Tuesday, March 16, 2010

ऊपर नीला आसमान और आसमान मेम छाए काले बादल,


नीचे खड़े थे पेड़ के हम दोनो जाने किन ख्यालो में पागल,

एक विचित्र सी खामोशी थी फिर भी समा खामोश ना था,

बिजली कड़क रही थी , बादल गरज़ रहे थे,

हवाएँ गुनगुना रहीं थी फिर भी मैं चुप था,

रुक गई थी धरती रुक गया आसमान था,


रुके हुए थे हुम दोनो और रुका सारा जहान था,

No comments:

Post a Comment