सॉरी वास्तव में बहुत ही प्यारा शब्द है। हर रिश्ते में कभी न कभी मतभेद हो ही जाते हैं। बेहतर यह है कि रिश्तों में अहंकार हावी न होने दें। विवादों या लड़ाई-झगड़ से दूर रहने का एक आसान उपाय है अहंकार छोड़ देना और सॉरी बोलना सीख लेना। हालांकि सॉरी बोलना भी एक कला है जो हर किसी को नहीं आती। यह भी एक हुनर की तरह ही है जिसे आप जितना जल्दी हो सके, सीख लें। आपके दोस्तों, पति-पत्नी, बॉस, माता-पिता आदि से अपने संबंधों को बनाए रखने के लिए यह बेहद जरूरी है।
अपनी ओर से विवादों को बढ़ने का मौका कभी नहीं देना चाहिए। रिश्ते में नाराजगी आने के बाद जीवन नरक की तरह लगने लगता है। कई बार हालात इस तरह के बन जाते हैं कि हम समझ नहीं पाते और संबंधों में कटुता बढ़ती चली जाती है लेकिन सॉरी बोलने से इसका समाधान किया जा सकता है।
लेकिन हमें पता ही नहीं होता कि सॉरी बोलें तो कैसे? सॉरी बोलने का सही तरीका आपके जीवन में आने वाली अनेक कठिनाइयों को दूर कर सकता है जिससे काफी हद तक रिश्तों में आई कड़वाहट कम हो सकती है। हम सॉरी बोलने से केवल इसलिए कतराते हैं कि कहीं हम गलत साबित न हो जाएं। लेकिन ऐसा नहीं है। जब हम सॉरी बोलते हैं तो वास्तव में हम महानता की और बढ़ते हैं।
हमें सॉरी इस तरह से कहनी चाहिए जिससे हमारे जीवनसाथी, दोस्त या रिश्तेदार को ऐसा लगे कि हम अपने किए पर वास्तव में शर्मिंदा हैं और हमें अपनी गलती का अहसास हो गया है। हम कई बार सॉरी बोलने में काफी असहजता महसूस करते हैं। लेकिन सॉरी बोलने से आत्मा तो पवित्र होती ही है, साथ ही मन की पीड़ा भी दूर हो जाती है।
Sunday, May 30, 2010
आपा खोकर कही गई बातें अक्सर दिल में गहरा घाव बना जाती हैं। ये घाव जब अपनों के दिए हुए हों, तब तो पीड़ा और भी सालती है। खासकर जब कोई दिल से आपके लिए कुछ करता है और बदले में आप उसे कुछ भी उलटा-सीधा कह जाते हैं। कभी सालों-साल वो शब्द मन को सालते रहते हैं तो कभी ऐसे शब्द दिलों में दूरियाँ आने का कारण भी बन जाते हैं।
सोच-समझकर बोलना केवल दूसरों से आपके रिश्तों को प्रगाढ़ ही नहीं करता बल्कि उनके मन में आपके लिए सम्मान भी पैदा करता है। इतना ही नहीं इससे आपको एक और फायदा यह होता है कि आप किसी का दिल दुखाने से बच जाते हैं। गुस्से या अहंकारवश कहे गए शब्द भले ही उस समय आपके लिए मायने न रखते हों, लेकिन जब अकेले में आप उन पर मनन करें तो पाएँगे कि ऐसे शब्द आपने कैसे इस्तेमाल कर लिए? या फिर अगर ऐसे शब्द आपके साथ प्रयोग में लाए जाते तो? इसलिए किसी भी स्थिति में तौलकर बोलना व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खूबी होती है। जो लोग इस बात को समझते हैं वे सभी की प्रशंसा के पात्र बनते हैं।
सोच-समझकर बोलना केवल दूसरों से आपके रिश्तों को प्रगाढ़ ही नहीं करता बल्कि उनके मन में आपके लिए सम्मान भी पैदा करता है। इतना ही नहीं इससे आपको एक और फायदा यह होता है कि आप किसी का दिल दुखाने से बच जाते हैं। गुस्से या अहंकारवश कहे गए शब्द भले ही उस समय आपके लिए मायने न रखते हों, लेकिन जब अकेले में आप उन पर मनन करें तो पाएँगे कि ऐसे शब्द आपने कैसे इस्तेमाल कर लिए? या फिर अगर ऐसे शब्द आपके साथ प्रयोग में लाए जाते तो? इसलिए किसी भी स्थिति में तौलकर बोलना व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खूबी होती है। जो लोग इस बात को समझते हैं वे सभी की प्रशंसा के पात्र बनते हैं।
haan aaj sharm se mera sir jhukta hai..is baat ko soch kar,ki main bhi khud ko insaan kehta hoon aur shayad dusro ko peeche choD kar khud ko aage le jaata hoon. magar ..ab nahi hai mujhe is raah par chalna,apni insaniyat ko khudgarzi ke liye bechna khud ko kho kar nahi hain mujhe jeena, ek kosish zaroor karunga, zindagi ko jeene ke aihmiyat dekar jeeyunga.
Ghamon ne ansoo bahakar mujse ye kaha,Saath na chhodo hamara tumse ye he iltaja,Tumhare saath rehkar hum bhi muskurane lage the,Tum jab humein bayan karke logon ko hasane lage the,Ab pad chuki hai aadat hamein muskurane ki,Bhala har gham ko saza kyun ho rulane ki,Ye sunkar humne ghamon ko gale se lagaya,Phir kai mehfilon mein humne logon ko hansaya.
मेंहदी हरी दिखती है लेकिन उसमें लाली छुपी है। ऐसे यह देह नश्वर है लेकिन उसमें शाश्वत चेतना छपी है। उस चेतना का जो दीदार कर लेता है उसने सब कुछ कर लिया। उसका जो अनादर कर देता है, मानो उसने अपने जीवन का अनादर कर लिया। अपने आपका वह दुश्मन हो गया।
Monday, May 24, 2010
मैं आपकी बेटी हूं पापा
यह बात मैं ममी से भी कर सकती हूं, लेकिन आपकी तो मैं हमेशा से लाडली रही हूं। इसलिए लगता है कि आप मेरी बात को अच्छी तर
ह समझोगे। आपने मुझे डाइनिंग टेबल पर बहुत डांटा, लेकिन मेरा कसूर क्या है? पिछले 20 साल में मैंने पहली बार आपकी ऊंची आवाज सुनी, वरना आज तक पता ही नहीं था कि डांट का मतलब क्या होता है। आपने फ्रेंड्स, करियर, पढ़ाई को लेकर टोका जरूर, लेकिन पापा इतनी ऊंची आवाज।
आपने ही तो मुझे अपनी बात रखना सिखाया है और आज आप ही उस बात को सुनने के लिए तैयार नहीं हो! मैंने कहा क्या, यही न कि मैं उस लड़के से शादी नहीं करना चाहती, तो मैंने गलत क्या किया? मैं उस लड़के को जानती नहीं हूं, तो उससे जिंदगी भर का रिश्ता कैसे बांध लूं पापा?
उसकी हां हुई और आपने भी मान लिया कि यह शादी होकर रहेगी। इस सबके बीच में मैं कहां हूं पापा, आपकी बेटी कहां है? आज तक घर में फर्नीचर भी मेरी पसंद के बिना आप नहीं लाए, ममी खाना बनाने से पहले मेरी पसंद के बारे में जरूर पूछती हैं, लेकिन आज आप मेरी बात सुने बिना ही मेरी शादी कर देना चाहते हैं।
ठीक है, आज आपके दबाव में आकर मैं शादी कर लेती हूं, लेकिन पापा, कल अगर मैं दुखी रही, तो क्या आपकी आंखों में आंसू नहीं आएंगे? आप भी तो आराम से नहीं बैठ पाओगे न। क्या तब आप अपने फैसले को सही ठहरा पाओगे? मानती हूं कि जिंदगी समझौते का नाम है, लेकिन जानबूझ कर गड्ढे में गिरना और फिर निकलने की कोशिश करना समझौता नहीं होता न पापा।
मैं आपकी बेटी हूं पापा, आपको मुझ पर विश्वास करना होगा। जब आप सिर पर हाथ रखकर मुझे समझदार कहते हो, तो क्यों मेरे इस फैसले में आपको मेरी समझदारी नहीं दिखती है। मैंने यह नहीं कहा मैं शादी नहीं करूंगी, लेकिन बिना किसी को जाने व समझे नहीं। आपकी ऊंची आवाज में मेरी आवाज दब सकती है पापा, लेकिन दिल से सोचेंगे तो मेरी बात की गहराई को आप जरूर समझ पाएंगे।
आपने ही तो मुझे अपनी बात रखना सिखाया है और आज आप ही उस बात को सुनने के लिए तैयार नहीं हो! मैंने कहा क्या, यही न कि मैं उस लड़के से शादी नहीं करना चाहती, तो मैंने गलत क्या किया? मैं उस लड़के को जानती नहीं हूं, तो उससे जिंदगी भर का रिश्ता कैसे बांध लूं पापा?
उसकी हां हुई और आपने भी मान लिया कि यह शादी होकर रहेगी। इस सबके बीच में मैं कहां हूं पापा, आपकी बेटी कहां है? आज तक घर में फर्नीचर भी मेरी पसंद के बिना आप नहीं लाए, ममी खाना बनाने से पहले मेरी पसंद के बारे में जरूर पूछती हैं, लेकिन आज आप मेरी बात सुने बिना ही मेरी शादी कर देना चाहते हैं।
ठीक है, आज आपके दबाव में आकर मैं शादी कर लेती हूं, लेकिन पापा, कल अगर मैं दुखी रही, तो क्या आपकी आंखों में आंसू नहीं आएंगे? आप भी तो आराम से नहीं बैठ पाओगे न। क्या तब आप अपने फैसले को सही ठहरा पाओगे? मानती हूं कि जिंदगी समझौते का नाम है, लेकिन जानबूझ कर गड्ढे में गिरना और फिर निकलने की कोशिश करना समझौता नहीं होता न पापा।
मैं आपकी बेटी हूं पापा, आपको मुझ पर विश्वास करना होगा। जब आप सिर पर हाथ रखकर मुझे समझदार कहते हो, तो क्यों मेरे इस फैसले में आपको मेरी समझदारी नहीं दिखती है। मैंने यह नहीं कहा मैं शादी नहीं करूंगी, लेकिन बिना किसी को जाने व समझे नहीं। आपकी ऊंची आवाज में मेरी आवाज दब सकती है पापा, लेकिन दिल से सोचेंगे तो मेरी बात की गहराई को आप जरूर समझ पाएंगे।
Saturday, May 15, 2010
Monday, May 10, 2010
रिश्ते
दुनिया में रिश्ते केवल रक्त सिंचित हों, यह कतई जरूरी नहीं। मन से बने रिश्ते इससे भी कहीं गहरे हो सकते हैं और ऐसा एक रिश्ता आपके लिए जिंदगीभर सबसे बड़ी ताकत बनकर रहता है। चाहे वे सगे-संबंधी हों, मित्र हों, सहयोगी हों, पड़ोसी हों या फिर मात्र परिचित हों। केवल खुशियों को बाँटते समय ही नहीं, कठिनाइयों में साथ निभाते समय भी ये रिश्ते आपका संबल बनकर उभरते हैं। यदि मुसीबत में कोई आपके काम आता है तो वह आपका सच्चा हितचिंतक है। आपकी जिंदगी में कोई व्यक्ति ऐसा जरूर हो जो विपरीत समय पर आपको सही मार्गदर्शन दे सके और उलझन सुलझाने में आपकी मदद कर सके।
Sunday, May 9, 2010
माँ! एक ऐसा शब्द है, जिसे याद करते ही मन में एक फुरफुरी-सी दौड़ने लगती है। चाहे वह कोई भी माँ, किसी की भी माँ हो सभी के लिए एक समान ही यह गरिमामय भाव अंतर्मन में होता है। माँ को जितने भी शब्दों से नवाजा जाएँ वे अपने आप में कम ही रहेंगे। क्योंकि माँ वो गरिमामय शब्द है जिसकी व्याख्या करना बहुत ही मुश्किल है।
माँ का सफर जन्म होने के दिन से ही शुरू हो जाता है। सभी को यह लगता है कि एक बेटी ने जन्म लिया है इसका मतलब है उसे अपनी जिंदगी में सीढ़ी दर सीढ़ी काम करते ही चले जाना है। पहले एक बेटी, फिर एक युवती, फिर एक बहू और पत्नी फिर आता है माँ बनने का सफर।
माँ बनने के साथ ही उसके अपने सारे हक, उसकी अपनी सारी इच्छाएँ और महत्वाकांक्षाएँ भुला कर उसे अपने कर्तव्यों को निभाने की जिम्मेदारी निभाना पड़ता है। फिर भले ही इन सब में उसकी इच्छा हो ना हो। उसे इन सारे दौर से गुजरना ही पड़ता है। चाहे मन से,चाहे बेमन से लेकिन उसके जन्म के साथ ही ये सारे उसके साथी बन जाते हैं।
उसके माँ बनने के पूर्व ही ससुराल वालों की निगाहें उस पल का इंतजार कर रही होती है कि वह बेटे की माँ बनती है या बेटी की। माँ बनना ससुराल वालों के लिए इतना मायने नहीं रखता जितना उसका बेटे को जन्म देना मायने रखता है।
बेटा-बेटी की आस लिए माँ बनने का उसका यह सफर सही मायने में यही से शुरू हो जाता है। अगर बेटे की माँ बन गई तो वह ससुराल वालों की आँखों का तारा बन जाती है। अगर बेटी को जन्म दिया है तो इस दुख के साथ कि 'बेटी जनी है'। उसको तानों और कष्टों में ही अपना जीवन गुजारना पड़ता है। यह तब बात और भी ज्यादा दुखद हो जाती है जब वह दो-तीन बेटियों को जन्म दे चुकी होती हैं। वह खुद जो अभी-अभी माँ बनी है, वह माँ क्या चाहती है, उसे बेटा पसंद है या बेटी?इस बात से किसी को कोई सरोकार नहीं होता। उसके दिल में चल रही कशमकश से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता! फर्क पड़ता है तो सिर्फ उस माँ को जिसने अभी-अभी उस बच्चे को जन्म दिया है। उस माँ का मन कचोटकर रह जाता है पर फिर भी क्या लोग उसके मन की भावनाएँ, उसके मन की उलझन को समझने की कोशिश करते हैं? नहीं करते...!
फिर भी वो माँ अपने सारे गमों को भुलाकर, जीवन में आ रही हर परेशानी को अपने से दूर रखकर अपना सारा प्यार-दुलार अपने बच्चे पर उँडेल देती है। अपनी मातृत्व की छाँव उस पर बनाए रखती है। ऐसी माँ के 'आदर' स्वरूप सिर्फ एक दिन 'मदर्स डे' मनाकर कभी भी नहीं किया जा सकता। ऐसी माँ के लिए तो मानव जीवन ही कुर्बान होना चाहिए।
ऐसी देवी माँ हो या साधारण माँ जिसने भगवानों से लेकर कई महापुरुषों, कई वीरांगनाओं और वीरों को जन्म दिया है। जिसने देश-दुनिया को कई अविस्मरणीय संतानों ने नवाजा है, ऐसी माँ के लिए तो हर दिन मनाया गया मातृ दिवस भी कम पड़ जाएगा। उसके उपकारों के आगे हमारी हर पूजा छोटी है, हर उपहार कम है। ऐसी जननी को मातृ दिवस यानी मदर्स डे पर मेरा शत-शत नमन....। हे माँ ! आपकी महिमा अपरंपार है...।
माँ का सफर जन्म होने के दिन से ही शुरू हो जाता है। सभी को यह लगता है कि एक बेटी ने जन्म लिया है इसका मतलब है उसे अपनी जिंदगी में सीढ़ी दर सीढ़ी काम करते ही चले जाना है। पहले एक बेटी, फिर एक युवती, फिर एक बहू और पत्नी फिर आता है माँ बनने का सफर।
माँ बनने के साथ ही उसके अपने सारे हक, उसकी अपनी सारी इच्छाएँ और महत्वाकांक्षाएँ भुला कर उसे अपने कर्तव्यों को निभाने की जिम्मेदारी निभाना पड़ता है। फिर भले ही इन सब में उसकी इच्छा हो ना हो। उसे इन सारे दौर से गुजरना ही पड़ता है। चाहे मन से,चाहे बेमन से लेकिन उसके जन्म के साथ ही ये सारे उसके साथी बन जाते हैं।
उसके माँ बनने के पूर्व ही ससुराल वालों की निगाहें उस पल का इंतजार कर रही होती है कि वह बेटे की माँ बनती है या बेटी की। माँ बनना ससुराल वालों के लिए इतना मायने नहीं रखता जितना उसका बेटे को जन्म देना मायने रखता है।
बेटा-बेटी की आस लिए माँ बनने का उसका यह सफर सही मायने में यही से शुरू हो जाता है। अगर बेटे की माँ बन गई तो वह ससुराल वालों की आँखों का तारा बन जाती है। अगर बेटी को जन्म दिया है तो इस दुख के साथ कि 'बेटी जनी है'। उसको तानों और कष्टों में ही अपना जीवन गुजारना पड़ता है। यह तब बात और भी ज्यादा दुखद हो जाती है जब वह दो-तीन बेटियों को जन्म दे चुकी होती हैं। वह खुद जो अभी-अभी माँ बनी है, वह माँ क्या चाहती है, उसे बेटा पसंद है या बेटी?इस बात से किसी को कोई सरोकार नहीं होता। उसके दिल में चल रही कशमकश से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता! फर्क पड़ता है तो सिर्फ उस माँ को जिसने अभी-अभी उस बच्चे को जन्म दिया है। उस माँ का मन कचोटकर रह जाता है पर फिर भी क्या लोग उसके मन की भावनाएँ, उसके मन की उलझन को समझने की कोशिश करते हैं? नहीं करते...!
फिर भी वो माँ अपने सारे गमों को भुलाकर, जीवन में आ रही हर परेशानी को अपने से दूर रखकर अपना सारा प्यार-दुलार अपने बच्चे पर उँडेल देती है। अपनी मातृत्व की छाँव उस पर बनाए रखती है। ऐसी माँ के 'आदर' स्वरूप सिर्फ एक दिन 'मदर्स डे' मनाकर कभी भी नहीं किया जा सकता। ऐसी माँ के लिए तो मानव जीवन ही कुर्बान होना चाहिए।
ऐसी देवी माँ हो या साधारण माँ जिसने भगवानों से लेकर कई महापुरुषों, कई वीरांगनाओं और वीरों को जन्म दिया है। जिसने देश-दुनिया को कई अविस्मरणीय संतानों ने नवाजा है, ऐसी माँ के लिए तो हर दिन मनाया गया मातृ दिवस भी कम पड़ जाएगा। उसके उपकारों के आगे हमारी हर पूजा छोटी है, हर उपहार कम है। ऐसी जननी को मातृ दिवस यानी मदर्स डे पर मेरा शत-शत नमन....। हे माँ ! आपकी महिमा अपरंपार है...।
'माँ, तुम भी ना! बहुत सवाल करती हो? मैं और सुमि तुम्हें कितनी बार तो बता चुके हैं। एक बार ठीक से समझ लिया करो ना! पच्चीसों बार पूछ चुकी हो, रामी बुआ के बेटे की शादी का कार्यक्रम। समय पर आपको ले चलेंगे ना!' भुनभुनाता हुआ बेटा बोले जा रहा था, ''अभी मुझे ऑफिस में देर हो रही है। सुमि! माँ को सारे कार्यक्रम जरा एक बार और बता देना। अब बार-बार मत पूछना माँ! कहते हुए बेटा बैग उठाकर निकल गया।
माँ की आँखें भर आई। आजकल कोई बात याद ही नहीं रहती, पर फिर भी बरसों पुरानी बातें याद थीं। यही मुन्ना दिन में सौ मर्तबा पूछता रहता था- माँ, बताओ ना! तितली का रंग हाथ में क्यों लग गया? क्या वो पीले रंग से होली खेल कर आई है? माँ, हम मंदिर जाते हैं तो भगवान बोलते क्यों नहीं? भगवान सुनते कैसे हैं? बताओ ना माँ?
आँखें भर आने से माँ की आँखें धुँधलाने लगी थी।
माँ की आँखें भर आई। आजकल कोई बात याद ही नहीं रहती, पर फिर भी बरसों पुरानी बातें याद थीं। यही मुन्ना दिन में सौ मर्तबा पूछता रहता था- माँ, बताओ ना! तितली का रंग हाथ में क्यों लग गया? क्या वो पीले रंग से होली खेल कर आई है? माँ, हम मंदिर जाते हैं तो भगवान बोलते क्यों नहीं? भगवान सुनते कैसे हैं? बताओ ना माँ?
आँखें भर आने से माँ की आँखें धुँधलाने लगी थी।
माँ, समूची धरती पर बस यही एक रिश्ता है जिसमें कोई छल कपट नहीं होता। कोई स्वार्थ, कोई प्रदूषण नहीं होता। इस एक रिश्ते में निहित है अनंत गहराई लिए छलछलाता ममता का सागर। शीतल, मीठी और सुगंधित बयार का कोमल अहसास। इस रिश्ते की गुदगुदाती गोद में ऐसी अनुभूति छुपी है मानों नर्म-नाजुक हरी ठंडी दूब की भावभीनी बगिया में सोए हों।
माँ, इस एक शब्द को सुनने के लिए नारी अपने समस्त अस्तित्व को दाँव पर लगाने को तैयार हो जाती है। नारी अपनी संतान को एक बार जन्म देती है। लेकिन गर्भ की अबोली आहट से लेकर उसके जन्म लेने तक वह कितने ही रूपों में जन्म लेती है। यानी एक शिशु के जन्म के साथ ही स्त्री के अनेक खूबसूरत रूपों का भी जन्म होता है।
पल- पल उसके ह्रदय समुद्र में ममता की उद्दाम लहरें आलोडि़त होती है। अपने हर 'ज्वार' के साथ उसका रोम-रोम अपनी संतान पर न्योछावर होने को बेकल हो उठता है। नारी अपने कोरे कुँवारे रूप में जितनी सलोनी होती है उतनी ही सुहानी वह विवाहिता होकर लगती है लेकिन उसके नारीत्व में संपूर्णता आती है माँ बन कर। संपूर्णता के इस पवित्र भाव को जीते हुए वह एक अलौकिक प्रकाश से भर उठती है। उसका चेहरा अपार कष्ट के बावजूद हर्ष से चमकने लगता है। उसकी आँखों में खुशियों के सैकड़ों दीप झिलमिलाने लगते हैं।
माँ के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए एक दिवस नहीं एक सदी भी कम है। किसी ने कहा है ना कि सारे सागर की स्याही बना ली जाए और सारी धरती को कागज मान कर लिखा जाए तब भी माँ की महिमा नहीं लिखी जा सकती। मातृ दिवस पर हर माँ को उसके अनमोल मातृत्व की बधाई।
माँ, इस एक शब्द को सुनने के लिए नारी अपने समस्त अस्तित्व को दाँव पर लगाने को तैयार हो जाती है। नारी अपनी संतान को एक बार जन्म देती है। लेकिन गर्भ की अबोली आहट से लेकर उसके जन्म लेने तक वह कितने ही रूपों में जन्म लेती है। यानी एक शिशु के जन्म के साथ ही स्त्री के अनेक खूबसूरत रूपों का भी जन्म होता है।
पल- पल उसके ह्रदय समुद्र में ममता की उद्दाम लहरें आलोडि़त होती है। अपने हर 'ज्वार' के साथ उसका रोम-रोम अपनी संतान पर न्योछावर होने को बेकल हो उठता है। नारी अपने कोरे कुँवारे रूप में जितनी सलोनी होती है उतनी ही सुहानी वह विवाहिता होकर लगती है लेकिन उसके नारीत्व में संपूर्णता आती है माँ बन कर। संपूर्णता के इस पवित्र भाव को जीते हुए वह एक अलौकिक प्रकाश से भर उठती है। उसका चेहरा अपार कष्ट के बावजूद हर्ष से चमकने लगता है। उसकी आँखों में खुशियों के सैकड़ों दीप झिलमिलाने लगते हैं।
माँ के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए एक दिवस नहीं एक सदी भी कम है। किसी ने कहा है ना कि सारे सागर की स्याही बना ली जाए और सारी धरती को कागज मान कर लिखा जाए तब भी माँ की महिमा नहीं लिखी जा सकती। मातृ दिवस पर हर माँ को उसके अनमोल मातृत्व की बधाई।
आज मातृ दिवस है। यह दिन 'मात्र' दिवस बन कर ना रह जाए, इसलिए शब्दों के गंधरहित फूल और भावनाओं के छलछलाते अर्घ्य
आप हमारे दिल के सबसे करीब होतीं है। इस गहराई का अंदाजा इस बात से लगा सकतीं है कि यह बात हम कभी जुबान पर नहीं ला पाते, और जो बात जुबान पर नहीं आ पाती वही सबसे सच्ची होती है। तो यह हुआ पहला अपराध- हम कभी नहीं कहते कि आप हमारे लिए कितनी स्पेशल है, जबकि सच यही है।
हम उस वक्त कभी फ्री नहीं होते जब आपको हमसे कुछ कहना होता है। हमें हमेशा लगता है कि आपसे तो हम बाद में भी बात कर लेंगे(यह बात और है कि वो 'बाद' कभी नहीं आता) या फिर माँ की बातें हमेशा इतनी एक-सी होती है कि हमें लगभग रट चुकी होती है।
लू से बचने के लिए गुलाब जल मिलाकर रूई के फाहे कान में लगाना, भूखे मत रहना, शाम को जल्दी घर आ जाना, गाड़ी धीरे चलाना, दोस्तों के साथ कहीं बिना बताएँ मत जाना, 'ऐसी-वैसी' आदत मत डालना,दवाई समय पर लेना, तबियत का ख्याल रखना, तुम ठीक तो हो ना, आज परेशान क्यों लग रहे हो, थके हुए क्यों हो?
कहाँ गए थे, कितनी बजे आओगे, किसके साथ जा रहे हो, सबका फोन नंबर देकर जाओ, थोड़ा पढ़ भी लिया करों, ट्यूशन पर देर नहीं हो रही, टेप धीमे चलाया करो, मोबाइल को चुल्हे में डाल दूँगी, रात को इसे बंद क्यो नहीं करते, दिन भर एसएमएस, 24 घंटे लैपटॉप...
हाँ, तो इन सारी हिदायतों के नॉनस्टॉप प्रसारण की वजह से हम आपको लेकर लापरवाह हो जाते हैं लेकिन सारी संतानों की तरफ से मेरा ऑनेस्ट कन्फेशन कि यह सारी बातें हमें आपके सामने कितनी ही बुरी लगे लेकिन अकेले में या शहर से बाहर जब पिज्जा-बर्गर से पेट भरते हैं, या हल्के से जुकाम में भी बेहाल हो जाते हैं तब बेहद शिद्दत से याद आती है। और यकीन मानिए कि गाड़ी चलाते समय आपकी आवाज कानों में गुँजती है और हम गाड़ी की रफ्तार कम कर लेते हैं।
खाना खाते समय आप सामने नजर आतीं है और हम धीरे-धीरे चबा-चबाकर खाना शुरु कर देते हैं। विश्वास कीजिए कि हमारे दिल-दिमाग पर आप ही का असली राज है। अपराध तो स्वीकारना होगा कि हम आपकी बातों को आपके सामने गंभीरता से नहीं लेते।
कभी-कभी हमें लगता है आप हमें शरीर से तो बड़े होते हुए देखना चाहती है लेकिन मन से हमें बच्चे के रूप में ही पसंद करतीं है।
माँ से भी कोई माफी माँगता है भला? ना, माँ तो वह, जो अपनी होती है, बहुत अच्छी होती है और उससे माफी नहीं माँगी जाती इसीलिए तो वह सबसे स्पेशल होती है। क्योंकि वह कभी नहीं रूठती। कभी भी नहीं। दुनिया की सारी मम्मियों, दुनिया के सारे बच्चे आज आपको आई लव यू कहना चाहते हैं। आप सुन रही है ना?
आप हमारे दिल के सबसे करीब होतीं है। इस गहराई का अंदाजा इस बात से लगा सकतीं है कि यह बात हम कभी जुबान पर नहीं ला पाते, और जो बात जुबान पर नहीं आ पाती वही सबसे सच्ची होती है। तो यह हुआ पहला अपराध- हम कभी नहीं कहते कि आप हमारे लिए कितनी स्पेशल है, जबकि सच यही है।
हम उस वक्त कभी फ्री नहीं होते जब आपको हमसे कुछ कहना होता है। हमें हमेशा लगता है कि आपसे तो हम बाद में भी बात कर लेंगे(यह बात और है कि वो 'बाद' कभी नहीं आता) या फिर माँ की बातें हमेशा इतनी एक-सी होती है कि हमें लगभग रट चुकी होती है।
लू से बचने के लिए गुलाब जल मिलाकर रूई के फाहे कान में लगाना, भूखे मत रहना, शाम को जल्दी घर आ जाना, गाड़ी धीरे चलाना, दोस्तों के साथ कहीं बिना बताएँ मत जाना, 'ऐसी-वैसी' आदत मत डालना,दवाई समय पर लेना, तबियत का ख्याल रखना, तुम ठीक तो हो ना, आज परेशान क्यों लग रहे हो, थके हुए क्यों हो?
कहाँ गए थे, कितनी बजे आओगे, किसके साथ जा रहे हो, सबका फोन नंबर देकर जाओ, थोड़ा पढ़ भी लिया करों, ट्यूशन पर देर नहीं हो रही, टेप धीमे चलाया करो, मोबाइल को चुल्हे में डाल दूँगी, रात को इसे बंद क्यो नहीं करते, दिन भर एसएमएस, 24 घंटे लैपटॉप...
हाँ, तो इन सारी हिदायतों के नॉनस्टॉप प्रसारण की वजह से हम आपको लेकर लापरवाह हो जाते हैं लेकिन सारी संतानों की तरफ से मेरा ऑनेस्ट कन्फेशन कि यह सारी बातें हमें आपके सामने कितनी ही बुरी लगे लेकिन अकेले में या शहर से बाहर जब पिज्जा-बर्गर से पेट भरते हैं, या हल्के से जुकाम में भी बेहाल हो जाते हैं तब बेहद शिद्दत से याद आती है। और यकीन मानिए कि गाड़ी चलाते समय आपकी आवाज कानों में गुँजती है और हम गाड़ी की रफ्तार कम कर लेते हैं।
खाना खाते समय आप सामने नजर आतीं है और हम धीरे-धीरे चबा-चबाकर खाना शुरु कर देते हैं। विश्वास कीजिए कि हमारे दिल-दिमाग पर आप ही का असली राज है। अपराध तो स्वीकारना होगा कि हम आपकी बातों को आपके सामने गंभीरता से नहीं लेते।
कभी-कभी हमें लगता है आप हमें शरीर से तो बड़े होते हुए देखना चाहती है लेकिन मन से हमें बच्चे के रूप में ही पसंद करतीं है।
माँ से भी कोई माफी माँगता है भला? ना, माँ तो वह, जो अपनी होती है, बहुत अच्छी होती है और उससे माफी नहीं माँगी जाती इसीलिए तो वह सबसे स्पेशल होती है। क्योंकि वह कभी नहीं रूठती। कभी भी नहीं। दुनिया की सारी मम्मियों, दुनिया के सारे बच्चे आज आपको आई लव यू कहना चाहते हैं। आप सुन रही है ना?
'माँ
'माँ, नहीं जानती
आप मेरे लिए क्या हो
सोच के धरातल पर
कई मील आगे चलती
कर्म-बीजों की गठरी थामें
क्षण-क्षण, कण-कण को संजोती
आप हमारे लिए आस्था-पुँज हो
ऊर्जा का निज स्त्रोत हो
जिसका लेशमात्र भी गर
हमसे विकसित हो पाया
तो वह आपका सच्चा अभिनंदन होगा।
इस दिवस पर सार्थक नमन होगा।'
आप मेरे लिए क्या हो
सोच के धरातल पर
कई मील आगे चलती
कर्म-बीजों की गठरी थामें
क्षण-क्षण, कण-कण को संजोती
आप हमारे लिए आस्था-पुँज हो
ऊर्जा का निज स्त्रोत हो
जिसका लेशमात्र भी गर
हमसे विकसित हो पाया
तो वह आपका सच्चा अभिनंदन होगा।
इस दिवस पर सार्थक नमन होगा।'
Wednesday, May 5, 2010
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