Sunday, October 25, 2009

चाहत

समय बीतने के साथ-साथ हम कुछ लोगों के व्यवहार से इतने परिचित हो जाते हैं कि हमें मालूम होता है कि यदि ऐसी स्थिति हुई तो उसकी वैसी प्रतिक्रिया होगी। इसलिए तनाव की गुंजाइश कम होती है क्योंकि हमारी मानसिक तैयारी उस प्रतिक्रिया से सामना करने की बन जाती है। पर बहुत से लोग ऐसे होते हैं कि हम उनके बेहद करीब हों फिर भी हम सुनिश्चित नहीं कर पाते कि किन हालात में उस व्यक्ति विशेष का क्या व्यवहार होगा।अक्सर अप्रत्याशित व्यवहार के कारण यह तनाव और दुविधा बनी रहती है कि न जाने क्या होने वाला है। गुस्सा होगा तो किस हद तक होगा और खुशी होगी तो कितनी देर की होगी। नाराजगी कब तक चलेगी और कैसे मनाया जाए उसे। ऐसे रवैये से रिश्तों पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है। खासकर वह व्यक्ति ही पीड़ित होता है जिसे यह मनमौजी व्यवहार झेलना पड़ता है। उस व्यक्ति के लिए प्यार करना गुनाह करने के समान हो जाता है। न तो उससे नाता तोड़ते बनता है और न ही पूर्ण रूप से उसे आत्मसात करते बनता है। यह द्वंद्व की स्थिति निश्चित रूप से रिश्ते को मजबूत होने नहीं देती वह कभी तो उसका बेहद ख्याल रखता है और कभी लापरवाह हो जाता है, जैसे उसे उसकी किसी भी परेशानी से कोई फर्क ही नहीं पड़ता है। ऐसा क्या किया जाए कि आप दोनों में समझबूझ विकसित हो जाए या फिर आप उसे भूल जाएँ जोकि आपको असंभव सा लगता है। करता है। दरअसल, जब कोई रिश्ता केवल किसी एक व्यक्ति की जरूरत पर आधारित हो तो उस रिश्ते के स्थायित्व पर प्रश्नचिह्न लग ही जाता है। दोनों के लिए खुशी, चिंता, दुख, ग्लानि की समान गुंजाइश नहीं रहती है। दूसरा व्यक्ति निर्विकार रूप से उस रिश्ते में रहता है। जब मूड हुआ, दया आई या उसे संग और संवाद की जरूरत महसूस हुई तो समय दे दिया वरना अन्य दिनचर्या में उस रिश्ते का स्थान नहीं। अनुभव यही बताते हैं कि केवल किसी एक के कंधे पर ऐसे रिश्ते का बोझ डालकर ज्यादा समय तक नहीं चला जा सकता है। एक अकेला व्यक्ति कहाँ तक संबंध की गाड़ी खींच पाएगा। वह न केवल बुरी तरह थक जाएगा बल्कि टूट भी जाएगा। ऐसे में यदि रिश्ता समाप्त हो जाए तो उसके पास अपना आगे जीवन संवारने के लिए ताकत नहीं बचेगी। ऐसे एकतरफा रिश्ते से जी कड़ा करके निकल जाना चाहिए। यदि दोनों व्यक्ति की चाहत समान नहीं है तो आज न कल उस रिश्ते को टूटना ही है। उसके लिए मानसिक रूप से तैयार हो जाएं यही बेहतर है। आपको लग सकता है कि उसके पास समय का अभाव है। लेकिन यदि किसी की नीयत साफ है तो समय की कमी ज्यादा मायने नहीं रखती है। वह वाजिब वजह बता सकते हैं और सामने वाले को उस पर यकीन भी होगा पर यदि किसी व्यक्ति में आपके साथ समय बिताने की इच्छा ही न हो तो वैसे व्यक्ति से समय की कमी का रोना रोना कहाँ की अक्लमंदी होगी। हो सकता है कि आपके साथी के पास सचमुच समय का अभाव हो, वह यह सोचता हो कि आप झगडने के बजाय उसकी इस दिक्कत को समझेंगी। पर, जो बात सबसे ज्यादा इस रिश्ते में अखर रही है, वह है झगड़ा होने पर हमेशा आपके द्वारा पहल करना, मनाना, माफी माँगना। सप्ताह बीतने के बाद भी उसे आपसे संवाद बनाने के लिए तड़प नहीं महसूस होती है बल्कि आप ही बेचैन होकर उसे मनाने चल पड़ती हैं। इसका क्या अर्थ निकाला जाए। आपका दोस्त हमेशा यही सोचता है कि पूरी गलती आपकी है इसलिए माफी भी उसे ही माँगनी पड़ेगी। दूसरा, आप बोलें या रूठे उसकी बला से। घुटने टेकती हैं तो ठीक है वरना आप जाएँ अपनी राह। किसी भी रिश्ते की सबसे दुखद स्थिति है, एक-दूसरे का सम्मान नहीं करना। एक-दूसरे को गंभीरता से नहीं लेना। प्यार व परवाह करना थोड़ा कम हो तो चल सकता है पर कुछ घटने पर जवाबदेही महसूस नहीं करना, उसे बस हलकेपन से लेना, बेहद अपमानजनक स्थिति है। कभी भी झगड़े को सुलझाने के लिए पहल नहीं करना, ऐलानिया तौर पर यह कहना है कि मुझे तुम्हारे दुख-दर्द से कोई मतलब नहीं है और न ही मैं तुम्हारी भावना की कद्र करता हूँ। पर जब भी दो व्यक्ति के बीच अनबन या झगड़ा होता है तो ज्यादा या कम गलती दोनों की होती है। समझदारी का ठेका केवल एक व्यक्ति को तो सौंपा नहीं जा सकता है न!
आप सँभल जाएँ और परिपक्व व्यवहार करें। आपने बहुत प्यार, दुलार, मनुहार लुटाया है अब उसे भी मौका दें। यदि वह पहल नहीं करता है, लौटकर नहीं आता है तो आपको अपने संबंध के भविष्य का जवाब मिल गया।
आप काफी हद तक समझ गई होंगी कि आपका रिश्ता कितना परिपक्व है। कितनी दूर यह चल सकता है। अपने जीवन में शांति, सुकून और उज्ज्वल भविष्य चाहिए तो अपना जी कड़ा करके एक बार महीना-छह महीना के लिए किसी काम में व्यस्त हो जाएँ। आपको जितनी मानसिक तकलीफ हो, आप उससे संपर्क न करें। अगर उसे सचमुच आपकी दोस्ती और प्यार की जरूरत है तो वह अपनी आदत बदलकर आपसे बात करने की पहल करेगा। अब विचलित और उत्तेजित होने की उसकी बारी है। आप सँभल जाएँ और परिपक्व व्यवहार करें। आपने बहुत प्यार, दुलार, मनुहार लुटाया है अब उसे भी मौका दें। यदि वह पहल नहीं करता है, लौटकर नहीं आता है तो आपको अपने संबंध के भविष्य का जवाब मिल गया। यदि वह समझदारी और सम्मान से पेश आता है तो आप भी उतावलेपन के बजाय थोड़ा धैर्य और समझदारी दिखाएँ। रो-रोकर माँगी हुई भीख से संबंध कितने दिन टिकाऊ और खुशियों भरा हो सकता है, जहाँ दोनों एक दूसरे की भावना का आदर करें और बराबर की चाहत महसूस करे

Saturday, October 10, 2009

मेरी चाहत

मैं चाहता हूँ कि,
तुम्हें ढेर सारा प्यार मिले।
मनचाही खुशियों भरा एक नया संसार मिले।।
बेवफाई की इस अंधेरी दुनिया से कोसों दूर,
वफा के उजालों से भरा एक नया द्वार मिले..।

मैं चाहता हूँ कि,
तुम्हारे कदमों को भी एक नया साथ मिले।।
आईना बनकर सामने खड़ी रहो तुम,
ताकि दोनों रुहों को भी प्यार भरे जज्बात मिले..॥


मैं चाहता हूँ कि,
तुम्हारी झोली में हो इन्द्रधनुष के सातों रंग।
तुम हमेशा मुस्कुराती रहो रंगबिरंगी तितलियों के संग।।
मेरे इन ख्वाबों को भी एक सही मुकाम मिले,
इन अफसानों को भी हकीकत का नया नाम मिले ।।

मेरी जीवन संगनी

अँधेरी‍ रात में
जगमगाता दिया हो तुम
मेरी जीवनसंगिनी
मेरी प्राणप्रिया हो तुम

थामा है तुमने
जब से मेरा हाथ
तबसे जागी है मुझमें
जीवन जीने की आस

उम्र का यह पड़ाव
नहीं लगता अब मुझे भारी
गर मिलो तुम हर जनम
तो हँस के रूखसती की
कर लूँ मैं तैयारी

साथी चले हो तुम
दो कदम साथ
तो जीवनभर साथ निभाना
तन्हाई में छोड़ अकेला मुझे
तुम कहीं चली ना जाना।

प्यार में जल्दबाजी ना करो

जब हमें कोई चीज पसंद आती है तो हम उसे पाने के लिए तड़प उठते हैं। सारी कोशिश यही रहती है कि वह चीज हमें किसी भी तरह मिल जाए। जमीन-आसमान एक करने के बाद वह चीज हमें मिल तो जाती है पर थोड़े ही दिनों में हमें महसूस होने लगता है कि वह चीज हमारी उम्मीद पर खरी नहीं उतरी। पछतावा होता है कि नाहक हमने अपनी उतनी मेहनत, धन और समय उस पर बरबाद किया। ठीक यही तजुर्बा व अहसास रिश्तों में जल्दबाजी करने पर भी होता है। प्यार के रिश्ते की शुरुआत करने में धीमी गति से आगे बढ़ना बहुत ही समझदारी भरा लव मंत्र है।

जब दो लोग किसी भी कारणवश बार-बार मिलते हैं तो काम के अलावा भी संवाद बनता है। रोजमर्रा की बातों में हँसी-मजाक भी शामिल होने लगता है। पहचान बढ़ती जाती है तो एक-दूसरे से कभी तबीयत का हालचाल भी पूछने लगते हैं। भूख की बात सुनने पर कोई अपना टिफिन भी पेश कर देता है। कार्य या पढ़ाई आदि की समस्या आने पर सलाह-मशविरा भी करने लगते हैं। ज्यों-ज्यों सहजता बढ़ती जाती है प्रतिक्रिया ज्यादा निजी होती जाती है।

पोशाक, हेयर स्टाइल, स्मार्ट लुक, दुखी चेहरा, खुशी का कारण जैसे कमेंट करना आम बातचीत का हिस्सा बन जाता है। ये सारी बातें आम व्यवहारिकता की बातें हैं। इसे प्यार के रिश्ते की शुरुआत या बुनियाद नहीं कहा जा सकता। पर ऐसी ही सहज बातचीत को कई बार व्यक्ति बहुत ही गंभीरता से लेने लगता है। उसे उन सारी नोंक-झोंक और रोजमर्रा की मिजाज पुर्सी में प्यार का गुमान होने लगता है। अमूमन यह वहम पाल लिया जाता है कि सामने वाला भी प्यार में मुबतला है और इसीलिए सभी सहज व्यवहार को विशेष दृष्टि से देखने की कोशिश की जाती है। यदि बीमार पड़ने पर हमदर्दी के साथ हालचाल पूछ लिया गया तो प्यार का अनुमान लगाने वाली बात और भी पक्की मान ली जाती है।

मजेदार बात यह है कि सामने वाला बस इस व्यवहारिकता को सहजता से निभाता जा रहा होता है लेकिन मन में प्यार की गलतफहमी पालने वाला हर टिप्पणी, हर सहयोग, हंसी, छुअन आदि को बस प्यार की मुहर लगाकर ही देखने लगता है। जबकि सामने वाला इस विशेष विश्लेषण से बिल्कुल अनजान है। उसे रत्ती बराबर भी अंदेशा नहीं होता है कि उसके सामान्य से व्यवहार का अलग मतलब निकाला जा रहा है। उसे क्या पता है कि अपने मन में प्यार की खयाली दुनिया बसाकर कोई बहुत ही आगे बढ़ चुका है। और उसके बाद जब प्यार के मुगालते में रहने वाला अपनी मन की बात उस व्यक्ति के समक्ष रखता है तो सामने वाला हक्का-बक्का सा रह जाता है क्योंकि वह खुद को सामान्य दोस्त से ज्यादा कुछ भी नहीं समझता है। बहुत संभव है कि उसका पहले से ही किसी के साथ प्यार का रिश्ता हो।



अक्सर ऐसे लोग आत्महीनता एवं अविश्वास की भावना का शिकार हो जाते हैं। जीवन के किसी मोड़ पर जब उसे सही व्यक्ति मिलता है तो वह उस पर भी भरोसा नहीं कर पाता है।



ऐसे में जब वह व्यक्ति अपनी स्थिति साफ करता है तो प्यार का इजहार करने वाले के पैर के नीचे से जमीन खिसक जाती है। वह अवसाद में डूब जाता है। उसे लगता है उसके साथ धोखा हुआ है। उसकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया गया है। इलजाम यह लगाया जाता है कि पहले से ही यह स्थिति क्यों नहीं साफ की गई। वह यह मानने को तैयार नहीं होता है कि इतनी नजदीकियाँ नहीं थी कि उसे प्यार के रिश्ते के बारे में बताया नहीं जाता। यदि सामने वाला भलमनसाहत में नम्रता से पेश आता है और गलतफहमी से पहुँचने वाले दुख के प्रति संवेदनशीलता का भाव रखता है तो और भी मुश्किलें ज्यादा बढ़ जाती हैं।

इसकी वजह से एक तो प्रेम का इजहार करने वाला व्यक्ति उस मनोदशा से निकल नहीं पाता है, दूसरा यह मायने भी निकाला जाता है कि सामने वाले की गलती है इसीलिए उसे गिल्ट फील हो रहा है। इससे इजहार करने वाले की स्थिति और भी गंभीर हो जाती है और उस भ्रम को तोड़ पाना कठिन हो जाता है। वह बहुत दिनों तक मानसिक तनाव से गुजरता है।

अक्सर ऐसे लोग आत्महीनता एवं अविश्वास की भावना का शिकार हो जाते हैं। जीवन के किसी मोड़ पर जब उसे सही व्यक्ति मिलता है तो वह उस पर भी भरोसा नहीं कर पाता है। उसका आत्मविश्वास इतना हिल चुका होता है कि किसी की भावना की गहराई को न तो वह समझ पाता है और न ही उसका सही आकलन कर पाता है। सबसे दुखद यह होता है कि वह जीवन भर किसी के सामने कोई भी प्रस्ताव रखने से डरता है। दोस्तों, प्यार के मामले में जल्दबाजी करना ठीक नहीं है।
संपूर्ण मानव समाज के लिए प्रेम एक सर्वोत्तम सौगात है। प्रेम प्रकृति का वह अनमोल उपहार है जो मानव जाति के अस्तित्व हेतु अति आवश्यक है। यदि मनुष्य के हृदय से प्रेम समाप्त हो जाए तो मानव जाति के विनाश को शायद कोई न रोक सके।

प्रेम वह मधुर अहसास है जो जीवन में मिठास घोल देता है। कटुता दूर करने व वात्सल्य तथा भाईचारे के संचार में प्रेम की महती भूमिका है। मगर अफसोस! आज प्रेम का वह शाश्वत रूप नहीं रहा। प्रेम की नैसर्गिक अनुभूति आज आधुनिकता की चकाचौंध में कहीं खो गई है। वर्तमान में प्यार जैसे शब्द से सभी परिचित होंगे मगर सच्चे प्यार की परिभाषा क्या है, यह बहुत कम लोग जानते हैं।




वास्तव में तो प्यार अभी तक प्यार है जब तक उसमें विशालता व शुद्धता कायम है। अशुद्ध व सतही प्यार न केवल दो हृदयों के लिए नुकसानदायक है बल्कि भविष्य में जीवन के स्याह होने की वजह भी बन जाता है।



विशुद्धतम वही है जो प्रतिदान में कुछ पाने की लालसा नहीं रखता। आत्मा की गहराई तक विद्यमान आसक्ति ही सच्चे प्यार का प्रमाण है। सच्चा प्यार न तो शारीरिक सुंदरता देखता है और न ही आर्थिक या शैक्षणिक पृष्ठभूमि। सच्चा प्यार बस, प्रिय के सामिप्य का आकांक्षी होता है। निर्निमेष दृष्टि से देखने की भोली चाह के अतिरिक्त प्यार शायद ही कुछ और सोचता हो। वास्तव में तो प्यार अभी तक प्यार है जब तक उसमें विशालता व शुद्धता कायम है। अशुद्ध व सतही प्यार न केवल दो हृदयों के लिए नुकसानदायक है बल्कि भविष्य में जीवन के स्याह होने की वजह भी बन जाता है।

सच्चे प्यार का अहसास किया जा सकता। इसे शब्दों में अभिव्यक्त करना न केवल मुश्किल है बल्कि असंभव भी है। सच्चे प्यार में गहराई इतनी होती है कि चोट लगे एक को, तो दर्द दूसरे को होता है, एक के चेहरे की उदासी से दूसरे की आँखें छलछला आती हैं। सच्चे प्रेम का 'पुष्प' कोमल भावनाओं की भूमि पर आपसी विश्वास और मन की पवित्रता के संरक्षण में ही खिलता और महकता है। अब यह हम पर निर्भर करता है कि इसकी कोमल पंखुड़ियों पर सामाजिक बदनामी की अम्ल वर्षा करें या इसकी जड़ों को विश्वास एवं समर्पण के अमृत से सींचें।

मेरे दोस्त

तू है मेरी ताकत
तू है मेरा विश्वास
तूने जगाई मुझमें
जीने की नई आस
जीवन की कठिन डगर
और तेरा साथ
नहीं लगता डर मुझे
जब तू है मेरा हमराज

फिसलन में भी नहीं
लगता अब
गिरने का डर
थामा है तूने जो हाथ
डर ने छोड़ दिया है साथ
अब मुश्किलों से लड़ने को
जी चाहता है
अब कुछ कर गुजरने को
जी चाहता है।

तेरी हर हिदायत
करती है मुझे हर
खतरे से आगाह
तेरी हर डाँट-फटकार
भरती है मुझमें आत्मविश्वास
चलती हूँ अकेली
पर साथ होता है तू
हौसलों में ऊर्जा भरता
विश्वास होता है तू

दोस्त जीतूँगी हर बाजी
गर साथ होगा तू
छा जाएँगे दुनिया पर
गर हौंसला बनेगा तू
अब नहीं दुनिया से डर
अब किसी की नहीं फिक्र
छू लेंगे हम आसमाँ
हमारी मुट्ठी में होगा जहां।

तुम्हारी हँसी

प्राण! मुझ को लुभाती तुम्हारी हँसी
प्राण तक खनखनाती तुम्हारी हँसी।

चाँदनी-सी कभी, मोतियों-सी कभी
काँति ले जगमगाती तुम्हारी हँसी।

मैं कहीं भी, किसी हाल में भी रहूँ
याद आती, बुलाती तुम्हारी हँसी।

होंठ विद्रूम, नयन पद्मरागी छटा
रत्न-मोती लुटाती तुम्हारी हँसी।

खेल ही खेल में पारिजातक खिला
खिल स्वयं, खिलखिलाती तुम्हारी हँसी।

रात-दिन नील श्वेतांबुजों पर सदा
भृंग-सी गुनगुनाती तुम्हारी हँसी।

जिंदगी जब सताती-रूलाती मुझे,
धैर्य दे तब हँसाती तुम्हारी हँसी।

स्नेह भरती अथक देह के दीप में
ज्योति मन में जगाती तुम्हारी हँसी।

खूब हँसती रहो, मुस्कुराती रहो
यह तुम्हारी हँसी है हमारी हँसी।