Sunday, December 27, 2009

प्यार के पल कितने कम हैं, कितने छोटे

ये रात है और अकेलापन

तारे टिमटिमाते हैं और मेरे अकेलेपन को

और अकेला करते हैं

प्यार के पल कितने कम हैं, कितने छोटे

और अकेलेपन की रातें कितनी लंबी और सूनी

मैं जानता हूँ आसमान की गोद में

ये तारे टिमटिमाते हुए कितने सुंदर लगते हैं

लेकिन तुम्हारे बगैर यह रात एक अजगर है

जिसने मुझे जकड रखा है

धीरे-धीरे मेरी आँखें मूँद जाएँगी और तुम जान भी नहीं पाओगी

मेरी जिंदगी कितनी छोटी है

और तुम कितनी दूर...!

प्यार के पल कितने कम हैं, कितने छोटे
मैं तुम्हें पुकारता हूँ

मैं तुम्हें पुकारता हूँ

और मेरी आवाज सूनेपन के जंगल में

पागलों की तरह भटकती रहती है

मैं तुम्हें पुकारता हूँ

औऱ मेरी आवाज छटपटाती हुई

एक नदी में डूब जाती है

मैं तुम्हें पुकारता हूँ

और मेरी आवाज खिले फूल को चूमकर

एक गहरी खाई में खो जाती है

मैं तुम्हे पुकारता हूँ

मैं तुम्हें पुकारता हूँ

मैं तुम्हें पुकारता हूँ

पर तुम सात समंदर पार हँसती हुई

एक चट्टान पर बैठी गुनगुना रही हो

मैं तुम्हें पुकारता हूँ

और मेरा गला रूंधा हुआ है

तुम्हें बार-बार पुकारते हुए एक दिन

मेरे आवाज रुक जाएगी

और मैं हमेशा हमेशा के लिए मौन हो जाऊँगा

तुम आओगी तो मुझे नहीं पाओगी

मेरे मौन में खिला हुआ

एक छोटा सा सुंदर फूल पाओगी।

Thursday, December 24, 2009

आपके पत्र

हर साल मुझे आपके पत्र मिलते हैं। इन पत्रों में खुशबू होती है आपके मीठे प्यार की। कभी आँसू की बरसात होती है, कभी तकलीफों का पिटारा, कभी चहकती खुशियाँ तो कभी गमगीन दुनिया। हर पत्र के साथ मैं रोता हूँ, मुस्कुराता हूँ और कभी-कभी घंटों बैठकर सोचता हूँ। सोचता हूँ, आखिर एक मानव इस दुनिया में चाहता क्या है? छोटी-छोटी मासूम खुशियाँ, सच्चा प्यार, अपनों की प्रगति, बड़ों का आशीर्वाद और भरपूर शांति। ‍फिर क्यों आपकी इसी दुनिया में चारों तरफ नफरतों की जंग छिड़ी हुई है। क्यों हर साल बिना किसी गुनाह के सैकड़ों लोग मारे जाते हैं? आप सबके पत्र मुझसे माँगते हैं अपने लिए जिंदगी भर की दुआएँ और आज मैं आपसे माँगता हूँ पल भर का सुकून। आप सब चाहते हैं आपकी जिंदगी में रौनक रहे, रोशनी रहे और आज मैं  आपसे चाहता हूँ इस धरती पर शांति का श्वेत उजाला बना रहे।



मैं आपको  देना चाहता हूँ शांति के सफेद कबूतर लेकिन देखता हूँ आपके हाथों में उन्हीं का लाल खून। तब तड़प उठती है मेरी आत्मा।  मत भूलना अपने देश के उन नन्हे नौनिहालों को जिनके तन पर जरूरत के कपड़े भी नहीं सजे हैं। जब बनाओं  ड्रायफ्रूट्स केक, तो मत भूलना भूख से बेहाल उन बच्चों को जिन्हें सूखी रोटी भी नसीब नहीं। और  पार्टी  झूमों, तो मत भूलना कि खुशियों का पैगाम लाने वाला आपका अपना  खुश नहीं है गंदगी में जीवन बिताने वाले हजारों बाल मजदूरों का रूप देखकर।

 आज पत्र लिख रहा हूँ उन सारे जिम्मेदार और जहीन लोगों के नाम  हैं आज मैं उनसे उपहार चाहता हूँ। चाहता हूँ कि देखें अपने आसपास के गरीब, बेबस, शारीरिक रूप से अक्षम, अनाथ, मजदूर और मजबूर इंसानों को। और मनाएँ  पावन पर्व उनको एक पल की खुशी का उपहार देकर।

यह ना कर सकें तो इतना तो कर ही सकते हैं कि इस बार खुद को खूबसूरत भावनाओं का उपहार दें कि हम हमेशा बस खुश रहेंगे और खुशियाँ देंगे। कभी दूसरों का बुरा नहीं चाहेंगे, कभी हिंसा और अहंकार के रास्ते पर नहीं चलेंगे। जब आप खुद ही नेक रास्तों पर चल पड़ेंगे ! पत्रों से छलछलाती मीठी और मासूम आकांक्षाएँ पढ़कर मैं पसीज उठता हूँ। ये पत्र चाहते हैं उनके माता-पिता कभी अलग ना हों। चाहते हैं, दादा-दादी का साथ बना रहे। दोस्तों को फीस ना भरने के कारण स्कूल ना छोड़ना पड़े। चाहते हैं दुनिया के सारे चोर सुधर जाए।
यहाँ तक कि वे चाहते हैं दुनिया के सारे हथियार समुद्र में बहा दिए जाएँ और सीमा पर तैनात सारे जवान घर लौट आए। इतने और ऐसे-ऐसे भावुक अनुरोध कि अगर दिल की गहराई से समझे तो एहसास होगा कि मूल रूप से इंसान की कृति कितनी भोली और निश्छल होती है। ना जाने कब, कैसे, कौन सी विकृति उसे डस लेती है कि वह इंसान से हैवान बन जाता है। आप सच्चे मानव बने रहे और मानवता को बना रहने दें यही मेरी  सच्ची शुभकामनाएँ हैं।
 मुझे बस एक उपहार, धरती पर बना रहे आपस में प्यार। 

Wednesday, December 23, 2009

भाई-बहन का रिश्ता है, जिसमें औपचारिकता से कहीं ज्यादा प्यार व दिलों का नाता होता है। अतीत की मधुर स्मृतियाँ तथा बचपन की यादें ताउम्र भाई-बहन को एक-दूसरे से जोड़े रखती है। यह रिश्ता एक ऐसा अटूट रिश्ता होता है, जिसे न तो कोई तोड़ पाता है और न ही कोई भूला पाता है।


व्यस्तता जहाँ आज हमारे जीवन की पहचान सी बन गई है। अब जब हमें अपने पड़ोसियों से बात करने की फुरसत नहीं मिलती, ऐसे में अपने भाई या बहन से मिलने का वक्त निकाल पाना तो बहुत ही मुश्किल होता है।

इस आपाधापी भरे जीवन में व्यस्तता के कारण जहाँ हर रिश्ता हमारे लिए एक औपचारिकता बनता जा रहा है, वहीं स्नेह व प्रेम के इस रिश्ते का वजूद अब तक वैसा ही काबिज है।

बहन की हर दुख-तकलीफ में भाई का दौड़े-दौड़े आना उनके असीम व अगाध प्यार का ही परिचायक है। यह रिश्ता खुदा का बनाया एक ऐसा पाक रिश्ता है, जिसमें धन-दौलत या शानो-शौकत को नहीं देखा जाता बल्कि प्यार की गहराइयों को आँका जाता है।

आज हमारे बीच दूरियाँ भले ही बहुत अधिक बढ़ गई हैं परंतु हमारे दिलों में अपने भाई या बहन के प्रति सम्मान व आदरभाव कम नहीं हुआ है।

आज भी हर राखी पर बहन को अपने लाडले वीर के आने का इंतजार रहता है और हर भाई भी बड़ी ही शिद्दत से अपनी बहन के लिए उपहार लाता है। बचपन के वो झगड़े व शरारतें अब इस उम्र में भी होती है पर अब वो आँखों में आँसू की बजाय होंठों पर हँसी लाती हैं।

बहन की हर दुख-तकलीफ में भाई का दौड़े-दौड़े आना उनके असीम व अगाध प्यार का ही परिचायक है। यह रिश्ता खुदा का बनाया एक ऐसा पाक रिश्ता है, जिसमें धन-दौलत या शानो-शौकत को नहीं देखा जाता बल्कि प्यार की गहराइयों को आँका जाता है।

समय की तर्ज पर बदलते रिश्तों का साथ यह रिश्ता भी बदला पर आज भी इस रिश्ते में कड़वाहट व बैर का समावेश नहीं हुआ। अब भी यह एक अहसास बनकर हमें प्रेम की डोर से बाँधे रखे हैं।

Wednesday, December 16, 2009

तू बहुत-बहुत याद आती है।

पढ़-लिखकर कुछ बन सकूँ यह तेरा सपना था, जो तूने मेरे लिए देखा था। मैंने भी ईश्वर की असीम कृपा व बड़ों के आशीर्वाद से वह पूर्ण किया। कंपनी की ओर से जब  भेजने का पत्र मिला तो मैं बहुत खुश हुआ, पर तेरी हँसी व प्रसन्नाता के पीछे छुपी उदासी कोमैंने भाँप लिया था।


डैडी ने मेरा हौसला बढ़ाया व कहा, सब ठीक हो जाएगा। फिर तैयारी का दौर शुरू हुआ व तूने मेरा बैग वैसे ही अरेंज किया, जैसे कभी स्कूल बैग किया करती थी। दस-दस बार चीजें संभालने की नसीहत तो कभी यह करना, वह मत करना की लंबी लिस्ट। कभी-कभी खीज पड़ता तो तेरी आँखों से गंगा-जमुना बह उठती। वह क्षण भी आया, जब मैंने एयरपोर्ट पर तुझसे आशीर्वाद ले बिदा होना चाहा। तब तेरे सब्र का बाँध टूट गया व तू मुझसे लिपट फूट-फूटकर रो रही थी। मैं अचानक बहुत बड़ा हो गया था, तुझे समझा रहा था।


डैडी इधर-उधर देख खुद को कमजोर होने से बचा रहे थे और तेरे कंधे पर हाथ रख तुझे समझा भी रहे थे। मेरे लिए भी वे क्षण भारी थे, पर मन पंछी की तरह पंख फैला सुदूर आकाश में उड़ने के जुनून से भरा था। तुझसे अलग होते समय वही बचपन का एहसास जाग उठा, जब केजी में पहली बार तूने मुझे जबर्दस्ती क्लास में बैठाया था। जी में आया, वैसे ही गला फाड़कर रोऊँ, पर दिल कट्ठा कर अपनी राहें चल दिया। तेरा आँसुओंभरा चेहरा बहुत देर पीछा करता रहा, पर आकाश में उड़ान भरने की अनुभूति भी अवर्णनीय थी।

धीरे-धीरे यहाँ के माहौल में स्वयं को ढाल रहा हूँ। बचपन से तू एक-एक काम सिखाने के लिए पीछे पड़ती थी व मैं टालता रहता था। अब जब हर काम हाथ से करने पड़ते हैं तो वही सब याद आता है। स्वयं ही रूम क्लीन करने पड़ते हैं, डस्टिंग करनी पड़ती है, सुबह-शाम लंच वडिनर की व्यवस्था करनी पड़ती है। अब तुझसे फोन पर पूछ-पूछकर बहुत कुछ बनाना सीख गया हूँ। फ्रोजन रोटी खा-खाकर थक गया हूँ। तेरे हाथ के गरम फुलके, कढ़ी, पातळभाजी, पूरणपोळी बहुत याद आते हैं। होटल का खाना खाने की जिद करने वाला मैं घर के खाने को तरसने लगा हूँ।
 
फोन पर हम दोनों एक-दूसरे को सांत्वना देने के लिए 'सब अच्छा है' कहते रहते हैं। वेब कैमरे पर भी मेरी कोशिश होती है कि खुश दिखूँ ताकि तुझे अच्छा लगे, यही तेरी कोशिश भी मुझे साफ दिखाई देती है। पर आज स्वयं को रोक नहीं पा रहा हूँ खत लिखने को। 'वेस्ट ऑफ टाइम' मान तेरी हँसी उड़ाने वाला मैं अब तेरी चिट्ठी का इंतजार करता रहता हूँ। तेरी चिट्ठी को चार-चार बार पढ़ता रहता हूँ।


अक्षरों को दोहराता रहता हूँ व आज लिखने बैठा हूँ। फोन पर तेरा पहला प्रश्न होता है, 'कैसा है, क्या खाया, ठीक से खाता है या नहीं?' आज सच लिखता हूँ, कुछ भी खाता हूँ उससे पेट तो भर लेता हूँ पर तृप्ति का वह एहसास हो ही नहीं पाता, जो तेरे हाथ का बना खाना देता था। थकान मिटती ही नहीं, क्योंकि सर रखने के लिए जब-तब तेरी गोद यहाँ उपलब्ध नहीं है। सात समुंदर पार आकर सुख-सुविधाएँ,संपन्नाता तो पा ली हैं, पर दिल का सुकून खो गया है, क्योंकि मेरा बचपन तेरे पास ही छूट गया है।

अपना घर-आँगन, बगीचा बहुत-बहुत याद आते हैं। लगता है, काश! पंख होते तो उड़कर तेरे पास आ तेरे आँचल में छिप जाता। अचानक आईने में अपनी शक्ल देखता हूँ तो उसमें अपने चेहरे में तेरा चेहरा ढूँढ ही लेता हूँ व मुस्कुराकर फिर काम में लगजाता हूँ। तू अपना खयाल रखना व मुझे बहुत याद करना, क्योंकि  तू बहुत-बहुत याद आती है।

दास्ताँ भाई-बहन के प्यार की।

अतीत के गलियारों में से अक्सर आवाजें आती हैं बचपन की शरारतों की। हमारी स्मृति में धुँधली सी पर यादगार तस्वीरें होती हैं अपने बचपन की।

भाई-बहन की उन शरारतों की, जिसे याद करते ही चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है और खुल जाती है दास्ताँ भाई-बहन के प्यार की।

भाई-बहन का नाता प्रेम व स्नेह का होता है। इस रिश्ते में हमारा बचपन कैद होता है, जिसे हमने बे‍फिक्र होकर पूरे आनंद से जिया है। हालाँकि आज हम रिश्तों के कई पायदानों पर चढ़ गए हैं परंतु हम अपना सुनहरा बचपन नहीं भूले हैं।

आधुनिकता की आँधी की मार झेलकर भी यह रिश्ता आज भी उतना ही पाक़ है। आज भी भाई-बहन में उतनी आत्मीयता और अपनापन है कि एक का दर्द दूसरे को महसूस होता है। दोनों एक-दूसरे के दु:ख-दर्द व खुशियों में शरीक होकर उन्हें सहारा देते हैं

यह ‍रिश्ता आत्मीयता का रिश्ता होता है जिसे दिल से जिया जाता है। बचपन तो भाई-बहन की नोक-झोंक व शरारतों में गुजर जाता है।

भाई-बहन के रिश्ते की अहमियत तो हमें तब पता लगती है जब हम युवा होते हैं। जब हमारे बच्चे होते हैं। उनकी शरारतें हमें फिर से अपने बचपन में ले जाती हैं।

हर रक्षाबंधन पर बहन, भाई का बेसब्री से इंतजार करती है और भाई भी मीलों के फासले तय करके अपनी बहन को लेने जाता है। यही नहीं हर त्योहार पर बधाइयाँ देकर एक-दूजे के सुखी जीवन की कामना करते हैं।

माँ-बाप की डॉट-फटकार से अपने प्यारे भाई को बचाना हो या चुपके-चुपके बहन को कहीं घुमाने ले जाना हो... यह सब भाई-बहन को बखूबी आता है।

बचपन में हमने भी बहुत सारे बहाने किए, माँ-बाप की डॉट भी खाई पर वही किया जो हमें पसंद था। हमारी उन शरारतों में भी एक प्यार छुपा था, जिसकी तलाश आज भी हम करते हैं।

आधुनिकता की आँधी की मार झेलकर भी यह रिश्ता आज भी उतना ही पाक़ है। आज भी भाई-बहन में उतनी आत्मीयता और अपनापन है कि एक का दर्द दूसरे को महसूस होता है। दोनों एक-दूसरे के दु:ख-दर्द व खुशियों में शरीक होकर उन्हें सहारा देते हैं और ऐसा होना भी चाहिए।

यह प्यार ताउम्र बना रहे और भाई-बहन एक-दूसरे का साथ जीवनभर निभाएँ। ऐसी ही आशा है। रिश्ते की इस डोर को प्यार व समझदारी से थामें रखें ताकि रिश्तों में मधुरता सदैव बरकरार रहे।
माँ-बाप अपने बच्चे के लिए जमाने भर के खिलौने खरीदते हैं जो कभी न कभी टूट जाते हैं लेकिन अपने बच्चे को छोटा भाई या बहन देकर वह उसे ऐसा जीता जागता खिलौना देते हैं जो उनके दुनिया से जाने के बाद भी बच्चे को अकेलेपन का अहसास नहीं होने देता।


जिस भाई या बहन से हम बचपन में लड़ते झगड़ते हैं और खेलते हैं उसके बारे में शायद ही कभी गहराई से यह सोचा जाता हो कि वह माँ- बाप की कितनी खूबसूरत देन है।

 माँ-बाप तो हमेशा दुनिया में नहीं बैठे रहेंगे। तो उनके जाने के बाद कोई तो ऐसा हो जिससे इंसान जिंदगी में अपना सुख-दुख बाँट सके और इसके लिए भाई या बहन से बेहतर रिश्ता कोई नहीं हो सकता है।

 भाई या बहन के साथ बचपन गुजारने वाले बच्चे अधिक आत्मविश्वासी कुशाग्र बुद्धि तथा सामंजस्य बिठाने वाले होते हैं।
 आज एक तो कामकाजी माता-पिता के पास बच्चों के लिए वैसे ही समय नहीं है और उस पर यदि बच्चा घर में भी अकेला है तो वह किससे अपनी भावनाएँ व्यक्त करे किसके साथ खेले।

 भले ही माँ- बाप कितना भी क्वालिटी समय बच्चे के साथ गुजारें लेकिन वह बच्चे के हमउम्र नहीं बन सकते। जो साथ बच्चे को अपने भाई बहन के साथ मिलता है उसकी किसी भी खिलौने से भरपाई नहीं की जा सकती।

सगे भाई बहनों में आपसी प्रतिद्वंद्विता भी होती है लेकिन यह स्वाभाविक है और समय के साथ यह अपने आप समाप्त हो जाती है। लेकिन भाई या बहन का रिश्ता शायद माँ-बाप के रिश्ते के बाद दुनिया का सबसे खूबसूरत रिश्ता होता है।

 वे बच्चे बेहद खुशनसीब हैं जिनके भाई या बहन हैं क्योंकि माँ या बाप के बाद कोई भी बच्चा खुद को सबसे अधिक सुरक्षित अपने भाई या बहन की संगत में ही महसूस करता है।

बेटी को सीख

जी हाँ, आप भी जरूर चाहेंगी कि आपकी बिटिया रानी भी अपने ससुराल जाकर वहाँ राज करे। ससुराल का हर सदस्य उसे भरपूर सम्मान और स्नेह दे। हर बात पर उसकी राय ली जाए! तो आपको चाहिए कि बेटी को कुछ सबक सीख में दें जो उसके ससुराल वालों को अपना बनाने में काम आएँ।

सबसे प्रमुख सबक तो यह होना चाहिए कि वह शादी के बाद कभी भी अपने पति को गुलाम समझने की भूल न करे। वह उसका जीवनसंगी है, उसके हर दुःख और सुख में बराबरी से साथ निभाए। वह याद रखे कि हर इंसान के जीवन में सुख बाँटने हजारों लोग आते हैं पर दुःख में सबसे महत्वपूर्ण साथ जीवनसाथी का ही होता है।

रिश्ते की बुनियाद सम्मान व इज्जत पर ही टिकी होती है। इसकी बात उसे और उसकी इसे बताने की आदत से भी बेटी को बचाकर रखें। ये बातें संयुक्त परिवार में आग में घी का काम करती हैं, जो कि गृहस्थ जीवन के लिए बहुत ही खतरनाक साबित होता है।

घर के हर एक सदस्य की बात ध्यान से सुनें। कोई बात उसे अच्छी न भी लगे तो उसका विरोध करने का तरीका बेहद ही सभ्य और शालीन होना चाहिए। गुस्से में इंसान कुछ भी कह जाता है और बात बढ़ जाती है। हाँ लेकिन गलत बात को वो बिलकुल भी सहन न करे बल्कि सही तरीके से उसका प्रतिकार करे।

 बिटिया को उसकी सास, देवर या ननद के खिलाफ कोई यह कहकर भड़का रहा है कि मैं तो तेरे भले के लिए ही कह रही थी। ऐसी स्थिति में बेटी को चाहिए कि सुनी-सुनाई बातों में आकर एकदम से गुस्से में भड़क कर अपनी गृहस्थी बर्बाद न करे। थोड़ी चतुराई से भाँपने की कोशिश करे कि क्या ऐसा वाकई में है।

चुपचाप रहकर ही माहौल का जायजा लें। उसके बाद ही अगला कदम सोच-समझकर उठाएँ। पर हाँ उससे पहले खुद को एक बार जरूर परख लें कि कहीं गलती उसकी भी तो नहीं है। जहाँ तक हो सके अपनी खामियाँ पहले दूर करने की सीख  बेटी को दें।

 बेटी चाहे किसी भी क्रम की बहू बने आखिर वो उस घर की बहू ही कहलाएगी उसके मन में हीनभावना न भरें कि वह बड़ी बहू है तो उसी को सबकी देखभाल करनी है, या छोटी बहू है तो उसे सभी का मान-सम्मान करते रहना पड़ेगा, सभी की सेवा करनी पड़ेगी।

उसे यह सीख दें कि वह हर रिश्ते का सम्मान करे। सबके के साथ इज्जत से पेश आए। रिश्ते की बुनियाद सम्मान व इज्जत पर ही टिकी होती है। इसकी बात उसे और उसकी इसे बताने की आदत से भी बेटी को बचाकर रखें। ये बातें संयुक्त परिवार में आग में घी का काम करती हैं, जो कि गृहस्थ जीवन के लिए बहुत ही खतरनाक साबित होता है। हर सदस्य की छोटी-मोटी मदद जरूर करें। केवल बड़ों की सेवा से ही नहीं छोटों की मदद करके भी  बेटी उनका दिल जीत सकती है।

उसे अपनी चीजों को दूसरों के साथ बाँटना भी सिखाएँ तभी दूसरे भी अपनी चीजें आपकी बेटी को उपयोग करने देंगे। हमारे देश में रीति-रिवाज हर परिवार के अलग-अलग होते हैं। बिटिया को चाहिए कि अपने मायके के रीति-रिवाज ससुराल में ना थोपे और बात-बात पर अपने मायके की प्रशंसा न करें। फिर देखिए आपकी बेटी अपने ससुराल में कैसे राज करेगी और उसके ससुराल का हर सदस्य आपकी बेटी के गुण गाते नहीं थकेगा।

Monday, December 7, 2009

निभाई है यहाँ हमने मोहब्बत भी सलीके से  दिए जो रंज़ो-ग़म इसने, लगाए हमने सीने से

जो टूटे शाख से यारों अभी पत्ते हरे हैं वो  यकीं कुछ देर से होगा नहीं अब दिन वो पहले से

हमेशा ज़िंदगी जी है यहाँ औरों की शर्तों पर  मिले मौका अगर फिर से जिऊँ अपने तरीके से

न की तदबीर ही कोई , न थी तकदीर कुछ जिनकी  सवालों और ख्यालों मे मिले हैं अब वो उलझे से।

'ख्याल' अपनी ही करता है कहाँ वो मेरी सुनता है   निभाई है यहाँ हमने मोहब्बत भी सलीके
ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजिए।


इक आग का दरिया है और डूब के जाना है॥

 शेर प्रेम की जटिलता को समझाने के लिए काफी है। दुनिया में सभी प्रेम करते हैं, पर बहुत ही कम लोग हुए हैं, जिन्होंने प्यार को ठीक तरह से समझा है। जिन्होंने समझा, उन्होंने अपने प्यार को नया आयाम दिया और उसे दुनिया के सामने आदर्श बनाकर प्रस्तुत किया।

आज के दौर में प्यार फैशन की तरह हो गया है और हर कहीं आपको ऐसे प्रेमी युगल मिल जाएँगे जो दुनिया वालों के तमाम उसूल और रीति-रिवाज ताक में रखकर एक-दूसरे को प्रेम करते हैं। पर क्या सभी प्रेमी अपने साथी के साथ प्रेम की तीव्रता बनाएं रखते हैं या वक्त की दीमक उनके प्रेम को खोखला कर देती है।

प्रेम इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि लैला-मजनू, हीर-रांझा, सोहनी-महिवाल, आदि सभी ने प्रेम क्षेत्र में झंडे गाड़े, पर प्रेम की निश्चित परिभाषा कोई न दे पाया। ऐसा शायद इसलिए भी हुआ कि ये लोग प्रेम की महान अनुभूति से ओत-प्रोत थे, इसलिए ये उसे निश्चित शब्दों में बाँधना नहीं चाहते थे। वे प्रेम के असीम अहसास को सिर्फ महसूस करना चाहते थे, न कि उसे किसी सीमा में बाँधना।

आप भी किसी से प्यार करते हैं तो, जरूर जानना चाहेंगे कि प्यार होता क्या है। यूँ तो प्यार को परिभाषित करना बहुत ही कठिन है, क्योंकि प्यार वो अनुभूति है, जिसे शब्दों में बयाँ करना मुश्किल है। फिर भी हमने इस विषय पर विश्व के कुछ महान विचारकों के विचार नीचे दिए हैं, जो आपको प्रेम को समझने में सहायता करेंगे।

'सच्चा प्रेम कभी प्रति-प्रेम नहीं चाहता।'

कबीरदास



'पुरुष, प्यार अक्सर और थोड़ा करता है, किंतु स्त्री, प्यार सौभाग्य से और स्थाई करती है।'

आचार्य रजनीश 'ओशो'



'जिस प्यार में प्यार करने की कोई हद नहीं होती और किसी तरह का पछतावा भी नहीं होता, वही उसका सच्चा रूप है।'

मीर तकी मीर



'प्यार एक भूत की तरह है, जिसके बारे में बातें तो सभी करते हैं, पर इसके दर्शन बहुत कम लोगों को हुए हैं।'

सिकंदर



'प्रेम कभी दावा नहीं करता, वह हमेशा देता है। प्रेम हमेशा कष्ट सहता है, न कभी झुंझलाता है और न ही कभी बदला लेता है।'

महात्मा गाँधी



'खूब किया मैंने दुनिया से प्रेम और मुझसे दुनिया ने, तभी तो मेरी मुस्कुराहट उसके होठों पर थी और उसके सभी आँसू मेरी आँखों में।'

खलील जिब्रान



'प्रेम आँखों से नहीं ह्रदय से देखता है, इसीलिए प्रेम को अंधा कहा गया है।'

शेक्सपीयर



'प्रेम के स्पर्श से हर कोई कवि बन जाता है।'

अफलातून



'जहाँ प्रेम है, वहीं जीवन का सही रूप है।'

अरस्तु



'प्यार आत्मा की खुराक है।'

कंफ्यूशियस



'प्यार समर्पण और जिम्मेदारी का दूसरा नाम है।'

बेकन



'जीवन में प्रेम का वही महत्व है जो फूल में खुशबू का होता है।'

जॉर्ज बनार्ड शॉ

Sunday, December 6, 2009

बेटियाँ शुभकामनाएँ हैं,  बेटियाँ पावन दुआएँ हैं।

बेटियाँ जीनत हदीसों की,  बेटियाँ जातक कथाएँ हैं।

बेटियाँ गुरुग्रंथ की वाणी,  बेटियाँ वैदिक ऋचाएँ हैं।

जिनमें खुद भगवान बसता है, बेटियाँ वे वन्दनाएँ हैं।

त्याग, तप, गुणधर्म, साहस की बेटियाँ गौरव कथाएँ हैं।

मुस्कुरा के पीर पीती हैं, बेटी हर्षित व्यथाएँ हैं।

लू-लपट को दूर करती हैं, ND बेटियाँ जल की घटाएँ हैं।

दुर्दिनों के दौर में देखा,     बेटियाँ  संवेदनाएँ हैं।

गर्म झोंके बने रहे बेटे,  बेटियाँ ठण्डी हवाएँ हैं।

Saturday, December 5, 2009

शरद रात्रि में,


प्रश्नाकुल मन,

बहुत उदास,

कहता है मुझसे,

उठो, चाँद से बातें करो

और मैं,

बहने लगती हूँ

श्वेत चाँदनी में, तब,

तुम बहुत याद आते हो।


भीगी चाँदनी में

ओस की

हर बूँद

तुम्हारी याद लगती है

जिसे छुआ नहीं जा सकता।
ये रात है और अकेलापन  


तारे टिमटिमाते हैं और मेरे अकेलेपन को

और अकेला करते हैं

प्यार के पल कितने कम हैं, कितने छोटे

और अकेलेपन की रातें कितनी लंबी और सूनी

मैं जानता हूँ आसमान की गोद में

ये तारे टिमटिमाते हुए कितने सुंदर लगते हैं



लेकिन तुम्हारे बगैर यह रात एक सूनी है जिसने मुझे जकड रखा है

धीरे-धीरे मेरी आँखें मूंद जाएँगी और तुम जान भी नहीं पाओगी



meरी जिंदगी कितनी छोटी है  और तुम कितनी दूर...
मैं तुम्हें पुकारता हूँ, मैं तुम्हें पुकारता हूँ और मेरी आवाज सूनेपन के जंगल में,

पागलों की तरह भटकती रहती है,

मैं तुम्हें पुकारता हूँ,

औऱ मेरी आवाज छटपटाती हुई,

एक नदी में डूब जाती है,

मैं तुम्हें पुकारता हूँ,

और मेरी आवाज खिले फूल को चूमकर,



एक गहरी खाई में खो जाती है मैं तुम्हे पुकारता हूँ  मैं तुम्हें पुकारता हूँ मैं तुम्हें पुकारता हूँ

पर तुम सात समंदर पार हँसती हुई  एक चट्टान पर बैठी गुनगुना रही हो मैं तुम्हें पुकारता हूँ

और मेरा गला रूंधा हुआ है तुम्हें बार-बार पुकारते हुए एक दिन  और मैं हमेशा हमेशा के लिए मौन हो जाऊँगा

तुम आओगी तो मुझे नहीं पाओगी   मेरे मौन में खिला हुआ एक छोटा सा सुंदर फूल पाओगी।
पहली नजर में प्यार कभी हो ही नहीं सकता, वह तो एक आकर्षण है एक दूसरे के प्रति, जो प्यार की पहली सीढ़ी से भी कोसों दूर है। जैसे दोस्ती अचानक नहीं हो सकती, वैसे ही प्यार भी अचानक नहीं हो सकता। प्यार भी दोस्ती की भाँति होता है, पहले पहले अनजानी सी पहचान, फिर बातें और मुलाकातें। सिर्फ एक नए दोस्त के नाते, इस दौरान जो तुम दोनों को नजदीक लेकर आता है वह प्यार है। कुछ लोग सोचते हैं कि अगर मेरी मेरे प्यार से शादी हो जाए तो मेरा प्यार सफल, नहीं तो असफल। ये धारणा मेरी नजर से तो बिल्कुल गलत है, क्योंकि प्यार तो नि:स्वार्थ है, जबकि शरीर को पाना तो एक स्वार्थ है। इसका मतलब तो ये हुआ कि आज तक जो किया एक दूसरे के लिए वो सिर्फ उस शरीर तक पहुँचने की चाह थी, जो प्यार का ढोंग रचाए बिन पाया नहीं जा सकता था।


मेरी नजर में तो प्यार वही है, जो एक माँ और बेटे की बीच में होता है, जो एक बहन और भाई के बीच में या फिर कहूँ बुल्ले शाह और उसके मुर्शद के बीच था। ज्यादातर लड़के और लड़कियाँ तो प्यार को हथियार बना एक दूसरे के जिस्म तक पहुँचना चाहते हैं, अगर ऐसा न हो तो दिल का टूटना किसे कहते हैं, उसने कह दिया मैं किसी और से शादी करने जा रही हूँ या जा रहा हूँ, तो इतने में दिल टूट गया। सारा प्यार एक की झटके में खत्म हो गया, क्योंकि प्यार तो किया था, लेकिन वो रूहानी नहीं था, वो तो जिस्म तक पहुँचने का एक रास्ता था, एक हथियार था। अगर वो जिस्म ही किसी और के हाथों में जाने वाला है तो प्यार किस काम का।

सच तो यह है कि प्यार तो रूहों का रिश्ता है, उसका जिस्म से कोई लेना देना ही नहीं, मजनूँ को किसी ने कहा था कि तेरी लैला तो रंग की काली है, तो मजनूँ का जवाब था कि तुम्हारी आँखें देखने वाली नहीं हैं। उसका कहना सही था, प्यार कभी सुंदरता देखकर हो ही नहीं सकता, अगर होता है तो वह केवल आकर्षण है, प्यार नहीं। माँ हमेशा अपने बच्चे से प्यार करती है, वो कितना भी बदसूरत क्यों न हो, क्योंकि माँ की आँखों में वह हमेशा ही दुनिया का सबसे खूबसूरत बच्चा होता है।

प्यार तो वो जादू है, जो मिट्टी को भी सोना बना देता है। प्यार वो रिश्ता है, जो हमको हर पल चैन देता है, कभी बेचैन नहीं करता, अगर कुछ बेचैन करता है तो वो हमारा शरीर को पाने का स्वभाव। जिन्होंने प्यार के रिश्ते को जिस्मानी रिश्तों में ढाल दिया, उन्होंने असल में प्यार का असली सुख गँवा दिया। आज उनको वह पहले की तरह उसका पास बैठकर बातें करना बोर करने लगा होगा, अब उसको निहारने की इच्छा मर गई, क्योंकि उसके शरीर को पाने के पहले तो उसको निहारते ही आए हैं, अब उसमें नया क्या है, जिसको निहारें।

एक वो जिन्होंने प्यार को हमेशा रूह का रिश्ता बनाकर रखा, और जिस्मानी रिश्तों में उसको ढलने नहीं दिया, उनको आज भी वो प्यार याद आता है, उसकी जिन्दगी में आ रहे बदलाव उनको आज भी निहारते हैं। उसको कई सालों बाद फिर निहारना आज भी उनको अच्छा लगता है। रूहानी प्यार कभी खत्म नहीं होता। वो हमेशा हमारे साथ कदम दर कदम चलता है। वो दूर रहकर भी हमको ऊर्जावान बनाता है।

Monday, November 30, 2009

हाँ पापा, मैंने प्यार किया था


उसी लड़के से

जिसे आपने मेरे लिए ढूँढा था।



उसी लड़के से

जो बेटा था आपके ही मित्र का।

हाँ पापा, मैंने प्यार किया था बस उसी से।



फिर क्या हुआ?

क्यों नहीं बन सकी मैं उसकी और वो मेरा?



मैंने तो एक अच्छी बेटी का

निभाया था ना फर्ज?

जो तस्वीर लाकर रख दी सामने

उसी को जड़ लिया था अपने दिल की फ्रेम में।



फिर क्यों हुआ ऐसा कि

नहीं हुआ उसे मुझसे प्यार?



क्या साँवली लड़कियाँ

नहीं ब्याही जाती इस देश में?



क्यों लिखते हैं कवि झूठी कविताएँ?

अगर होता जो मुझमें सलोनापन तो

क्या यूँ ठूकरा दी जाती

बिना किसी अपराध के?



पापा, आपको नहीं पता

कितना कुछ टूटा था उस दिन

जब सुना था मैंने आपको यह कहते हुए

'बस, थोड़ा सा रंग ही दबा हुआ है मेरी बेटी का

बाकि तो कुछ कमी नहीं।



उफ, मैं क्यों कर बैठी उस शो-केस में रखे

गोरे पुतले से प्यार?



मुझे देख लेना था

अपने साँवले रंग को एक बार।



सारी प्रतिभा, सारी सुघड़ताएँ

बस एक ही लम्हे में सिकुड़ सी गई थी।

और फैल गया था उस दिन

सारे घर में मेरा साँवला रंग।



कोई नहीं जानता पापा

माँ भी नहीं।

हाँ, मैंने प्यार किया था

उसी लड़के से

जिसे ढूँढा था आपने मेरे लिए।

PYAR

प्यार किया नहीं जाता, बस हो जाता है। मशहूर शायर मिर्जा गालिब के शब्दों में, 'इश्क वो आतिश है गालिब, जो लगाए न लगे और बुझाए न बुझे' और जब इश्क हो ही गया है तो कब तक इसे छिपाकर रखा जा सकता है। कहते हैं कि प्यार तो प्यार करने वाले की आँखों से झलकता है। कहा भी गया है-




'इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते।'



प्यार, इश्क और मोहब्बत महज शब्द नहीं हैं। इन शब्दों में निहित हैं कई अहसास और कई कड़वी-मीठी स्मृतियाँ। कई ऐसे अहसास जो कि कभी तो नयनों को सजल कर दें तो कभी होठों पर एक मुस्कुराहट तैर जाए। प्यार तो एक फूल के माफिक है, जिस तरह फूल अपनी खुशबू से पूरी बगिया को महका देता है, उसी तरह प्यार रूपी फूल भी अपनी स्मृति रूपी खुशबू से जीवन की बगिया को सुगंधित कर देता है।



पहला प्यार तो पहली बारिश की तरह है। जिस तरह बारिश की बूँदें तपती धरती के कलेजे पर पड़कर शीतलता प्रदान करने के साथ-साथ अपनी सौंधी सुगंध से मानव मन को महका देती हैं। बिल्कुल उसी तरह पहले प्यार की मधुर स्मृतियाँ जब प्यार करने वालों के मन मस्तिष्क पर पड़ती हैं तो प्यार करने वालों के हृदय को हर्ष विभोर कर देती हैं।



जिंदगी के सफर में चलते-चलते नजरें मिलीं और हो गया प्यार। बस होना था सो हो गया। और प्यार के अथाह समंदर में तैरते, डूबते हुए कुछ ऐसे आनंदित पलों को महसूस भी कर लिया जो किसी भी अमूल्य निधि से बढ़कर हैं लेकिन जिस तरह एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी तरह प्यार के भी दो पहलू होते हैं। सुखद और दुखद।



लेकिन यह क्या एक ही राह पर चलते-चलते पता नहीं क्या हुआ, किसने वफा निभाई और किसने की बेवफाई। शायद किसी ने न की हो पर, कुछ परिस्थितियाँ ही ऐसी बन आईं कि छूट गया हो एक-दूसरे का हाथ, एक-दूसरे का साथ। प्यार की राहों में उतरना तो बड़ा आसान है, परन्तु उन राहों पर निरंतर साथ चलते रहना बड़ा ही मुश्किल है गालिब कहते हैं,



ये इश्क नहीं आसां, इतना समझ लीजै

एक आग का दरिया है और डूबकर जाना है।



इसलिए बड़े खुशनसीब होते हैं वे लोग जिनका पहला प्यार ही उनके जीवन के सफर में हमसफर बनकर मंजिल तक साथ रहता है। कुछ लोगों का पहला प्यार बीच सफर में ही अपना दामन छुड़ाकर अपनी राह बदल लेता है और बदले में दे जाता है, चंद आँसू, मुट्ठीभर यादें और कुछ आहें।



फिर जब प्यार जिंदगी को इस दोराहे पर लाकर खड़ा कर दे तो अच्छा हो कि उस सफर को उसी मोड़ पर छोड़, अपनी राह बदलकर अपनी मंजिल की तलाश कर ली जाए।



'वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन,

उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा।'



जो लोग अपने प्यार को पा लेते हैं वे तो ताउम्र ही ईश्वर का शुक्रिया अदा करते हैं, परन्तु वे लोग जो कि किसी कारणवश अपने प्यार को नहीं पा सके वे अक्सर ही खुद से, औरों से और ईश्वर से यही शिकायत करते हैं :



'जुस्तजू जिसकी थी, उसको तो न पाया हमने'



परन्तु यह शिकायत, यह शिकवा क्यों? यह दुनिया तो एक मेले के समान है और व्यक्ति उसमें घूमने या भटकने वाला प्राणी मात्र। ईश्वर हम सबका परमपिता परमात्मा है। जिस तरह एक बच्चा मेले में घूमते हुए हर उस खिलौने को लेने की जिद करता है, लालायित रहता है जो उसे पसंद आता है लेकिन एक पिता अपने बच्चे को वही खिलौना दिलाता है जो उसके लिए बना होता है और जो नुकसानदेह नहीं होता। ठीक उसी तरह व्यक्ति भी वही सब कुछ पाना चाहता है जो कि उसके मन को लुभाता है, परंतु ईश्वर उसे वही देता है जो उसने उसके लिए बनाया होता है।



अंततः ईश्वर ने उन प्यार करने वालों को, शिकायत करने वालों को और सबको वही दिया जो कि उसने उनके लिए बनाया है। फिर कैसे गिले-शिकवे। जो मिल न सका या जिसे पा ही न सके, उसका गम मनाने से अच्छा हो जिसे पा लिया है, उसको पाने की खुशियाँ मनाई जाएँ। वही आपका है जिसे ईश्वर ने आपके लिए बना दिया है। फिर ऐसा भी तो हो सकता है कि आपने ही गलत दिल के दरवाजे पर दस्तक दी हो और फिर-



कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता

कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता।
आओ इश्क की बातें कर लें, आओ खुदा की इबादत कर लें,


तुम मुझे ले चलो कहीं पर, जहाँ हम खामोशी से बातें कर लें!!!



लबों पर कोई लफ्ज़ न रह जाए, खामोशी जहाँ खामोश हो जाए ;

सारे तूफान जहाँ थम जाए, जहाँ समंदर आकाश बन जाए।


तुम अपनी आँखों में मुझे समां लेना, मैं अपनी साँसों में तुम्हें भर लूँ,

ऐसी बस्ती में ले चलो, जहाँ, हमारे दरमियाँ कोई वजूद न रह जाए!


कोई क्या दीवारें बनाएगा, हमने अपनी दुनिया बसा ली है,

जहाँ हम और खुदा हो, उसे हमने मोहब्बत का आशियाँ नाम दिया है!


मैं दरवेश हूँ तेरी जन्नत का, रिश्तों की क्या कोई बातें करे,

किसी ने हमारा रिश्ता पूछा, मैंने दुनिया के रंगों से तेरी माँग भर दी


आओ इश्क की बातें कर लें, आओ खुदा की इबादत कर लें,

तुम मुझे ले चलो कहीं पर, जहाँ हम खामोशी से बातें कर लें!!!

PREM KI PAHECHAN

प्रेम में ईर्ष्या हो तो प्रेम ही नहीं है; फिर प्रेम के नाम से कुछ और ही  चल रहा है। ईर्ष्या सूचक है प्रेम के अभाव की। यह तो ऐसा ही हुआ, जैसा दीया जले और अँधेरा हो। दीया जले तो अँधेरा होना नहीं चाहिए। अँधेरे का न हो जाना ही दीए के जलने के जलने का प्रमाण है। ईर्ष्या का मिट जाना ही प्रेम का प्रमाण है। ईर्ष्या अँधेरे जैसी है; प्रेम प्रकाश जैसा है। इसको कसौटी समझना।


जब तक ईर्ष्या रहे तब तक समझना कि प्रेम प्रेम नहीं। तब तक प्रेम के नाम से कोई और ही खेल चल रहा है; अहंकार कोई नई यात्रा कर रहा है- प्रेम के नाम से दूसरे पर मालकियत करने का मजा, प्रेम के नाम से दूसरे का शोषण, दूसरे व्यक्ति का साधन की भांति उपयोग। और दूसरे व्यक्ति का साधन की भाँति उपयोग जगत में सबसे बड़ी अनीति है। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति साध्य है, साधन नहीं।

तो भूल कर भी किसी का उपयोग मत करना। किसी के काम आ सको तो ठीक, लेकिन किसी को अपने काम में मत ले आना। इससे बड़ा कोई अपमान नहीं है कि तुम किसी को अपने काम में ले आओ। इसका अर्थ हुआ कि परमात्मा को सेवक बना लिया। सेवक बन सको तो बन जाना, लेकिन सेवक बनाना मत।

असली प्रेम उसी दिन उदय होता है जिस दिन तुम इस सत्य को समझ पाते हो कि सब तरफ परमात्मा विराजमान है। तब सेवा के अत‍िरिक्त कुछ बचता नहीं। प्रेम तो सेवा है, ईर्ष्या नहीं। प्रेम तो समर्पण है, मालकियत नहीं।

 हम बड़े कुशल हैं। हम गंदगी को सुगंध छिड़ककर भुला देने में बड़े निपुण हैं। हम घावों के ऊपर फूल रख देने में बड़े सिद्ध हैं। हम झूठ को सच बना देने में बड़े कलाकार हैं।

जिससे नहीं बनती है उसके साथ भी हम प्रेम बतलाए जाते हैं। जिसको कभी चाहा नहीं है उसके साथ भी हम प्रेम बतलाए चले जाते हैं। प्रेम हमारी कुछ और ही व्यवस्था है - सुरक्षा, आर्थिक, जीवन की सुविधा।  इसी ढाँचे से अगर तुम तृप्त हो तो तुम्हारी मर्जी। इसी ढाँचे के कारण तुम परमात्मा को चूक रहे हो, क्योंकि परमात्मा प्रेम से मिलता है। प्रेम के अत‍िरिक्त परमात्मा के मिलने का और कोई द्वार नहीं है। जो प्रेम से चूका वह परमात्मा से भी चूक जाएगा।


 प्रेम में पहरा कहाँ? प्रेम में भरोसा होता है। प्रेम में एक आस्था होती है। प्रेम में एक अपूर्व श्रद्धा होती है। ये सब प्रेम के ही फूल हैं - श्रद्धा, भरोसा, विश्वास। प्रेमी अगर विश्वास न कर सके, श्रद्धा न कर सके, भरोसा न कर सके, तो प्रेम में फूल खिले ही नहीं। ईर्ष्या, जलन, वैमनस्य, द्वेष, मत्सर तो घृणा के फूल हैं। तो फूल तो तुम घृणा के लिए हो और सोचते हो प्रेम का पौधा लगाया है। नीम के कड़वे फल लगते हैं तुममें और सोचते हो आम का पौधा लगाया है। इस भ्रांति को तोड़ो।

 प्रेम सत्य तक जाने का मार्ग बन सकता है - उस प्रेम की, जिसकी तुम तलाश कर रहे हो, लेकिन जो तम्हें अभी तक मिला नहीं है। मिल सकता है, तुम्हारी संभावना है। और जब तक न मिलेगा तब तक तुम रोओगे, तड़पोगे, परेशान होओगे। जब तक तुम्हारे जीवन का फूल न खिले और जीवन के फूल में प्रेम की सुगंध न उठे, तब तक तुम बेचैन रहोगे। अतृप्त! तब तक तुम कुछ भी करो, तुम्हें राहत न आएगी, चैन न आएगा। खिले बिना आप्तकाम न हो सकोगे। प्रेम तो फूल है।
प्रेम अनंत का द्वार खोल देता है- अस्तित्व की शाश्वतता का द्वार। इसलिए अगर तुमने कभी सच में प्रेम किया है तो प्रेम को ध्यान की विधि बनाया जा सकता है। यह वही विधि है : 'प्रिय देवी, प्रेम किए जाने के क्षण में प्रेम में ऐसे प्रवेश करो जैसे कि वह नित्य जीवन हो।'
बाहर-बाहर रहकर प्रेमी मत बनो, प्रेमपूर्ण होकर शाश्वत में प्रवेश करो। जब तुम किसी को प्रेम करते हो तो क्या तुम वहाँ प्रेमी की तरह होते हो? अगर होते हो तो समय में हो, और तुम्हारा प्रेम झूठा है, नकली है। अगर तुम अब भी वहाँ हो और कहते हो कि मैं हूँ तो शारीरिक रूप से नजदीक होकर भी आध्यात्मिक रूप से तुम्हारे बीच दो ध्रुवों की दूरी कायम रहती है।

प्रेम में तुम न रहो, सिर्फ प्रेम रहे; इसलिए प्रेम ही हो जाओ। अपने प्रेमी या प्रेमिका को दुलार करते समय दुलार ही हो जाओ। अहंकार को बिलकुल भूल जाओ, प्रेम के कृत्य में घुल-मिल जाओ। कृत्य में इतने गहरे समा जाओ कि कर्ता न रहे।
और अगर तुम प्रेम में नहीं गहरे उतर सकते तो खाने और चलने में गहरे उतरना कठिन होगा, बहुत कठिन होगा। क्योंकि अहंकार को विसर्जित करने लिए प्रेम सब से सरल मार्ग है। इसी वजह से अहंकारी लोग प्रेम नहीं कर पाते हैं। वे प्रेम के बारे में बातें कर सकते हैं, गीत गा सकते हैं, लिख सकते हैं; लेकिन वे प्रेम नहीं कर सकते। अहंकार प्रेम नहीं कर सकता है।

 अपने को इस पूरी तरह भूल जाओ कि तुम कह सको कि मैं अब नहीं हूँ, केवल प्रेम है। तब हृदय नहीं धड़कता है, प्रेम ही धड़कता है। तब खून नहीं दौड़ता है, प्रेम ही दौड़ता है। तब आँखें नहीं देखती हैं, प्रेम ही देखता है। तब हाथ छूने को नहीं बढ़ते, प्रेम ही छूने को बढ़ता है। प्रेम बन जाओ और शाश्वत जीवन में प्रवेश करो।

प्रेम अचानक तुम्हारे आयाम को बदल देता है। तुम समय से बाहर फेंक दिए जाते हो, तुम शाश्वत के आमने-सामने खड़े हो जाते हो। प्रेम गहरा ध्यान बन सकता है - गहरे से गहरा। और कभी-कभी प्रेमियों ने वह जाना है

अग्नि पथ!

- हरिवंशराय बच्‍चन




अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!



वृक्ष हों भले खड़े,



हो घने, हो बड़े,



एक पत्र-छॉंह भी मॉंग मत, मॉंग मत, मॉंग मत!



अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!



तू न थकेगा कभी!



तू न थमेगा कभी!



तू न मुड़ेगा कभी!-कर शपथ! कर शपथ! कर शपथ!



यह महान दृश्‍य है-



चल रहा मनुष्‍य है



अश्रु-श्‍वेद-रक्‍त से लथपथ, लथपथ, लथपथ!



अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!

YAAD

याद आते रहे, दिल दुखाते रहे               वो रह रह के हमको सताते रहे
शक्ल अपनी ही लगने लगी अजनबी     आईने उलझनों को बढ़ाते रहे
वो नज़रें झुकाने की उनकी अदा         हम फ़रेबेमोहब्बत खाते रहे
जिस से गुज़रे थे हम सैकड़ों मर्तबा   हमारी मंज़िल वहीं वो बताते रहे
ऐसा छाया अंधेरों का हम पर सुरूर  शम्मेदिल रात दिन हम जलाते रहे
साहिले पर ग़म की लहरों के बीच     नाम उसका हम लिखते मिटाते रहे
कैसी दुनिया बनाई है तूने ख़ुदा          कैसी है जिसको निभाते रहे
दुश्मनों से मोहब्बत सी होने लगी     दोस्त ऐसे हमें आज़माते रहे

Monday, November 16, 2009

TUM MERE HO

तुम... जिंदगी का एहसास हो...कुछ सपनों की खुशबू हो कोई फरियाद हो किस से कहूँ ‍कि तुम मेरे हो

...किसी किताब में रखा कोई सूखा फूल हो किसी गीत में रुका हुआ कोई अंतरा हो किसी सड़क पर ठहरा हुआ मोड़ हो
तुम...किसी अजनबी रिश्ते की आंच हो अनजानी धड़कन का नाम हो किसी नदी में ठहरी हुई धारा हो

तुम...किसी आँसू में रुकी हुई सिसकी हो किसी खामोशी के जज्बात हो किसी मोड़ पर टूटा हुआ हाथ हो किससे कहूँ कि तुम मेरे हो

तुम...हाँ, मेरे अपने सपनों में तुम हो हाँ, मेरी आखिरी फरियाद तुम हो हाँ, मेरी अपनी जिंदगी का एहसास हो मैं तुम्हें कभी नहीं भूलूँगा कितुम मेरी चाहत का एक हिस्सा हो शायद, तुम मेरे हो तुम हाँ... तुम...हाँ, मेरे अपने सपनों में तुम हो हाँ, मेरी आखिरी फरियाद तुम हो हाँ, मेरी अपनी जिंदगी का एहसास हो कोई हाँ, तुम मेरे हो हाँ, तुम मेरे हो हाँ, तुम मेरे हो

PREM

प्रेम को अभिव्यक्त करने की सर्वोत्तम भाषा मौन है, क्योंकि प्रेम मानव मन का वह भाव है, जो कहने-सुनने के लिए नहीं बल्कि समझने के लिए होता है या उससे भी बढ़कर महसूस करने के लिए होता है। प्रेम ही मानव जीवन की नींव है। प्रेम के बिना सार्थक एवं सुखमय इंसानी जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती है। प्रेम की परिभाषा शब्दों की सहायता से संभव ही नहीं है।सारे शब्दों के अर्थ जहां जाकर अर्थरहित हो जाते हैं, वहीं से प्रेम के बीज का प्रस्फुटन होता है। वहीं से प्रेम की परिभाषा आरंभ होती है। प्रेम का अर्थ शब्दों से परे है।

प्रेम एक सुमधुर सुखद अहसास मात्र है। प्रेम की मादकता भरी खुशबू को केवल महसूस किया जा सकता है। प्रेम का अहसास अवर्णनीय है। इसलिए इस मधुर अहसास के विश्लेषण की भाषा को मौन कहा गया है। प्रेम को शब्द रूपी मोतियों की सहायता से भावना की डोर में पिरोया तो जा सकता है किंतु उसकी व्याख्या नहीं की जा सकती है क्योंकि जिसे परिभाषित किया जा सकता है, जिसकी व्याख्या की जा सकती है, वह चीज तो एक निश्चित दायरे में सिमटकर रह जाती है जबकि प्रेम तो सर्वत्र है। प्रेम के अभाव में जीवन कोरी कल्पना से ज्यादा कुछ नहीं।प्रेम इंसान की आत्मा में पलने वाला एक पवित्र भाव है। दिल में उठने वाली भावनाओं को आप बखूबी व्यक्त कर सकते हैं किंतु यदि आपके हृदय में किसी के प्रति प्रेम है तो आप उसे अभिव्यक्त कर ही नहीं सकते, क्योंकि यह एक अहसास है और अहसास बेजुबान होता है, उसकी कोई भाषा नहीं होती।

प्रेम में बहुत शक्ति होती है। इसकी सहायता से सब कुछ संभव है तभी तो प्यार की बेजुबान बोली जानवर भी बखूबी समझ लेते हैं।प्यार कब, क्यों, कहाँ, कैसे और किससे हो जाए, इस विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता। इसके लिए पहले से कोई व्यक्ति, विशेष स्थान, समय, परिस्थिति आदि कुछ भी निर्धारित नहीं है। जिसे प्यार जैसी दौलत मिल जाए उसका तो जीवन के प्रति नजरिया ही इंद्रधनुषी हो जाता है। उसे सारी सृष्टि बेहद खूबसूरत नजर आने लगती है। प्रेम के अनेक रूप हैं। बचपन में माता-पिता, भाई-बहनों का प्यार, स्कूल-कॉलेज में दोस्तों का प्यार, दाम्पत्य जीवन में पति-पत्नी का प्यार। प्रेम ही हमारी जीवन की आधारशिला है तभी तो मानव जीवन के आरंभ से ही धरती पर प्रेम की पवित्र निर्मल गंगा हमारे हर कदम के साथ बह रही है। किसी शायर ने क्या खूब कहा है-साँसों से नहीं, कदमों से नहीं,मुहब्बत से चलती है दुनिया।सच्चा प्यार केवल देने और देते रहने में ही विश्वास करता है। जहां प्यार है, वहां समर्पण है। जहां समर्पण है, वहां अपनेपन की भावना है और जहां यह भावना रूपी उपजाऊ जमीन है, वहीं प्रेम का बीज अंकुरित होने की संभावना है।

जिस प्रकार सीने के लिए धड़कन जरूरी है, उसी तरह जीवन के लिए प्रेम आवश्यक है। तभी तो प्रेम केवल जोड़ने में विश्वास रखता है न कि तोड़ने में।सही मायने में सच्चा एवं परिपक्व प्रेम वह होता है, जो कि अपने प्रिय के साथ हर दुःख-सुख, धूप-छाँव, पीड़ा आदि में हर कदम सदैव साथ रहता है और अहसास कराता है कि मैं हर हाल में तुम्हारे साथ, तुम्हारे लिए हूं। प्रेम को देखने-परखने के सबके नजरिए अलग हो सकते हैं, किंतु प्रेम केवल प्रेम ही है और प्रेम ही रहेगा क्योंकि अभिव्यक्ति का संपूर्ण कोष रिक्त हो जाने के बावजूद और अहसासों की पूर्णता पर पहुंचने के बाद भी प्रेम केवल प्रेम रहता है।

Sunday, October 25, 2009

चाहत

समय बीतने के साथ-साथ हम कुछ लोगों के व्यवहार से इतने परिचित हो जाते हैं कि हमें मालूम होता है कि यदि ऐसी स्थिति हुई तो उसकी वैसी प्रतिक्रिया होगी। इसलिए तनाव की गुंजाइश कम होती है क्योंकि हमारी मानसिक तैयारी उस प्रतिक्रिया से सामना करने की बन जाती है। पर बहुत से लोग ऐसे होते हैं कि हम उनके बेहद करीब हों फिर भी हम सुनिश्चित नहीं कर पाते कि किन हालात में उस व्यक्ति विशेष का क्या व्यवहार होगा।अक्सर अप्रत्याशित व्यवहार के कारण यह तनाव और दुविधा बनी रहती है कि न जाने क्या होने वाला है। गुस्सा होगा तो किस हद तक होगा और खुशी होगी तो कितनी देर की होगी। नाराजगी कब तक चलेगी और कैसे मनाया जाए उसे। ऐसे रवैये से रिश्तों पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है। खासकर वह व्यक्ति ही पीड़ित होता है जिसे यह मनमौजी व्यवहार झेलना पड़ता है। उस व्यक्ति के लिए प्यार करना गुनाह करने के समान हो जाता है। न तो उससे नाता तोड़ते बनता है और न ही पूर्ण रूप से उसे आत्मसात करते बनता है। यह द्वंद्व की स्थिति निश्चित रूप से रिश्ते को मजबूत होने नहीं देती वह कभी तो उसका बेहद ख्याल रखता है और कभी लापरवाह हो जाता है, जैसे उसे उसकी किसी भी परेशानी से कोई फर्क ही नहीं पड़ता है। ऐसा क्या किया जाए कि आप दोनों में समझबूझ विकसित हो जाए या फिर आप उसे भूल जाएँ जोकि आपको असंभव सा लगता है। करता है। दरअसल, जब कोई रिश्ता केवल किसी एक व्यक्ति की जरूरत पर आधारित हो तो उस रिश्ते के स्थायित्व पर प्रश्नचिह्न लग ही जाता है। दोनों के लिए खुशी, चिंता, दुख, ग्लानि की समान गुंजाइश नहीं रहती है। दूसरा व्यक्ति निर्विकार रूप से उस रिश्ते में रहता है। जब मूड हुआ, दया आई या उसे संग और संवाद की जरूरत महसूस हुई तो समय दे दिया वरना अन्य दिनचर्या में उस रिश्ते का स्थान नहीं। अनुभव यही बताते हैं कि केवल किसी एक के कंधे पर ऐसे रिश्ते का बोझ डालकर ज्यादा समय तक नहीं चला जा सकता है। एक अकेला व्यक्ति कहाँ तक संबंध की गाड़ी खींच पाएगा। वह न केवल बुरी तरह थक जाएगा बल्कि टूट भी जाएगा। ऐसे में यदि रिश्ता समाप्त हो जाए तो उसके पास अपना आगे जीवन संवारने के लिए ताकत नहीं बचेगी। ऐसे एकतरफा रिश्ते से जी कड़ा करके निकल जाना चाहिए। यदि दोनों व्यक्ति की चाहत समान नहीं है तो आज न कल उस रिश्ते को टूटना ही है। उसके लिए मानसिक रूप से तैयार हो जाएं यही बेहतर है। आपको लग सकता है कि उसके पास समय का अभाव है। लेकिन यदि किसी की नीयत साफ है तो समय की कमी ज्यादा मायने नहीं रखती है। वह वाजिब वजह बता सकते हैं और सामने वाले को उस पर यकीन भी होगा पर यदि किसी व्यक्ति में आपके साथ समय बिताने की इच्छा ही न हो तो वैसे व्यक्ति से समय की कमी का रोना रोना कहाँ की अक्लमंदी होगी। हो सकता है कि आपके साथी के पास सचमुच समय का अभाव हो, वह यह सोचता हो कि आप झगडने के बजाय उसकी इस दिक्कत को समझेंगी। पर, जो बात सबसे ज्यादा इस रिश्ते में अखर रही है, वह है झगड़ा होने पर हमेशा आपके द्वारा पहल करना, मनाना, माफी माँगना। सप्ताह बीतने के बाद भी उसे आपसे संवाद बनाने के लिए तड़प नहीं महसूस होती है बल्कि आप ही बेचैन होकर उसे मनाने चल पड़ती हैं। इसका क्या अर्थ निकाला जाए। आपका दोस्त हमेशा यही सोचता है कि पूरी गलती आपकी है इसलिए माफी भी उसे ही माँगनी पड़ेगी। दूसरा, आप बोलें या रूठे उसकी बला से। घुटने टेकती हैं तो ठीक है वरना आप जाएँ अपनी राह। किसी भी रिश्ते की सबसे दुखद स्थिति है, एक-दूसरे का सम्मान नहीं करना। एक-दूसरे को गंभीरता से नहीं लेना। प्यार व परवाह करना थोड़ा कम हो तो चल सकता है पर कुछ घटने पर जवाबदेही महसूस नहीं करना, उसे बस हलकेपन से लेना, बेहद अपमानजनक स्थिति है। कभी भी झगड़े को सुलझाने के लिए पहल नहीं करना, ऐलानिया तौर पर यह कहना है कि मुझे तुम्हारे दुख-दर्द से कोई मतलब नहीं है और न ही मैं तुम्हारी भावना की कद्र करता हूँ। पर जब भी दो व्यक्ति के बीच अनबन या झगड़ा होता है तो ज्यादा या कम गलती दोनों की होती है। समझदारी का ठेका केवल एक व्यक्ति को तो सौंपा नहीं जा सकता है न!
आप सँभल जाएँ और परिपक्व व्यवहार करें। आपने बहुत प्यार, दुलार, मनुहार लुटाया है अब उसे भी मौका दें। यदि वह पहल नहीं करता है, लौटकर नहीं आता है तो आपको अपने संबंध के भविष्य का जवाब मिल गया।
आप काफी हद तक समझ गई होंगी कि आपका रिश्ता कितना परिपक्व है। कितनी दूर यह चल सकता है। अपने जीवन में शांति, सुकून और उज्ज्वल भविष्य चाहिए तो अपना जी कड़ा करके एक बार महीना-छह महीना के लिए किसी काम में व्यस्त हो जाएँ। आपको जितनी मानसिक तकलीफ हो, आप उससे संपर्क न करें। अगर उसे सचमुच आपकी दोस्ती और प्यार की जरूरत है तो वह अपनी आदत बदलकर आपसे बात करने की पहल करेगा। अब विचलित और उत्तेजित होने की उसकी बारी है। आप सँभल जाएँ और परिपक्व व्यवहार करें। आपने बहुत प्यार, दुलार, मनुहार लुटाया है अब उसे भी मौका दें। यदि वह पहल नहीं करता है, लौटकर नहीं आता है तो आपको अपने संबंध के भविष्य का जवाब मिल गया। यदि वह समझदारी और सम्मान से पेश आता है तो आप भी उतावलेपन के बजाय थोड़ा धैर्य और समझदारी दिखाएँ। रो-रोकर माँगी हुई भीख से संबंध कितने दिन टिकाऊ और खुशियों भरा हो सकता है, जहाँ दोनों एक दूसरे की भावना का आदर करें और बराबर की चाहत महसूस करे

Saturday, October 10, 2009

मेरी चाहत

मैं चाहता हूँ कि,
तुम्हें ढेर सारा प्यार मिले।
मनचाही खुशियों भरा एक नया संसार मिले।।
बेवफाई की इस अंधेरी दुनिया से कोसों दूर,
वफा के उजालों से भरा एक नया द्वार मिले..।

मैं चाहता हूँ कि,
तुम्हारे कदमों को भी एक नया साथ मिले।।
आईना बनकर सामने खड़ी रहो तुम,
ताकि दोनों रुहों को भी प्यार भरे जज्बात मिले..॥


मैं चाहता हूँ कि,
तुम्हारी झोली में हो इन्द्रधनुष के सातों रंग।
तुम हमेशा मुस्कुराती रहो रंगबिरंगी तितलियों के संग।।
मेरे इन ख्वाबों को भी एक सही मुकाम मिले,
इन अफसानों को भी हकीकत का नया नाम मिले ।।

मेरी जीवन संगनी

अँधेरी‍ रात में
जगमगाता दिया हो तुम
मेरी जीवनसंगिनी
मेरी प्राणप्रिया हो तुम

थामा है तुमने
जब से मेरा हाथ
तबसे जागी है मुझमें
जीवन जीने की आस

उम्र का यह पड़ाव
नहीं लगता अब मुझे भारी
गर मिलो तुम हर जनम
तो हँस के रूखसती की
कर लूँ मैं तैयारी

साथी चले हो तुम
दो कदम साथ
तो जीवनभर साथ निभाना
तन्हाई में छोड़ अकेला मुझे
तुम कहीं चली ना जाना।

प्यार में जल्दबाजी ना करो

जब हमें कोई चीज पसंद आती है तो हम उसे पाने के लिए तड़प उठते हैं। सारी कोशिश यही रहती है कि वह चीज हमें किसी भी तरह मिल जाए। जमीन-आसमान एक करने के बाद वह चीज हमें मिल तो जाती है पर थोड़े ही दिनों में हमें महसूस होने लगता है कि वह चीज हमारी उम्मीद पर खरी नहीं उतरी। पछतावा होता है कि नाहक हमने अपनी उतनी मेहनत, धन और समय उस पर बरबाद किया। ठीक यही तजुर्बा व अहसास रिश्तों में जल्दबाजी करने पर भी होता है। प्यार के रिश्ते की शुरुआत करने में धीमी गति से आगे बढ़ना बहुत ही समझदारी भरा लव मंत्र है।

जब दो लोग किसी भी कारणवश बार-बार मिलते हैं तो काम के अलावा भी संवाद बनता है। रोजमर्रा की बातों में हँसी-मजाक भी शामिल होने लगता है। पहचान बढ़ती जाती है तो एक-दूसरे से कभी तबीयत का हालचाल भी पूछने लगते हैं। भूख की बात सुनने पर कोई अपना टिफिन भी पेश कर देता है। कार्य या पढ़ाई आदि की समस्या आने पर सलाह-मशविरा भी करने लगते हैं। ज्यों-ज्यों सहजता बढ़ती जाती है प्रतिक्रिया ज्यादा निजी होती जाती है।

पोशाक, हेयर स्टाइल, स्मार्ट लुक, दुखी चेहरा, खुशी का कारण जैसे कमेंट करना आम बातचीत का हिस्सा बन जाता है। ये सारी बातें आम व्यवहारिकता की बातें हैं। इसे प्यार के रिश्ते की शुरुआत या बुनियाद नहीं कहा जा सकता। पर ऐसी ही सहज बातचीत को कई बार व्यक्ति बहुत ही गंभीरता से लेने लगता है। उसे उन सारी नोंक-झोंक और रोजमर्रा की मिजाज पुर्सी में प्यार का गुमान होने लगता है। अमूमन यह वहम पाल लिया जाता है कि सामने वाला भी प्यार में मुबतला है और इसीलिए सभी सहज व्यवहार को विशेष दृष्टि से देखने की कोशिश की जाती है। यदि बीमार पड़ने पर हमदर्दी के साथ हालचाल पूछ लिया गया तो प्यार का अनुमान लगाने वाली बात और भी पक्की मान ली जाती है।

मजेदार बात यह है कि सामने वाला बस इस व्यवहारिकता को सहजता से निभाता जा रहा होता है लेकिन मन में प्यार की गलतफहमी पालने वाला हर टिप्पणी, हर सहयोग, हंसी, छुअन आदि को बस प्यार की मुहर लगाकर ही देखने लगता है। जबकि सामने वाला इस विशेष विश्लेषण से बिल्कुल अनजान है। उसे रत्ती बराबर भी अंदेशा नहीं होता है कि उसके सामान्य से व्यवहार का अलग मतलब निकाला जा रहा है। उसे क्या पता है कि अपने मन में प्यार की खयाली दुनिया बसाकर कोई बहुत ही आगे बढ़ चुका है। और उसके बाद जब प्यार के मुगालते में रहने वाला अपनी मन की बात उस व्यक्ति के समक्ष रखता है तो सामने वाला हक्का-बक्का सा रह जाता है क्योंकि वह खुद को सामान्य दोस्त से ज्यादा कुछ भी नहीं समझता है। बहुत संभव है कि उसका पहले से ही किसी के साथ प्यार का रिश्ता हो।



अक्सर ऐसे लोग आत्महीनता एवं अविश्वास की भावना का शिकार हो जाते हैं। जीवन के किसी मोड़ पर जब उसे सही व्यक्ति मिलता है तो वह उस पर भी भरोसा नहीं कर पाता है।



ऐसे में जब वह व्यक्ति अपनी स्थिति साफ करता है तो प्यार का इजहार करने वाले के पैर के नीचे से जमीन खिसक जाती है। वह अवसाद में डूब जाता है। उसे लगता है उसके साथ धोखा हुआ है। उसकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया गया है। इलजाम यह लगाया जाता है कि पहले से ही यह स्थिति क्यों नहीं साफ की गई। वह यह मानने को तैयार नहीं होता है कि इतनी नजदीकियाँ नहीं थी कि उसे प्यार के रिश्ते के बारे में बताया नहीं जाता। यदि सामने वाला भलमनसाहत में नम्रता से पेश आता है और गलतफहमी से पहुँचने वाले दुख के प्रति संवेदनशीलता का भाव रखता है तो और भी मुश्किलें ज्यादा बढ़ जाती हैं।

इसकी वजह से एक तो प्रेम का इजहार करने वाला व्यक्ति उस मनोदशा से निकल नहीं पाता है, दूसरा यह मायने भी निकाला जाता है कि सामने वाले की गलती है इसीलिए उसे गिल्ट फील हो रहा है। इससे इजहार करने वाले की स्थिति और भी गंभीर हो जाती है और उस भ्रम को तोड़ पाना कठिन हो जाता है। वह बहुत दिनों तक मानसिक तनाव से गुजरता है।

अक्सर ऐसे लोग आत्महीनता एवं अविश्वास की भावना का शिकार हो जाते हैं। जीवन के किसी मोड़ पर जब उसे सही व्यक्ति मिलता है तो वह उस पर भी भरोसा नहीं कर पाता है। उसका आत्मविश्वास इतना हिल चुका होता है कि किसी की भावना की गहराई को न तो वह समझ पाता है और न ही उसका सही आकलन कर पाता है। सबसे दुखद यह होता है कि वह जीवन भर किसी के सामने कोई भी प्रस्ताव रखने से डरता है। दोस्तों, प्यार के मामले में जल्दबाजी करना ठीक नहीं है।
संपूर्ण मानव समाज के लिए प्रेम एक सर्वोत्तम सौगात है। प्रेम प्रकृति का वह अनमोल उपहार है जो मानव जाति के अस्तित्व हेतु अति आवश्यक है। यदि मनुष्य के हृदय से प्रेम समाप्त हो जाए तो मानव जाति के विनाश को शायद कोई न रोक सके।

प्रेम वह मधुर अहसास है जो जीवन में मिठास घोल देता है। कटुता दूर करने व वात्सल्य तथा भाईचारे के संचार में प्रेम की महती भूमिका है। मगर अफसोस! आज प्रेम का वह शाश्वत रूप नहीं रहा। प्रेम की नैसर्गिक अनुभूति आज आधुनिकता की चकाचौंध में कहीं खो गई है। वर्तमान में प्यार जैसे शब्द से सभी परिचित होंगे मगर सच्चे प्यार की परिभाषा क्या है, यह बहुत कम लोग जानते हैं।




वास्तव में तो प्यार अभी तक प्यार है जब तक उसमें विशालता व शुद्धता कायम है। अशुद्ध व सतही प्यार न केवल दो हृदयों के लिए नुकसानदायक है बल्कि भविष्य में जीवन के स्याह होने की वजह भी बन जाता है।



विशुद्धतम वही है जो प्रतिदान में कुछ पाने की लालसा नहीं रखता। आत्मा की गहराई तक विद्यमान आसक्ति ही सच्चे प्यार का प्रमाण है। सच्चा प्यार न तो शारीरिक सुंदरता देखता है और न ही आर्थिक या शैक्षणिक पृष्ठभूमि। सच्चा प्यार बस, प्रिय के सामिप्य का आकांक्षी होता है। निर्निमेष दृष्टि से देखने की भोली चाह के अतिरिक्त प्यार शायद ही कुछ और सोचता हो। वास्तव में तो प्यार अभी तक प्यार है जब तक उसमें विशालता व शुद्धता कायम है। अशुद्ध व सतही प्यार न केवल दो हृदयों के लिए नुकसानदायक है बल्कि भविष्य में जीवन के स्याह होने की वजह भी बन जाता है।

सच्चे प्यार का अहसास किया जा सकता। इसे शब्दों में अभिव्यक्त करना न केवल मुश्किल है बल्कि असंभव भी है। सच्चे प्यार में गहराई इतनी होती है कि चोट लगे एक को, तो दर्द दूसरे को होता है, एक के चेहरे की उदासी से दूसरे की आँखें छलछला आती हैं। सच्चे प्रेम का 'पुष्प' कोमल भावनाओं की भूमि पर आपसी विश्वास और मन की पवित्रता के संरक्षण में ही खिलता और महकता है। अब यह हम पर निर्भर करता है कि इसकी कोमल पंखुड़ियों पर सामाजिक बदनामी की अम्ल वर्षा करें या इसकी जड़ों को विश्वास एवं समर्पण के अमृत से सींचें।

मेरे दोस्त

तू है मेरी ताकत
तू है मेरा विश्वास
तूने जगाई मुझमें
जीने की नई आस
जीवन की कठिन डगर
और तेरा साथ
नहीं लगता डर मुझे
जब तू है मेरा हमराज

फिसलन में भी नहीं
लगता अब
गिरने का डर
थामा है तूने जो हाथ
डर ने छोड़ दिया है साथ
अब मुश्किलों से लड़ने को
जी चाहता है
अब कुछ कर गुजरने को
जी चाहता है।

तेरी हर हिदायत
करती है मुझे हर
खतरे से आगाह
तेरी हर डाँट-फटकार
भरती है मुझमें आत्मविश्वास
चलती हूँ अकेली
पर साथ होता है तू
हौसलों में ऊर्जा भरता
विश्वास होता है तू

दोस्त जीतूँगी हर बाजी
गर साथ होगा तू
छा जाएँगे दुनिया पर
गर हौंसला बनेगा तू
अब नहीं दुनिया से डर
अब किसी की नहीं फिक्र
छू लेंगे हम आसमाँ
हमारी मुट्ठी में होगा जहां।

तुम्हारी हँसी

प्राण! मुझ को लुभाती तुम्हारी हँसी
प्राण तक खनखनाती तुम्हारी हँसी।

चाँदनी-सी कभी, मोतियों-सी कभी
काँति ले जगमगाती तुम्हारी हँसी।

मैं कहीं भी, किसी हाल में भी रहूँ
याद आती, बुलाती तुम्हारी हँसी।

होंठ विद्रूम, नयन पद्मरागी छटा
रत्न-मोती लुटाती तुम्हारी हँसी।

खेल ही खेल में पारिजातक खिला
खिल स्वयं, खिलखिलाती तुम्हारी हँसी।

रात-दिन नील श्वेतांबुजों पर सदा
भृंग-सी गुनगुनाती तुम्हारी हँसी।

जिंदगी जब सताती-रूलाती मुझे,
धैर्य दे तब हँसाती तुम्हारी हँसी।

स्नेह भरती अथक देह के दीप में
ज्योति मन में जगाती तुम्हारी हँसी।

खूब हँसती रहो, मुस्कुराती रहो
यह तुम्हारी हँसी है हमारी हँसी।

Friday, August 7, 2009

मेरी बहेना

यूँ तो दुनिया में कई सारे रिश्ते हैं, मगर इन सब रिश्तों में सबसे प्यारा और पवित्र रिश्ता है भाई-बहन का। अगर भाई अपनी बहन की आँख में एक आँसू नहीं देख सकता तो बहन भी अपने भाई के लिए कुछ भी करने को हर पल तैयार रहती है। जहाँ ये रिश्ता चाँद की चाँदनी के समान शीतलता प्रदान करता है वहीं यह सागर की गहराइयों के समान गंभीरता भी रखता है।भाई-बहन एक-दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त होते हैं।
उनके बीच कभी कोई बात छिपती नहीं, वे एक-दूसरे की मन की बात बिना कहे ही जान लेते हैं। वे उसी तरह एक-दूसरे की चिंता करते हैं और एक-दूसरे का ध्यान रखते हैं। भाई-बहन के रिश्ते में कभी स्वार्थ नहीं होता, होती हैं तो बस निःस्वार्थ भावना एक-दूसरे के लिए बेहतर से बेहतर करने की इस रिश्ते में एक-दूसरे के लिए प्रेम, सम्मान, आत्मीयता, त्याग सब कुछ देखने को मिलता है।

बहन अगर खुशियों का खजाना होती है तो भाई उस खजाने की चाबी। सच कहें तो भाई के जीवन में रौनक ही बहन से होती है। वो बहन ही होती है जिसको तोहफा देने के लिए कभी वो पॉकेटमनी के पैसे इकट्ठा करता है तो कभी छोटी-सी बात पर किसी से भी लड़ पड़ता है। और वही बहन उसकी जिंदगी होती है जो उसे छेड़ती है, लडाई BHI भी कर लेती है, लेकिन उसी से सबसे ज्यादा प्यार भी करती है।एक भाई से अच्छा सलाहकार बहन के लिए कोई हो नहीं सकता।

बहन अपनी कोई गलती भाई से छिपा नहीं सकती। बता ही देती है और भाई भी उससे कुछ दुराव-छिपाव नहीं रखता। वह हमेशा उसकी मदद को तत्पर रहता है। बहन को दर्द होने पर वह आँख भाई की ही होती है जिसमें सबसे पहला आँसू भर आता है। बहन कभी कहती नहीं मगर महसूस करती है कि उसके लिए जान तक पर खेल जाने वाला उसका भाई उससे बेइंतहा प्यार करता है। और यही उनके रिश्ते की शक्ति होती है।

सचुमुच बड़ा अनोखा होता है भाई बहन का प्यार अनमोल रतन होता हे कोहिनूर से ज्यादा कीमती होता है । इश्वर की और गुरु देव की जिसके उपर इनायत होती है उसे मिलती है मासूम गुडिया सी बहेना .आँखों का नूर और दिल का सुरुर होती है प्यारी बहना । मेरी प्यारी बहेना को बहोत सारे प्यार की साथ समर्पित है यह छोटा सा प्यार भरा पैगाम और याद

Thursday, June 25, 2009

ऐसा पहली बार नहीं हुआ। हर साल परीक्षाफल आने के दिनों में ऐसा ही होता है। फेल होने पर कई छात्र-छात्राएं जिंदगी से मुंह मोड़ लेते हैं।

जिन आंखों ने अभी पूरी तरह सपने भी नहीं सजाए थे, वे हमेशा के लिए बंद हो गई। इन मासूमों की मौत उनके परिजनों के लिए कभी न मिटने वाला दर्द दे गईं। ऐसे में सहज ही यह सवाल खड़ा हो जाता है कि क्या जिंदगी से बड़ा है कैरियर का ग्राफ? क्या फेल हो जाने मात्र से ही बंद हो जाते हैं जिंदगी के सारे रास्ते? क्या फेल होना इतना अपमानजनक है कि जिंदगी ही दांव पर लगा दी जाए?

इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि आज अभिभावक बच्चों से पढ़ाई और करियर को लेकर बहुत अधिक उम्मीदें रखने लगे हैं। माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए वह जी-तोड़ मेहनत भी करते हैं लेकिन कई बार वह अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाते हैं तो निराशा में आत्महत्या कर लेते हैं। परीक्षा में फेल होने वाले बच्चों की खुदकुशी केपीछे यही मानसिकता होती है।अलबत्ता आत्महत्या की बढ़ती घटनाएं विद्यार्थियों के जीवन में बढ़ रही निराशा, संघर्ष करने की घटती क्षमता और जीने की इच्छाशक्ति की कमी की ओर भी संकेत करती हैं। मौजूदा समय के भौतिकवादी माहौल ने लोगों की महत्वाकांक्षाओं और अपेक्षाओं को काफी बढ़ा दिया है। अभिभावक परीक्षा के अंकों को जिंदगी से जोड़ देते हैं। अधिक अंक का पाने का सपना टूटता है और अपेक्षाएं पूरी नहीं होती हैं तो विद्यार्थी जिंदगी से ही मायूस हो जाते हैं। इसीलिए छात्र-छात्राओं में आत्महत्या की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं।ऐसी स्थिति में अभिभावकों और शिक्षकों का दायित्व है कि वे बच्चों में आत्मविश्वास, जीवन के प्रति दायित्वबोध और आगे बढऩे का भाव जागृत करें। उन्हें बताएं कि अंक कम आने मात्र या फेल हो जाने से जिंदगी में आगे बढऩे की प्रक्रिया खत्म नहीं हो जाती। हर बच्चे में कुछ प्रतिभा होती है। शिक्षकों और अभिभावकों को बच्चे की उस प्रतिभा को पहचानकर उसके आगे बढऩे का रास्ता बताना चाहिए। इससे बच्चे में आत्मविश्वास पैदा होगा और यही आत्मविश्वास उसमें जिंदगी के प्रति मोह भी पैदा करेगा।

दरअसल, जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए आत्मविश्वास की शक्ति सर्वाधिक आवश्यक है । आत्मविश्वास के अभाव में किसी कामयाबी की कल्पना नहीं की जा सकती है । आत्मविश्वास के सहारे कठिन से कठिन लक्ष्य को प्राप्त करना भी सरल हो जाता है । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने आत्मविश्वास के सहारे ही ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष किया । यह उनका आत्मविश्वास ही था जिसके सहारे उन्होंने अहिंसा के रास्ते पर चलकर देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराया । आत्मविश्वास शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है-आत्म और विश्वास । यहां आत्मा से आशय अंतर्मन से है । विश्वास का अर्थ भरोसा होता है । वस्तुत: अंतर्मन के भरोसे को ही आत्मविश्वास कहते है ं। आत्मविश्वास मनुष्य के अंदर ही समाहित होता है । आंतरिक शक्तियों को एकीकृत करके आत्मविश्वास को मजबूत किया जा सकता है।आत्मविश्वास को जागृत करके और मजबूत बनाकर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता अर्जित की जा सकती है । सत्य, सदाचार, ईमानदारी, सहृदयता आदि मानवीय गुणों को धारण करके आत्मविश्वास का संचार किया जा सकता है । आत्मविश्वास से भरे विद्यार्थी परीक्षा में सफलता प्राप्त करते हैं । रोजगार और व्यवसाय में भी उन्नति के शिखर पर पहुंचने का आधार आत्मविश्वास ही होता है । बडी से बडी समस्या भी उन्हें जिंदगी में आगे बढऩे से नहीं रोक सकती। आत्मविश्वास से दैदीप्य व्यक्तित्व ही समाज को नई दिशा देने में समर्थ होता है । वास्तव में आत्मविश्वास की शक्ति अद्भुत होती है ।प्रत्येक मनुष्य को सदैव आत्मविश्वास को मजबूत बनाए रखना चाहिए तभी वह जीवन में उन्नति कर सकता है । जिंदगी से मायूस हुए लोगों को ढाढस बंधाने का काम परिजनों अथवा उनके निकट के लोगों को करना चाहिए । बातचीत के माध्यम से निराशाजनक स्थितियों से गुजर रहे मनुष्य के अंदर जीने की इच्छाशक्ति को मजबूत किया जाना चाहिए । विविध प्रेरणादायक प्रसंगों की जानकारी देकर उन्हें जीवन के संघर्ष से घबराने के बजाय मुकाबला करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए । उनके मन से निराशा का अंधेरा छंट गया तो निश्चित रूप से उनमें जीवन के प्रति ललक जागृत होगी । उनमें आत्मविश्वास उत्पन्न होगा तो वह वह भविष्य में जिम्मेदार नागरिक बनकर देश के विकास में अपना योगदान दे पाएंगे ।

Wednesday, June 17, 2009

लव , प्यार ,

'मोहब्बत रूह की खुराक है। यह वह अमृत बूँद है, जो मरे हुए भावों को जिन्दा करती है। यह जिन्दगी की सबसे पाक, सबसे ऊँची, सबसे मुबारक बरकत है।' -
मोहब्बत एक एहसास है, जिसे रूह से महसूस किया जा सकता है। यह उस अनादि अनंत ईश्वर की तरह है, जो सृष्टि के कण-कण में विद्यमान है। प्यार, जो हमारे संपूर्ण जीवन में विभिन्न रूपों में सामने आता है। जो यह एहसास दिलाता है कि जिन्दगी कितनी खूबसूरत है।


'प्रेम से जीवन को अलौकिक सौंदर्य प्राप्त होता है। प्रेम से जीवन पवित्र और सार्थक हो जाता है। प्रेम जीवन की संपूर्णता है।' सृष्टि में जो कुछ सुकून भरा है, प्रेम है। प्रेम ही है, जो संबंधों को जीवित रखता है। परिवार के प्रति प्रेम, जिम्मेदारी सिखाता है।प्रेम इंसान को विनम्र बना देता है। रूखे से रूखे और क्रूर से क्रूर इंसान के मन में यदि किसी के प्रति प्रेम की भावना जन्म ले लेती है, तो संपूर्ण प्राणी जगत के लिए वह विनम्र हो जाता है। ऐसे कई उदाहरण हमारे ग्रंथों में मिलते हैं। प्रेम चाहे व्यक्ति विशेष के प्रति हो या ईश्वर के प्रति। आश्चर्यजनक रूप से उसकी सोच, उसका व्यवहार, उसकी वाणी सबकुछ परिवर्तित हो जाता है।प्यार, जिन्दगी का सबसे हसीन जज्बा है। बोलने में यह जितना मीठा है, उसका एहसास उतना ही खूबसूरत और प्यारा है। प्यार के एहसास को शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता। उसे व्यक्त करने की आवश्यकता भी नहीं होती। व्यक्ति की आँखें, चेहरा, हाव-भाव यहाँ तक कि उसकी साँसें दिल का सब भेद खोल देती हैं। प्रेम की अनोखी दुनिया में खोकर कोई बाहर आना ही नहीं चाहता। वह जिसे प्यार करता है, खुली आँखों से भी उसी के सपने देखता है। उसके साथ बिताई घड़ियों को बार-बार याद करता है। उसके लिए सजना-सँवरना चाहता है। यही नहीं, औरों से बात करते हुए भी उसी का जिक्र चाहता है। यही प्यार का दीवानापन है और इस दीवानेपन में जो आनंद है, वह संसार की किसी भौतिकता में नहीं है।

आज की तेज रफ्तार से दौड़ती जिन्दगी में व्यक्ति जब एक-दूसरे को पीछे धकेलते हुए आगे बढ़ने की होड़ में संवेदनाओं को खोता चला जा रहा है, रिश्तों और एहसासों से दूर, संपन्नता में क्षणिक सुख खोजने के प्रयास में लगा रहता है, ऐसी स्थिति में जहाँ प्यार बैंक-बैलेंस और स्थायित्व देखकर किया जाता है, वहाँ सच्ची मोहब्बत, पहली नजर का प्यार और प्यार में पागलपन जैसी बातें बेमानी लगती हैं परंतु प्रेम शाश्वत है। प्रेम सोच-समझकर की जाने वाली चीज नहीं है। कोई कितना भी सोचे, यदि उसे सच्चा प्रेम हो गया तो उसके लिए दुनिया की हर चीज गौण हो जाती है। प्रेम की अनुभूति विलक्षण है। प्यार कब हो जाता है, पता ही नहीं चलता। इसका एहसास तो तब होता है, जब मन सदैव किसी का सामीप्य चाहने लगता है। उसकी मुस्कुराहट पर खिल उठता है। उसके दर्द से तड़पने लगता है। उस पर सर्वस्व समर्पित करना चाहता है, बिना किसी प्रतिदान की आशा के।प्रेम हृदय का निश्छल व्यापार है। सर्वात्म भाव से किसी को आत्मसमर्पण कर देने में असीम सुख प्राप्त होता है।

'प्रेम चतुर मनुष्यों के लिए नहीं है। वह तो शिशु-से सरल हृदय की वस्तु है।' सच्चा प्रेम प्रतिदान नहीं चाहता, बल्कि उसकी खुशियों के लिए बलिदान करता है। प्रिय की निष्ठुरता भी उसे कम नहीं कर सकती। वास्तव में प्रेम के पथ में प्रेमी और प्रिय दो नहीं, एक हुआ करते हैं। एक की खुशी दूसरे की आंखों में छलकती है और किसी के दुःख से किसी की आँख भर आती है।

'प्रेम एक संजीवनी शक्ति है। संसार के हर दुर्लभ कार्य को करने के लिए यह प्यार संबल प्रदान करता है। आत्मविश्वास बढ़ाता है। यह असीम होता है। इसका केंद्र तो होता है लेकिन परिधि नहीं होती।' प्रेम एक तपस्या है, जिसमें मिलने की खुशी, बिछड़ने का दुःख, प्रेम का उन्माद, विरह का ताप सबकुछ सहना होता है। प्रेम की पराकाष्ठा का एहसास तो तब होता है, जब वह किसी से दूर हो जाता है।


प्रेम में नकारात्मक सोच के लिए कोई जगह नहीं होती। जो लोग प्यार में असफल होकर अपने प्रिय को नुकसान पहुँचाने का कार्य करते हैं, वे सच्चा प्यार नहीं करते। प्रेम सकारण भी नहीं होता। प्रेम तो हो जाने वाली चीज है।

'प्रेम अपनी गहराई को वियोग की घड़ियाँ आ पहुँचने तक स्वयं नहीं जानता।' प्रेम विरह की पीड़ा को वही अनुभव कर सकता है, जिसने इसे भोगा है। इस पीड़ा का एहसास भी सुखद होता है। दूरी का दर्द मीठा होता है। वो कसक उठती है मन में कि बयान नहीं किया जा सकता। दूरी प्रेम को बढ़ाती है और पुनर्मिलन का वह सुख देती है, जो अद्वितीय होता है। प्यार के इस भाव को इस रूप को केवल महसूस किया जा सकता है। इसकी अभिव्यक्ति कर पाना संभव नहीं है। बिछोह का दुःख मिलने न मिलने की आशा-आशंका में जो समय व्यतीत होता है, वह जीवन का अमूल्य अंश होता है। उस तड़प का अपना एक आनंद है।प्यार और दर्द में गहरा रिश्ता है। जिस दिल में दर्द ना हो, वहाँ प्यार का एहसास भी नहीं होता। किसी के दूर जाने पर जो खालीपन लगता है, जो टीस दिल में उठती है, वही तो प्यार का दर्द है। इसी दर्द के कारण प्रेमी हृदय कितनी ही कृतियों की रचना करता है।प्रेम को लेकर जो साहित्य रचा गया है, उसमें देखा जा सकता है कि जहां विरह का उल्लेख होता है, वह साहित्य मन को छू लेता है। उसकी भाषा स्वतः ही मीठी हो जाती है, काव्यात्मक हो जाती है। मर्मस्पर्शी होकर सीधे दिल पर लगती है।प्रेम में नकारात्मक सोच के लिए कोई जगह नहीं होती।

जो लोग प्यार में असफल होकर अपने प्रिय को नुकसान पहुँचाने का कार्य करते हैं, वे सच्चा प्यार नहीं करते। प्रेम सकारण भी नहीं होता। प्रेम तो हो जाने वाली चीज है। किसी के खयालों में खोकर खुद को भुला देना, उसके सभी दर्द अपना लेना, स्वयं को समर्पित कर देना, उसकी जुदाई में दिल में एक मीठी चुभन महसूस करना, हर पल उसका सामीप्य चाहना, उसकी खुशियों में खुश होना, उसके आँसुओं को अपनी आँखों में ले लेना, हाँ यही तो प्यार है। इसे महसूस करो और खो जाओ उस सुनहरी अनोखी दुनिया में, जहाँ सिर्फ सुकून है।

यह सब प्रेम bahot acha है पर saccha प्यार to सिर्फ़ और सिर्फ़ ishawar और Guru से करो vahi आपको अपनी sachi मंजिल पर ले जाएगा और ahesas dilayega की sacha प्यार किसे कहते है । sachi mohobat किसे कहते है ।

Saturday, June 6, 2009

कल ,मैंने तुमसे बातें की थीं तुम सुनो कि न सुनो, ये मैंने सोंचा नहीं,तुम जवाब न दोगे, ये भी मैंने सोंचा नहीं,तुम मेरे पास न थे, तुम मेरे साथ तो थे कल हमारे साथ, वक़्त भी जागा, और रूह भी जागी थी,कल मैंने तुमसे बातें की थी कितना खुशगवार मौसम था,हमारे तुम्हारे रूह के बीच,ख्यालों का काफिला था,सवालों जवाबों की, लम्बी फेहरिस्त थी,चाहतों की, लम्बी कतार थी तुम्हारे शब्द खामोश थे,तुम सुन रहे थे न, जो मैंने तुमसे कहा था,कल , मैंने तुमसे बातें की थी तुम्हें हो कि न हो याद,पर, मेरे तसव्वुर में बस गई,कल की हमारी हर बात, कल मैंने तुमसे बातें की थीं बहुत बाते की थी , तुम शरीर से मेरे साथ हो या ना हो पर दिल दिमाग से मेरे साथ हो मेरी रूह हो मेरी आत्मा हो !

तुम मेरी श्रधा हो

मै मनु तुम ही मेरी श्रद्घा हो मै अगर तुम्हारी पूजा करू तो तुम्हें एतराज तो नही ऐसे भी चेतना का आधार पाषाण तो नही तुम्हें चाहीये ......उड़ना ......तोमै अम्बर हूँ रंग ......तो मै पतंग हूँ शब्द ....तो मै तुम्हारा मन हूँ सुगंध ...तो मै सुमन हूँ और तुम्हें चाहिए यदी संग तो मै-हरेक पल हूँ तुम अगर दृश्य हो तो मै आईना हूँ मै एक् शंख -पुकारता जिसेतुम वही -शंखा हो मै मनु तुम ही मेरी श्रद्घा हो

Monday, April 13, 2009

मेरे साथी

अँधेरी‍ रात में जगमगाता दिया हो तुम मेरी जीवनसंगिनी मेरी प्राणप्रिया हो तुमथामा है तुमनेजब से मेरा हाथ तबसे जागी है मुझमेंजीवन जीने की आस उम्र का यह पड़ाव नहीं लगता अब मुझे भारी गर मिलो तुम हर जनम तो हँस के रूखसती की कर लूँ मैं तैयारी साथी चले हो तुम दो कदम साथ तो जीवनभर साथ निभाना तन्हाई में छोड़ अकेला मुझे तुम कहीं चली ना जाना।

मेरी ताकत

तू है मेरी ताकत तू है मेरा विश्वास तूने जगाई मुझमें जीने की नई आस जीवन की कठिन डगर और तेरा साथ नहीं लगता डर मुझे जब तू है मेरा हमराज फिसलन में भी नहीं लगता अब गिरने का डर थामा है तूने जो हाथ डर ने छोड़ दिया है साथ अब मुश्किलों से लड़ने को जी चाहता है अब कुछ कर गुजरने को जी चाहता है। तेरी हर हिदायत करती है मुझे हर खतरे से आगाह तेरी हर डाँट-फटकार भरती है मुझमें आत्मविश्वास चलती हूँ अकेली पर साथ होता है तू हौसलों में ऊर्जा भरता विश्वास होता है तू दोस्त जीतूँगी हर बाजी गर साथ होगा तू छा जाएँगे दुनिया पर गर हौंसला बनेगा तू अब नहीं दुनिया से डर अब किसी की नहीं फिक्र छू लेंगे हम आसमाँ हमारी मुट्ठी में होगा जहां।

सचे प्यार के लिए दुवाए

मैं चाहता हूँ कि, तुम्हें ढेर सारा प्यार मिले। मनचाही खुशियों भरा एक नया संसार मिले।।बेवफाई की इस अंधेरी दुनिया से कोसों दूर, वफा के उजालों से भरा एक नया द्वार मिले..।मैं चाहता हूँ कि, तुम्हारे कोमल हाथों से हमारे हाथ मिले।तुम्हारे कदमों को भी एक नया साथ मिले।। आईना बनकर हमारे सामने खड़ी रहो तुम, ताकि दोनों रुहों को भी प्यार भरे जज्बात मिले..॥ मैं चाहता हूँ कि, तुम्हारी झोली में हो इन्द्रधनुष के सातों रंग। तुम हमेशा मुस्कुराती रहो रंगबिरंगी तितलियों के संग।। मेरे इन ख्वाबों को भी एक सही मुकाम मिले, इन अफसानों को भी हकीकत का नया नाम मिले ।।
प्यार ऐसा होता है, प्यार वैसा होता है। यह हम सभी ने सुना है लेकिन क्या कभी हमने सच्चे प्यार को महसूस भी किया है? प्यार, जिसे आज भी संसार हीन दृष्टि से देखकर प्रेमियों को हँसी का पात्र बनाता है लेकिन इन बदनाम प्रेमियों में से कुछ प्रेमी ऐसे भी होते हैं, जिनका प्यार उन्हें जीवन की एक नई दिशा देता है व सफलता के द्वार खोलता है। अक्सर हमने सुना है कि प्यार के चक्कर में पड़कर अच्छा खासा आदमी बर्बाद व नाकारा हो गया लेकिन कभी-कभी चाहे-अनचाहे हमारे कानों में ऐसे भी किस्से सुनाई देते हैं, जिनमें प्यार एक नव प्रेरणा बनकर जीवन रूपी काची माटी को एक नया आकार प्रदान करता है।समझदार हो साथी :- यदि आपका साथी समझदार है तो वो आपकी हर मुश्किलों को हल करके आपका जीवन सँवार देगा। मानव की कौम वैसे भी बहुत बुद्धिमान है परंतु किस वक्त पर कौन सा फैसला हमारे हित में होगा, इस दाव में अक्सर हम सभी मात खा जाते हैं। ऐसी दुविधा की स्थिति में आपका साथी ही आपको सही राह दिखा सकता है। समझदार साथी आपकी हर मुश्किलों को चुटकी में हल करके आपके चुप्पी साधे होंठों पर हँसी ला देता है।


आदमी जब मुश्किलों से हारकर टूट जाता है, तब प्यार उसकी ऊर्जा बन उसे फिर से ज‍ीवित करता है। आपका सच्चा प्यार ऐसे वक्त में भी आपका साथ निभाता है, जब दुनिया आप पर नफरत व आलोचनाओं के तीर बरसाती है।
हो गया तो कर लो कबूल :- प्यार कभी थोपा नहीं जाता। यह तो एक अहसास है, जो जीवन में किसी के आगमन के साथ साथ स्वत: ही आता है। यह सत्य है कि सच्चा प्यार इस दुनिया में बहुत कम लोगों को मिल पाता है। यदि आपको भी अपना सच्चा प्यार मिल गया है, जिसने आपके जीवन को खुशियों, उमंगों, उल्लास व नए सपनों से भर दिया है तो उस साथी को अपने से कभी जुदा मत होने दो तथा अपने जीवनसाथी को जिंदगी की हकीकत बनाकर अपने प्यार को सदा के लिए अपना लो।


मुश्किलों की धूप में प्यार की बयार :- आदमी जब मुश्किलों से हारकर टूट जाता है, तब प्यार उसकी ऊर्जा बन उसे फिर से ज‍ीवित करता है। आपका सच्चा प्यार ऐसे वक्त में भी आपका साथ निभाता है, जब दुनिया आप पर नफरत व आलोचनाओं के तीर बरसाती है। अपने साथी का हौसला आपके लड़खड़ाए कदमों को फिर से खड़ा होने की हिम्मत व दुनिया का सामना करने की ताकत देता है। दुनिया के हर सवाल का जवाब :- दुनिया की तो आदत होती है सवाल करने की और अच्छे को बुरा बताने की। यदि आप दुनियावालों के सवालों से परेशान होकर अपने सच्चे साथी का साथ छोड़ देते हैं तो आपसे बड़ा मूर्ख व कायर और कोई नहीं होगा। यह खूबी तो आपमें होना चाहिए कि आप दुनिया के सवालों का जवाब किस तरह से देते हैं। यदि आपका साथी आपकी हिम्मत है, आपकी प्रेरणा है तो वहीं भविष्य में लोगों के हर सवाल का जवाब बन जाएगा।निंदक मिलेंगे हर जगह :- ऐसा कहा जाता है कि हमेशा निंदक को अपने साथ ह‍ी रखना चाहिए, ऐसे लोग आपकी बुराई का चिट्ठा आपके सामने खोलकर रख देते हैं परंतु आज जमाना पूरी तरह से बदल गया है। अब निंदक को बगैर बुलाए ही हर जगह उपलब्ध हो जाते हैं। नए जमाने के ये निंदक आपकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने में एक पल की भी देर नहीं करते हैं।यदि आप इन सि‍रफिरों व चापलूसों के चक्कर में आकर अपने सच्चे प्यार से जुदा होते हैं, तो आप बहुत बड़ी मूर्खता करते हैं। इस दुनिया की तो यह रीत ही है कि वो सच्चे प्रेमियों की राह में हमेशा बाधाएँ व मुश्किलें पैदा करती है। यह खूबी तो आपमें चाहिए कि आप मुस्कुराहट व आत्मविश्वास से कैसे उन लोगों के होंठ सिलते हैं।