Saturday, October 10, 2009

प्यार में जल्दबाजी ना करो

जब हमें कोई चीज पसंद आती है तो हम उसे पाने के लिए तड़प उठते हैं। सारी कोशिश यही रहती है कि वह चीज हमें किसी भी तरह मिल जाए। जमीन-आसमान एक करने के बाद वह चीज हमें मिल तो जाती है पर थोड़े ही दिनों में हमें महसूस होने लगता है कि वह चीज हमारी उम्मीद पर खरी नहीं उतरी। पछतावा होता है कि नाहक हमने अपनी उतनी मेहनत, धन और समय उस पर बरबाद किया। ठीक यही तजुर्बा व अहसास रिश्तों में जल्दबाजी करने पर भी होता है। प्यार के रिश्ते की शुरुआत करने में धीमी गति से आगे बढ़ना बहुत ही समझदारी भरा लव मंत्र है।

जब दो लोग किसी भी कारणवश बार-बार मिलते हैं तो काम के अलावा भी संवाद बनता है। रोजमर्रा की बातों में हँसी-मजाक भी शामिल होने लगता है। पहचान बढ़ती जाती है तो एक-दूसरे से कभी तबीयत का हालचाल भी पूछने लगते हैं। भूख की बात सुनने पर कोई अपना टिफिन भी पेश कर देता है। कार्य या पढ़ाई आदि की समस्या आने पर सलाह-मशविरा भी करने लगते हैं। ज्यों-ज्यों सहजता बढ़ती जाती है प्रतिक्रिया ज्यादा निजी होती जाती है।

पोशाक, हेयर स्टाइल, स्मार्ट लुक, दुखी चेहरा, खुशी का कारण जैसे कमेंट करना आम बातचीत का हिस्सा बन जाता है। ये सारी बातें आम व्यवहारिकता की बातें हैं। इसे प्यार के रिश्ते की शुरुआत या बुनियाद नहीं कहा जा सकता। पर ऐसी ही सहज बातचीत को कई बार व्यक्ति बहुत ही गंभीरता से लेने लगता है। उसे उन सारी नोंक-झोंक और रोजमर्रा की मिजाज पुर्सी में प्यार का गुमान होने लगता है। अमूमन यह वहम पाल लिया जाता है कि सामने वाला भी प्यार में मुबतला है और इसीलिए सभी सहज व्यवहार को विशेष दृष्टि से देखने की कोशिश की जाती है। यदि बीमार पड़ने पर हमदर्दी के साथ हालचाल पूछ लिया गया तो प्यार का अनुमान लगाने वाली बात और भी पक्की मान ली जाती है।

मजेदार बात यह है कि सामने वाला बस इस व्यवहारिकता को सहजता से निभाता जा रहा होता है लेकिन मन में प्यार की गलतफहमी पालने वाला हर टिप्पणी, हर सहयोग, हंसी, छुअन आदि को बस प्यार की मुहर लगाकर ही देखने लगता है। जबकि सामने वाला इस विशेष विश्लेषण से बिल्कुल अनजान है। उसे रत्ती बराबर भी अंदेशा नहीं होता है कि उसके सामान्य से व्यवहार का अलग मतलब निकाला जा रहा है। उसे क्या पता है कि अपने मन में प्यार की खयाली दुनिया बसाकर कोई बहुत ही आगे बढ़ चुका है। और उसके बाद जब प्यार के मुगालते में रहने वाला अपनी मन की बात उस व्यक्ति के समक्ष रखता है तो सामने वाला हक्का-बक्का सा रह जाता है क्योंकि वह खुद को सामान्य दोस्त से ज्यादा कुछ भी नहीं समझता है। बहुत संभव है कि उसका पहले से ही किसी के साथ प्यार का रिश्ता हो।



अक्सर ऐसे लोग आत्महीनता एवं अविश्वास की भावना का शिकार हो जाते हैं। जीवन के किसी मोड़ पर जब उसे सही व्यक्ति मिलता है तो वह उस पर भी भरोसा नहीं कर पाता है।



ऐसे में जब वह व्यक्ति अपनी स्थिति साफ करता है तो प्यार का इजहार करने वाले के पैर के नीचे से जमीन खिसक जाती है। वह अवसाद में डूब जाता है। उसे लगता है उसके साथ धोखा हुआ है। उसकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया गया है। इलजाम यह लगाया जाता है कि पहले से ही यह स्थिति क्यों नहीं साफ की गई। वह यह मानने को तैयार नहीं होता है कि इतनी नजदीकियाँ नहीं थी कि उसे प्यार के रिश्ते के बारे में बताया नहीं जाता। यदि सामने वाला भलमनसाहत में नम्रता से पेश आता है और गलतफहमी से पहुँचने वाले दुख के प्रति संवेदनशीलता का भाव रखता है तो और भी मुश्किलें ज्यादा बढ़ जाती हैं।

इसकी वजह से एक तो प्रेम का इजहार करने वाला व्यक्ति उस मनोदशा से निकल नहीं पाता है, दूसरा यह मायने भी निकाला जाता है कि सामने वाले की गलती है इसीलिए उसे गिल्ट फील हो रहा है। इससे इजहार करने वाले की स्थिति और भी गंभीर हो जाती है और उस भ्रम को तोड़ पाना कठिन हो जाता है। वह बहुत दिनों तक मानसिक तनाव से गुजरता है।

अक्सर ऐसे लोग आत्महीनता एवं अविश्वास की भावना का शिकार हो जाते हैं। जीवन के किसी मोड़ पर जब उसे सही व्यक्ति मिलता है तो वह उस पर भी भरोसा नहीं कर पाता है। उसका आत्मविश्वास इतना हिल चुका होता है कि किसी की भावना की गहराई को न तो वह समझ पाता है और न ही उसका सही आकलन कर पाता है। सबसे दुखद यह होता है कि वह जीवन भर किसी के सामने कोई भी प्रस्ताव रखने से डरता है। दोस्तों, प्यार के मामले में जल्दबाजी करना ठीक नहीं है।

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