Saturday, December 5, 2009

शरद रात्रि में,


प्रश्नाकुल मन,

बहुत उदास,

कहता है मुझसे,

उठो, चाँद से बातें करो

और मैं,

बहने लगती हूँ

श्वेत चाँदनी में, तब,

तुम बहुत याद आते हो।


भीगी चाँदनी में

ओस की

हर बूँद

तुम्हारी याद लगती है

जिसे छुआ नहीं जा सकता।

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