Saturday, April 10, 2010

आपसे जुड़े ज्यादातर रिश्ते ऐसे होते हैं जिनको आप किसी न किसी नाम से पुकारते हैं। उन रिश्तों के बारे में सोचने की आपको जरूरत ही नहीं पड़ती है। उनके प्रति आपका फर्ज एवं अधिकार मानो जन्म से ही समझा दिया गया होता है इसीलिए बिना किसी विचार-विमर्श के सहजता से आप उसे निभाते चले जाते हैं।


कुछ ऐसे होते हैं जो आपका दुख-दर्द सुन तो लेते हैं पर उससे ज्यादा वे और कुछ नहीं करते।  जिनसे आपकी महीनों बात नहीं होती पर मुसीबत में आप उन्हें फोन करते हैं और आपकी बातों और आवाज से उन्हें लगता है कि आपको उनकी हमदर्दी की जरूरत है। वह आपसे परेशानी पूछते हैं, आपको दिलासा देते हैं और उनसे कुछ बन पड़ता है तो वे आपके लिए करते भी हैं।

पर, कई बार आप एक विचित्र से रिश्ते में पड़ जाते हैं। न तो उसका कोई नाम होता है और न ही आपको यह पता होता है कि आपका उस व्यक्ति पर कितना अधिकार है। इतना ही नहीं, आपका उस व्यक्ति के प्रति क्या कर्तव्य होना चाहिए यह भी आप नहीं समझ पाते हैं। कभी आप उससे हफ्तों नहीं मिलते और जब मिलते हैं तो खूब अधिकार से झगड़ा करते हैं। आपकी यही ख्वाहिश होती है कि आपको वह मनाए, आपकी सारी शिकायतों पर माफी माँगे, कान पकड़े और सारी गलतियों को सर आँखों पर ले। आपको दिल व जान से प्यारा होता है।

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