'माँ, नहीं जानती
आप मेरे लिए क्या हो
सोच के धरातल पर
कई मील आगे चलती
कर्म-बीजों की गठरी थामें
क्षण-क्षण, कण-कण को संजोती
आप हमारे लिए आस्था-पुँज हो
ऊर्जा का निज स्त्रोत हो
जिसका लेशमात्र भी गर
हमसे विकसित हो पाया
तो वह आपका सच्चा अभिनंदन होगा।
इस दिवस पर सार्थक नमन होगा।'
Sunday, May 9, 2010
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