Tuesday, April 20, 2010

वे शब्द नहीं मिलते,




जिनसे अपना प्रेम व्यक्त करूँ,



माफ़ करना ख़त संभव नहीं,



झाँक कर देखो मेरी आँखों के दरिया में,



शब्दों का बहता सैलाब नज़र आएगा तुम्हें,



डूबता-ऊबता तुम्हारे प्रेम सागर में,



ढूंढ लेना जाकर मुझे,



तुम्हें मिल जाऊँगा,



वहीँ बहते धारे बीच कहीं !!

1 comment:

  1. हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.

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