ये रात है और अकेलापन
तारे टिमटिमाते हैं और मेरे अकेलेपन को
और अकेला करते हैं
प्यार के पल कितने कम हैं, कितने छोटे
और अकेलेपन की रातें कितनी लंबी और सूनी
मैं जानता हूँ आसमान की गोद में
ये तारे टिमटिमाते हुए कितने सुंदर लगते हैं
लेकिन तुम्हारे बगैर यह रात एक अजगर है
जिसने मुझे जकड रखा है
धीरे-धीरे मेरी आँखें मूँद जाएँगी और तुम जान भी नहीं पाओगी
मेरी जिंदगी कितनी छोटी है
और तुम कितनी दूर...!
प्यार के पल कितने कम हैं, कितने छोटे
Sunday, December 27, 2009
मैं तुम्हें पुकारता हूँ
मैं तुम्हें पुकारता हूँ
और मेरी आवाज सूनेपन के जंगल में
पागलों की तरह भटकती रहती है
मैं तुम्हें पुकारता हूँ
औऱ मेरी आवाज छटपटाती हुई
एक नदी में डूब जाती है
मैं तुम्हें पुकारता हूँ
और मेरी आवाज खिले फूल को चूमकर
एक गहरी खाई में खो जाती है
मैं तुम्हे पुकारता हूँ
मैं तुम्हें पुकारता हूँ
मैं तुम्हें पुकारता हूँ
पर तुम सात समंदर पार हँसती हुई
एक चट्टान पर बैठी गुनगुना रही हो
मैं तुम्हें पुकारता हूँ
और मेरा गला रूंधा हुआ है
तुम्हें बार-बार पुकारते हुए एक दिन
मेरे आवाज रुक जाएगी
और मैं हमेशा हमेशा के लिए मौन हो जाऊँगा
तुम आओगी तो मुझे नहीं पाओगी
मेरे मौन में खिला हुआ
एक छोटा सा सुंदर फूल पाओगी।
मैं तुम्हें पुकारता हूँ
और मेरी आवाज सूनेपन के जंगल में
पागलों की तरह भटकती रहती है
मैं तुम्हें पुकारता हूँ
औऱ मेरी आवाज छटपटाती हुई
एक नदी में डूब जाती है
मैं तुम्हें पुकारता हूँ
और मेरी आवाज खिले फूल को चूमकर
एक गहरी खाई में खो जाती है
मैं तुम्हे पुकारता हूँ
मैं तुम्हें पुकारता हूँ
मैं तुम्हें पुकारता हूँ
पर तुम सात समंदर पार हँसती हुई
एक चट्टान पर बैठी गुनगुना रही हो
मैं तुम्हें पुकारता हूँ
और मेरा गला रूंधा हुआ है
तुम्हें बार-बार पुकारते हुए एक दिन
मेरे आवाज रुक जाएगी
और मैं हमेशा हमेशा के लिए मौन हो जाऊँगा
तुम आओगी तो मुझे नहीं पाओगी
मेरे मौन में खिला हुआ
एक छोटा सा सुंदर फूल पाओगी।
Thursday, December 24, 2009
आपके पत्र
हर साल मुझे आपके पत्र मिलते हैं। इन पत्रों में खुशबू होती है आपके मीठे प्यार की। कभी आँसू की बरसात होती है, कभी तकलीफों का पिटारा, कभी चहकती खुशियाँ तो कभी गमगीन दुनिया। हर पत्र के साथ मैं रोता हूँ, मुस्कुराता हूँ और कभी-कभी घंटों बैठकर सोचता हूँ। सोचता हूँ, आखिर एक मानव इस दुनिया में चाहता क्या है? छोटी-छोटी मासूम खुशियाँ, सच्चा प्यार, अपनों की प्रगति, बड़ों का आशीर्वाद और भरपूर शांति। फिर क्यों आपकी इसी दुनिया में चारों तरफ नफरतों की जंग छिड़ी हुई है। क्यों हर साल बिना किसी गुनाह के सैकड़ों लोग मारे जाते हैं? आप सबके पत्र मुझसे माँगते हैं अपने लिए जिंदगी भर की दुआएँ और आज मैं आपसे माँगता हूँ पल भर का सुकून। आप सब चाहते हैं आपकी जिंदगी में रौनक रहे, रोशनी रहे और आज मैं आपसे चाहता हूँ इस धरती पर शांति का श्वेत उजाला बना रहे।
मैं आपको देना चाहता हूँ शांति के सफेद कबूतर लेकिन देखता हूँ आपके हाथों में उन्हीं का लाल खून। तब तड़प उठती है मेरी आत्मा। मत भूलना अपने देश के उन नन्हे नौनिहालों को जिनके तन पर जरूरत के कपड़े भी नहीं सजे हैं। जब बनाओं ड्रायफ्रूट्स केक, तो मत भूलना भूख से बेहाल उन बच्चों को जिन्हें सूखी रोटी भी नसीब नहीं। और पार्टी झूमों, तो मत भूलना कि खुशियों का पैगाम लाने वाला आपका अपना खुश नहीं है गंदगी में जीवन बिताने वाले हजारों बाल मजदूरों का रूप देखकर।
आज पत्र लिख रहा हूँ उन सारे जिम्मेदार और जहीन लोगों के नाम हैं आज मैं उनसे उपहार चाहता हूँ। चाहता हूँ कि देखें अपने आसपास के गरीब, बेबस, शारीरिक रूप से अक्षम, अनाथ, मजदूर और मजबूर इंसानों को। और मनाएँ पावन पर्व उनको एक पल की खुशी का उपहार देकर।
यह ना कर सकें तो इतना तो कर ही सकते हैं कि इस बार खुद को खूबसूरत भावनाओं का उपहार दें कि हम हमेशा बस खुश रहेंगे और खुशियाँ देंगे। कभी दूसरों का बुरा नहीं चाहेंगे, कभी हिंसा और अहंकार के रास्ते पर नहीं चलेंगे। जब आप खुद ही नेक रास्तों पर चल पड़ेंगे ! पत्रों से छलछलाती मीठी और मासूम आकांक्षाएँ पढ़कर मैं पसीज उठता हूँ। ये पत्र चाहते हैं उनके माता-पिता कभी अलग ना हों। चाहते हैं, दादा-दादी का साथ बना रहे। दोस्तों को फीस ना भरने के कारण स्कूल ना छोड़ना पड़े। चाहते हैं दुनिया के सारे चोर सुधर जाए।
यहाँ तक कि वे चाहते हैं दुनिया के सारे हथियार समुद्र में बहा दिए जाएँ और सीमा पर तैनात सारे जवान घर लौट आए। इतने और ऐसे-ऐसे भावुक अनुरोध कि अगर दिल की गहराई से समझे तो एहसास होगा कि मूल रूप से इंसान की कृति कितनी भोली और निश्छल होती है। ना जाने कब, कैसे, कौन सी विकृति उसे डस लेती है कि वह इंसान से हैवान बन जाता है। आप सच्चे मानव बने रहे और मानवता को बना रहने दें यही मेरी सच्ची शुभकामनाएँ हैं।
मुझे बस एक उपहार, धरती पर बना रहे आपस में प्यार।
मैं आपको देना चाहता हूँ शांति के सफेद कबूतर लेकिन देखता हूँ आपके हाथों में उन्हीं का लाल खून। तब तड़प उठती है मेरी आत्मा। मत भूलना अपने देश के उन नन्हे नौनिहालों को जिनके तन पर जरूरत के कपड़े भी नहीं सजे हैं। जब बनाओं ड्रायफ्रूट्स केक, तो मत भूलना भूख से बेहाल उन बच्चों को जिन्हें सूखी रोटी भी नसीब नहीं। और पार्टी झूमों, तो मत भूलना कि खुशियों का पैगाम लाने वाला आपका अपना खुश नहीं है गंदगी में जीवन बिताने वाले हजारों बाल मजदूरों का रूप देखकर।
आज पत्र लिख रहा हूँ उन सारे जिम्मेदार और जहीन लोगों के नाम हैं आज मैं उनसे उपहार चाहता हूँ। चाहता हूँ कि देखें अपने आसपास के गरीब, बेबस, शारीरिक रूप से अक्षम, अनाथ, मजदूर और मजबूर इंसानों को। और मनाएँ पावन पर्व उनको एक पल की खुशी का उपहार देकर।
यह ना कर सकें तो इतना तो कर ही सकते हैं कि इस बार खुद को खूबसूरत भावनाओं का उपहार दें कि हम हमेशा बस खुश रहेंगे और खुशियाँ देंगे। कभी दूसरों का बुरा नहीं चाहेंगे, कभी हिंसा और अहंकार के रास्ते पर नहीं चलेंगे। जब आप खुद ही नेक रास्तों पर चल पड़ेंगे ! पत्रों से छलछलाती मीठी और मासूम आकांक्षाएँ पढ़कर मैं पसीज उठता हूँ। ये पत्र चाहते हैं उनके माता-पिता कभी अलग ना हों। चाहते हैं, दादा-दादी का साथ बना रहे। दोस्तों को फीस ना भरने के कारण स्कूल ना छोड़ना पड़े। चाहते हैं दुनिया के सारे चोर सुधर जाए।
यहाँ तक कि वे चाहते हैं दुनिया के सारे हथियार समुद्र में बहा दिए जाएँ और सीमा पर तैनात सारे जवान घर लौट आए। इतने और ऐसे-ऐसे भावुक अनुरोध कि अगर दिल की गहराई से समझे तो एहसास होगा कि मूल रूप से इंसान की कृति कितनी भोली और निश्छल होती है। ना जाने कब, कैसे, कौन सी विकृति उसे डस लेती है कि वह इंसान से हैवान बन जाता है। आप सच्चे मानव बने रहे और मानवता को बना रहने दें यही मेरी सच्ची शुभकामनाएँ हैं।
मुझे बस एक उपहार, धरती पर बना रहे आपस में प्यार।
Wednesday, December 23, 2009
भाई-बहन का रिश्ता है, जिसमें औपचारिकता से कहीं ज्यादा प्यार व दिलों का नाता होता है। अतीत की मधुर स्मृतियाँ तथा बचपन की यादें ताउम्र भाई-बहन को एक-दूसरे से जोड़े रखती है। यह रिश्ता एक ऐसा अटूट रिश्ता होता है, जिसे न तो कोई तोड़ पाता है और न ही कोई भूला पाता है।
व्यस्तता जहाँ आज हमारे जीवन की पहचान सी बन गई है। अब जब हमें अपने पड़ोसियों से बात करने की फुरसत नहीं मिलती, ऐसे में अपने भाई या बहन से मिलने का वक्त निकाल पाना तो बहुत ही मुश्किल होता है।
इस आपाधापी भरे जीवन में व्यस्तता के कारण जहाँ हर रिश्ता हमारे लिए एक औपचारिकता बनता जा रहा है, वहीं स्नेह व प्रेम के इस रिश्ते का वजूद अब तक वैसा ही काबिज है।
बहन की हर दुख-तकलीफ में भाई का दौड़े-दौड़े आना उनके असीम व अगाध प्यार का ही परिचायक है। यह रिश्ता खुदा का बनाया एक ऐसा पाक रिश्ता है, जिसमें धन-दौलत या शानो-शौकत को नहीं देखा जाता बल्कि प्यार की गहराइयों को आँका जाता है।
आज हमारे बीच दूरियाँ भले ही बहुत अधिक बढ़ गई हैं परंतु हमारे दिलों में अपने भाई या बहन के प्रति सम्मान व आदरभाव कम नहीं हुआ है।
आज भी हर राखी पर बहन को अपने लाडले वीर के आने का इंतजार रहता है और हर भाई भी बड़ी ही शिद्दत से अपनी बहन के लिए उपहार लाता है। बचपन के वो झगड़े व शरारतें अब इस उम्र में भी होती है पर अब वो आँखों में आँसू की बजाय होंठों पर हँसी लाती हैं।
बहन की हर दुख-तकलीफ में भाई का दौड़े-दौड़े आना उनके असीम व अगाध प्यार का ही परिचायक है। यह रिश्ता खुदा का बनाया एक ऐसा पाक रिश्ता है, जिसमें धन-दौलत या शानो-शौकत को नहीं देखा जाता बल्कि प्यार की गहराइयों को आँका जाता है।
समय की तर्ज पर बदलते रिश्तों का साथ यह रिश्ता भी बदला पर आज भी इस रिश्ते में कड़वाहट व बैर का समावेश नहीं हुआ। अब भी यह एक अहसास बनकर हमें प्रेम की डोर से बाँधे रखे हैं।
व्यस्तता जहाँ आज हमारे जीवन की पहचान सी बन गई है। अब जब हमें अपने पड़ोसियों से बात करने की फुरसत नहीं मिलती, ऐसे में अपने भाई या बहन से मिलने का वक्त निकाल पाना तो बहुत ही मुश्किल होता है।
इस आपाधापी भरे जीवन में व्यस्तता के कारण जहाँ हर रिश्ता हमारे लिए एक औपचारिकता बनता जा रहा है, वहीं स्नेह व प्रेम के इस रिश्ते का वजूद अब तक वैसा ही काबिज है।
बहन की हर दुख-तकलीफ में भाई का दौड़े-दौड़े आना उनके असीम व अगाध प्यार का ही परिचायक है। यह रिश्ता खुदा का बनाया एक ऐसा पाक रिश्ता है, जिसमें धन-दौलत या शानो-शौकत को नहीं देखा जाता बल्कि प्यार की गहराइयों को आँका जाता है।
आज हमारे बीच दूरियाँ भले ही बहुत अधिक बढ़ गई हैं परंतु हमारे दिलों में अपने भाई या बहन के प्रति सम्मान व आदरभाव कम नहीं हुआ है।
आज भी हर राखी पर बहन को अपने लाडले वीर के आने का इंतजार रहता है और हर भाई भी बड़ी ही शिद्दत से अपनी बहन के लिए उपहार लाता है। बचपन के वो झगड़े व शरारतें अब इस उम्र में भी होती है पर अब वो आँखों में आँसू की बजाय होंठों पर हँसी लाती हैं।
बहन की हर दुख-तकलीफ में भाई का दौड़े-दौड़े आना उनके असीम व अगाध प्यार का ही परिचायक है। यह रिश्ता खुदा का बनाया एक ऐसा पाक रिश्ता है, जिसमें धन-दौलत या शानो-शौकत को नहीं देखा जाता बल्कि प्यार की गहराइयों को आँका जाता है।
समय की तर्ज पर बदलते रिश्तों का साथ यह रिश्ता भी बदला पर आज भी इस रिश्ते में कड़वाहट व बैर का समावेश नहीं हुआ। अब भी यह एक अहसास बनकर हमें प्रेम की डोर से बाँधे रखे हैं।
Wednesday, December 16, 2009
तू बहुत-बहुत याद आती है।
पढ़-लिखकर कुछ बन सकूँ यह तेरा सपना था, जो तूने मेरे लिए देखा था। मैंने भी ईश्वर की असीम कृपा व बड़ों के आशीर्वाद से वह पूर्ण किया। कंपनी की ओर से जब भेजने का पत्र मिला तो मैं बहुत खुश हुआ, पर तेरी हँसी व प्रसन्नाता के पीछे छुपी उदासी कोमैंने भाँप लिया था।
डैडी ने मेरा हौसला बढ़ाया व कहा, सब ठीक हो जाएगा। फिर तैयारी का दौर शुरू हुआ व तूने मेरा बैग वैसे ही अरेंज किया, जैसे कभी स्कूल बैग किया करती थी। दस-दस बार चीजें संभालने की नसीहत तो कभी यह करना, वह मत करना की लंबी लिस्ट। कभी-कभी खीज पड़ता तो तेरी आँखों से गंगा-जमुना बह उठती। वह क्षण भी आया, जब मैंने एयरपोर्ट पर तुझसे आशीर्वाद ले बिदा होना चाहा। तब तेरे सब्र का बाँध टूट गया व तू मुझसे लिपट फूट-फूटकर रो रही थी। मैं अचानक बहुत बड़ा हो गया था, तुझे समझा रहा था।
डैडी इधर-उधर देख खुद को कमजोर होने से बचा रहे थे और तेरे कंधे पर हाथ रख तुझे समझा भी रहे थे। मेरे लिए भी वे क्षण भारी थे, पर मन पंछी की तरह पंख फैला सुदूर आकाश में उड़ने के जुनून से भरा था। तुझसे अलग होते समय वही बचपन का एहसास जाग उठा, जब केजी में पहली बार तूने मुझे जबर्दस्ती क्लास में बैठाया था। जी में आया, वैसे ही गला फाड़कर रोऊँ, पर दिल कट्ठा कर अपनी राहें चल दिया। तेरा आँसुओंभरा चेहरा बहुत देर पीछा करता रहा, पर आकाश में उड़ान भरने की अनुभूति भी अवर्णनीय थी।
धीरे-धीरे यहाँ के माहौल में स्वयं को ढाल रहा हूँ। बचपन से तू एक-एक काम सिखाने के लिए पीछे पड़ती थी व मैं टालता रहता था। अब जब हर काम हाथ से करने पड़ते हैं तो वही सब याद आता है। स्वयं ही रूम क्लीन करने पड़ते हैं, डस्टिंग करनी पड़ती है, सुबह-शाम लंच वडिनर की व्यवस्था करनी पड़ती है। अब तुझसे फोन पर पूछ-पूछकर बहुत कुछ बनाना सीख गया हूँ। फ्रोजन रोटी खा-खाकर थक गया हूँ। तेरे हाथ के गरम फुलके, कढ़ी, पातळभाजी, पूरणपोळी बहुत याद आते हैं। होटल का खाना खाने की जिद करने वाला मैं घर के खाने को तरसने लगा हूँ।
फोन पर हम दोनों एक-दूसरे को सांत्वना देने के लिए 'सब अच्छा है' कहते रहते हैं। वेब कैमरे पर भी मेरी कोशिश होती है कि खुश दिखूँ ताकि तुझे अच्छा लगे, यही तेरी कोशिश भी मुझे साफ दिखाई देती है। पर आज स्वयं को रोक नहीं पा रहा हूँ खत लिखने को। 'वेस्ट ऑफ टाइम' मान तेरी हँसी उड़ाने वाला मैं अब तेरी चिट्ठी का इंतजार करता रहता हूँ। तेरी चिट्ठी को चार-चार बार पढ़ता रहता हूँ।
अक्षरों को दोहराता रहता हूँ व आज लिखने बैठा हूँ। फोन पर तेरा पहला प्रश्न होता है, 'कैसा है, क्या खाया, ठीक से खाता है या नहीं?' आज सच लिखता हूँ, कुछ भी खाता हूँ उससे पेट तो भर लेता हूँ पर तृप्ति का वह एहसास हो ही नहीं पाता, जो तेरे हाथ का बना खाना देता था। थकान मिटती ही नहीं, क्योंकि सर रखने के लिए जब-तब तेरी गोद यहाँ उपलब्ध नहीं है। सात समुंदर पार आकर सुख-सुविधाएँ,संपन्नाता तो पा ली हैं, पर दिल का सुकून खो गया है, क्योंकि मेरा बचपन तेरे पास ही छूट गया है।
अपना घर-आँगन, बगीचा बहुत-बहुत याद आते हैं। लगता है, काश! पंख होते तो उड़कर तेरे पास आ तेरे आँचल में छिप जाता। अचानक आईने में अपनी शक्ल देखता हूँ तो उसमें अपने चेहरे में तेरा चेहरा ढूँढ ही लेता हूँ व मुस्कुराकर फिर काम में लगजाता हूँ। तू अपना खयाल रखना व मुझे बहुत याद करना, क्योंकि तू बहुत-बहुत याद आती है।
डैडी ने मेरा हौसला बढ़ाया व कहा, सब ठीक हो जाएगा। फिर तैयारी का दौर शुरू हुआ व तूने मेरा बैग वैसे ही अरेंज किया, जैसे कभी स्कूल बैग किया करती थी। दस-दस बार चीजें संभालने की नसीहत तो कभी यह करना, वह मत करना की लंबी लिस्ट। कभी-कभी खीज पड़ता तो तेरी आँखों से गंगा-जमुना बह उठती। वह क्षण भी आया, जब मैंने एयरपोर्ट पर तुझसे आशीर्वाद ले बिदा होना चाहा। तब तेरे सब्र का बाँध टूट गया व तू मुझसे लिपट फूट-फूटकर रो रही थी। मैं अचानक बहुत बड़ा हो गया था, तुझे समझा रहा था।
डैडी इधर-उधर देख खुद को कमजोर होने से बचा रहे थे और तेरे कंधे पर हाथ रख तुझे समझा भी रहे थे। मेरे लिए भी वे क्षण भारी थे, पर मन पंछी की तरह पंख फैला सुदूर आकाश में उड़ने के जुनून से भरा था। तुझसे अलग होते समय वही बचपन का एहसास जाग उठा, जब केजी में पहली बार तूने मुझे जबर्दस्ती क्लास में बैठाया था। जी में आया, वैसे ही गला फाड़कर रोऊँ, पर दिल कट्ठा कर अपनी राहें चल दिया। तेरा आँसुओंभरा चेहरा बहुत देर पीछा करता रहा, पर आकाश में उड़ान भरने की अनुभूति भी अवर्णनीय थी।
धीरे-धीरे यहाँ के माहौल में स्वयं को ढाल रहा हूँ। बचपन से तू एक-एक काम सिखाने के लिए पीछे पड़ती थी व मैं टालता रहता था। अब जब हर काम हाथ से करने पड़ते हैं तो वही सब याद आता है। स्वयं ही रूम क्लीन करने पड़ते हैं, डस्टिंग करनी पड़ती है, सुबह-शाम लंच वडिनर की व्यवस्था करनी पड़ती है। अब तुझसे फोन पर पूछ-पूछकर बहुत कुछ बनाना सीख गया हूँ। फ्रोजन रोटी खा-खाकर थक गया हूँ। तेरे हाथ के गरम फुलके, कढ़ी, पातळभाजी, पूरणपोळी बहुत याद आते हैं। होटल का खाना खाने की जिद करने वाला मैं घर के खाने को तरसने लगा हूँ।
फोन पर हम दोनों एक-दूसरे को सांत्वना देने के लिए 'सब अच्छा है' कहते रहते हैं। वेब कैमरे पर भी मेरी कोशिश होती है कि खुश दिखूँ ताकि तुझे अच्छा लगे, यही तेरी कोशिश भी मुझे साफ दिखाई देती है। पर आज स्वयं को रोक नहीं पा रहा हूँ खत लिखने को। 'वेस्ट ऑफ टाइम' मान तेरी हँसी उड़ाने वाला मैं अब तेरी चिट्ठी का इंतजार करता रहता हूँ। तेरी चिट्ठी को चार-चार बार पढ़ता रहता हूँ।
अक्षरों को दोहराता रहता हूँ व आज लिखने बैठा हूँ। फोन पर तेरा पहला प्रश्न होता है, 'कैसा है, क्या खाया, ठीक से खाता है या नहीं?' आज सच लिखता हूँ, कुछ भी खाता हूँ उससे पेट तो भर लेता हूँ पर तृप्ति का वह एहसास हो ही नहीं पाता, जो तेरे हाथ का बना खाना देता था। थकान मिटती ही नहीं, क्योंकि सर रखने के लिए जब-तब तेरी गोद यहाँ उपलब्ध नहीं है। सात समुंदर पार आकर सुख-सुविधाएँ,संपन्नाता तो पा ली हैं, पर दिल का सुकून खो गया है, क्योंकि मेरा बचपन तेरे पास ही छूट गया है।
अपना घर-आँगन, बगीचा बहुत-बहुत याद आते हैं। लगता है, काश! पंख होते तो उड़कर तेरे पास आ तेरे आँचल में छिप जाता। अचानक आईने में अपनी शक्ल देखता हूँ तो उसमें अपने चेहरे में तेरा चेहरा ढूँढ ही लेता हूँ व मुस्कुराकर फिर काम में लगजाता हूँ। तू अपना खयाल रखना व मुझे बहुत याद करना, क्योंकि तू बहुत-बहुत याद आती है।
दास्ताँ भाई-बहन के प्यार की।
अतीत के गलियारों में से अक्सर आवाजें आती हैं बचपन की शरारतों की। हमारी स्मृति में धुँधली सी पर यादगार तस्वीरें होती हैं अपने बचपन की।
भाई-बहन की उन शरारतों की, जिसे याद करते ही चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है और खुल जाती है दास्ताँ भाई-बहन के प्यार की।
भाई-बहन का नाता प्रेम व स्नेह का होता है। इस रिश्ते में हमारा बचपन कैद होता है, जिसे हमने बेफिक्र होकर पूरे आनंद से जिया है। हालाँकि आज हम रिश्तों के कई पायदानों पर चढ़ गए हैं परंतु हम अपना सुनहरा बचपन नहीं भूले हैं।
आधुनिकता की आँधी की मार झेलकर भी यह रिश्ता आज भी उतना ही पाक़ है। आज भी भाई-बहन में उतनी आत्मीयता और अपनापन है कि एक का दर्द दूसरे को महसूस होता है। दोनों एक-दूसरे के दु:ख-दर्द व खुशियों में शरीक होकर उन्हें सहारा देते हैं
यह रिश्ता आत्मीयता का रिश्ता होता है जिसे दिल से जिया जाता है। बचपन तो भाई-बहन की नोक-झोंक व शरारतों में गुजर जाता है।
भाई-बहन के रिश्ते की अहमियत तो हमें तब पता लगती है जब हम युवा होते हैं। जब हमारे बच्चे होते हैं। उनकी शरारतें हमें फिर से अपने बचपन में ले जाती हैं।
हर रक्षाबंधन पर बहन, भाई का बेसब्री से इंतजार करती है और भाई भी मीलों के फासले तय करके अपनी बहन को लेने जाता है। यही नहीं हर त्योहार पर बधाइयाँ देकर एक-दूजे के सुखी जीवन की कामना करते हैं।
माँ-बाप की डॉट-फटकार से अपने प्यारे भाई को बचाना हो या चुपके-चुपके बहन को कहीं घुमाने ले जाना हो... यह सब भाई-बहन को बखूबी आता है।
बचपन में हमने भी बहुत सारे बहाने किए, माँ-बाप की डॉट भी खाई पर वही किया जो हमें पसंद था। हमारी उन शरारतों में भी एक प्यार छुपा था, जिसकी तलाश आज भी हम करते हैं।
आधुनिकता की आँधी की मार झेलकर भी यह रिश्ता आज भी उतना ही पाक़ है। आज भी भाई-बहन में उतनी आत्मीयता और अपनापन है कि एक का दर्द दूसरे को महसूस होता है। दोनों एक-दूसरे के दु:ख-दर्द व खुशियों में शरीक होकर उन्हें सहारा देते हैं और ऐसा होना भी चाहिए।
यह प्यार ताउम्र बना रहे और भाई-बहन एक-दूसरे का साथ जीवनभर निभाएँ। ऐसी ही आशा है। रिश्ते की इस डोर को प्यार व समझदारी से थामें रखें ताकि रिश्तों में मधुरता सदैव बरकरार रहे।
भाई-बहन की उन शरारतों की, जिसे याद करते ही चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है और खुल जाती है दास्ताँ भाई-बहन के प्यार की।
भाई-बहन का नाता प्रेम व स्नेह का होता है। इस रिश्ते में हमारा बचपन कैद होता है, जिसे हमने बेफिक्र होकर पूरे आनंद से जिया है। हालाँकि आज हम रिश्तों के कई पायदानों पर चढ़ गए हैं परंतु हम अपना सुनहरा बचपन नहीं भूले हैं।
आधुनिकता की आँधी की मार झेलकर भी यह रिश्ता आज भी उतना ही पाक़ है। आज भी भाई-बहन में उतनी आत्मीयता और अपनापन है कि एक का दर्द दूसरे को महसूस होता है। दोनों एक-दूसरे के दु:ख-दर्द व खुशियों में शरीक होकर उन्हें सहारा देते हैं
यह रिश्ता आत्मीयता का रिश्ता होता है जिसे दिल से जिया जाता है। बचपन तो भाई-बहन की नोक-झोंक व शरारतों में गुजर जाता है।
भाई-बहन के रिश्ते की अहमियत तो हमें तब पता लगती है जब हम युवा होते हैं। जब हमारे बच्चे होते हैं। उनकी शरारतें हमें फिर से अपने बचपन में ले जाती हैं।
हर रक्षाबंधन पर बहन, भाई का बेसब्री से इंतजार करती है और भाई भी मीलों के फासले तय करके अपनी बहन को लेने जाता है। यही नहीं हर त्योहार पर बधाइयाँ देकर एक-दूजे के सुखी जीवन की कामना करते हैं।
माँ-बाप की डॉट-फटकार से अपने प्यारे भाई को बचाना हो या चुपके-चुपके बहन को कहीं घुमाने ले जाना हो... यह सब भाई-बहन को बखूबी आता है।
बचपन में हमने भी बहुत सारे बहाने किए, माँ-बाप की डॉट भी खाई पर वही किया जो हमें पसंद था। हमारी उन शरारतों में भी एक प्यार छुपा था, जिसकी तलाश आज भी हम करते हैं।
आधुनिकता की आँधी की मार झेलकर भी यह रिश्ता आज भी उतना ही पाक़ है। आज भी भाई-बहन में उतनी आत्मीयता और अपनापन है कि एक का दर्द दूसरे को महसूस होता है। दोनों एक-दूसरे के दु:ख-दर्द व खुशियों में शरीक होकर उन्हें सहारा देते हैं और ऐसा होना भी चाहिए।
यह प्यार ताउम्र बना रहे और भाई-बहन एक-दूसरे का साथ जीवनभर निभाएँ। ऐसी ही आशा है। रिश्ते की इस डोर को प्यार व समझदारी से थामें रखें ताकि रिश्तों में मधुरता सदैव बरकरार रहे।
माँ-बाप अपने बच्चे के लिए जमाने भर के खिलौने खरीदते हैं जो कभी न कभी टूट जाते हैं लेकिन अपने बच्चे को छोटा भाई या बहन देकर वह उसे ऐसा जीता जागता खिलौना देते हैं जो उनके दुनिया से जाने के बाद भी बच्चे को अकेलेपन का अहसास नहीं होने देता।
जिस भाई या बहन से हम बचपन में लड़ते झगड़ते हैं और खेलते हैं उसके बारे में शायद ही कभी गहराई से यह सोचा जाता हो कि वह माँ- बाप की कितनी खूबसूरत देन है।
माँ-बाप तो हमेशा दुनिया में नहीं बैठे रहेंगे। तो उनके जाने के बाद कोई तो ऐसा हो जिससे इंसान जिंदगी में अपना सुख-दुख बाँट सके और इसके लिए भाई या बहन से बेहतर रिश्ता कोई नहीं हो सकता है।
भाई या बहन के साथ बचपन गुजारने वाले बच्चे अधिक आत्मविश्वासी कुशाग्र बुद्धि तथा सामंजस्य बिठाने वाले होते हैं।
आज एक तो कामकाजी माता-पिता के पास बच्चों के लिए वैसे ही समय नहीं है और उस पर यदि बच्चा घर में भी अकेला है तो वह किससे अपनी भावनाएँ व्यक्त करे किसके साथ खेले।
भले ही माँ- बाप कितना भी क्वालिटी समय बच्चे के साथ गुजारें लेकिन वह बच्चे के हमउम्र नहीं बन सकते। जो साथ बच्चे को अपने भाई बहन के साथ मिलता है उसकी किसी भी खिलौने से भरपाई नहीं की जा सकती।
सगे भाई बहनों में आपसी प्रतिद्वंद्विता भी होती है लेकिन यह स्वाभाविक है और समय के साथ यह अपने आप समाप्त हो जाती है। लेकिन भाई या बहन का रिश्ता शायद माँ-बाप के रिश्ते के बाद दुनिया का सबसे खूबसूरत रिश्ता होता है।
वे बच्चे बेहद खुशनसीब हैं जिनके भाई या बहन हैं क्योंकि माँ या बाप के बाद कोई भी बच्चा खुद को सबसे अधिक सुरक्षित अपने भाई या बहन की संगत में ही महसूस करता है।
जिस भाई या बहन से हम बचपन में लड़ते झगड़ते हैं और खेलते हैं उसके बारे में शायद ही कभी गहराई से यह सोचा जाता हो कि वह माँ- बाप की कितनी खूबसूरत देन है।
माँ-बाप तो हमेशा दुनिया में नहीं बैठे रहेंगे। तो उनके जाने के बाद कोई तो ऐसा हो जिससे इंसान जिंदगी में अपना सुख-दुख बाँट सके और इसके लिए भाई या बहन से बेहतर रिश्ता कोई नहीं हो सकता है।
भाई या बहन के साथ बचपन गुजारने वाले बच्चे अधिक आत्मविश्वासी कुशाग्र बुद्धि तथा सामंजस्य बिठाने वाले होते हैं।
आज एक तो कामकाजी माता-पिता के पास बच्चों के लिए वैसे ही समय नहीं है और उस पर यदि बच्चा घर में भी अकेला है तो वह किससे अपनी भावनाएँ व्यक्त करे किसके साथ खेले।
भले ही माँ- बाप कितना भी क्वालिटी समय बच्चे के साथ गुजारें लेकिन वह बच्चे के हमउम्र नहीं बन सकते। जो साथ बच्चे को अपने भाई बहन के साथ मिलता है उसकी किसी भी खिलौने से भरपाई नहीं की जा सकती।
सगे भाई बहनों में आपसी प्रतिद्वंद्विता भी होती है लेकिन यह स्वाभाविक है और समय के साथ यह अपने आप समाप्त हो जाती है। लेकिन भाई या बहन का रिश्ता शायद माँ-बाप के रिश्ते के बाद दुनिया का सबसे खूबसूरत रिश्ता होता है।
वे बच्चे बेहद खुशनसीब हैं जिनके भाई या बहन हैं क्योंकि माँ या बाप के बाद कोई भी बच्चा खुद को सबसे अधिक सुरक्षित अपने भाई या बहन की संगत में ही महसूस करता है।
बेटी को सीख
जी हाँ, आप भी जरूर चाहेंगी कि आपकी बिटिया रानी भी अपने ससुराल जाकर वहाँ राज करे। ससुराल का हर सदस्य उसे भरपूर सम्मान और स्नेह दे। हर बात पर उसकी राय ली जाए! तो आपको चाहिए कि बेटी को कुछ सबक सीख में दें जो उसके ससुराल वालों को अपना बनाने में काम आएँ।
सबसे प्रमुख सबक तो यह होना चाहिए कि वह शादी के बाद कभी भी अपने पति को गुलाम समझने की भूल न करे। वह उसका जीवनसंगी है, उसके हर दुःख और सुख में बराबरी से साथ निभाए। वह याद रखे कि हर इंसान के जीवन में सुख बाँटने हजारों लोग आते हैं पर दुःख में सबसे महत्वपूर्ण साथ जीवनसाथी का ही होता है।
रिश्ते की बुनियाद सम्मान व इज्जत पर ही टिकी होती है। इसकी बात उसे और उसकी इसे बताने की आदत से भी बेटी को बचाकर रखें। ये बातें संयुक्त परिवार में आग में घी का काम करती हैं, जो कि गृहस्थ जीवन के लिए बहुत ही खतरनाक साबित होता है।
घर के हर एक सदस्य की बात ध्यान से सुनें। कोई बात उसे अच्छी न भी लगे तो उसका विरोध करने का तरीका बेहद ही सभ्य और शालीन होना चाहिए। गुस्से में इंसान कुछ भी कह जाता है और बात बढ़ जाती है। हाँ लेकिन गलत बात को वो बिलकुल भी सहन न करे बल्कि सही तरीके से उसका प्रतिकार करे।
बिटिया को उसकी सास, देवर या ननद के खिलाफ कोई यह कहकर भड़का रहा है कि मैं तो तेरे भले के लिए ही कह रही थी। ऐसी स्थिति में बेटी को चाहिए कि सुनी-सुनाई बातों में आकर एकदम से गुस्से में भड़क कर अपनी गृहस्थी बर्बाद न करे। थोड़ी चतुराई से भाँपने की कोशिश करे कि क्या ऐसा वाकई में है।
चुपचाप रहकर ही माहौल का जायजा लें। उसके बाद ही अगला कदम सोच-समझकर उठाएँ। पर हाँ उससे पहले खुद को एक बार जरूर परख लें कि कहीं गलती उसकी भी तो नहीं है। जहाँ तक हो सके अपनी खामियाँ पहले दूर करने की सीख बेटी को दें।
बेटी चाहे किसी भी क्रम की बहू बने आखिर वो उस घर की बहू ही कहलाएगी उसके मन में हीनभावना न भरें कि वह बड़ी बहू है तो उसी को सबकी देखभाल करनी है, या छोटी बहू है तो उसे सभी का मान-सम्मान करते रहना पड़ेगा, सभी की सेवा करनी पड़ेगी।
उसे यह सीख दें कि वह हर रिश्ते का सम्मान करे। सबके के साथ इज्जत से पेश आए। रिश्ते की बुनियाद सम्मान व इज्जत पर ही टिकी होती है। इसकी बात उसे और उसकी इसे बताने की आदत से भी बेटी को बचाकर रखें। ये बातें संयुक्त परिवार में आग में घी का काम करती हैं, जो कि गृहस्थ जीवन के लिए बहुत ही खतरनाक साबित होता है। हर सदस्य की छोटी-मोटी मदद जरूर करें। केवल बड़ों की सेवा से ही नहीं छोटों की मदद करके भी बेटी उनका दिल जीत सकती है।
उसे अपनी चीजों को दूसरों के साथ बाँटना भी सिखाएँ तभी दूसरे भी अपनी चीजें आपकी बेटी को उपयोग करने देंगे। हमारे देश में रीति-रिवाज हर परिवार के अलग-अलग होते हैं। बिटिया को चाहिए कि अपने मायके के रीति-रिवाज ससुराल में ना थोपे और बात-बात पर अपने मायके की प्रशंसा न करें। फिर देखिए आपकी बेटी अपने ससुराल में कैसे राज करेगी और उसके ससुराल का हर सदस्य आपकी बेटी के गुण गाते नहीं थकेगा।
सबसे प्रमुख सबक तो यह होना चाहिए कि वह शादी के बाद कभी भी अपने पति को गुलाम समझने की भूल न करे। वह उसका जीवनसंगी है, उसके हर दुःख और सुख में बराबरी से साथ निभाए। वह याद रखे कि हर इंसान के जीवन में सुख बाँटने हजारों लोग आते हैं पर दुःख में सबसे महत्वपूर्ण साथ जीवनसाथी का ही होता है।
रिश्ते की बुनियाद सम्मान व इज्जत पर ही टिकी होती है। इसकी बात उसे और उसकी इसे बताने की आदत से भी बेटी को बचाकर रखें। ये बातें संयुक्त परिवार में आग में घी का काम करती हैं, जो कि गृहस्थ जीवन के लिए बहुत ही खतरनाक साबित होता है।
घर के हर एक सदस्य की बात ध्यान से सुनें। कोई बात उसे अच्छी न भी लगे तो उसका विरोध करने का तरीका बेहद ही सभ्य और शालीन होना चाहिए। गुस्से में इंसान कुछ भी कह जाता है और बात बढ़ जाती है। हाँ लेकिन गलत बात को वो बिलकुल भी सहन न करे बल्कि सही तरीके से उसका प्रतिकार करे।
बिटिया को उसकी सास, देवर या ननद के खिलाफ कोई यह कहकर भड़का रहा है कि मैं तो तेरे भले के लिए ही कह रही थी। ऐसी स्थिति में बेटी को चाहिए कि सुनी-सुनाई बातों में आकर एकदम से गुस्से में भड़क कर अपनी गृहस्थी बर्बाद न करे। थोड़ी चतुराई से भाँपने की कोशिश करे कि क्या ऐसा वाकई में है।
चुपचाप रहकर ही माहौल का जायजा लें। उसके बाद ही अगला कदम सोच-समझकर उठाएँ। पर हाँ उससे पहले खुद को एक बार जरूर परख लें कि कहीं गलती उसकी भी तो नहीं है। जहाँ तक हो सके अपनी खामियाँ पहले दूर करने की सीख बेटी को दें।
बेटी चाहे किसी भी क्रम की बहू बने आखिर वो उस घर की बहू ही कहलाएगी उसके मन में हीनभावना न भरें कि वह बड़ी बहू है तो उसी को सबकी देखभाल करनी है, या छोटी बहू है तो उसे सभी का मान-सम्मान करते रहना पड़ेगा, सभी की सेवा करनी पड़ेगी।
उसे यह सीख दें कि वह हर रिश्ते का सम्मान करे। सबके के साथ इज्जत से पेश आए। रिश्ते की बुनियाद सम्मान व इज्जत पर ही टिकी होती है। इसकी बात उसे और उसकी इसे बताने की आदत से भी बेटी को बचाकर रखें। ये बातें संयुक्त परिवार में आग में घी का काम करती हैं, जो कि गृहस्थ जीवन के लिए बहुत ही खतरनाक साबित होता है। हर सदस्य की छोटी-मोटी मदद जरूर करें। केवल बड़ों की सेवा से ही नहीं छोटों की मदद करके भी बेटी उनका दिल जीत सकती है।
उसे अपनी चीजों को दूसरों के साथ बाँटना भी सिखाएँ तभी दूसरे भी अपनी चीजें आपकी बेटी को उपयोग करने देंगे। हमारे देश में रीति-रिवाज हर परिवार के अलग-अलग होते हैं। बिटिया को चाहिए कि अपने मायके के रीति-रिवाज ससुराल में ना थोपे और बात-बात पर अपने मायके की प्रशंसा न करें। फिर देखिए आपकी बेटी अपने ससुराल में कैसे राज करेगी और उसके ससुराल का हर सदस्य आपकी बेटी के गुण गाते नहीं थकेगा।
Monday, December 7, 2009
निभाई है यहाँ हमने मोहब्बत भी सलीके से दिए जो रंज़ो-ग़म इसने, लगाए हमने सीने से
जो टूटे शाख से यारों अभी पत्ते हरे हैं वो यकीं कुछ देर से होगा नहीं अब दिन वो पहले से
हमेशा ज़िंदगी जी है यहाँ औरों की शर्तों पर मिले मौका अगर फिर से जिऊँ अपने तरीके से
न की तदबीर ही कोई , न थी तकदीर कुछ जिनकी सवालों और ख्यालों मे मिले हैं अब वो उलझे से।
'ख्याल' अपनी ही करता है कहाँ वो मेरी सुनता है निभाई है यहाँ हमने मोहब्बत भी सलीके
जो टूटे शाख से यारों अभी पत्ते हरे हैं वो यकीं कुछ देर से होगा नहीं अब दिन वो पहले से
हमेशा ज़िंदगी जी है यहाँ औरों की शर्तों पर मिले मौका अगर फिर से जिऊँ अपने तरीके से
न की तदबीर ही कोई , न थी तकदीर कुछ जिनकी सवालों और ख्यालों मे मिले हैं अब वो उलझे से।
'ख्याल' अपनी ही करता है कहाँ वो मेरी सुनता है निभाई है यहाँ हमने मोहब्बत भी सलीके
ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजिए।
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है॥
शेर प्रेम की जटिलता को समझाने के लिए काफी है। दुनिया में सभी प्रेम करते हैं, पर बहुत ही कम लोग हुए हैं, जिन्होंने प्यार को ठीक तरह से समझा है। जिन्होंने समझा, उन्होंने अपने प्यार को नया आयाम दिया और उसे दुनिया के सामने आदर्श बनाकर प्रस्तुत किया।
आज के दौर में प्यार फैशन की तरह हो गया है और हर कहीं आपको ऐसे प्रेमी युगल मिल जाएँगे जो दुनिया वालों के तमाम उसूल और रीति-रिवाज ताक में रखकर एक-दूसरे को प्रेम करते हैं। पर क्या सभी प्रेमी अपने साथी के साथ प्रेम की तीव्रता बनाएं रखते हैं या वक्त की दीमक उनके प्रेम को खोखला कर देती है।
प्रेम इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि लैला-मजनू, हीर-रांझा, सोहनी-महिवाल, आदि सभी ने प्रेम क्षेत्र में झंडे गाड़े, पर प्रेम की निश्चित परिभाषा कोई न दे पाया। ऐसा शायद इसलिए भी हुआ कि ये लोग प्रेम की महान अनुभूति से ओत-प्रोत थे, इसलिए ये उसे निश्चित शब्दों में बाँधना नहीं चाहते थे। वे प्रेम के असीम अहसास को सिर्फ महसूस करना चाहते थे, न कि उसे किसी सीमा में बाँधना।
आप भी किसी से प्यार करते हैं तो, जरूर जानना चाहेंगे कि प्यार होता क्या है। यूँ तो प्यार को परिभाषित करना बहुत ही कठिन है, क्योंकि प्यार वो अनुभूति है, जिसे शब्दों में बयाँ करना मुश्किल है। फिर भी हमने इस विषय पर विश्व के कुछ महान विचारकों के विचार नीचे दिए हैं, जो आपको प्रेम को समझने में सहायता करेंगे।
'सच्चा प्रेम कभी प्रति-प्रेम नहीं चाहता।'
कबीरदास
'पुरुष, प्यार अक्सर और थोड़ा करता है, किंतु स्त्री, प्यार सौभाग्य से और स्थाई करती है।'
आचार्य रजनीश 'ओशो'
'जिस प्यार में प्यार करने की कोई हद नहीं होती और किसी तरह का पछतावा भी नहीं होता, वही उसका सच्चा रूप है।'
मीर तकी मीर
'प्यार एक भूत की तरह है, जिसके बारे में बातें तो सभी करते हैं, पर इसके दर्शन बहुत कम लोगों को हुए हैं।'
सिकंदर
'प्रेम कभी दावा नहीं करता, वह हमेशा देता है। प्रेम हमेशा कष्ट सहता है, न कभी झुंझलाता है और न ही कभी बदला लेता है।'
महात्मा गाँधी
'खूब किया मैंने दुनिया से प्रेम और मुझसे दुनिया ने, तभी तो मेरी मुस्कुराहट उसके होठों पर थी और उसके सभी आँसू मेरी आँखों में।'
खलील जिब्रान
'प्रेम आँखों से नहीं ह्रदय से देखता है, इसीलिए प्रेम को अंधा कहा गया है।'
शेक्सपीयर
'प्रेम के स्पर्श से हर कोई कवि बन जाता है।'
अफलातून
'जहाँ प्रेम है, वहीं जीवन का सही रूप है।'
अरस्तु
'प्यार आत्मा की खुराक है।'
कंफ्यूशियस
'प्यार समर्पण और जिम्मेदारी का दूसरा नाम है।'
बेकन
'जीवन में प्रेम का वही महत्व है जो फूल में खुशबू का होता है।'
जॉर्ज बनार्ड शॉ
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है॥
शेर प्रेम की जटिलता को समझाने के लिए काफी है। दुनिया में सभी प्रेम करते हैं, पर बहुत ही कम लोग हुए हैं, जिन्होंने प्यार को ठीक तरह से समझा है। जिन्होंने समझा, उन्होंने अपने प्यार को नया आयाम दिया और उसे दुनिया के सामने आदर्श बनाकर प्रस्तुत किया।
आज के दौर में प्यार फैशन की तरह हो गया है और हर कहीं आपको ऐसे प्रेमी युगल मिल जाएँगे जो दुनिया वालों के तमाम उसूल और रीति-रिवाज ताक में रखकर एक-दूसरे को प्रेम करते हैं। पर क्या सभी प्रेमी अपने साथी के साथ प्रेम की तीव्रता बनाएं रखते हैं या वक्त की दीमक उनके प्रेम को खोखला कर देती है।
प्रेम इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि लैला-मजनू, हीर-रांझा, सोहनी-महिवाल, आदि सभी ने प्रेम क्षेत्र में झंडे गाड़े, पर प्रेम की निश्चित परिभाषा कोई न दे पाया। ऐसा शायद इसलिए भी हुआ कि ये लोग प्रेम की महान अनुभूति से ओत-प्रोत थे, इसलिए ये उसे निश्चित शब्दों में बाँधना नहीं चाहते थे। वे प्रेम के असीम अहसास को सिर्फ महसूस करना चाहते थे, न कि उसे किसी सीमा में बाँधना।
आप भी किसी से प्यार करते हैं तो, जरूर जानना चाहेंगे कि प्यार होता क्या है। यूँ तो प्यार को परिभाषित करना बहुत ही कठिन है, क्योंकि प्यार वो अनुभूति है, जिसे शब्दों में बयाँ करना मुश्किल है। फिर भी हमने इस विषय पर विश्व के कुछ महान विचारकों के विचार नीचे दिए हैं, जो आपको प्रेम को समझने में सहायता करेंगे।
'सच्चा प्रेम कभी प्रति-प्रेम नहीं चाहता।'
कबीरदास
'पुरुष, प्यार अक्सर और थोड़ा करता है, किंतु स्त्री, प्यार सौभाग्य से और स्थाई करती है।'
आचार्य रजनीश 'ओशो'
'जिस प्यार में प्यार करने की कोई हद नहीं होती और किसी तरह का पछतावा भी नहीं होता, वही उसका सच्चा रूप है।'
मीर तकी मीर
'प्यार एक भूत की तरह है, जिसके बारे में बातें तो सभी करते हैं, पर इसके दर्शन बहुत कम लोगों को हुए हैं।'
सिकंदर
'प्रेम कभी दावा नहीं करता, वह हमेशा देता है। प्रेम हमेशा कष्ट सहता है, न कभी झुंझलाता है और न ही कभी बदला लेता है।'
महात्मा गाँधी
'खूब किया मैंने दुनिया से प्रेम और मुझसे दुनिया ने, तभी तो मेरी मुस्कुराहट उसके होठों पर थी और उसके सभी आँसू मेरी आँखों में।'
खलील जिब्रान
'प्रेम आँखों से नहीं ह्रदय से देखता है, इसीलिए प्रेम को अंधा कहा गया है।'
शेक्सपीयर
'प्रेम के स्पर्श से हर कोई कवि बन जाता है।'
अफलातून
'जहाँ प्रेम है, वहीं जीवन का सही रूप है।'
अरस्तु
'प्यार आत्मा की खुराक है।'
कंफ्यूशियस
'प्यार समर्पण और जिम्मेदारी का दूसरा नाम है।'
बेकन
'जीवन में प्रेम का वही महत्व है जो फूल में खुशबू का होता है।'
जॉर्ज बनार्ड शॉ
Sunday, December 6, 2009
बेटियाँ शुभकामनाएँ हैं, बेटियाँ पावन दुआएँ हैं।
बेटियाँ जीनत हदीसों की, बेटियाँ जातक कथाएँ हैं।
बेटियाँ गुरुग्रंथ की वाणी, बेटियाँ वैदिक ऋचाएँ हैं।
जिनमें खुद भगवान बसता है, बेटियाँ वे वन्दनाएँ हैं।
त्याग, तप, गुणधर्म, साहस की बेटियाँ गौरव कथाएँ हैं।
मुस्कुरा के पीर पीती हैं, बेटी हर्षित व्यथाएँ हैं।
लू-लपट को दूर करती हैं, ND बेटियाँ जल की घटाएँ हैं।
दुर्दिनों के दौर में देखा, बेटियाँ संवेदनाएँ हैं।
गर्म झोंके बने रहे बेटे, बेटियाँ ठण्डी हवाएँ हैं।
बेटियाँ जीनत हदीसों की, बेटियाँ जातक कथाएँ हैं।
बेटियाँ गुरुग्रंथ की वाणी, बेटियाँ वैदिक ऋचाएँ हैं।
जिनमें खुद भगवान बसता है, बेटियाँ वे वन्दनाएँ हैं।
त्याग, तप, गुणधर्म, साहस की बेटियाँ गौरव कथाएँ हैं।
मुस्कुरा के पीर पीती हैं, बेटी हर्षित व्यथाएँ हैं।
लू-लपट को दूर करती हैं, ND बेटियाँ जल की घटाएँ हैं।
दुर्दिनों के दौर में देखा, बेटियाँ संवेदनाएँ हैं।
गर्म झोंके बने रहे बेटे, बेटियाँ ठण्डी हवाएँ हैं।
Saturday, December 5, 2009
ये रात है और अकेलापन
तारे टिमटिमाते हैं और मेरे अकेलेपन को
और अकेला करते हैं
प्यार के पल कितने कम हैं, कितने छोटे
और अकेलेपन की रातें कितनी लंबी और सूनी
मैं जानता हूँ आसमान की गोद में
ये तारे टिमटिमाते हुए कितने सुंदर लगते हैं
लेकिन तुम्हारे बगैर यह रात एक सूनी है जिसने मुझे जकड रखा है
धीरे-धीरे मेरी आँखें मूंद जाएँगी और तुम जान भी नहीं पाओगी
meरी जिंदगी कितनी छोटी है और तुम कितनी दूर...
मैं तुम्हें पुकारता हूँ, मैं तुम्हें पुकारता हूँ और मेरी आवाज सूनेपन के जंगल में,
पागलों की तरह भटकती रहती है,
मैं तुम्हें पुकारता हूँ,
औऱ मेरी आवाज छटपटाती हुई,
एक नदी में डूब जाती है,
मैं तुम्हें पुकारता हूँ,
और मेरी आवाज खिले फूल को चूमकर,
एक गहरी खाई में खो जाती है मैं तुम्हे पुकारता हूँ मैं तुम्हें पुकारता हूँ मैं तुम्हें पुकारता हूँ
पर तुम सात समंदर पार हँसती हुई एक चट्टान पर बैठी गुनगुना रही हो मैं तुम्हें पुकारता हूँ
और मेरा गला रूंधा हुआ है तुम्हें बार-बार पुकारते हुए एक दिन और मैं हमेशा हमेशा के लिए मौन हो जाऊँगा
तुम आओगी तो मुझे नहीं पाओगी मेरे मौन में खिला हुआ एक छोटा सा सुंदर फूल पाओगी।
तारे टिमटिमाते हैं और मेरे अकेलेपन को
और अकेला करते हैं
प्यार के पल कितने कम हैं, कितने छोटे
और अकेलेपन की रातें कितनी लंबी और सूनी
मैं जानता हूँ आसमान की गोद में
ये तारे टिमटिमाते हुए कितने सुंदर लगते हैं
लेकिन तुम्हारे बगैर यह रात एक सूनी है जिसने मुझे जकड रखा है
धीरे-धीरे मेरी आँखें मूंद जाएँगी और तुम जान भी नहीं पाओगी
meरी जिंदगी कितनी छोटी है और तुम कितनी दूर...
मैं तुम्हें पुकारता हूँ, मैं तुम्हें पुकारता हूँ और मेरी आवाज सूनेपन के जंगल में,
पागलों की तरह भटकती रहती है,
मैं तुम्हें पुकारता हूँ,
औऱ मेरी आवाज छटपटाती हुई,
एक नदी में डूब जाती है,
मैं तुम्हें पुकारता हूँ,
और मेरी आवाज खिले फूल को चूमकर,
एक गहरी खाई में खो जाती है मैं तुम्हे पुकारता हूँ मैं तुम्हें पुकारता हूँ मैं तुम्हें पुकारता हूँ
पर तुम सात समंदर पार हँसती हुई एक चट्टान पर बैठी गुनगुना रही हो मैं तुम्हें पुकारता हूँ
और मेरा गला रूंधा हुआ है तुम्हें बार-बार पुकारते हुए एक दिन और मैं हमेशा हमेशा के लिए मौन हो जाऊँगा
तुम आओगी तो मुझे नहीं पाओगी मेरे मौन में खिला हुआ एक छोटा सा सुंदर फूल पाओगी।
पहली नजर में प्यार कभी हो ही नहीं सकता, वह तो एक आकर्षण है एक दूसरे के प्रति, जो प्यार की पहली सीढ़ी से भी कोसों दूर है। जैसे दोस्ती अचानक नहीं हो सकती, वैसे ही प्यार भी अचानक नहीं हो सकता। प्यार भी दोस्ती की भाँति होता है, पहले पहले अनजानी सी पहचान, फिर बातें और मुलाकातें। सिर्फ एक नए दोस्त के नाते, इस दौरान जो तुम दोनों को नजदीक लेकर आता है वह प्यार है। कुछ लोग सोचते हैं कि अगर मेरी मेरे प्यार से शादी हो जाए तो मेरा प्यार सफल, नहीं तो असफल। ये धारणा मेरी नजर से तो बिल्कुल गलत है, क्योंकि प्यार तो नि:स्वार्थ है, जबकि शरीर को पाना तो एक स्वार्थ है। इसका मतलब तो ये हुआ कि आज तक जो किया एक दूसरे के लिए वो सिर्फ उस शरीर तक पहुँचने की चाह थी, जो प्यार का ढोंग रचाए बिन पाया नहीं जा सकता था।
मेरी नजर में तो प्यार वही है, जो एक माँ और बेटे की बीच में होता है, जो एक बहन और भाई के बीच में या फिर कहूँ बुल्ले शाह और उसके मुर्शद के बीच था। ज्यादातर लड़के और लड़कियाँ तो प्यार को हथियार बना एक दूसरे के जिस्म तक पहुँचना चाहते हैं, अगर ऐसा न हो तो दिल का टूटना किसे कहते हैं, उसने कह दिया मैं किसी और से शादी करने जा रही हूँ या जा रहा हूँ, तो इतने में दिल टूट गया। सारा प्यार एक की झटके में खत्म हो गया, क्योंकि प्यार तो किया था, लेकिन वो रूहानी नहीं था, वो तो जिस्म तक पहुँचने का एक रास्ता था, एक हथियार था। अगर वो जिस्म ही किसी और के हाथों में जाने वाला है तो प्यार किस काम का।
सच तो यह है कि प्यार तो रूहों का रिश्ता है, उसका जिस्म से कोई लेना देना ही नहीं, मजनूँ को किसी ने कहा था कि तेरी लैला तो रंग की काली है, तो मजनूँ का जवाब था कि तुम्हारी आँखें देखने वाली नहीं हैं। उसका कहना सही था, प्यार कभी सुंदरता देखकर हो ही नहीं सकता, अगर होता है तो वह केवल आकर्षण है, प्यार नहीं। माँ हमेशा अपने बच्चे से प्यार करती है, वो कितना भी बदसूरत क्यों न हो, क्योंकि माँ की आँखों में वह हमेशा ही दुनिया का सबसे खूबसूरत बच्चा होता है।
प्यार तो वो जादू है, जो मिट्टी को भी सोना बना देता है। प्यार वो रिश्ता है, जो हमको हर पल चैन देता है, कभी बेचैन नहीं करता, अगर कुछ बेचैन करता है तो वो हमारा शरीर को पाने का स्वभाव। जिन्होंने प्यार के रिश्ते को जिस्मानी रिश्तों में ढाल दिया, उन्होंने असल में प्यार का असली सुख गँवा दिया। आज उनको वह पहले की तरह उसका पास बैठकर बातें करना बोर करने लगा होगा, अब उसको निहारने की इच्छा मर गई, क्योंकि उसके शरीर को पाने के पहले तो उसको निहारते ही आए हैं, अब उसमें नया क्या है, जिसको निहारें।
एक वो जिन्होंने प्यार को हमेशा रूह का रिश्ता बनाकर रखा, और जिस्मानी रिश्तों में उसको ढलने नहीं दिया, उनको आज भी वो प्यार याद आता है, उसकी जिन्दगी में आ रहे बदलाव उनको आज भी निहारते हैं। उसको कई सालों बाद फिर निहारना आज भी उनको अच्छा लगता है। रूहानी प्यार कभी खत्म नहीं होता। वो हमेशा हमारे साथ कदम दर कदम चलता है। वो दूर रहकर भी हमको ऊर्जावान बनाता है।
मेरी नजर में तो प्यार वही है, जो एक माँ और बेटे की बीच में होता है, जो एक बहन और भाई के बीच में या फिर कहूँ बुल्ले शाह और उसके मुर्शद के बीच था। ज्यादातर लड़के और लड़कियाँ तो प्यार को हथियार बना एक दूसरे के जिस्म तक पहुँचना चाहते हैं, अगर ऐसा न हो तो दिल का टूटना किसे कहते हैं, उसने कह दिया मैं किसी और से शादी करने जा रही हूँ या जा रहा हूँ, तो इतने में दिल टूट गया। सारा प्यार एक की झटके में खत्म हो गया, क्योंकि प्यार तो किया था, लेकिन वो रूहानी नहीं था, वो तो जिस्म तक पहुँचने का एक रास्ता था, एक हथियार था। अगर वो जिस्म ही किसी और के हाथों में जाने वाला है तो प्यार किस काम का।
सच तो यह है कि प्यार तो रूहों का रिश्ता है, उसका जिस्म से कोई लेना देना ही नहीं, मजनूँ को किसी ने कहा था कि तेरी लैला तो रंग की काली है, तो मजनूँ का जवाब था कि तुम्हारी आँखें देखने वाली नहीं हैं। उसका कहना सही था, प्यार कभी सुंदरता देखकर हो ही नहीं सकता, अगर होता है तो वह केवल आकर्षण है, प्यार नहीं। माँ हमेशा अपने बच्चे से प्यार करती है, वो कितना भी बदसूरत क्यों न हो, क्योंकि माँ की आँखों में वह हमेशा ही दुनिया का सबसे खूबसूरत बच्चा होता है।
प्यार तो वो जादू है, जो मिट्टी को भी सोना बना देता है। प्यार वो रिश्ता है, जो हमको हर पल चैन देता है, कभी बेचैन नहीं करता, अगर कुछ बेचैन करता है तो वो हमारा शरीर को पाने का स्वभाव। जिन्होंने प्यार के रिश्ते को जिस्मानी रिश्तों में ढाल दिया, उन्होंने असल में प्यार का असली सुख गँवा दिया। आज उनको वह पहले की तरह उसका पास बैठकर बातें करना बोर करने लगा होगा, अब उसको निहारने की इच्छा मर गई, क्योंकि उसके शरीर को पाने के पहले तो उसको निहारते ही आए हैं, अब उसमें नया क्या है, जिसको निहारें।
एक वो जिन्होंने प्यार को हमेशा रूह का रिश्ता बनाकर रखा, और जिस्मानी रिश्तों में उसको ढलने नहीं दिया, उनको आज भी वो प्यार याद आता है, उसकी जिन्दगी में आ रहे बदलाव उनको आज भी निहारते हैं। उसको कई सालों बाद फिर निहारना आज भी उनको अच्छा लगता है। रूहानी प्यार कभी खत्म नहीं होता। वो हमेशा हमारे साथ कदम दर कदम चलता है। वो दूर रहकर भी हमको ऊर्जावान बनाता है।
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