Saturday, April 17, 2010

सहनशीलता

गलत बात को सहन करना बिलकुल सही नहीं, लेकिन सही बात के लिए गलती स्वीकार लेना, झुक जाना और आपसी उलझन को धैर्य से सुलझा लेना, रिश्तों को नई जान डाल देता है।


दांपत्य दो प्राणों को जोड़ने हेतु मानव जीवन का सबसे बड़ा सेतु है। पति-पत्नी सुख-दुःख में अटूट साथी और सहभागी होते हैं। उनमें सागर से भी गहरा प्यार होता है। यही रिश्ता परिवार का आधार होता है, लेकिन आपस में अनबन या रूठना स्वाभाविक भी है, जरूरी भी है, क्योंकि तकरार में ही मनुहार के इजहार का मजा है। छाँव का सुख धूप झेलने के बाद ही मिलता है।

कहने से ज्यादा लाभ सहने में है। दो लोगों के बीच या परिवार में कहासुनी और झड़प होना कोई अनहोनी बात नहीं है, किंतु यह अनबन दूध में खटाई की तरह न हो।  किसी भी बात को मन में गाँठ बनाकर रखने से मतभेद, मनभेद में बदल जाता है, जिससे एक-दूसरे पर मर-मिटने का दावा करने वाला रिश्ता हँसी-उड़ाऊ बन जाता है।

अनबन से आप अनमने स्थायी रूप से न रहें, थोड़ी-सी तकरार के बाद जहाँ के तहाँ प्यार के मुकाम पर पहुँच जाएँ। इसके लिए बस यही अचूक रामबाण फार्मूला है 'रात गई बात गई।' इस धारणा से 'बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध लेय' की उक्ति चरितार्थ होने लगती है। एक-दूसरे के प्रति बना अलगाव, लगाव में बदल जाता है। संबंध पारे की तरह बिखरने तथा दिल से उतरने से बच जाता है। यह सात जन्मों और सात फेरों वाला रिश्ता कहलाता है। इसलिए यह सपने में भी टूटने न पाए, हाथ से हाथ न छूट पाए, इसके लिए समझ, संयम, समझौता और स्वयं की गलतियों के एहसास की जरूरत है।

 यदि झुकाना आता है तो झुकना भी आना चाहिए। याद रखिए अहम से बनी हुई बात बिगड़ती है तो 'हम' से बिगड़ी हुई बात भी बन जाती है।

कोई भी बात या प्रसंग हो अपने दिल में न रखकर आईने की तरह साफगोई अपनाने से एक-दूसरे के भ्रम दूर हो जाते हैं। दिल और जुबान में एकरूपता रहे, क्योंकि आचरण का दोहरापन संबंधों को खंडित कर देता है। रिश्ते और ईमानदारी में चोली-दामन का नाता होना चाहिए। पति-पत्नी से बढ़कर कोई नजदीकी रिश्ता नहीं होता। अतः पति व पत्नी को चाहिए कि वे संबंध की महत्ता समझें न कि उलझें। आवेश में आदमी अंधा होता है।

अंधावेश पाँव पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होता है। इसलिए बहुत संभलकर बोलें। गुस्से में हृदय-विदारक शब्द न बोल जाएँ, क्योंकि ऐसा सभी कहते हैं कि गोली के घाव भर जाते हैं, लेकिन बोली के घाव कभी नहीं भरते। 'जो हुआ सो हुआ, आगे की देखो' की मानसिकता को जीवन के सुख का मंत्र समझें। दांपत्य जीवन के अलावा यह बात सभी विषयों और रिश्तों पर लागू होती है। सहनशीलता कवच है, यह कभी न भूलें।

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