Saturday, December 5, 2009

ये रात है और अकेलापन  


तारे टिमटिमाते हैं और मेरे अकेलेपन को

और अकेला करते हैं

प्यार के पल कितने कम हैं, कितने छोटे

और अकेलेपन की रातें कितनी लंबी और सूनी

मैं जानता हूँ आसमान की गोद में

ये तारे टिमटिमाते हुए कितने सुंदर लगते हैं



लेकिन तुम्हारे बगैर यह रात एक सूनी है जिसने मुझे जकड रखा है

धीरे-धीरे मेरी आँखें मूंद जाएँगी और तुम जान भी नहीं पाओगी



meरी जिंदगी कितनी छोटी है  और तुम कितनी दूर...
मैं तुम्हें पुकारता हूँ, मैं तुम्हें पुकारता हूँ और मेरी आवाज सूनेपन के जंगल में,

पागलों की तरह भटकती रहती है,

मैं तुम्हें पुकारता हूँ,

औऱ मेरी आवाज छटपटाती हुई,

एक नदी में डूब जाती है,

मैं तुम्हें पुकारता हूँ,

और मेरी आवाज खिले फूल को चूमकर,



एक गहरी खाई में खो जाती है मैं तुम्हे पुकारता हूँ  मैं तुम्हें पुकारता हूँ मैं तुम्हें पुकारता हूँ

पर तुम सात समंदर पार हँसती हुई  एक चट्टान पर बैठी गुनगुना रही हो मैं तुम्हें पुकारता हूँ

और मेरा गला रूंधा हुआ है तुम्हें बार-बार पुकारते हुए एक दिन  और मैं हमेशा हमेशा के लिए मौन हो जाऊँगा

तुम आओगी तो मुझे नहीं पाओगी   मेरे मौन में खिला हुआ एक छोटा सा सुंदर फूल पाओगी।

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