Tuesday, April 20, 2010

इतनी बड़ी दुनिया हैं


बहुत सारे लोग हैं

प्यार करने के बजाय वे झगड़ते क्यों हैं


मेरे पास बहुत सा प्यार बचा हैं

इस आकाश कों बाँहों में भर लेने के बाद

नदी की लहरों के साथ साथ बहने के पश्चात भी

प्यासे मरुथल की तरह सागर कों ओढ़ लेने के उपरान्त भी

मेरा प्रेम ख़त्म नही हुवा हैं

सैकड़ों बार मेरी देह मर चूकी हैं

लेकिन उस अनंत प्रेम कों पाने के लिये

मुझे जन्म लेना ही पड़ता हैं



लेकिन हर बार यह धरती मुझे छल जाती हैं

खेतों के धान ..

फूलों से भरे बाग़

सावन की भींगी रात

पूनम के चन्दा की आश

सब मुझ पर हँसते हैं

मैं मनुष्य हूँ न ..उनकी तरह खुल कर जी नहीं पाता

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