होठों पर नगमे सीने के मध्य घाव है,
कवि का पूरा जीवन पीड़ा का पड़ाव है।
मुस्कानों से धोखा खा जाता हूँ अक्सर,
धोखा खाकर मुस्काना मेरा स्वभाव है।
मित्रों पर तो बेशक न्योछावर हूँ मैं पर,
अपने हर दुश्मन से भी मुझको लगाव है।
युद्धों को परिणत कर लेता हूँ यज्ञों में,
श्रीमद्भगवतगीता का मुझ पर प्रभाव है।
कंगाली में भी है अलमस्ती का आलम,
ऐसी जीवनशैली ऐसा रख-रखाव है।
Monday, March 8, 2010
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