माता
कृतघ्न हैं वो जो माता को आहत करते हैं
कर्तव्यों से मुँह मोड़ अधिकारों का दावा करते हैं
संतान के रक्षण हेतु माता न जाने क्या क्या करती है
पीड़ाओं को सहकर भी आँचल की छाया देती है
कभी देवकी बनकर वो निरपराध ही दंड भोगती है
कभी अग्नि में पश्चाताप की कैकयी सी बन जलती है
कृतघ्न हैं वो जो माता को आहत करते हैं
कर्तव्यों से मुँह मोड़ अधिकारों का दावा करते हैं
संतान के रक्षण हेतु माता न जाने क्या क्या करती है
पीड़ाओं को सहकर भी आँचल की छाया देती है
कभी देवकी बनकर वो निरपराध ही दंड भोगती है
कभी अग्नि में पश्चाताप की कैकयी सी बन जलती है
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