याद आते रहे, दिल दुखाते रहे वो रह रह के हमको सताते रहे
शक्ल अपनी ही लगने लगी अजनबी आईने उलझनों को बढ़ाते रहे
वो नज़रें झुकाने की उनकी अदा हम फ़रेबेमोहब्बत खाते रहे
जिस से गुज़रे थे हम सैकड़ों मर्तबा हमारी मंज़िल वहीं वो बताते रहे
ऐसा छाया अंधेरों का हम पर सुरूर शम्मेदिल रात दिन हम जलाते रहे
साहिले पर ग़म की लहरों के बीच नाम उसका हम लिखते मिटाते रहे
कैसी दुनिया बनाई है तूने ख़ुदा कैसी है जिसको निभाते रहे
दुश्मनों से मोहब्बत सी होने लगी दोस्त ऐसे हमें आज़माते रहे
Monday, November 30, 2009
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