आपने ही तो मुझे अपनी बात रखना सिखाया है और आज आप ही उस बात को सुनने के लिए तैयार नहीं हो! मैंने कहा क्या, यही न कि मैं उस लड़के से शादी नहीं करना चाहती, तो मैंने गलत क्या किया? मैं उस लड़के को जानती नहीं हूं, तो उससे जिंदगी भर का रिश्ता कैसे बांध लूं पापा?
उसकी हां हुई और आपने भी मान लिया कि यह शादी होकर रहेगी। इस सबके बीच में मैं कहां हूं पापा, आपकी बेटी कहां है? आज तक घर में फर्नीचर भी मेरी पसंद के बिना आप नहीं लाए, ममी खाना बनाने से पहले मेरी पसंद के बारे में जरूर पूछती हैं, लेकिन आज आप मेरी बात सुने बिना ही मेरी शादी कर देना चाहते हैं।
ठीक है, आज आपके दबाव में आकर मैं शादी कर लेती हूं, लेकिन पापा, कल अगर मैं दुखी रही, तो क्या आपकी आंखों में आंसू नहीं आएंगे? आप भी तो आराम से नहीं बैठ पाओगे न। क्या तब आप अपने फैसले को सही ठहरा पाओगे? मानती हूं कि जिंदगी समझौते का नाम है, लेकिन जानबूझ कर गड्ढे में गिरना और फिर निकलने की कोशिश करना समझौता नहीं होता न पापा।
मैं आपकी बेटी हूं पापा, आपको मुझ पर विश्वास करना होगा। जब आप सिर पर हाथ रखकर मुझे समझदार कहते हो, तो क्यों मेरे इस फैसले में आपको मेरी समझदारी नहीं दिखती है। मैंने यह नहीं कहा मैं शादी नहीं करूंगी, लेकिन बिना किसी को जाने व समझे नहीं। आपकी ऊंची आवाज में मेरी आवाज दब सकती है पापा, लेकिन दिल से सोचेंगे तो मेरी बात की गहराई को आप जरूर समझ पाएंगे।
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