Sunday, December 6, 2009

बेटियाँ शुभकामनाएँ हैं,  बेटियाँ पावन दुआएँ हैं।

बेटियाँ जीनत हदीसों की,  बेटियाँ जातक कथाएँ हैं।

बेटियाँ गुरुग्रंथ की वाणी,  बेटियाँ वैदिक ऋचाएँ हैं।

जिनमें खुद भगवान बसता है, बेटियाँ वे वन्दनाएँ हैं।

त्याग, तप, गुणधर्म, साहस की बेटियाँ गौरव कथाएँ हैं।

मुस्कुरा के पीर पीती हैं, बेटी हर्षित व्यथाएँ हैं।

लू-लपट को दूर करती हैं, ND बेटियाँ जल की घटाएँ हैं।

दुर्दिनों के दौर में देखा,     बेटियाँ  संवेदनाएँ हैं।

गर्म झोंके बने रहे बेटे,  बेटियाँ ठण्डी हवाएँ हैं।

Saturday, December 5, 2009

शरद रात्रि में,


प्रश्नाकुल मन,

बहुत उदास,

कहता है मुझसे,

उठो, चाँद से बातें करो

और मैं,

बहने लगती हूँ

श्वेत चाँदनी में, तब,

तुम बहुत याद आते हो।


भीगी चाँदनी में

ओस की

हर बूँद

तुम्हारी याद लगती है

जिसे छुआ नहीं जा सकता।
ये रात है और अकेलापन  


तारे टिमटिमाते हैं और मेरे अकेलेपन को

और अकेला करते हैं

प्यार के पल कितने कम हैं, कितने छोटे

और अकेलेपन की रातें कितनी लंबी और सूनी

मैं जानता हूँ आसमान की गोद में

ये तारे टिमटिमाते हुए कितने सुंदर लगते हैं



लेकिन तुम्हारे बगैर यह रात एक सूनी है जिसने मुझे जकड रखा है

धीरे-धीरे मेरी आँखें मूंद जाएँगी और तुम जान भी नहीं पाओगी



meरी जिंदगी कितनी छोटी है  और तुम कितनी दूर...
मैं तुम्हें पुकारता हूँ, मैं तुम्हें पुकारता हूँ और मेरी आवाज सूनेपन के जंगल में,

पागलों की तरह भटकती रहती है,

मैं तुम्हें पुकारता हूँ,

औऱ मेरी आवाज छटपटाती हुई,

एक नदी में डूब जाती है,

मैं तुम्हें पुकारता हूँ,

और मेरी आवाज खिले फूल को चूमकर,



एक गहरी खाई में खो जाती है मैं तुम्हे पुकारता हूँ  मैं तुम्हें पुकारता हूँ मैं तुम्हें पुकारता हूँ

पर तुम सात समंदर पार हँसती हुई  एक चट्टान पर बैठी गुनगुना रही हो मैं तुम्हें पुकारता हूँ

और मेरा गला रूंधा हुआ है तुम्हें बार-बार पुकारते हुए एक दिन  और मैं हमेशा हमेशा के लिए मौन हो जाऊँगा

तुम आओगी तो मुझे नहीं पाओगी   मेरे मौन में खिला हुआ एक छोटा सा सुंदर फूल पाओगी।
पहली नजर में प्यार कभी हो ही नहीं सकता, वह तो एक आकर्षण है एक दूसरे के प्रति, जो प्यार की पहली सीढ़ी से भी कोसों दूर है। जैसे दोस्ती अचानक नहीं हो सकती, वैसे ही प्यार भी अचानक नहीं हो सकता। प्यार भी दोस्ती की भाँति होता है, पहले पहले अनजानी सी पहचान, फिर बातें और मुलाकातें। सिर्फ एक नए दोस्त के नाते, इस दौरान जो तुम दोनों को नजदीक लेकर आता है वह प्यार है। कुछ लोग सोचते हैं कि अगर मेरी मेरे प्यार से शादी हो जाए तो मेरा प्यार सफल, नहीं तो असफल। ये धारणा मेरी नजर से तो बिल्कुल गलत है, क्योंकि प्यार तो नि:स्वार्थ है, जबकि शरीर को पाना तो एक स्वार्थ है। इसका मतलब तो ये हुआ कि आज तक जो किया एक दूसरे के लिए वो सिर्फ उस शरीर तक पहुँचने की चाह थी, जो प्यार का ढोंग रचाए बिन पाया नहीं जा सकता था।


मेरी नजर में तो प्यार वही है, जो एक माँ और बेटे की बीच में होता है, जो एक बहन और भाई के बीच में या फिर कहूँ बुल्ले शाह और उसके मुर्शद के बीच था। ज्यादातर लड़के और लड़कियाँ तो प्यार को हथियार बना एक दूसरे के जिस्म तक पहुँचना चाहते हैं, अगर ऐसा न हो तो दिल का टूटना किसे कहते हैं, उसने कह दिया मैं किसी और से शादी करने जा रही हूँ या जा रहा हूँ, तो इतने में दिल टूट गया। सारा प्यार एक की झटके में खत्म हो गया, क्योंकि प्यार तो किया था, लेकिन वो रूहानी नहीं था, वो तो जिस्म तक पहुँचने का एक रास्ता था, एक हथियार था। अगर वो जिस्म ही किसी और के हाथों में जाने वाला है तो प्यार किस काम का।

सच तो यह है कि प्यार तो रूहों का रिश्ता है, उसका जिस्म से कोई लेना देना ही नहीं, मजनूँ को किसी ने कहा था कि तेरी लैला तो रंग की काली है, तो मजनूँ का जवाब था कि तुम्हारी आँखें देखने वाली नहीं हैं। उसका कहना सही था, प्यार कभी सुंदरता देखकर हो ही नहीं सकता, अगर होता है तो वह केवल आकर्षण है, प्यार नहीं। माँ हमेशा अपने बच्चे से प्यार करती है, वो कितना भी बदसूरत क्यों न हो, क्योंकि माँ की आँखों में वह हमेशा ही दुनिया का सबसे खूबसूरत बच्चा होता है।

प्यार तो वो जादू है, जो मिट्टी को भी सोना बना देता है। प्यार वो रिश्ता है, जो हमको हर पल चैन देता है, कभी बेचैन नहीं करता, अगर कुछ बेचैन करता है तो वो हमारा शरीर को पाने का स्वभाव। जिन्होंने प्यार के रिश्ते को जिस्मानी रिश्तों में ढाल दिया, उन्होंने असल में प्यार का असली सुख गँवा दिया। आज उनको वह पहले की तरह उसका पास बैठकर बातें करना बोर करने लगा होगा, अब उसको निहारने की इच्छा मर गई, क्योंकि उसके शरीर को पाने के पहले तो उसको निहारते ही आए हैं, अब उसमें नया क्या है, जिसको निहारें।

एक वो जिन्होंने प्यार को हमेशा रूह का रिश्ता बनाकर रखा, और जिस्मानी रिश्तों में उसको ढलने नहीं दिया, उनको आज भी वो प्यार याद आता है, उसकी जिन्दगी में आ रहे बदलाव उनको आज भी निहारते हैं। उसको कई सालों बाद फिर निहारना आज भी उनको अच्छा लगता है। रूहानी प्यार कभी खत्म नहीं होता। वो हमेशा हमारे साथ कदम दर कदम चलता है। वो दूर रहकर भी हमको ऊर्जावान बनाता है।

Monday, November 30, 2009

हाँ पापा, मैंने प्यार किया था


उसी लड़के से

जिसे आपने मेरे लिए ढूँढा था।



उसी लड़के से

जो बेटा था आपके ही मित्र का।

हाँ पापा, मैंने प्यार किया था बस उसी से।



फिर क्या हुआ?

क्यों नहीं बन सकी मैं उसकी और वो मेरा?



मैंने तो एक अच्छी बेटी का

निभाया था ना फर्ज?

जो तस्वीर लाकर रख दी सामने

उसी को जड़ लिया था अपने दिल की फ्रेम में।



फिर क्यों हुआ ऐसा कि

नहीं हुआ उसे मुझसे प्यार?



क्या साँवली लड़कियाँ

नहीं ब्याही जाती इस देश में?



क्यों लिखते हैं कवि झूठी कविताएँ?

अगर होता जो मुझमें सलोनापन तो

क्या यूँ ठूकरा दी जाती

बिना किसी अपराध के?



पापा, आपको नहीं पता

कितना कुछ टूटा था उस दिन

जब सुना था मैंने आपको यह कहते हुए

'बस, थोड़ा सा रंग ही दबा हुआ है मेरी बेटी का

बाकि तो कुछ कमी नहीं।



उफ, मैं क्यों कर बैठी उस शो-केस में रखे

गोरे पुतले से प्यार?



मुझे देख लेना था

अपने साँवले रंग को एक बार।



सारी प्रतिभा, सारी सुघड़ताएँ

बस एक ही लम्हे में सिकुड़ सी गई थी।

और फैल गया था उस दिन

सारे घर में मेरा साँवला रंग।



कोई नहीं जानता पापा

माँ भी नहीं।

हाँ, मैंने प्यार किया था

उसी लड़के से

जिसे ढूँढा था आपने मेरे लिए।

PYAR

प्यार किया नहीं जाता, बस हो जाता है। मशहूर शायर मिर्जा गालिब के शब्दों में, 'इश्क वो आतिश है गालिब, जो लगाए न लगे और बुझाए न बुझे' और जब इश्क हो ही गया है तो कब तक इसे छिपाकर रखा जा सकता है। कहते हैं कि प्यार तो प्यार करने वाले की आँखों से झलकता है। कहा भी गया है-




'इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते।'



प्यार, इश्क और मोहब्बत महज शब्द नहीं हैं। इन शब्दों में निहित हैं कई अहसास और कई कड़वी-मीठी स्मृतियाँ। कई ऐसे अहसास जो कि कभी तो नयनों को सजल कर दें तो कभी होठों पर एक मुस्कुराहट तैर जाए। प्यार तो एक फूल के माफिक है, जिस तरह फूल अपनी खुशबू से पूरी बगिया को महका देता है, उसी तरह प्यार रूपी फूल भी अपनी स्मृति रूपी खुशबू से जीवन की बगिया को सुगंधित कर देता है।



पहला प्यार तो पहली बारिश की तरह है। जिस तरह बारिश की बूँदें तपती धरती के कलेजे पर पड़कर शीतलता प्रदान करने के साथ-साथ अपनी सौंधी सुगंध से मानव मन को महका देती हैं। बिल्कुल उसी तरह पहले प्यार की मधुर स्मृतियाँ जब प्यार करने वालों के मन मस्तिष्क पर पड़ती हैं तो प्यार करने वालों के हृदय को हर्ष विभोर कर देती हैं।



जिंदगी के सफर में चलते-चलते नजरें मिलीं और हो गया प्यार। बस होना था सो हो गया। और प्यार के अथाह समंदर में तैरते, डूबते हुए कुछ ऐसे आनंदित पलों को महसूस भी कर लिया जो किसी भी अमूल्य निधि से बढ़कर हैं लेकिन जिस तरह एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी तरह प्यार के भी दो पहलू होते हैं। सुखद और दुखद।



लेकिन यह क्या एक ही राह पर चलते-चलते पता नहीं क्या हुआ, किसने वफा निभाई और किसने की बेवफाई। शायद किसी ने न की हो पर, कुछ परिस्थितियाँ ही ऐसी बन आईं कि छूट गया हो एक-दूसरे का हाथ, एक-दूसरे का साथ। प्यार की राहों में उतरना तो बड़ा आसान है, परन्तु उन राहों पर निरंतर साथ चलते रहना बड़ा ही मुश्किल है गालिब कहते हैं,



ये इश्क नहीं आसां, इतना समझ लीजै

एक आग का दरिया है और डूबकर जाना है।



इसलिए बड़े खुशनसीब होते हैं वे लोग जिनका पहला प्यार ही उनके जीवन के सफर में हमसफर बनकर मंजिल तक साथ रहता है। कुछ लोगों का पहला प्यार बीच सफर में ही अपना दामन छुड़ाकर अपनी राह बदल लेता है और बदले में दे जाता है, चंद आँसू, मुट्ठीभर यादें और कुछ आहें।



फिर जब प्यार जिंदगी को इस दोराहे पर लाकर खड़ा कर दे तो अच्छा हो कि उस सफर को उसी मोड़ पर छोड़, अपनी राह बदलकर अपनी मंजिल की तलाश कर ली जाए।



'वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन,

उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा।'



जो लोग अपने प्यार को पा लेते हैं वे तो ताउम्र ही ईश्वर का शुक्रिया अदा करते हैं, परन्तु वे लोग जो कि किसी कारणवश अपने प्यार को नहीं पा सके वे अक्सर ही खुद से, औरों से और ईश्वर से यही शिकायत करते हैं :



'जुस्तजू जिसकी थी, उसको तो न पाया हमने'



परन्तु यह शिकायत, यह शिकवा क्यों? यह दुनिया तो एक मेले के समान है और व्यक्ति उसमें घूमने या भटकने वाला प्राणी मात्र। ईश्वर हम सबका परमपिता परमात्मा है। जिस तरह एक बच्चा मेले में घूमते हुए हर उस खिलौने को लेने की जिद करता है, लालायित रहता है जो उसे पसंद आता है लेकिन एक पिता अपने बच्चे को वही खिलौना दिलाता है जो उसके लिए बना होता है और जो नुकसानदेह नहीं होता। ठीक उसी तरह व्यक्ति भी वही सब कुछ पाना चाहता है जो कि उसके मन को लुभाता है, परंतु ईश्वर उसे वही देता है जो उसने उसके लिए बनाया होता है।



अंततः ईश्वर ने उन प्यार करने वालों को, शिकायत करने वालों को और सबको वही दिया जो कि उसने उनके लिए बनाया है। फिर कैसे गिले-शिकवे। जो मिल न सका या जिसे पा ही न सके, उसका गम मनाने से अच्छा हो जिसे पा लिया है, उसको पाने की खुशियाँ मनाई जाएँ। वही आपका है जिसे ईश्वर ने आपके लिए बना दिया है। फिर ऐसा भी तो हो सकता है कि आपने ही गलत दिल के दरवाजे पर दस्तक दी हो और फिर-



कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता

कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता।
आओ इश्क की बातें कर लें, आओ खुदा की इबादत कर लें,


तुम मुझे ले चलो कहीं पर, जहाँ हम खामोशी से बातें कर लें!!!



लबों पर कोई लफ्ज़ न रह जाए, खामोशी जहाँ खामोश हो जाए ;

सारे तूफान जहाँ थम जाए, जहाँ समंदर आकाश बन जाए।


तुम अपनी आँखों में मुझे समां लेना, मैं अपनी साँसों में तुम्हें भर लूँ,

ऐसी बस्ती में ले चलो, जहाँ, हमारे दरमियाँ कोई वजूद न रह जाए!


कोई क्या दीवारें बनाएगा, हमने अपनी दुनिया बसा ली है,

जहाँ हम और खुदा हो, उसे हमने मोहब्बत का आशियाँ नाम दिया है!


मैं दरवेश हूँ तेरी जन्नत का, रिश्तों की क्या कोई बातें करे,

किसी ने हमारा रिश्ता पूछा, मैंने दुनिया के रंगों से तेरी माँग भर दी


आओ इश्क की बातें कर लें, आओ खुदा की इबादत कर लें,

तुम मुझे ले चलो कहीं पर, जहाँ हम खामोशी से बातें कर लें!!!