Friday, March 12, 2010

क्या यही प्यार हैं ...

और मैं उस पर रोज एक कविता लिखता था

लेकिन यह बात वह नही जानती थी

बहुत सालो बाद जब मैं उससे मिला

तब तक वह मेरी कविताओ कों पढ़ते पढ़ते

मेरी कविताओ का शब्द बन गयी थी

मुझे मालूम था वो मेरी आत्मा के अमृत से भर गयी थी

तब मैंने उससे कहा

मैं आपका नाम लेते हीं -एक कविता लिख लेता हूँ

संसार के सारे फूलो की सुगंध में डूब जाता हूँ

मैं खुद चांदनी सा प्रकाश बन जाता हूँ

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