अँधेरी रात में
जगमगाता दिया हो तुम
मेरी जीवनसंगिनी
मेरी प्राणप्रिया हो तुम
थामा है तुमने
जब से मेरा हाथ
तबसे जागी है मुझमें
जीवन जीने की आस
उम्र का यह पड़ाव
नहीं लगता अब मुझे भारी
गर मिलो तुम हर जनम
तो हँस के रूखसती की
कर लूँ मैं तैयारी
साथी चले हो तुम
दो कदम साथ
तो जीवनभर साथ निभाना
तन्हाई में छोड़ अकेला मुझे
तुम कहीं चली ना जाना।
Saturday, October 10, 2009
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