Thursday, December 24, 2009

आपके पत्र

हर साल मुझे आपके पत्र मिलते हैं। इन पत्रों में खुशबू होती है आपके मीठे प्यार की। कभी आँसू की बरसात होती है, कभी तकलीफों का पिटारा, कभी चहकती खुशियाँ तो कभी गमगीन दुनिया। हर पत्र के साथ मैं रोता हूँ, मुस्कुराता हूँ और कभी-कभी घंटों बैठकर सोचता हूँ। सोचता हूँ, आखिर एक मानव इस दुनिया में चाहता क्या है? छोटी-छोटी मासूम खुशियाँ, सच्चा प्यार, अपनों की प्रगति, बड़ों का आशीर्वाद और भरपूर शांति। ‍फिर क्यों आपकी इसी दुनिया में चारों तरफ नफरतों की जंग छिड़ी हुई है। क्यों हर साल बिना किसी गुनाह के सैकड़ों लोग मारे जाते हैं? आप सबके पत्र मुझसे माँगते हैं अपने लिए जिंदगी भर की दुआएँ और आज मैं आपसे माँगता हूँ पल भर का सुकून। आप सब चाहते हैं आपकी जिंदगी में रौनक रहे, रोशनी रहे और आज मैं  आपसे चाहता हूँ इस धरती पर शांति का श्वेत उजाला बना रहे।



मैं आपको  देना चाहता हूँ शांति के सफेद कबूतर लेकिन देखता हूँ आपके हाथों में उन्हीं का लाल खून। तब तड़प उठती है मेरी आत्मा।  मत भूलना अपने देश के उन नन्हे नौनिहालों को जिनके तन पर जरूरत के कपड़े भी नहीं सजे हैं। जब बनाओं  ड्रायफ्रूट्स केक, तो मत भूलना भूख से बेहाल उन बच्चों को जिन्हें सूखी रोटी भी नसीब नहीं। और  पार्टी  झूमों, तो मत भूलना कि खुशियों का पैगाम लाने वाला आपका अपना  खुश नहीं है गंदगी में जीवन बिताने वाले हजारों बाल मजदूरों का रूप देखकर।

 आज पत्र लिख रहा हूँ उन सारे जिम्मेदार और जहीन लोगों के नाम  हैं आज मैं उनसे उपहार चाहता हूँ। चाहता हूँ कि देखें अपने आसपास के गरीब, बेबस, शारीरिक रूप से अक्षम, अनाथ, मजदूर और मजबूर इंसानों को। और मनाएँ  पावन पर्व उनको एक पल की खुशी का उपहार देकर।

यह ना कर सकें तो इतना तो कर ही सकते हैं कि इस बार खुद को खूबसूरत भावनाओं का उपहार दें कि हम हमेशा बस खुश रहेंगे और खुशियाँ देंगे। कभी दूसरों का बुरा नहीं चाहेंगे, कभी हिंसा और अहंकार के रास्ते पर नहीं चलेंगे। जब आप खुद ही नेक रास्तों पर चल पड़ेंगे ! पत्रों से छलछलाती मीठी और मासूम आकांक्षाएँ पढ़कर मैं पसीज उठता हूँ। ये पत्र चाहते हैं उनके माता-पिता कभी अलग ना हों। चाहते हैं, दादा-दादी का साथ बना रहे। दोस्तों को फीस ना भरने के कारण स्कूल ना छोड़ना पड़े। चाहते हैं दुनिया के सारे चोर सुधर जाए।
यहाँ तक कि वे चाहते हैं दुनिया के सारे हथियार समुद्र में बहा दिए जाएँ और सीमा पर तैनात सारे जवान घर लौट आए। इतने और ऐसे-ऐसे भावुक अनुरोध कि अगर दिल की गहराई से समझे तो एहसास होगा कि मूल रूप से इंसान की कृति कितनी भोली और निश्छल होती है। ना जाने कब, कैसे, कौन सी विकृति उसे डस लेती है कि वह इंसान से हैवान बन जाता है। आप सच्चे मानव बने रहे और मानवता को बना रहने दें यही मेरी  सच्ची शुभकामनाएँ हैं।
 मुझे बस एक उपहार, धरती पर बना रहे आपस में प्यार। 

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