Sunday, April 18, 2010

मेरी बहन

छोटी बहन ढेर से सवाल पूछती मुझसे


मेरे देर से घर लौटने पर

सवाल अक्सर इतने हुआ करते

कि उसे शब्दों और आँखों

दोनों का सहारा लेना पड़ता

अपने तर्कों और बताये जाने वाले

कारणों से उसे संतुष्ट कर पाना

थोड़ा मुश्किल जरूर होता मगर असंभव नहीं

कभी-कभी बहुत प्यार आता मुझे उस पर

मातृवत स्नेह से भर जाता मन

जब कोई हठ कर बैठती मुझसे

रूठी हुई छोटी बहन को मनाते हुए

बहुत भला लगता मुझको

हर हठ जो पूरी हो जाती और जो अधूरी रह जाती

सोच में कैद होकर हो जाती हमेशा के लिए

कितने ही क्षण ऐसे आये जिनमें मेरा ही नहीं

उसका भी मन भर गया किसी कसैले स्वाद से

लगता था उन क्षणों में

यह प्रत्यंचा जाने कितनी और तनेगी

लेकिन बस एक प्यारी हँसी

जो गलबहियाँ डालकर भेंट करती मुझे

बस सब कुछ भुला देती मेरी छोटी बहन

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