फिर तुम क्यों नाराज़ खुदी से
एक सरल मुसकान बिखेरो ,
जगती के सुंदर जीवन से
सुंदर नयनों को न फेरो.
ये संसार देव नगर है ,
जिसमें मिलती कई डगर हैं .
रुके -खड़े क्यों !
क्या उलझन है !
अपने कदम बढ़ा कर देखो,
साथ चलेंगे कितने पग फिर
एक बार अपनाकर देखो
Monday, April 12, 2010
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