Thursday, June 25, 2009

ऐसा पहली बार नहीं हुआ। हर साल परीक्षाफल आने के दिनों में ऐसा ही होता है। फेल होने पर कई छात्र-छात्राएं जिंदगी से मुंह मोड़ लेते हैं।

जिन आंखों ने अभी पूरी तरह सपने भी नहीं सजाए थे, वे हमेशा के लिए बंद हो गई। इन मासूमों की मौत उनके परिजनों के लिए कभी न मिटने वाला दर्द दे गईं। ऐसे में सहज ही यह सवाल खड़ा हो जाता है कि क्या जिंदगी से बड़ा है कैरियर का ग्राफ? क्या फेल हो जाने मात्र से ही बंद हो जाते हैं जिंदगी के सारे रास्ते? क्या फेल होना इतना अपमानजनक है कि जिंदगी ही दांव पर लगा दी जाए?

इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि आज अभिभावक बच्चों से पढ़ाई और करियर को लेकर बहुत अधिक उम्मीदें रखने लगे हैं। माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए वह जी-तोड़ मेहनत भी करते हैं लेकिन कई बार वह अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाते हैं तो निराशा में आत्महत्या कर लेते हैं। परीक्षा में फेल होने वाले बच्चों की खुदकुशी केपीछे यही मानसिकता होती है।अलबत्ता आत्महत्या की बढ़ती घटनाएं विद्यार्थियों के जीवन में बढ़ रही निराशा, संघर्ष करने की घटती क्षमता और जीने की इच्छाशक्ति की कमी की ओर भी संकेत करती हैं। मौजूदा समय के भौतिकवादी माहौल ने लोगों की महत्वाकांक्षाओं और अपेक्षाओं को काफी बढ़ा दिया है। अभिभावक परीक्षा के अंकों को जिंदगी से जोड़ देते हैं। अधिक अंक का पाने का सपना टूटता है और अपेक्षाएं पूरी नहीं होती हैं तो विद्यार्थी जिंदगी से ही मायूस हो जाते हैं। इसीलिए छात्र-छात्राओं में आत्महत्या की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं।ऐसी स्थिति में अभिभावकों और शिक्षकों का दायित्व है कि वे बच्चों में आत्मविश्वास, जीवन के प्रति दायित्वबोध और आगे बढऩे का भाव जागृत करें। उन्हें बताएं कि अंक कम आने मात्र या फेल हो जाने से जिंदगी में आगे बढऩे की प्रक्रिया खत्म नहीं हो जाती। हर बच्चे में कुछ प्रतिभा होती है। शिक्षकों और अभिभावकों को बच्चे की उस प्रतिभा को पहचानकर उसके आगे बढऩे का रास्ता बताना चाहिए। इससे बच्चे में आत्मविश्वास पैदा होगा और यही आत्मविश्वास उसमें जिंदगी के प्रति मोह भी पैदा करेगा।

दरअसल, जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए आत्मविश्वास की शक्ति सर्वाधिक आवश्यक है । आत्मविश्वास के अभाव में किसी कामयाबी की कल्पना नहीं की जा सकती है । आत्मविश्वास के सहारे कठिन से कठिन लक्ष्य को प्राप्त करना भी सरल हो जाता है । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने आत्मविश्वास के सहारे ही ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष किया । यह उनका आत्मविश्वास ही था जिसके सहारे उन्होंने अहिंसा के रास्ते पर चलकर देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराया । आत्मविश्वास शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है-आत्म और विश्वास । यहां आत्मा से आशय अंतर्मन से है । विश्वास का अर्थ भरोसा होता है । वस्तुत: अंतर्मन के भरोसे को ही आत्मविश्वास कहते है ं। आत्मविश्वास मनुष्य के अंदर ही समाहित होता है । आंतरिक शक्तियों को एकीकृत करके आत्मविश्वास को मजबूत किया जा सकता है।आत्मविश्वास को जागृत करके और मजबूत बनाकर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता अर्जित की जा सकती है । सत्य, सदाचार, ईमानदारी, सहृदयता आदि मानवीय गुणों को धारण करके आत्मविश्वास का संचार किया जा सकता है । आत्मविश्वास से भरे विद्यार्थी परीक्षा में सफलता प्राप्त करते हैं । रोजगार और व्यवसाय में भी उन्नति के शिखर पर पहुंचने का आधार आत्मविश्वास ही होता है । बडी से बडी समस्या भी उन्हें जिंदगी में आगे बढऩे से नहीं रोक सकती। आत्मविश्वास से दैदीप्य व्यक्तित्व ही समाज को नई दिशा देने में समर्थ होता है । वास्तव में आत्मविश्वास की शक्ति अद्भुत होती है ।प्रत्येक मनुष्य को सदैव आत्मविश्वास को मजबूत बनाए रखना चाहिए तभी वह जीवन में उन्नति कर सकता है । जिंदगी से मायूस हुए लोगों को ढाढस बंधाने का काम परिजनों अथवा उनके निकट के लोगों को करना चाहिए । बातचीत के माध्यम से निराशाजनक स्थितियों से गुजर रहे मनुष्य के अंदर जीने की इच्छाशक्ति को मजबूत किया जाना चाहिए । विविध प्रेरणादायक प्रसंगों की जानकारी देकर उन्हें जीवन के संघर्ष से घबराने के बजाय मुकाबला करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए । उनके मन से निराशा का अंधेरा छंट गया तो निश्चित रूप से उनमें जीवन के प्रति ललक जागृत होगी । उनमें आत्मविश्वास उत्पन्न होगा तो वह वह भविष्य में जिम्मेदार नागरिक बनकर देश के विकास में अपना योगदान दे पाएंगे ।

Wednesday, June 17, 2009

लव , प्यार ,

'मोहब्बत रूह की खुराक है। यह वह अमृत बूँद है, जो मरे हुए भावों को जिन्दा करती है। यह जिन्दगी की सबसे पाक, सबसे ऊँची, सबसे मुबारक बरकत है।' -
मोहब्बत एक एहसास है, जिसे रूह से महसूस किया जा सकता है। यह उस अनादि अनंत ईश्वर की तरह है, जो सृष्टि के कण-कण में विद्यमान है। प्यार, जो हमारे संपूर्ण जीवन में विभिन्न रूपों में सामने आता है। जो यह एहसास दिलाता है कि जिन्दगी कितनी खूबसूरत है।


'प्रेम से जीवन को अलौकिक सौंदर्य प्राप्त होता है। प्रेम से जीवन पवित्र और सार्थक हो जाता है। प्रेम जीवन की संपूर्णता है।' सृष्टि में जो कुछ सुकून भरा है, प्रेम है। प्रेम ही है, जो संबंधों को जीवित रखता है। परिवार के प्रति प्रेम, जिम्मेदारी सिखाता है।प्रेम इंसान को विनम्र बना देता है। रूखे से रूखे और क्रूर से क्रूर इंसान के मन में यदि किसी के प्रति प्रेम की भावना जन्म ले लेती है, तो संपूर्ण प्राणी जगत के लिए वह विनम्र हो जाता है। ऐसे कई उदाहरण हमारे ग्रंथों में मिलते हैं। प्रेम चाहे व्यक्ति विशेष के प्रति हो या ईश्वर के प्रति। आश्चर्यजनक रूप से उसकी सोच, उसका व्यवहार, उसकी वाणी सबकुछ परिवर्तित हो जाता है।प्यार, जिन्दगी का सबसे हसीन जज्बा है। बोलने में यह जितना मीठा है, उसका एहसास उतना ही खूबसूरत और प्यारा है। प्यार के एहसास को शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता। उसे व्यक्त करने की आवश्यकता भी नहीं होती। व्यक्ति की आँखें, चेहरा, हाव-भाव यहाँ तक कि उसकी साँसें दिल का सब भेद खोल देती हैं। प्रेम की अनोखी दुनिया में खोकर कोई बाहर आना ही नहीं चाहता। वह जिसे प्यार करता है, खुली आँखों से भी उसी के सपने देखता है। उसके साथ बिताई घड़ियों को बार-बार याद करता है। उसके लिए सजना-सँवरना चाहता है। यही नहीं, औरों से बात करते हुए भी उसी का जिक्र चाहता है। यही प्यार का दीवानापन है और इस दीवानेपन में जो आनंद है, वह संसार की किसी भौतिकता में नहीं है।

आज की तेज रफ्तार से दौड़ती जिन्दगी में व्यक्ति जब एक-दूसरे को पीछे धकेलते हुए आगे बढ़ने की होड़ में संवेदनाओं को खोता चला जा रहा है, रिश्तों और एहसासों से दूर, संपन्नता में क्षणिक सुख खोजने के प्रयास में लगा रहता है, ऐसी स्थिति में जहाँ प्यार बैंक-बैलेंस और स्थायित्व देखकर किया जाता है, वहाँ सच्ची मोहब्बत, पहली नजर का प्यार और प्यार में पागलपन जैसी बातें बेमानी लगती हैं परंतु प्रेम शाश्वत है। प्रेम सोच-समझकर की जाने वाली चीज नहीं है। कोई कितना भी सोचे, यदि उसे सच्चा प्रेम हो गया तो उसके लिए दुनिया की हर चीज गौण हो जाती है। प्रेम की अनुभूति विलक्षण है। प्यार कब हो जाता है, पता ही नहीं चलता। इसका एहसास तो तब होता है, जब मन सदैव किसी का सामीप्य चाहने लगता है। उसकी मुस्कुराहट पर खिल उठता है। उसके दर्द से तड़पने लगता है। उस पर सर्वस्व समर्पित करना चाहता है, बिना किसी प्रतिदान की आशा के।प्रेम हृदय का निश्छल व्यापार है। सर्वात्म भाव से किसी को आत्मसमर्पण कर देने में असीम सुख प्राप्त होता है।

'प्रेम चतुर मनुष्यों के लिए नहीं है। वह तो शिशु-से सरल हृदय की वस्तु है।' सच्चा प्रेम प्रतिदान नहीं चाहता, बल्कि उसकी खुशियों के लिए बलिदान करता है। प्रिय की निष्ठुरता भी उसे कम नहीं कर सकती। वास्तव में प्रेम के पथ में प्रेमी और प्रिय दो नहीं, एक हुआ करते हैं। एक की खुशी दूसरे की आंखों में छलकती है और किसी के दुःख से किसी की आँख भर आती है।

'प्रेम एक संजीवनी शक्ति है। संसार के हर दुर्लभ कार्य को करने के लिए यह प्यार संबल प्रदान करता है। आत्मविश्वास बढ़ाता है। यह असीम होता है। इसका केंद्र तो होता है लेकिन परिधि नहीं होती।' प्रेम एक तपस्या है, जिसमें मिलने की खुशी, बिछड़ने का दुःख, प्रेम का उन्माद, विरह का ताप सबकुछ सहना होता है। प्रेम की पराकाष्ठा का एहसास तो तब होता है, जब वह किसी से दूर हो जाता है।


प्रेम में नकारात्मक सोच के लिए कोई जगह नहीं होती। जो लोग प्यार में असफल होकर अपने प्रिय को नुकसान पहुँचाने का कार्य करते हैं, वे सच्चा प्यार नहीं करते। प्रेम सकारण भी नहीं होता। प्रेम तो हो जाने वाली चीज है।

'प्रेम अपनी गहराई को वियोग की घड़ियाँ आ पहुँचने तक स्वयं नहीं जानता।' प्रेम विरह की पीड़ा को वही अनुभव कर सकता है, जिसने इसे भोगा है। इस पीड़ा का एहसास भी सुखद होता है। दूरी का दर्द मीठा होता है। वो कसक उठती है मन में कि बयान नहीं किया जा सकता। दूरी प्रेम को बढ़ाती है और पुनर्मिलन का वह सुख देती है, जो अद्वितीय होता है। प्यार के इस भाव को इस रूप को केवल महसूस किया जा सकता है। इसकी अभिव्यक्ति कर पाना संभव नहीं है। बिछोह का दुःख मिलने न मिलने की आशा-आशंका में जो समय व्यतीत होता है, वह जीवन का अमूल्य अंश होता है। उस तड़प का अपना एक आनंद है।प्यार और दर्द में गहरा रिश्ता है। जिस दिल में दर्द ना हो, वहाँ प्यार का एहसास भी नहीं होता। किसी के दूर जाने पर जो खालीपन लगता है, जो टीस दिल में उठती है, वही तो प्यार का दर्द है। इसी दर्द के कारण प्रेमी हृदय कितनी ही कृतियों की रचना करता है।प्रेम को लेकर जो साहित्य रचा गया है, उसमें देखा जा सकता है कि जहां विरह का उल्लेख होता है, वह साहित्य मन को छू लेता है। उसकी भाषा स्वतः ही मीठी हो जाती है, काव्यात्मक हो जाती है। मर्मस्पर्शी होकर सीधे दिल पर लगती है।प्रेम में नकारात्मक सोच के लिए कोई जगह नहीं होती।

जो लोग प्यार में असफल होकर अपने प्रिय को नुकसान पहुँचाने का कार्य करते हैं, वे सच्चा प्यार नहीं करते। प्रेम सकारण भी नहीं होता। प्रेम तो हो जाने वाली चीज है। किसी के खयालों में खोकर खुद को भुला देना, उसके सभी दर्द अपना लेना, स्वयं को समर्पित कर देना, उसकी जुदाई में दिल में एक मीठी चुभन महसूस करना, हर पल उसका सामीप्य चाहना, उसकी खुशियों में खुश होना, उसके आँसुओं को अपनी आँखों में ले लेना, हाँ यही तो प्यार है। इसे महसूस करो और खो जाओ उस सुनहरी अनोखी दुनिया में, जहाँ सिर्फ सुकून है।

यह सब प्रेम bahot acha है पर saccha प्यार to सिर्फ़ और सिर्फ़ ishawar और Guru से करो vahi आपको अपनी sachi मंजिल पर ले जाएगा और ahesas dilayega की sacha प्यार किसे कहते है । sachi mohobat किसे कहते है ।

Saturday, June 6, 2009

कल ,मैंने तुमसे बातें की थीं तुम सुनो कि न सुनो, ये मैंने सोंचा नहीं,तुम जवाब न दोगे, ये भी मैंने सोंचा नहीं,तुम मेरे पास न थे, तुम मेरे साथ तो थे कल हमारे साथ, वक़्त भी जागा, और रूह भी जागी थी,कल मैंने तुमसे बातें की थी कितना खुशगवार मौसम था,हमारे तुम्हारे रूह के बीच,ख्यालों का काफिला था,सवालों जवाबों की, लम्बी फेहरिस्त थी,चाहतों की, लम्बी कतार थी तुम्हारे शब्द खामोश थे,तुम सुन रहे थे न, जो मैंने तुमसे कहा था,कल , मैंने तुमसे बातें की थी तुम्हें हो कि न हो याद,पर, मेरे तसव्वुर में बस गई,कल की हमारी हर बात, कल मैंने तुमसे बातें की थीं बहुत बाते की थी , तुम शरीर से मेरे साथ हो या ना हो पर दिल दिमाग से मेरे साथ हो मेरी रूह हो मेरी आत्मा हो !

तुम मेरी श्रधा हो

मै मनु तुम ही मेरी श्रद्घा हो मै अगर तुम्हारी पूजा करू तो तुम्हें एतराज तो नही ऐसे भी चेतना का आधार पाषाण तो नही तुम्हें चाहीये ......उड़ना ......तोमै अम्बर हूँ रंग ......तो मै पतंग हूँ शब्द ....तो मै तुम्हारा मन हूँ सुगंध ...तो मै सुमन हूँ और तुम्हें चाहिए यदी संग तो मै-हरेक पल हूँ तुम अगर दृश्य हो तो मै आईना हूँ मै एक् शंख -पुकारता जिसेतुम वही -शंखा हो मै मनु तुम ही मेरी श्रद्घा हो