इतनी बड़ी दुनिया हैं
बहुत सारे लोग हैं
प्यार करने के बजाय वे झगड़ते क्यों हैं
मेरे पास बहुत सा प्यार बचा हैं
इस आकाश कों बाँहों में भर लेने के बाद
नदी की लहरों के साथ साथ बहने के पश्चात भी
प्यासे मरुथल की तरह सागर कों ओढ़ लेने के उपरान्त भी
मेरा प्रेम ख़त्म नही हुवा हैं
सैकड़ों बार मेरी देह मर चूकी हैं
लेकिन उस अनंत प्रेम कों पाने के लिये
मुझे जन्म लेना ही पड़ता हैं
लेकिन हर बार यह धरती मुझे छल जाती हैं
खेतों के धान ..
फूलों से भरे बाग़
सावन की भींगी रात
पूनम के चन्दा की आश
सब मुझ पर हँसते हैं
मैं मनुष्य हूँ न ..उनकी तरह खुल कर जी नहीं पाता
Tuesday, April 20, 2010
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