Monday, April 12, 2010

फिर तुम क्यों नाराज़ खुदी से


एक सरल मुसकान बिखेरो ,

जगती के सुंदर जीवन से

सुंदर नयनों को न फेरो.

ये संसार देव नगर है ,

जिसमें मिलती कई डगर हैं .

रुके -खड़े क्यों !

क्या उलझन है !

अपने कदम बढ़ा कर देखो,

साथ चलेंगे कितने पग फिर

एक बार अपनाकर देखो

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