है
जो एक बार
बँध जाए तो फिर
उसे तोड़ना या छोड़ना
बहुत ही मुश्किल होता है।
प्यार का बंधन
विश्वास की नींव
पर टिका हुआ होता है
जो कभी टूटता नहीं है
अगर दोनों में विश्वास
की वह मजबूत कड़ी
कायम है
तो बहुत आसान है
प्यार का बंधन निभाना।
प्यार और दोस्ती
का वह अनजाना बंधन
इंसान को सबसे ऊँचा
बना देता है
जब उसमें निखार आता है।
वो शख्स
जीवन पलट सकता है
आसमाँ पलट सकता है
दुनिया पलट सकती है
लेकिन वो शख्स
कभी धोखा नहीं दे सकता
वो शख्स कभी नहीं पलट सकता
वो शख्स सारी दुनिया बदल
जाएगी लेकिन
वो नहीं बदल सकता
इतना अटूट विश्वास
है मुझे उस पर
दुनिया बेमानी हो
सकती है
समय बेमानी हो
सकता है
लेकिन वो जो मेरे दिल में
घर कर चुका है
मेरे दिल दुनिया में
मेरे खयालों में
हर वक्त रहता है
उसकी सादगी, उसका प्यार
जो मेरे दिल में
समाया हुआ है
वह कभी झूठ नहीं
हो सकता।
वो शख्स
जिसको देखने, उसकी हँसी सुनने,
उसकी मात्र एक झलक देखने को
जिसका दिल, आत्मा
तरस रही हो,
कहीं भी, दुनिया के किसी
भी कोने में
उसके बगैर जिसका
मन ना लग रहा हो
वो शख्स कैसे पलट सकता है।
आसमाँ पलट सकता है
दुनिया पलट सकती है
लेकिन वो शख्स
कभी धोखा नहीं दे सकता
वो शख्स कभी नहीं पलट सकता
वो शख्स सारी दुनिया बदल
जाएगी लेकिन
वो नहीं बदल सकता
इतना अटूट विश्वास
है मुझे उस पर
दुनिया बेमानी हो
सकती है
समय बेमानी हो
सकता है
लेकिन वो जो मेरे दिल में
घर कर चुका है
मेरे दिल दुनिया में
मेरे खयालों में
हर वक्त रहता है
उसकी सादगी, उसका प्यार
जो मेरे दिल में
समाया हुआ है
वह कभी झूठ नहीं
हो सकता।
वो शख्स
जिसको देखने, उसकी हँसी सुनने,
उसकी मात्र एक झलक देखने को
जिसका दिल, आत्मा
तरस रही हो,
कहीं भी, दुनिया के किसी
भी कोने में
उसके बगैर जिसका
मन ना लग रहा हो
वो शख्स कैसे पलट सकता है।
सम्मान करें
याद रखिए सम्मान देने से ही मिलता है। आप अपने जीवन साथी का सम्मान करेंगे तभी दूसरे भी उसे सम्मानित नजरों से देखेंगे। यदि आपने ही उसके बारे में अनाप-शनाप बोलना शुरू कर दिया तो दूसरों को कैसे रोकेंगे। अपनी नाराजगी या नापसंद जरूर बताएं उसे। पर यह ख्याल रखें, कि उसका सम्मान किसी भी तरह दुखे नहीं।
स्वीकारें
जिसे आप प्यार करते हैं, उसे संपूर्णता के साथ स्वीकारें। उसकी अच्छाइयों को अपना लेना और कमियों का चुन-चुन कर सुबह-शाम गिनाते फिरना, आपके प्यार के लिए बिल्कुल अच्छा नहीं है। जो है, जैसा है, उसको भर दीजिए प्यार से। संपूर्णता में प्यार करें। कमियों को कमियों की तरह लेना ही छोड़ दें। क्योंकि कोई भी परफेक्ट नहीं हो सकता। कुछ कमियां तो आपमें भी होंगी।
विश्वास करें
किसी भी रिश्ते को बेहतर तरह से निभाने का मूल मंत्र है, उस पर सौ फीसद विश्वास करना। किसी तरह का भय या शक दिल में जहां रखा आपने, समझिए प्रेम से दूर कर रहे हैं खुद को। विश्वास टूटने के भय से पहले ही उस पर शंकालू निगाह रखना, आपको कमजोर करता जाता है। प्रेम तो छूटता ही है, जो चीजें आपके पास होनी थीं, वे भी दूर होती जाती हैं।
मेरी बहन
छोटी बहन ढेर से सवाल पूछती मुझसे
मेरे देर से घर लौटने पर
सवाल अक्सर इतने हुआ करते
कि उसे शब्दों और आँखों
दोनों का सहारा लेना पड़ता
अपने तर्कों और बताये जाने वाले
कारणों से उसे संतुष्ट कर पाना
थोड़ा मुश्किल जरूर होता मगर असंभव नहीं
कभी-कभी बहुत प्यार आता मुझे उस पर
मातृवत स्नेह से भर जाता मन
जब कोई हठ कर बैठती मुझसे
रूठी हुई छोटी बहन को मनाते हुए
बहुत भला लगता मुझको
हर हठ जो पूरी हो जाती और जो अधूरी रह जाती
सोच में कैद होकर हो जाती हमेशा के लिए
कितने ही क्षण ऐसे आये जिनमें मेरा ही नहीं
उसका भी मन भर गया किसी कसैले स्वाद से
लगता था उन क्षणों में
यह प्रत्यंचा जाने कितनी और तनेगी
लेकिन बस एक प्यारी हँसी
जो गलबहियाँ डालकर भेंट करती मुझे
बस सब कुछ भुला देती मेरी छोटी बहन
मेरे देर से घर लौटने पर
सवाल अक्सर इतने हुआ करते
कि उसे शब्दों और आँखों
दोनों का सहारा लेना पड़ता
अपने तर्कों और बताये जाने वाले
कारणों से उसे संतुष्ट कर पाना
थोड़ा मुश्किल जरूर होता मगर असंभव नहीं
कभी-कभी बहुत प्यार आता मुझे उस पर
मातृवत स्नेह से भर जाता मन
जब कोई हठ कर बैठती मुझसे
रूठी हुई छोटी बहन को मनाते हुए
बहुत भला लगता मुझको
हर हठ जो पूरी हो जाती और जो अधूरी रह जाती
सोच में कैद होकर हो जाती हमेशा के लिए
कितने ही क्षण ऐसे आये जिनमें मेरा ही नहीं
उसका भी मन भर गया किसी कसैले स्वाद से
लगता था उन क्षणों में
यह प्रत्यंचा जाने कितनी और तनेगी
लेकिन बस एक प्यारी हँसी
जो गलबहियाँ डालकर भेंट करती मुझे
बस सब कुछ भुला देती मेरी छोटी बहन
तुम्हारे बिना मेरा जीवन था अधूरा
तुमसे मिलकर मुझे प्यार मिल गया पूरा
मुझे कभी मत कहना अलबिदा ........
अब जी न सकूंगा तुम्हारे बिना
कोई बात नहीं मुझसे कभी न मिलना
लेकिन चुपचाप ही -
मेरे मन उपवन में फूलों सा खिलना
सुन लिया करता हूँ मैं तुम्हारे ह्रदय की बात
लगता हैं मुझे मेरा दिल धड़कता हैं अब
तुम्हारे दिल के साथ
कोई जरूरी तो नहीं -कि -
चाँद हमेशा हो अम्बर के पास
कभी पूनम हैं तो कभी अमावश की रात
पर आकाश के मन में बुझती नही
कभी चांदनी से मिलने की आश KISHOR
तुमसे मिलकर मुझे प्यार मिल गया पूरा
मुझे कभी मत कहना अलबिदा ........
अब जी न सकूंगा तुम्हारे बिना
कोई बात नहीं मुझसे कभी न मिलना
लेकिन चुपचाप ही -
मेरे मन उपवन में फूलों सा खिलना
सुन लिया करता हूँ मैं तुम्हारे ह्रदय की बात
लगता हैं मुझे मेरा दिल धड़कता हैं अब
तुम्हारे दिल के साथ
कोई जरूरी तो नहीं -कि -
चाँद हमेशा हो अम्बर के पास
कभी पूनम हैं तो कभी अमावश की रात
पर आकाश के मन में बुझती नही
कभी चांदनी से मिलने की आश KISHOR
Saturday, April 17, 2010
हजारों ख्वाहिशें
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमाँ लेकिन फिर भी कम निकले।
सचमुच हम इंसान कभी भी अपनी स्थिति से संतुष्ट नहीं हो सकते। जितनी भी खुशियाँ हमारी झोली में डाल दी जाएँ, हमें वे नाकाफी लगती हैं।
हर दिन दिल में नए अरमान हिचकोले लेने लगते हैं। हमारी बस यही तमन्ना होती है कि जीवन की हर खुशी पर हमारा कब्जा हो। कोई भी पहलू किसी भी रूप में फीका न रह जाए। जिंदगी में तमाम तरह की मिठास और हर प्रकार के रंग भरने के लिए हम बेताब हो जाते हैं
बहुत निकले मेरे अरमाँ लेकिन फिर भी कम निकले।
सचमुच हम इंसान कभी भी अपनी स्थिति से संतुष्ट नहीं हो सकते। जितनी भी खुशियाँ हमारी झोली में डाल दी जाएँ, हमें वे नाकाफी लगती हैं।
हर दिन दिल में नए अरमान हिचकोले लेने लगते हैं। हमारी बस यही तमन्ना होती है कि जीवन की हर खुशी पर हमारा कब्जा हो। कोई भी पहलू किसी भी रूप में फीका न रह जाए। जिंदगी में तमाम तरह की मिठास और हर प्रकार के रंग भरने के लिए हम बेताब हो जाते हैं
साथी
थोड़े में ही जीवन का मजा है। यह जरूरी नहीं कि आपके साथी आपके महँगे गिफ्ट से ही खुश हो, बल्कि प्यार के छोटे-छोटे पल भी उन्हें ढेर सारी खुशियाँ दे सकते हैं। अगर आप उनके बारे में सोचते भी हैं तो वह इसी बात पर खुश हो जाती हैं। यह पता करें कि उनका सबसे पसंदीदा फूल कौन-सा है और केवल एक फूल खरीद कर आप उन्हें सरप्राइज कर सकते हैं। यह छोटा सा फूल भी एहसास दिलाने के लिए काफी है कि आप उन्हें कितना चाहते हैं।
उन्हें साथ लेकर पिकनिक पर जाएँ। यह छोटी सी चीज आपके साथी को ढेर सारी खुशियाँ देगी। तारों भरी रात में उनके साथ घूमने जाएँ और इस दौरान उनकी बातों को ध्यान से सुनें। यह काफी रोमांटिक क्षण होता है।
छोटी चीजों से उन्हें सरप्राइज दें। छोटी-छोटी कैण्डी उन्हें काफी खुशी दे सकती है। रात को सोने से पहले उन्हें कहकर जाएँ कि आप सारी रात उनके ही बारे में सोचते रहेंगे। उनसे कहें कि उनकी आवाज सुने बिना आपको नींद नहीं आएगी।
यदि वह आपको केवल आपके पैसे के लिए चाहती है तो वह आपके लायक नहीं है। रिश्ते की शुरूआत में ही इस बात को साफ कर दें कि आपके क्या सपने हैं और आप उनसे क्या अपेक्षाएँ रखते हैं।
कभी भी उनसे कोई बात झूठ न कहे। यह आपको मुसीबत में डाल सकता है। अगर कहीं आपका झूठ पकड़ा गया तो फिर से वह विश्वास पाना असंभव हो जाता है।
यह सच है कि आपका साथ ही आपके साथी की सबसे बड़ी खुशी होती है। अगर वह आपसे सचमुच प्यार करती है तो आपकी उपस्थिति से बढ़कर और कोई खुशी उनके लिए नहीं हो सकती।
उन्हें साथ लेकर पिकनिक पर जाएँ। यह छोटी सी चीज आपके साथी को ढेर सारी खुशियाँ देगी। तारों भरी रात में उनके साथ घूमने जाएँ और इस दौरान उनकी बातों को ध्यान से सुनें। यह काफी रोमांटिक क्षण होता है।
छोटी चीजों से उन्हें सरप्राइज दें। छोटी-छोटी कैण्डी उन्हें काफी खुशी दे सकती है। रात को सोने से पहले उन्हें कहकर जाएँ कि आप सारी रात उनके ही बारे में सोचते रहेंगे। उनसे कहें कि उनकी आवाज सुने बिना आपको नींद नहीं आएगी।
यदि वह आपको केवल आपके पैसे के लिए चाहती है तो वह आपके लायक नहीं है। रिश्ते की शुरूआत में ही इस बात को साफ कर दें कि आपके क्या सपने हैं और आप उनसे क्या अपेक्षाएँ रखते हैं।
कभी भी उनसे कोई बात झूठ न कहे। यह आपको मुसीबत में डाल सकता है। अगर कहीं आपका झूठ पकड़ा गया तो फिर से वह विश्वास पाना असंभव हो जाता है।
यह सच है कि आपका साथ ही आपके साथी की सबसे बड़ी खुशी होती है। अगर वह आपसे सचमुच प्यार करती है तो आपकी उपस्थिति से बढ़कर और कोई खुशी उनके लिए नहीं हो सकती।
सहनशीलता
गलत बात को सहन करना बिलकुल सही नहीं, लेकिन सही बात के लिए गलती स्वीकार लेना, झुक जाना और आपसी उलझन को धैर्य से सुलझा लेना, रिश्तों को नई जान डाल देता है।
दांपत्य दो प्राणों को जोड़ने हेतु मानव जीवन का सबसे बड़ा सेतु है। पति-पत्नी सुख-दुःख में अटूट साथी और सहभागी होते हैं। उनमें सागर से भी गहरा प्यार होता है। यही रिश्ता परिवार का आधार होता है, लेकिन आपस में अनबन या रूठना स्वाभाविक भी है, जरूरी भी है, क्योंकि तकरार में ही मनुहार के इजहार का मजा है। छाँव का सुख धूप झेलने के बाद ही मिलता है।
कहने से ज्यादा लाभ सहने में है। दो लोगों के बीच या परिवार में कहासुनी और झड़प होना कोई अनहोनी बात नहीं है, किंतु यह अनबन दूध में खटाई की तरह न हो। किसी भी बात को मन में गाँठ बनाकर रखने से मतभेद, मनभेद में बदल जाता है, जिससे एक-दूसरे पर मर-मिटने का दावा करने वाला रिश्ता हँसी-उड़ाऊ बन जाता है।
अनबन से आप अनमने स्थायी रूप से न रहें, थोड़ी-सी तकरार के बाद जहाँ के तहाँ प्यार के मुकाम पर पहुँच जाएँ। इसके लिए बस यही अचूक रामबाण फार्मूला है 'रात गई बात गई।' इस धारणा से 'बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध लेय' की उक्ति चरितार्थ होने लगती है। एक-दूसरे के प्रति बना अलगाव, लगाव में बदल जाता है। संबंध पारे की तरह बिखरने तथा दिल से उतरने से बच जाता है। यह सात जन्मों और सात फेरों वाला रिश्ता कहलाता है। इसलिए यह सपने में भी टूटने न पाए, हाथ से हाथ न छूट पाए, इसके लिए समझ, संयम, समझौता और स्वयं की गलतियों के एहसास की जरूरत है।
यदि झुकाना आता है तो झुकना भी आना चाहिए। याद रखिए अहम से बनी हुई बात बिगड़ती है तो 'हम' से बिगड़ी हुई बात भी बन जाती है।
कोई भी बात या प्रसंग हो अपने दिल में न रखकर आईने की तरह साफगोई अपनाने से एक-दूसरे के भ्रम दूर हो जाते हैं। दिल और जुबान में एकरूपता रहे, क्योंकि आचरण का दोहरापन संबंधों को खंडित कर देता है। रिश्ते और ईमानदारी में चोली-दामन का नाता होना चाहिए। पति-पत्नी से बढ़कर कोई नजदीकी रिश्ता नहीं होता। अतः पति व पत्नी को चाहिए कि वे संबंध की महत्ता समझें न कि उलझें। आवेश में आदमी अंधा होता है।
अंधावेश पाँव पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होता है। इसलिए बहुत संभलकर बोलें। गुस्से में हृदय-विदारक शब्द न बोल जाएँ, क्योंकि ऐसा सभी कहते हैं कि गोली के घाव भर जाते हैं, लेकिन बोली के घाव कभी नहीं भरते। 'जो हुआ सो हुआ, आगे की देखो' की मानसिकता को जीवन के सुख का मंत्र समझें। दांपत्य जीवन के अलावा यह बात सभी विषयों और रिश्तों पर लागू होती है। सहनशीलता कवच है, यह कभी न भूलें।
दांपत्य दो प्राणों को जोड़ने हेतु मानव जीवन का सबसे बड़ा सेतु है। पति-पत्नी सुख-दुःख में अटूट साथी और सहभागी होते हैं। उनमें सागर से भी गहरा प्यार होता है। यही रिश्ता परिवार का आधार होता है, लेकिन आपस में अनबन या रूठना स्वाभाविक भी है, जरूरी भी है, क्योंकि तकरार में ही मनुहार के इजहार का मजा है। छाँव का सुख धूप झेलने के बाद ही मिलता है।
कहने से ज्यादा लाभ सहने में है। दो लोगों के बीच या परिवार में कहासुनी और झड़प होना कोई अनहोनी बात नहीं है, किंतु यह अनबन दूध में खटाई की तरह न हो। किसी भी बात को मन में गाँठ बनाकर रखने से मतभेद, मनभेद में बदल जाता है, जिससे एक-दूसरे पर मर-मिटने का दावा करने वाला रिश्ता हँसी-उड़ाऊ बन जाता है।
अनबन से आप अनमने स्थायी रूप से न रहें, थोड़ी-सी तकरार के बाद जहाँ के तहाँ प्यार के मुकाम पर पहुँच जाएँ। इसके लिए बस यही अचूक रामबाण फार्मूला है 'रात गई बात गई।' इस धारणा से 'बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध लेय' की उक्ति चरितार्थ होने लगती है। एक-दूसरे के प्रति बना अलगाव, लगाव में बदल जाता है। संबंध पारे की तरह बिखरने तथा दिल से उतरने से बच जाता है। यह सात जन्मों और सात फेरों वाला रिश्ता कहलाता है। इसलिए यह सपने में भी टूटने न पाए, हाथ से हाथ न छूट पाए, इसके लिए समझ, संयम, समझौता और स्वयं की गलतियों के एहसास की जरूरत है।
यदि झुकाना आता है तो झुकना भी आना चाहिए। याद रखिए अहम से बनी हुई बात बिगड़ती है तो 'हम' से बिगड़ी हुई बात भी बन जाती है।
कोई भी बात या प्रसंग हो अपने दिल में न रखकर आईने की तरह साफगोई अपनाने से एक-दूसरे के भ्रम दूर हो जाते हैं। दिल और जुबान में एकरूपता रहे, क्योंकि आचरण का दोहरापन संबंधों को खंडित कर देता है। रिश्ते और ईमानदारी में चोली-दामन का नाता होना चाहिए। पति-पत्नी से बढ़कर कोई नजदीकी रिश्ता नहीं होता। अतः पति व पत्नी को चाहिए कि वे संबंध की महत्ता समझें न कि उलझें। आवेश में आदमी अंधा होता है।
अंधावेश पाँव पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होता है। इसलिए बहुत संभलकर बोलें। गुस्से में हृदय-विदारक शब्द न बोल जाएँ, क्योंकि ऐसा सभी कहते हैं कि गोली के घाव भर जाते हैं, लेकिन बोली के घाव कभी नहीं भरते। 'जो हुआ सो हुआ, आगे की देखो' की मानसिकता को जीवन के सुख का मंत्र समझें। दांपत्य जीवन के अलावा यह बात सभी विषयों और रिश्तों पर लागू होती है। सहनशीलता कवच है, यह कभी न भूलें।
You are my air The sun in my day The moon in my night The spring in my step You are my everything. You are the stars in the sky The birds in the trees The shimmer, the sparkle, the shine. Without the light you put into my life I would be nothing A single leaf on the ground in autumn, Lost, forgotten, alone.
जन्नत
ऐ खुदा
मै तो तेरा ही था
तुने ही तो मुझे जिंदगी की सुबह दी थी
तेरे रस्ते पर चलना
काटो का ताज था ..
गिर गया मै , फिर संभला
फिर खड़ा हुवा ..
कभी टुटा , कभी समेटा
इस दिल को कितने बार
कांच की तरह संभाला..
तेरी दि हुवी पाक रूह को
पाक ही रखने की कोशिश की
हजारो कोशिश के बाद
आज इस मुकाम पर हु
तेरे दीदार का प्यासा हु
तेरे पास आना चाहता हु ..
ऐ खुदा ..
नहीं चाहिए जन्नत मुझे
ना ही चाहिए जहन्नुम ..
बस यही इल्ताजा है मेरी
मुझे वैसा हि ले ले अपने पास
जैसे मां के पेट मे
मै था एक रक्त कि बूंद ...
जनम से लेकर मरण तक
का सफ़र न पुछ मुझे
और न पुछ कोई हिसाब और किताब
मै बताने लायक नहीं हु...
मै तो तेरा ही था
तुने ही तो मुझे जिंदगी की सुबह दी थी
तेरे रस्ते पर चलना
काटो का ताज था ..
गिर गया मै , फिर संभला
फिर खड़ा हुवा ..
कभी टुटा , कभी समेटा
इस दिल को कितने बार
कांच की तरह संभाला..
तेरी दि हुवी पाक रूह को
पाक ही रखने की कोशिश की
हजारो कोशिश के बाद
आज इस मुकाम पर हु
तेरे दीदार का प्यासा हु
तेरे पास आना चाहता हु ..
ऐ खुदा ..
नहीं चाहिए जन्नत मुझे
ना ही चाहिए जहन्नुम ..
बस यही इल्ताजा है मेरी
मुझे वैसा हि ले ले अपने पास
जैसे मां के पेट मे
मै था एक रक्त कि बूंद ...
जनम से लेकर मरण तक
का सफ़र न पुछ मुझे
और न पुछ कोई हिसाब और किताब
मै बताने लायक नहीं हु...
Tuesday, April 13, 2010
जिंदगी ..
क्यों होता है ये ..
आंसू छलक आते है
न जाने क्यों ..
ऐसे ही आखो में तैरने लगते है ..
मुझे किसी ने कहा था
कभी जीवन में आंसू न निकालना
जीते रहना ..लढते रहना
जबतक लक्ष्य को नही पाये
तबतक जिंदगी से न हारना
मै भी बड़ा कठोर बन गया
ह्रदय को विशाल की जगह मजबूत कर दिया
हजारो भावनाओ को क़त्ल कर दिया
जिंदगी को कई जगह हरा दिया..
इतना कठोर हो गया
के आखे पत्थर सी हो गयी..
पर न जाने क्यों ऐसा क्यों होता है ...
आजकल एक हवा का झोका भी मुझे रुला देता है ..
आंसू छलक आते है
न जाने क्यों ..
ऐसे ही आखो में तैरने लगते है ..
मुझे किसी ने कहा था
कभी जीवन में आंसू न निकालना
जीते रहना ..लढते रहना
जबतक लक्ष्य को नही पाये
तबतक जिंदगी से न हारना
मै भी बड़ा कठोर बन गया
ह्रदय को विशाल की जगह मजबूत कर दिया
हजारो भावनाओ को क़त्ल कर दिया
जिंदगी को कई जगह हरा दिया..
इतना कठोर हो गया
के आखे पत्थर सी हो गयी..
पर न जाने क्यों ऐसा क्यों होता है ...
आजकल एक हवा का झोका भी मुझे रुला देता है ..
फकीर
जिसके जीवन में सच्चा प्रेम आ जाता है उसका आचरण भी बदल जाता है बाहर से उसे फिर दिखावा करने की जरुरत नहीं पड़ती
जो प्रभु के प्रेम में इतना आगे बड जाता है, प्रभु वियोग में तड़पता रहता है, सुध नहीं उसे किसी बात की, उसने तन, मन, धन, अहंकार सब कुछ समर्पित कर दिया प्रभु के आगे, प्रेम में अहंकार आड़े आ जाता है, अहंकार बोलेंगा भई मै क्यों झुकू? और प्रेम में तो झुकना ही है, डूबना ही है, जीते जी मरना ही है
उसे अपने शरीर का होश नहीं है, कैसा भी वस्त्र मिला पहनलिया, कैसा भी रुखा-सुखा मिला खा लिया, उसकी न ही खुद की कोई इच्छा है, न ही किसी से कोई उम्मीद, उसने न ही किसी से कुछ लेना है, न ही किसी को कुछ देना है, उसके पास जो कुछ है वो उसने पहले ही प्रभु को समर्पित कर दिया है वो खली है, फकीर है बस जपता रहता है प्रभु का नाम.....
बस उसी की तड़प... उसी की चिंता... उसी की लगन... उसी की प्यास, खंजर.....प्रभु के नाम का खंजर उसके सिने में खुपा रहता है....उसी का दर्द सिने में लिए वो घूमता रहता है, उसी की तड़प में जी रहा है... उसी का नाम रट रहा है, न रात में सोने की चिंता है, न दिन में खाने-पिने की, न ही मान-बड़ाई की...
जो प्रभु के प्रेम में इतना आगे बड जाता है, प्रभु वियोग में तड़पता रहता है, सुध नहीं उसे किसी बात की, उसने तन, मन, धन, अहंकार सब कुछ समर्पित कर दिया प्रभु के आगे, प्रेम में अहंकार आड़े आ जाता है, अहंकार बोलेंगा भई मै क्यों झुकू? और प्रेम में तो झुकना ही है, डूबना ही है, जीते जी मरना ही है
उसे अपने शरीर का होश नहीं है, कैसा भी वस्त्र मिला पहनलिया, कैसा भी रुखा-सुखा मिला खा लिया, उसकी न ही खुद की कोई इच्छा है, न ही किसी से कोई उम्मीद, उसने न ही किसी से कुछ लेना है, न ही किसी को कुछ देना है, उसके पास जो कुछ है वो उसने पहले ही प्रभु को समर्पित कर दिया है वो खली है, फकीर है बस जपता रहता है प्रभु का नाम.....
बस उसी की तड़प... उसी की चिंता... उसी की लगन... उसी की प्यास, खंजर.....प्रभु के नाम का खंजर उसके सिने में खुपा रहता है....उसी का दर्द सिने में लिए वो घूमता रहता है, उसी की तड़प में जी रहा है... उसी का नाम रट रहा है, न रात में सोने की चिंता है, न दिन में खाने-पिने की, न ही मान-बड़ाई की...
Monday, April 12, 2010
ऐ खुदा..
ऐ खुदा..
जीवन से लेकर मरण तक
हजारो सुख दुःख के पल जीते जीते
न जाने आदमी कितनी मंजिले पार करता है
सर उठा के जीने के लिए
कितनी बार मन को
गिरवी रखता है..
उधार का सुख . ,
मज़बूरी का दुःख..
माँ के गोदी से निकल कर
इस ज़माने में तीथर बिथर हो जाता है..
रोटी , कपडा और मकान के चक्कर में
आम आदमी आम ही रह जाता है..
मान.. अपमान..
कितने बार उठेगा ..कितने बार गिरेगा..
हक की आवाज दबाई जाती है
चिल्लाओ तो लोग दीवाना कहते है
रूठो तो लोग बावरा कहते है..
अकेला कबतक लढु मै ज़माने से..
ऐ खुदा ..
एक हि दुवा है तुझसे
या तो कोई दिशा दे दे मुझको
या मुझे
दिशाहीन कर दे ..
जीवन से लेकर मरण तक
हजारो सुख दुःख के पल जीते जीते
न जाने आदमी कितनी मंजिले पार करता है
सर उठा के जीने के लिए
कितनी बार मन को
गिरवी रखता है..
उधार का सुख . ,
मज़बूरी का दुःख..
माँ के गोदी से निकल कर
इस ज़माने में तीथर बिथर हो जाता है..
रोटी , कपडा और मकान के चक्कर में
आम आदमी आम ही रह जाता है..
मान.. अपमान..
कितने बार उठेगा ..कितने बार गिरेगा..
हक की आवाज दबाई जाती है
चिल्लाओ तो लोग दीवाना कहते है
रूठो तो लोग बावरा कहते है..
अकेला कबतक लढु मै ज़माने से..
ऐ खुदा ..
एक हि दुवा है तुझसे
या तो कोई दिशा दे दे मुझको
या मुझे
दिशाहीन कर दे ..
जीवन में कैसी देरी है ,
जीवन में कैसी जल्दी है ,
जीवन में क्या खो जाना है ,
जीवन में क्या मिल जाना है ,
मेरी आँखों से तुम देखो
जग जाना और पहचाना है.
नहीं अकेले इस सागर में
लहर-लहर का मिल जाना है.
मेरे शब्द उठा कर देखो
शब्द गीत हर हो जाना है.
सागर अपने मन -दर्पण में
चाँद समेटे रख सकता है ,
और हवाओं का ये आँचल
सुमन झोली में भर सकता है ,
जीवन में कैसी जल्दी है ,
जीवन में क्या खो जाना है ,
जीवन में क्या मिल जाना है ,
मेरी आँखों से तुम देखो
जग जाना और पहचाना है.
नहीं अकेले इस सागर में
लहर-लहर का मिल जाना है.
मेरे शब्द उठा कर देखो
शब्द गीत हर हो जाना है.
सागर अपने मन -दर्पण में
चाँद समेटे रख सकता है ,
और हवाओं का ये आँचल
सुमन झोली में भर सकता है ,
माँग लो आज मुझको मुझी से तुम,
फिर न कहना कि मौका न मिला,
लगा है मेरा आज सर्वस्व दांव पर,
लूट मची है तुम भी भर लो दामन,
प्रेम बचा है अंतर में.. है भरा ठूँस-2,
यूँ भी है अधिकार तुम्हारा मुझ पर,
लगे हैं मेले चारों तरफ लूटखोरों के,
फिर क्यों पीछे तू भी रहे आ लूट मुझे,
जी रहा हूँ जीवन तेरी आशा से रहित,
नहीं है तू.. अब लग रही बोलियाँ हैं,
मन बैठा सोच रहा कौन घडी थी वह,
मैंने जब तुझसे लगाया अपना दिल,
"तीस बरस" बाकी जीवन के तेरे बिन,
बिन तेरे अब उनको जी पाउँगा कैसे,
एक पहर भी अब जी पाना मुश्किल है,
अरसा है लम्बा अब जी पाउँगा कैसे,
माँग लो आज मुझको मुझी से तुम,
फिर न कहना कि मौका न मिला,
लगा है मेरा आज सर्वस्व दांव पर !!
फिर न कहना कि मौका न मिला,
लगा है मेरा आज सर्वस्व दांव पर,
लूट मची है तुम भी भर लो दामन,
प्रेम बचा है अंतर में.. है भरा ठूँस-2,
यूँ भी है अधिकार तुम्हारा मुझ पर,
लगे हैं मेले चारों तरफ लूटखोरों के,
फिर क्यों पीछे तू भी रहे आ लूट मुझे,
जी रहा हूँ जीवन तेरी आशा से रहित,
नहीं है तू.. अब लग रही बोलियाँ हैं,
मन बैठा सोच रहा कौन घडी थी वह,
मैंने जब तुझसे लगाया अपना दिल,
"तीस बरस" बाकी जीवन के तेरे बिन,
बिन तेरे अब उनको जी पाउँगा कैसे,
एक पहर भी अब जी पाना मुश्किल है,
अरसा है लम्बा अब जी पाउँगा कैसे,
माँग लो आज मुझको मुझी से तुम,
फिर न कहना कि मौका न मिला,
लगा है मेरा आज सर्वस्व दांव पर !!
Sunday, April 11, 2010
निकल कर देखा.. अपनी माँ के उदर से उसने,
अनजानी.. कुछ मिचमिचाती अपनी आँखों से,
सारा जहान था दिख रहा अजनबी सा उसको,
लग रही माँ भी उसकी.. अजनबी सी उसको,
बना फिर इक नया.. माँ से पहचान का नाता,फिर भी
अकसर.. क्यूँ लगती माँ अजनबी सी,
गोद में जनम ले रहा.. नाता नया जनम के बाद,
है कैसी विडम्बना.. कैसा है.. यह नाते पर नाता,
बनने के बाद बनाना पड़ता.. फिर एक नया नाता,
है कितना अपनापन.. समाया होता इसमें भी,
हर रोज़ है आती.. एक नयी हरकत भोली मासूम,
जुड़ता हर रोज़.. एक नया अहसास भी...
है कैसी विडम्बना.. कैसा है.. यह नाते पर नाता,
बनने के बाद बनाना पड़ता.. फिर एक नया नाता...
अनजानी.. कुछ मिचमिचाती अपनी आँखों से,
सारा जहान था दिख रहा अजनबी सा उसको,
लग रही माँ भी उसकी.. अजनबी सी उसको,
बना फिर इक नया.. माँ से पहचान का नाता,फिर भी
अकसर.. क्यूँ लगती माँ अजनबी सी,
गोद में जनम ले रहा.. नाता नया जनम के बाद,
है कैसी विडम्बना.. कैसा है.. यह नाते पर नाता,
बनने के बाद बनाना पड़ता.. फिर एक नया नाता,
है कितना अपनापन.. समाया होता इसमें भी,
हर रोज़ है आती.. एक नयी हरकत भोली मासूम,
जुड़ता हर रोज़.. एक नया अहसास भी...
है कैसी विडम्बना.. कैसा है.. यह नाते पर नाता,
बनने के बाद बनाना पड़ता.. फिर एक नया नाता...
शुष्क धरती की प्यास बुझाने को ,
पानी की एक बूंद ही काफी है !
किसी की जिंदगी बसाने को ,
प्यार भरी एक साँस ही काफी है !
जीवन के मोती बनाती है सीप बहुत ,
उसे पानी की एक बूंद ही काफी है !
जीते हैं जो हर वक़्त सडको पर नंगे भूखे ,
उनको तो एक जून की रोटी ही काफी है !
जीते हैं जो हर रोज औरों के लिए,
उनका एक पल ही जीना काफी है !
जो मरता है हर पल धरा बचाने को ,
उसे खुद को एक कण ही काफी है !
सूख, उजड़ रही है मानवता यहाँ ,
इसे बचाने को एक 'चीर' ही काफी है !
पानी की एक बूंद ही काफी है !
किसी की जिंदगी बसाने को ,
प्यार भरी एक साँस ही काफी है !
जीवन के मोती बनाती है सीप बहुत ,
उसे पानी की एक बूंद ही काफी है !
जीते हैं जो हर वक़्त सडको पर नंगे भूखे ,
उनको तो एक जून की रोटी ही काफी है !
जीते हैं जो हर रोज औरों के लिए,
उनका एक पल ही जीना काफी है !
जो मरता है हर पल धरा बचाने को ,
उसे खुद को एक कण ही काफी है !
सूख, उजड़ रही है मानवता यहाँ ,
इसे बचाने को एक 'चीर' ही काफी है !
नन्ही कली
एक नन्ही दुलारी कली
जन्म लेकर कितनी खुशियाँ लाए
कहते है साथ उसके लक्ष्मी आए
वो अपने आप में ही है हर देवी का रूप
उसे पाकर ना जाने मैने कितने आशीर्वाद पाए
तमन्ना रखती हूँ ,वो फुलो सी खिले
इस से पहले की वो अपने भंवर से मिले
उसके संग मैं अनुभव करना चाहू
मेरा बचपन,वो अनमोल क्षण
जब कभी मेरी आँखें लगे भरी भरी
मेरी ही मा बन,मुझ पे ममता लूटाती सारी
वो ही मुस्कान और हिम्मत मेरी
एक नन्ही दुलारी कली
ईश्वर से मुझे तोहफे में मिली.
जन्म लेकर कितनी खुशियाँ लाए
कहते है साथ उसके लक्ष्मी आए
वो अपने आप में ही है हर देवी का रूप
उसे पाकर ना जाने मैने कितने आशीर्वाद पाए
तमन्ना रखती हूँ ,वो फुलो सी खिले
इस से पहले की वो अपने भंवर से मिले
उसके संग मैं अनुभव करना चाहू
मेरा बचपन,वो अनमोल क्षण
जब कभी मेरी आँखें लगे भरी भरी
मेरी ही मा बन,मुझ पे ममता लूटाती सारी
वो ही मुस्कान और हिम्मत मेरी
एक नन्ही दुलारी कली
ईश्वर से मुझे तोहफे में मिली.
Saturday, April 10, 2010
आपसे जुड़े ज्यादातर रिश्ते ऐसे होते हैं जिनको आप किसी न किसी नाम से पुकारते हैं। उन रिश्तों के बारे में सोचने की आपको जरूरत ही नहीं पड़ती है। उनके प्रति आपका फर्ज एवं अधिकार मानो जन्म से ही समझा दिया गया होता है इसीलिए बिना किसी विचार-विमर्श के सहजता से आप उसे निभाते चले जाते हैं।
कुछ ऐसे होते हैं जो आपका दुख-दर्द सुन तो लेते हैं पर उससे ज्यादा वे और कुछ नहीं करते। जिनसे आपकी महीनों बात नहीं होती पर मुसीबत में आप उन्हें फोन करते हैं और आपकी बातों और आवाज से उन्हें लगता है कि आपको उनकी हमदर्दी की जरूरत है। वह आपसे परेशानी पूछते हैं, आपको दिलासा देते हैं और उनसे कुछ बन पड़ता है तो वे आपके लिए करते भी हैं।
पर, कई बार आप एक विचित्र से रिश्ते में पड़ जाते हैं। न तो उसका कोई नाम होता है और न ही आपको यह पता होता है कि आपका उस व्यक्ति पर कितना अधिकार है। इतना ही नहीं, आपका उस व्यक्ति के प्रति क्या कर्तव्य होना चाहिए यह भी आप नहीं समझ पाते हैं। कभी आप उससे हफ्तों नहीं मिलते और जब मिलते हैं तो खूब अधिकार से झगड़ा करते हैं। आपकी यही ख्वाहिश होती है कि आपको वह मनाए, आपकी सारी शिकायतों पर माफी माँगे, कान पकड़े और सारी गलतियों को सर आँखों पर ले। आपको दिल व जान से प्यारा होता है।
कुछ ऐसे होते हैं जो आपका दुख-दर्द सुन तो लेते हैं पर उससे ज्यादा वे और कुछ नहीं करते। जिनसे आपकी महीनों बात नहीं होती पर मुसीबत में आप उन्हें फोन करते हैं और आपकी बातों और आवाज से उन्हें लगता है कि आपको उनकी हमदर्दी की जरूरत है। वह आपसे परेशानी पूछते हैं, आपको दिलासा देते हैं और उनसे कुछ बन पड़ता है तो वे आपके लिए करते भी हैं।
पर, कई बार आप एक विचित्र से रिश्ते में पड़ जाते हैं। न तो उसका कोई नाम होता है और न ही आपको यह पता होता है कि आपका उस व्यक्ति पर कितना अधिकार है। इतना ही नहीं, आपका उस व्यक्ति के प्रति क्या कर्तव्य होना चाहिए यह भी आप नहीं समझ पाते हैं। कभी आप उससे हफ्तों नहीं मिलते और जब मिलते हैं तो खूब अधिकार से झगड़ा करते हैं। आपकी यही ख्वाहिश होती है कि आपको वह मनाए, आपकी सारी शिकायतों पर माफी माँगे, कान पकड़े और सारी गलतियों को सर आँखों पर ले। आपको दिल व जान से प्यारा होता है।
Friday, April 9, 2010
सुख-दुख
कुछ ऐसा लिखो जिससे खुशी के वक्त पढ़ें तो गम याद आ जाए और गम के वक्त पढ़ें तो खुशी के पल याद आएँ। बीरबल ने कुछ देर सोचा, फिर कागज पर यह वाक्य लिखकर बादशाह को दिया- यह वक्त गुजर जाएगा। सच! इन चार शब्दों के वाक्य में जीवन की कितनी बड़ी सच्चाई छुपी है।
सभी जानते हैं कि सुख-दुख जीवन के दो पहलू हैं जिनका क्रमानुसार आना-जाना लगा ही रहता है। किंतु हम सब कुछ जानते-समझते हुए भी दोनों ही वक्त अपनी भावनाओं-संवेदनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाते। जब खुशियों के पल हमारी झोली में होते हैं तो उस समय हम स्वयं में ही इतने मग्न हो जाते हैं कि क्या अच्छा क्या बुरा, इस पर कभी विचार नहीं करते हैं।
अपनी किस्मत व भाग्य पर इठलाते हुए अन्य की तुलना में श्रेष्ठ समझते हैं और अहंकारवश कुछ ऐसे कार्य तक कर देते हैं जिनसे स्वयं का हित और दूसरे का अहित हो सकता है। इस क्षणिक सुख को स्थायी मानते हुए ही जीने लगते हैं और वास्तव में यही सोच अपना लेते हैं कि अब हमें क्या चाहिए, सब कुछ तो मिल गया। बस! एक इसी भ्रांति के कारण स्वयं को उतने योग्य व सफल साबित नहीं कर पाते जितना कि कर सकते थे।
इसी तरह दुःखद घड़ी में भी अपना आपा खो बेसुध होकर सब भूल जाते हैं। छोटे-से छोटे दुःख तक में धैर्य-संयम नहीं रख पाते। बुद्धि-विवेक व आत्मबल होने के बावजूद स्वयं को इतना दयनीय, असहाय व बेचारा महसूस करते हैं कि आत्मसम्मान, स्वाभिमान तक से समझौता कर लेते हैं। यही कारण है कि सब कुछ होते हुए भी उम्रभर अयोग्य-असफल होने लगते हैं।
कहने का सार यह है कि जो भी छोटी-सी जिंदगी हमें मिली है उसमें सुख व दुख दोनों ही से हमारा वास्ता होगा, यही शाश्वत सत्य है। इस सच को हम जितनी जल्दी स्वीकार कर लेंगे उतना ही हमारे लिए अच्छा रहेगा, क्योंकि फिर ऐसा समय आने पर हम अपने संवेगों पर काबू कर उन्हें स्थिर रख सकेंगे।
सभी जानते हैं कि सुख-दुख जीवन के दो पहलू हैं जिनका क्रमानुसार आना-जाना लगा ही रहता है। किंतु हम सब कुछ जानते-समझते हुए भी दोनों ही वक्त अपनी भावनाओं-संवेदनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाते। जब खुशियों के पल हमारी झोली में होते हैं तो उस समय हम स्वयं में ही इतने मग्न हो जाते हैं कि क्या अच्छा क्या बुरा, इस पर कभी विचार नहीं करते हैं।
अपनी किस्मत व भाग्य पर इठलाते हुए अन्य की तुलना में श्रेष्ठ समझते हैं और अहंकारवश कुछ ऐसे कार्य तक कर देते हैं जिनसे स्वयं का हित और दूसरे का अहित हो सकता है। इस क्षणिक सुख को स्थायी मानते हुए ही जीने लगते हैं और वास्तव में यही सोच अपना लेते हैं कि अब हमें क्या चाहिए, सब कुछ तो मिल गया। बस! एक इसी भ्रांति के कारण स्वयं को उतने योग्य व सफल साबित नहीं कर पाते जितना कि कर सकते थे।
इसी तरह दुःखद घड़ी में भी अपना आपा खो बेसुध होकर सब भूल जाते हैं। छोटे-से छोटे दुःख तक में धैर्य-संयम नहीं रख पाते। बुद्धि-विवेक व आत्मबल होने के बावजूद स्वयं को इतना दयनीय, असहाय व बेचारा महसूस करते हैं कि आत्मसम्मान, स्वाभिमान तक से समझौता कर लेते हैं। यही कारण है कि सब कुछ होते हुए भी उम्रभर अयोग्य-असफल होने लगते हैं।
कहने का सार यह है कि जो भी छोटी-सी जिंदगी हमें मिली है उसमें सुख व दुख दोनों ही से हमारा वास्ता होगा, यही शाश्वत सत्य है। इस सच को हम जितनी जल्दी स्वीकार कर लेंगे उतना ही हमारे लिए अच्छा रहेगा, क्योंकि फिर ऐसा समय आने पर हम अपने संवेगों पर काबू कर उन्हें स्थिर रख सकेंगे।
बन्नो हमारी
लाडो हमारी है चाँदतारा,
वो चाँदतारा वर माँगती है
बन्नो हमारी है चाँदतारा,
वो चाँदतारा वर माँगती है॥
ढोलक की थाप और घर में गूँजते ये विवाह के गीत सुन मन मयूर नाच उठता है। बेटी के ब्याह की सोच-सोच ही ऐसा लगने लगता है, मानो सारे जहाँ की खुशियाँ हाथ लग गई हों, सारे सपने पूरे हो गए हों। सच ही तो है! बेटी के जन्म के साथ उसको स्पर्श करते ही न जाने कितने रंग-बिरंगे खुशियों की सौगात से परिपूर्ण सपने आँखों में तैरने लगते हैं।
ज्यों-ज्यों वो बड़ी होती जाती है, त्यों-त्यों ख्वाब के साकार होने की इच्छा भी माता-पिता की बलवती होने लगती है और वे तन-मन धन से उन्हें पूरा करने में लग जाते हैं।
यही फिर उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य रह जाता है कि बेटी को सिर्फ और सिर्फ सुखी संसार ही मिले। कैसी भी परेशानी अथवा दुःख की घड़ी सदा-सदा कोसों दूर रहे।
वो चाँदतारा वर माँगती है
बन्नो हमारी है चाँदतारा,
वो चाँदतारा वर माँगती है॥
ढोलक की थाप और घर में गूँजते ये विवाह के गीत सुन मन मयूर नाच उठता है। बेटी के ब्याह की सोच-सोच ही ऐसा लगने लगता है, मानो सारे जहाँ की खुशियाँ हाथ लग गई हों, सारे सपने पूरे हो गए हों। सच ही तो है! बेटी के जन्म के साथ उसको स्पर्श करते ही न जाने कितने रंग-बिरंगे खुशियों की सौगात से परिपूर्ण सपने आँखों में तैरने लगते हैं।
ज्यों-ज्यों वो बड़ी होती जाती है, त्यों-त्यों ख्वाब के साकार होने की इच्छा भी माता-पिता की बलवती होने लगती है और वे तन-मन धन से उन्हें पूरा करने में लग जाते हैं।
यही फिर उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य रह जाता है कि बेटी को सिर्फ और सिर्फ सुखी संसार ही मिले। कैसी भी परेशानी अथवा दुःख की घड़ी सदा-सदा कोसों दूर रहे।
उम्र भी जी लो...
बरसते हुए बादल, शायद ही कभी गरजते,
बयां कर जाते बहुत कुछ, मगर कभी कुछ ना कहते.
तुम्हारी हर छोटी छोटी बात, और हर एक बात मुझे बहुत ही भाती है,
ऐसा कोई पल नहीं, जिसमे तुम्हारी याद नहीं आती है.
इतने शांत होकर भी इतने नटखट हो,
कभी एकदम बुज़ुर्ग तो कभी बच्चे हो,
लगते बहुत अच्छे हो, मगर एक ही शिकायत है,
कभी अपनी उम्र भी जी लो...
बयां कर जाते बहुत कुछ, मगर कभी कुछ ना कहते.
तुम्हारी हर छोटी छोटी बात, और हर एक बात मुझे बहुत ही भाती है,
ऐसा कोई पल नहीं, जिसमे तुम्हारी याद नहीं आती है.
इतने शांत होकर भी इतने नटखट हो,
कभी एकदम बुज़ुर्ग तो कभी बच्चे हो,
लगते बहुत अच्छे हो, मगर एक ही शिकायत है,
कभी अपनी उम्र भी जी लो...
Wednesday, April 7, 2010
Mere Guruvar
sab se pyar nam , subse dulara nam , man bhavan aur man mohak nam , tera hi nam , jis ne visaru kabhi , jise japta rahu har dam , jise na bhulu me kabhi bhulu bhale apne aap ko bas na bhulu teri mahima , tere gungan , tera didhar , tera dharsh aur teri karuna kripa , vo hi to hai sahara , vohi to hi mera kinara , vohi sacha sathi , mera mit aur mera hamdam , har pal har xhan bas apne nam ma dan dena , apne simran ka dan dena , apne didar ka diyan dena mere Guruvar
naresh motwani: mera data , mere ram ,mere dukh bhanjan ,mere moula , mere sache sathi , tere bin na koi aur sahara , bas le le apni sharan me baksh le muje mere har gunaho ke liye , nahi janta kya jiwan hai , nahi janta kya tera simran aur puja hai bas dil de betha hu tuje ab is dil se kabhi dur mat karna mere data
naresh motwani: mera data , mere ram ,mere dukh bhanjan ,mere moula , mere sache sathi , tere bin na koi aur sahara , bas le le apni sharan me baksh le muje mere har gunaho ke liye , nahi janta kya jiwan hai , nahi janta kya tera simran aur puja hai bas dil de betha hu tuje ab is dil se kabhi dur mat karna mere data
Thursday, April 1, 2010
realisation of god
A Blessing
The man whispered,
"God, speak to me"
and a meadowlark sang.
But, the man did not hear.
So the man yelled,
"God, speak to me"
and the thunder rolled across the sky.
But, the man did not listen.
The man looked around and said,
"God let me see you."
And a star shined brightly.
But the man did not see.
And, the man shouted,
"God show me a miracle."
And, a life was born.
But, the man did not notice.
So, the man cried out in despair,
"Touch me God, and let me know you are here."
Whereupon, God reached down and touched the man.
But, the man brushed the butterfly away ...
and walked on.
I found this to be a great reminder that God is always around us in the little and simple things that we take for granted. Don't miss out on a blessing because it isn't packaged the way that you expect.
The man whispered,
"God, speak to me"
and a meadowlark sang.
But, the man did not hear.
So the man yelled,
"God, speak to me"
and the thunder rolled across the sky.
But, the man did not listen.
The man looked around and said,
"God let me see you."
And a star shined brightly.
But the man did not see.
And, the man shouted,
"God show me a miracle."
And, a life was born.
But, the man did not notice.
So, the man cried out in despair,
"Touch me God, and let me know you are here."
Whereupon, God reached down and touched the man.
But, the man brushed the butterfly away ...
and walked on.
I found this to be a great reminder that God is always around us in the little and simple things that we take for granted. Don't miss out on a blessing because it isn't packaged the way that you expect.
dil ek mandir
bas dil ko to mandir banana hai aur usme murat sajani hai apne pratam ki voh pritam jo kabhi juda nahi hota , kabhi nahi bichadta , kabhi hamse alag nahi hota , bhichadta hai yah sansar , bhichadti hai yah sansari vastue jo kabhi hamari nahi thi par galti se ham apni samaj bethate hai , jinke liye mare mare firte hai , rat din rote rahate hai voh sab to bichad jayega par jo kabhi nahi bhichdega , kabhi hamese juda nahi hoga use kab ham prit karenge , kab dil me mandir me use sajayenge ,kab tak bahar gumte rahenge , kyo nahi ham dil ke mandir me dubate ,kyo hamari mati mari gayi hai , kab tak sansare ke bandanome dubate rahenge , kab tak sabko kush karte phirte rahenege , kayo nahi ham apne atma deva ko kush karte , kyo nahi ham unke liye apni prit ki dori ko kaste , kab tak ............................................................................................... samay ka panchi udta ja raha hai , har din chutta ja raha hai , bas kahi der na ho jaye
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