जिसके जीवन में सच्चा प्रेम आ जाता है उसका आचरण भी बदल जाता है बाहर से उसे फिर दिखावा करने की जरुरत नहीं पड़ती
जो प्रभु के प्रेम में इतना आगे बड जाता है, प्रभु वियोग में तड़पता रहता है, सुध नहीं उसे किसी बात की, उसने तन, मन, धन, अहंकार सब कुछ समर्पित कर दिया प्रभु के आगे, प्रेम में अहंकार आड़े आ जाता है, अहंकार बोलेंगा भई मै क्यों झुकू? और प्रेम में तो झुकना ही है, डूबना ही है, जीते जी मरना ही है
उसे अपने शरीर का होश नहीं है, कैसा भी वस्त्र मिला पहनलिया, कैसा भी रुखा-सुखा मिला खा लिया, उसकी न ही खुद की कोई इच्छा है, न ही किसी से कोई उम्मीद, उसने न ही किसी से कुछ लेना है, न ही किसी को कुछ देना है, उसके पास जो कुछ है वो उसने पहले ही प्रभु को समर्पित कर दिया है वो खली है, फकीर है बस जपता रहता है प्रभु का नाम.....
बस उसी की तड़प... उसी की चिंता... उसी की लगन... उसी की प्यास, खंजर.....प्रभु के नाम का खंजर उसके सिने में खुपा रहता है....उसी का दर्द सिने में लिए वो घूमता रहता है, उसी की तड़प में जी रहा है... उसी का नाम रट रहा है, न रात में सोने की चिंता है, न दिन में खाने-पिने की, न ही मान-बड़ाई की...
Tuesday, April 13, 2010
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