Saturday, March 13, 2010

हमसफ़र

मेरे ज़िन्दगी के सफर में तुम मेरी चाह है हमसफ़र बनो

यही ख्वाब है मेरा एक हर नजारा तुम हर नजर बनो

जहाँ हो वफ़ा हर शाम में , जहाँ ज़िन्दगी हर जाम में ,

जहाँ चाँदनी हर रात हो , उम्मीद की हर सहर बनो

मैं नहीं काबिल तेरे बना , तू फलक मैं गर्दिश भला !

तू पूनम , मैं मावस की रात ,नही बने मेरे वास्ते मगर बनो

नही मेरे लिखने में वजन कोई नही साज पर कोई गीत चढा

ना लिख सका कोई ग़ज़ल , गुनगुना सकूँ तुम वो बहर बनो

मेरी नही पतवार कोई  मेरा नही माझी कोई

मैं हूँ तन्हा मंझधार में ,कश्ती को दे किनारा वो लहर बनो

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