Sunday, April 11, 2010

शुष्क धरती की प्यास बुझाने को ,


पानी की एक बूंद ही काफी है !

किसी की जिंदगी बसाने को ,

प्यार भरी एक साँस ही काफी है !

जीवन के मोती बनाती है सीप बहुत ,

उसे पानी की एक बूंद ही काफी है !

जीते हैं जो हर वक़्त सडको पर नंगे भूखे ,

उनको तो एक जून की रोटी ही काफी है !

जीते हैं जो हर रोज औरों के लिए,

उनका एक पल ही जीना काफी है !

जो मरता है हर पल धरा बचाने को ,

उसे खुद को एक कण ही काफी है !

सूख, उजड़ रही है मानवता यहाँ ,

इसे बचाने को एक 'चीर' ही काफी है !

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