प्रेम में ईर्ष्या हो तो प्रेम ही नहीं है; फिर प्रेम के नाम से कुछ और ही चल रहा है। ईर्ष्या सूचक है प्रेम के अभाव की। यह तो ऐसा ही हुआ, जैसा दीया जले और अँधेरा हो। दीया जले तो अँधेरा होना नहीं चाहिए। अँधेरे का न हो जाना ही दीए के जलने के जलने का प्रमाण है। ईर्ष्या का मिट जाना ही प्रेम का प्रमाण है। ईर्ष्या अँधेरे जैसी है; प्रेम प्रकाश जैसा है। इसको कसौटी समझना।
जब तक ईर्ष्या रहे तब तक समझना कि प्रेम प्रेम नहीं। तब तक प्रेम के नाम से कोई और ही खेल चल रहा है; अहंकार कोई नई यात्रा कर रहा है- प्रेम के नाम से दूसरे पर मालकियत करने का मजा, प्रेम के नाम से दूसरे का शोषण, दूसरे व्यक्ति का साधन की भांति उपयोग। और दूसरे व्यक्ति का साधन की भाँति उपयोग जगत में सबसे बड़ी अनीति है। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति साध्य है, साधन नहीं।
तो भूल कर भी किसी का उपयोग मत करना। किसी के काम आ सको तो ठीक, लेकिन किसी को अपने काम में मत ले आना। इससे बड़ा कोई अपमान नहीं है कि तुम किसी को अपने काम में ले आओ। इसका अर्थ हुआ कि परमात्मा को सेवक बना लिया। सेवक बन सको तो बन जाना, लेकिन सेवक बनाना मत।
असली प्रेम उसी दिन उदय होता है जिस दिन तुम इस सत्य को समझ पाते हो कि सब तरफ परमात्मा विराजमान है। तब सेवा के अतिरिक्त कुछ बचता नहीं। प्रेम तो सेवा है, ईर्ष्या नहीं। प्रेम तो समर्पण है, मालकियत नहीं।
हम बड़े कुशल हैं। हम गंदगी को सुगंध छिड़ककर भुला देने में बड़े निपुण हैं। हम घावों के ऊपर फूल रख देने में बड़े सिद्ध हैं। हम झूठ को सच बना देने में बड़े कलाकार हैं।
जिससे नहीं बनती है उसके साथ भी हम प्रेम बतलाए जाते हैं। जिसको कभी चाहा नहीं है उसके साथ भी हम प्रेम बतलाए चले जाते हैं। प्रेम हमारी कुछ और ही व्यवस्था है - सुरक्षा, आर्थिक, जीवन की सुविधा। इसी ढाँचे से अगर तुम तृप्त हो तो तुम्हारी मर्जी। इसी ढाँचे के कारण तुम परमात्मा को चूक रहे हो, क्योंकि परमात्मा प्रेम से मिलता है। प्रेम के अतिरिक्त परमात्मा के मिलने का और कोई द्वार नहीं है। जो प्रेम से चूका वह परमात्मा से भी चूक जाएगा।
प्रेम में पहरा कहाँ? प्रेम में भरोसा होता है। प्रेम में एक आस्था होती है। प्रेम में एक अपूर्व श्रद्धा होती है। ये सब प्रेम के ही फूल हैं - श्रद्धा, भरोसा, विश्वास। प्रेमी अगर विश्वास न कर सके, श्रद्धा न कर सके, भरोसा न कर सके, तो प्रेम में फूल खिले ही नहीं। ईर्ष्या, जलन, वैमनस्य, द्वेष, मत्सर तो घृणा के फूल हैं। तो फूल तो तुम घृणा के लिए हो और सोचते हो प्रेम का पौधा लगाया है। नीम के कड़वे फल लगते हैं तुममें और सोचते हो आम का पौधा लगाया है। इस भ्रांति को तोड़ो।
प्रेम सत्य तक जाने का मार्ग बन सकता है - उस प्रेम की, जिसकी तुम तलाश कर रहे हो, लेकिन जो तम्हें अभी तक मिला नहीं है। मिल सकता है, तुम्हारी संभावना है। और जब तक न मिलेगा तब तक तुम रोओगे, तड़पोगे, परेशान होओगे। जब तक तुम्हारे जीवन का फूल न खिले और जीवन के फूल में प्रेम की सुगंध न उठे, तब तक तुम बेचैन रहोगे। अतृप्त! तब तक तुम कुछ भी करो, तुम्हें राहत न आएगी, चैन न आएगा। खिले बिना आप्तकाम न हो सकोगे। प्रेम तो फूल है।
Monday, November 30, 2009
प्रेम अनंत का द्वार खोल देता है- अस्तित्व की शाश्वतता का द्वार। इसलिए अगर तुमने कभी सच में प्रेम किया है तो प्रेम को ध्यान की विधि बनाया जा सकता है। यह वही विधि है : 'प्रिय देवी, प्रेम किए जाने के क्षण में प्रेम में ऐसे प्रवेश करो जैसे कि वह नित्य जीवन हो।'
बाहर-बाहर रहकर प्रेमी मत बनो, प्रेमपूर्ण होकर शाश्वत में प्रवेश करो। जब तुम किसी को प्रेम करते हो तो क्या तुम वहाँ प्रेमी की तरह होते हो? अगर होते हो तो समय में हो, और तुम्हारा प्रेम झूठा है, नकली है। अगर तुम अब भी वहाँ हो और कहते हो कि मैं हूँ तो शारीरिक रूप से नजदीक होकर भी आध्यात्मिक रूप से तुम्हारे बीच दो ध्रुवों की दूरी कायम रहती है।
प्रेम में तुम न रहो, सिर्फ प्रेम रहे; इसलिए प्रेम ही हो जाओ। अपने प्रेमी या प्रेमिका को दुलार करते समय दुलार ही हो जाओ। अहंकार को बिलकुल भूल जाओ, प्रेम के कृत्य में घुल-मिल जाओ। कृत्य में इतने गहरे समा जाओ कि कर्ता न रहे।
और अगर तुम प्रेम में नहीं गहरे उतर सकते तो खाने और चलने में गहरे उतरना कठिन होगा, बहुत कठिन होगा। क्योंकि अहंकार को विसर्जित करने लिए प्रेम सब से सरल मार्ग है। इसी वजह से अहंकारी लोग प्रेम नहीं कर पाते हैं। वे प्रेम के बारे में बातें कर सकते हैं, गीत गा सकते हैं, लिख सकते हैं; लेकिन वे प्रेम नहीं कर सकते। अहंकार प्रेम नहीं कर सकता है।
अपने को इस पूरी तरह भूल जाओ कि तुम कह सको कि मैं अब नहीं हूँ, केवल प्रेम है। तब हृदय नहीं धड़कता है, प्रेम ही धड़कता है। तब खून नहीं दौड़ता है, प्रेम ही दौड़ता है। तब आँखें नहीं देखती हैं, प्रेम ही देखता है। तब हाथ छूने को नहीं बढ़ते, प्रेम ही छूने को बढ़ता है। प्रेम बन जाओ और शाश्वत जीवन में प्रवेश करो।
प्रेम अचानक तुम्हारे आयाम को बदल देता है। तुम समय से बाहर फेंक दिए जाते हो, तुम शाश्वत के आमने-सामने खड़े हो जाते हो। प्रेम गहरा ध्यान बन सकता है - गहरे से गहरा। और कभी-कभी प्रेमियों ने वह जाना है
बाहर-बाहर रहकर प्रेमी मत बनो, प्रेमपूर्ण होकर शाश्वत में प्रवेश करो। जब तुम किसी को प्रेम करते हो तो क्या तुम वहाँ प्रेमी की तरह होते हो? अगर होते हो तो समय में हो, और तुम्हारा प्रेम झूठा है, नकली है। अगर तुम अब भी वहाँ हो और कहते हो कि मैं हूँ तो शारीरिक रूप से नजदीक होकर भी आध्यात्मिक रूप से तुम्हारे बीच दो ध्रुवों की दूरी कायम रहती है।
प्रेम में तुम न रहो, सिर्फ प्रेम रहे; इसलिए प्रेम ही हो जाओ। अपने प्रेमी या प्रेमिका को दुलार करते समय दुलार ही हो जाओ। अहंकार को बिलकुल भूल जाओ, प्रेम के कृत्य में घुल-मिल जाओ। कृत्य में इतने गहरे समा जाओ कि कर्ता न रहे।
और अगर तुम प्रेम में नहीं गहरे उतर सकते तो खाने और चलने में गहरे उतरना कठिन होगा, बहुत कठिन होगा। क्योंकि अहंकार को विसर्जित करने लिए प्रेम सब से सरल मार्ग है। इसी वजह से अहंकारी लोग प्रेम नहीं कर पाते हैं। वे प्रेम के बारे में बातें कर सकते हैं, गीत गा सकते हैं, लिख सकते हैं; लेकिन वे प्रेम नहीं कर सकते। अहंकार प्रेम नहीं कर सकता है।
अपने को इस पूरी तरह भूल जाओ कि तुम कह सको कि मैं अब नहीं हूँ, केवल प्रेम है। तब हृदय नहीं धड़कता है, प्रेम ही धड़कता है। तब खून नहीं दौड़ता है, प्रेम ही दौड़ता है। तब आँखें नहीं देखती हैं, प्रेम ही देखता है। तब हाथ छूने को नहीं बढ़ते, प्रेम ही छूने को बढ़ता है। प्रेम बन जाओ और शाश्वत जीवन में प्रवेश करो।
प्रेम अचानक तुम्हारे आयाम को बदल देता है। तुम समय से बाहर फेंक दिए जाते हो, तुम शाश्वत के आमने-सामने खड़े हो जाते हो। प्रेम गहरा ध्यान बन सकता है - गहरे से गहरा। और कभी-कभी प्रेमियों ने वह जाना है
अग्नि पथ!
- हरिवंशराय बच्चन
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
वृक्ष हों भले खड़े,
हो घने, हो बड़े,
एक पत्र-छॉंह भी मॉंग मत, मॉंग मत, मॉंग मत!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
तू न थकेगा कभी!
तू न थमेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी!-कर शपथ! कर शपथ! कर शपथ!
यह महान दृश्य है-
चल रहा मनुष्य है
अश्रु-श्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
वृक्ष हों भले खड़े,
हो घने, हो बड़े,
एक पत्र-छॉंह भी मॉंग मत, मॉंग मत, मॉंग मत!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
तू न थकेगा कभी!
तू न थमेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी!-कर शपथ! कर शपथ! कर शपथ!
यह महान दृश्य है-
चल रहा मनुष्य है
अश्रु-श्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
YAAD
याद आते रहे, दिल दुखाते रहे वो रह रह के हमको सताते रहे
शक्ल अपनी ही लगने लगी अजनबी आईने उलझनों को बढ़ाते रहे
वो नज़रें झुकाने की उनकी अदा हम फ़रेबेमोहब्बत खाते रहे
जिस से गुज़रे थे हम सैकड़ों मर्तबा हमारी मंज़िल वहीं वो बताते रहे
ऐसा छाया अंधेरों का हम पर सुरूर शम्मेदिल रात दिन हम जलाते रहे
साहिले पर ग़म की लहरों के बीच नाम उसका हम लिखते मिटाते रहे
कैसी दुनिया बनाई है तूने ख़ुदा कैसी है जिसको निभाते रहे
दुश्मनों से मोहब्बत सी होने लगी दोस्त ऐसे हमें आज़माते रहे
शक्ल अपनी ही लगने लगी अजनबी आईने उलझनों को बढ़ाते रहे
वो नज़रें झुकाने की उनकी अदा हम फ़रेबेमोहब्बत खाते रहे
जिस से गुज़रे थे हम सैकड़ों मर्तबा हमारी मंज़िल वहीं वो बताते रहे
ऐसा छाया अंधेरों का हम पर सुरूर शम्मेदिल रात दिन हम जलाते रहे
साहिले पर ग़म की लहरों के बीच नाम उसका हम लिखते मिटाते रहे
कैसी दुनिया बनाई है तूने ख़ुदा कैसी है जिसको निभाते रहे
दुश्मनों से मोहब्बत सी होने लगी दोस्त ऐसे हमें आज़माते रहे
Monday, November 16, 2009
TUM MERE HO
तुम... जिंदगी का एहसास हो...कुछ सपनों की खुशबू हो कोई फरियाद हो किस से कहूँ कि तुम मेरे हो
...किसी किताब में रखा कोई सूखा फूल हो किसी गीत में रुका हुआ कोई अंतरा हो किसी सड़क पर ठहरा हुआ मोड़ हो
तुम...किसी अजनबी रिश्ते की आंच हो अनजानी धड़कन का नाम हो किसी नदी में ठहरी हुई धारा हो
तुम...किसी आँसू में रुकी हुई सिसकी हो किसी खामोशी के जज्बात हो किसी मोड़ पर टूटा हुआ हाथ हो किससे कहूँ कि तुम मेरे हो
तुम...हाँ, मेरे अपने सपनों में तुम हो हाँ, मेरी आखिरी फरियाद तुम हो हाँ, मेरी अपनी जिंदगी का एहसास हो मैं तुम्हें कभी नहीं भूलूँगा कितुम मेरी चाहत का एक हिस्सा हो शायद, तुम मेरे हो तुम हाँ... तुम...हाँ, मेरे अपने सपनों में तुम हो हाँ, मेरी आखिरी फरियाद तुम हो हाँ, मेरी अपनी जिंदगी का एहसास हो कोई हाँ, तुम मेरे हो हाँ, तुम मेरे हो हाँ, तुम मेरे हो
...किसी किताब में रखा कोई सूखा फूल हो किसी गीत में रुका हुआ कोई अंतरा हो किसी सड़क पर ठहरा हुआ मोड़ हो
तुम...किसी अजनबी रिश्ते की आंच हो अनजानी धड़कन का नाम हो किसी नदी में ठहरी हुई धारा हो
तुम...किसी आँसू में रुकी हुई सिसकी हो किसी खामोशी के जज्बात हो किसी मोड़ पर टूटा हुआ हाथ हो किससे कहूँ कि तुम मेरे हो
तुम...हाँ, मेरे अपने सपनों में तुम हो हाँ, मेरी आखिरी फरियाद तुम हो हाँ, मेरी अपनी जिंदगी का एहसास हो मैं तुम्हें कभी नहीं भूलूँगा कितुम मेरी चाहत का एक हिस्सा हो शायद, तुम मेरे हो तुम हाँ... तुम...हाँ, मेरे अपने सपनों में तुम हो हाँ, मेरी आखिरी फरियाद तुम हो हाँ, मेरी अपनी जिंदगी का एहसास हो कोई हाँ, तुम मेरे हो हाँ, तुम मेरे हो हाँ, तुम मेरे हो
PREM
प्रेम को अभिव्यक्त करने की सर्वोत्तम भाषा मौन है, क्योंकि प्रेम मानव मन का वह भाव है, जो कहने-सुनने के लिए नहीं बल्कि समझने के लिए होता है या उससे भी बढ़कर महसूस करने के लिए होता है। प्रेम ही मानव जीवन की नींव है। प्रेम के बिना सार्थक एवं सुखमय इंसानी जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती है। प्रेम की परिभाषा शब्दों की सहायता से संभव ही नहीं है।सारे शब्दों के अर्थ जहां जाकर अर्थरहित हो जाते हैं, वहीं से प्रेम के बीज का प्रस्फुटन होता है। वहीं से प्रेम की परिभाषा आरंभ होती है। प्रेम का अर्थ शब्दों से परे है।
प्रेम एक सुमधुर सुखद अहसास मात्र है। प्रेम की मादकता भरी खुशबू को केवल महसूस किया जा सकता है। प्रेम का अहसास अवर्णनीय है। इसलिए इस मधुर अहसास के विश्लेषण की भाषा को मौन कहा गया है। प्रेम को शब्द रूपी मोतियों की सहायता से भावना की डोर में पिरोया तो जा सकता है किंतु उसकी व्याख्या नहीं की जा सकती है क्योंकि जिसे परिभाषित किया जा सकता है, जिसकी व्याख्या की जा सकती है, वह चीज तो एक निश्चित दायरे में सिमटकर रह जाती है जबकि प्रेम तो सर्वत्र है। प्रेम के अभाव में जीवन कोरी कल्पना से ज्यादा कुछ नहीं।प्रेम इंसान की आत्मा में पलने वाला एक पवित्र भाव है। दिल में उठने वाली भावनाओं को आप बखूबी व्यक्त कर सकते हैं किंतु यदि आपके हृदय में किसी के प्रति प्रेम है तो आप उसे अभिव्यक्त कर ही नहीं सकते, क्योंकि यह एक अहसास है और अहसास बेजुबान होता है, उसकी कोई भाषा नहीं होती।
प्रेम में बहुत शक्ति होती है। इसकी सहायता से सब कुछ संभव है तभी तो प्यार की बेजुबान बोली जानवर भी बखूबी समझ लेते हैं।प्यार कब, क्यों, कहाँ, कैसे और किससे हो जाए, इस विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता। इसके लिए पहले से कोई व्यक्ति, विशेष स्थान, समय, परिस्थिति आदि कुछ भी निर्धारित नहीं है। जिसे प्यार जैसी दौलत मिल जाए उसका तो जीवन के प्रति नजरिया ही इंद्रधनुषी हो जाता है। उसे सारी सृष्टि बेहद खूबसूरत नजर आने लगती है। प्रेम के अनेक रूप हैं। बचपन में माता-पिता, भाई-बहनों का प्यार, स्कूल-कॉलेज में दोस्तों का प्यार, दाम्पत्य जीवन में पति-पत्नी का प्यार। प्रेम ही हमारी जीवन की आधारशिला है तभी तो मानव जीवन के आरंभ से ही धरती पर प्रेम की पवित्र निर्मल गंगा हमारे हर कदम के साथ बह रही है। किसी शायर ने क्या खूब कहा है-साँसों से नहीं, कदमों से नहीं,मुहब्बत से चलती है दुनिया।सच्चा प्यार केवल देने और देते रहने में ही विश्वास करता है। जहां प्यार है, वहां समर्पण है। जहां समर्पण है, वहां अपनेपन की भावना है और जहां यह भावना रूपी उपजाऊ जमीन है, वहीं प्रेम का बीज अंकुरित होने की संभावना है।
जिस प्रकार सीने के लिए धड़कन जरूरी है, उसी तरह जीवन के लिए प्रेम आवश्यक है। तभी तो प्रेम केवल जोड़ने में विश्वास रखता है न कि तोड़ने में।सही मायने में सच्चा एवं परिपक्व प्रेम वह होता है, जो कि अपने प्रिय के साथ हर दुःख-सुख, धूप-छाँव, पीड़ा आदि में हर कदम सदैव साथ रहता है और अहसास कराता है कि मैं हर हाल में तुम्हारे साथ, तुम्हारे लिए हूं। प्रेम को देखने-परखने के सबके नजरिए अलग हो सकते हैं, किंतु प्रेम केवल प्रेम ही है और प्रेम ही रहेगा क्योंकि अभिव्यक्ति का संपूर्ण कोष रिक्त हो जाने के बावजूद और अहसासों की पूर्णता पर पहुंचने के बाद भी प्रेम केवल प्रेम रहता है।
प्रेम एक सुमधुर सुखद अहसास मात्र है। प्रेम की मादकता भरी खुशबू को केवल महसूस किया जा सकता है। प्रेम का अहसास अवर्णनीय है। इसलिए इस मधुर अहसास के विश्लेषण की भाषा को मौन कहा गया है। प्रेम को शब्द रूपी मोतियों की सहायता से भावना की डोर में पिरोया तो जा सकता है किंतु उसकी व्याख्या नहीं की जा सकती है क्योंकि जिसे परिभाषित किया जा सकता है, जिसकी व्याख्या की जा सकती है, वह चीज तो एक निश्चित दायरे में सिमटकर रह जाती है जबकि प्रेम तो सर्वत्र है। प्रेम के अभाव में जीवन कोरी कल्पना से ज्यादा कुछ नहीं।प्रेम इंसान की आत्मा में पलने वाला एक पवित्र भाव है। दिल में उठने वाली भावनाओं को आप बखूबी व्यक्त कर सकते हैं किंतु यदि आपके हृदय में किसी के प्रति प्रेम है तो आप उसे अभिव्यक्त कर ही नहीं सकते, क्योंकि यह एक अहसास है और अहसास बेजुबान होता है, उसकी कोई भाषा नहीं होती।
प्रेम में बहुत शक्ति होती है। इसकी सहायता से सब कुछ संभव है तभी तो प्यार की बेजुबान बोली जानवर भी बखूबी समझ लेते हैं।प्यार कब, क्यों, कहाँ, कैसे और किससे हो जाए, इस विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता। इसके लिए पहले से कोई व्यक्ति, विशेष स्थान, समय, परिस्थिति आदि कुछ भी निर्धारित नहीं है। जिसे प्यार जैसी दौलत मिल जाए उसका तो जीवन के प्रति नजरिया ही इंद्रधनुषी हो जाता है। उसे सारी सृष्टि बेहद खूबसूरत नजर आने लगती है। प्रेम के अनेक रूप हैं। बचपन में माता-पिता, भाई-बहनों का प्यार, स्कूल-कॉलेज में दोस्तों का प्यार, दाम्पत्य जीवन में पति-पत्नी का प्यार। प्रेम ही हमारी जीवन की आधारशिला है तभी तो मानव जीवन के आरंभ से ही धरती पर प्रेम की पवित्र निर्मल गंगा हमारे हर कदम के साथ बह रही है। किसी शायर ने क्या खूब कहा है-साँसों से नहीं, कदमों से नहीं,मुहब्बत से चलती है दुनिया।सच्चा प्यार केवल देने और देते रहने में ही विश्वास करता है। जहां प्यार है, वहां समर्पण है। जहां समर्पण है, वहां अपनेपन की भावना है और जहां यह भावना रूपी उपजाऊ जमीन है, वहीं प्रेम का बीज अंकुरित होने की संभावना है।
जिस प्रकार सीने के लिए धड़कन जरूरी है, उसी तरह जीवन के लिए प्रेम आवश्यक है। तभी तो प्रेम केवल जोड़ने में विश्वास रखता है न कि तोड़ने में।सही मायने में सच्चा एवं परिपक्व प्रेम वह होता है, जो कि अपने प्रिय के साथ हर दुःख-सुख, धूप-छाँव, पीड़ा आदि में हर कदम सदैव साथ रहता है और अहसास कराता है कि मैं हर हाल में तुम्हारे साथ, तुम्हारे लिए हूं। प्रेम को देखने-परखने के सबके नजरिए अलग हो सकते हैं, किंतु प्रेम केवल प्रेम ही है और प्रेम ही रहेगा क्योंकि अभिव्यक्ति का संपूर्ण कोष रिक्त हो जाने के बावजूद और अहसासों की पूर्णता पर पहुंचने के बाद भी प्रेम केवल प्रेम रहता है।
Sunday, October 25, 2009
चाहत
समय बीतने के साथ-साथ हम कुछ लोगों के व्यवहार से इतने परिचित हो जाते हैं कि हमें मालूम होता है कि यदि ऐसी स्थिति हुई तो उसकी वैसी प्रतिक्रिया होगी। इसलिए तनाव की गुंजाइश कम होती है क्योंकि हमारी मानसिक तैयारी उस प्रतिक्रिया से सामना करने की बन जाती है। पर बहुत से लोग ऐसे होते हैं कि हम उनके बेहद करीब हों फिर भी हम सुनिश्चित नहीं कर पाते कि किन हालात में उस व्यक्ति विशेष का क्या व्यवहार होगा।अक्सर अप्रत्याशित व्यवहार के कारण यह तनाव और दुविधा बनी रहती है कि न जाने क्या होने वाला है। गुस्सा होगा तो किस हद तक होगा और खुशी होगी तो कितनी देर की होगी। नाराजगी कब तक चलेगी और कैसे मनाया जाए उसे। ऐसे रवैये से रिश्तों पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है। खासकर वह व्यक्ति ही पीड़ित होता है जिसे यह मनमौजी व्यवहार झेलना पड़ता है। उस व्यक्ति के लिए प्यार करना गुनाह करने के समान हो जाता है। न तो उससे नाता तोड़ते बनता है और न ही पूर्ण रूप से उसे आत्मसात करते बनता है। यह द्वंद्व की स्थिति निश्चित रूप से रिश्ते को मजबूत होने नहीं देती वह कभी तो उसका बेहद ख्याल रखता है और कभी लापरवाह हो जाता है, जैसे उसे उसकी किसी भी परेशानी से कोई फर्क ही नहीं पड़ता है। ऐसा क्या किया जाए कि आप दोनों में समझबूझ विकसित हो जाए या फिर आप उसे भूल जाएँ जोकि आपको असंभव सा लगता है। करता है। दरअसल, जब कोई रिश्ता केवल किसी एक व्यक्ति की जरूरत पर आधारित हो तो उस रिश्ते के स्थायित्व पर प्रश्नचिह्न लग ही जाता है। दोनों के लिए खुशी, चिंता, दुख, ग्लानि की समान गुंजाइश नहीं रहती है। दूसरा व्यक्ति निर्विकार रूप से उस रिश्ते में रहता है। जब मूड हुआ, दया आई या उसे संग और संवाद की जरूरत महसूस हुई तो समय दे दिया वरना अन्य दिनचर्या में उस रिश्ते का स्थान नहीं। अनुभव यही बताते हैं कि केवल किसी एक के कंधे पर ऐसे रिश्ते का बोझ डालकर ज्यादा समय तक नहीं चला जा सकता है। एक अकेला व्यक्ति कहाँ तक संबंध की गाड़ी खींच पाएगा। वह न केवल बुरी तरह थक जाएगा बल्कि टूट भी जाएगा। ऐसे में यदि रिश्ता समाप्त हो जाए तो उसके पास अपना आगे जीवन संवारने के लिए ताकत नहीं बचेगी। ऐसे एकतरफा रिश्ते से जी कड़ा करके निकल जाना चाहिए। यदि दोनों व्यक्ति की चाहत समान नहीं है तो आज न कल उस रिश्ते को टूटना ही है। उसके लिए मानसिक रूप से तैयार हो जाएं यही बेहतर है। आपको लग सकता है कि उसके पास समय का अभाव है। लेकिन यदि किसी की नीयत साफ है तो समय की कमी ज्यादा मायने नहीं रखती है। वह वाजिब वजह बता सकते हैं और सामने वाले को उस पर यकीन भी होगा पर यदि किसी व्यक्ति में आपके साथ समय बिताने की इच्छा ही न हो तो वैसे व्यक्ति से समय की कमी का रोना रोना कहाँ की अक्लमंदी होगी। हो सकता है कि आपके साथी के पास सचमुच समय का अभाव हो, वह यह सोचता हो कि आप झगडने के बजाय उसकी इस दिक्कत को समझेंगी। पर, जो बात सबसे ज्यादा इस रिश्ते में अखर रही है, वह है झगड़ा होने पर हमेशा आपके द्वारा पहल करना, मनाना, माफी माँगना। सप्ताह बीतने के बाद भी उसे आपसे संवाद बनाने के लिए तड़प नहीं महसूस होती है बल्कि आप ही बेचैन होकर उसे मनाने चल पड़ती हैं। इसका क्या अर्थ निकाला जाए। आपका दोस्त हमेशा यही सोचता है कि पूरी गलती आपकी है इसलिए माफी भी उसे ही माँगनी पड़ेगी। दूसरा, आप बोलें या रूठे उसकी बला से। घुटने टेकती हैं तो ठीक है वरना आप जाएँ अपनी राह। किसी भी रिश्ते की सबसे दुखद स्थिति है, एक-दूसरे का सम्मान नहीं करना। एक-दूसरे को गंभीरता से नहीं लेना। प्यार व परवाह करना थोड़ा कम हो तो चल सकता है पर कुछ घटने पर जवाबदेही महसूस नहीं करना, उसे बस हलकेपन से लेना, बेहद अपमानजनक स्थिति है। कभी भी झगड़े को सुलझाने के लिए पहल नहीं करना, ऐलानिया तौर पर यह कहना है कि मुझे तुम्हारे दुख-दर्द से कोई मतलब नहीं है और न ही मैं तुम्हारी भावना की कद्र करता हूँ। पर जब भी दो व्यक्ति के बीच अनबन या झगड़ा होता है तो ज्यादा या कम गलती दोनों की होती है। समझदारी का ठेका केवल एक व्यक्ति को तो सौंपा नहीं जा सकता है न!
आप सँभल जाएँ और परिपक्व व्यवहार करें। आपने बहुत प्यार, दुलार, मनुहार लुटाया है अब उसे भी मौका दें। यदि वह पहल नहीं करता है, लौटकर नहीं आता है तो आपको अपने संबंध के भविष्य का जवाब मिल गया।
आप काफी हद तक समझ गई होंगी कि आपका रिश्ता कितना परिपक्व है। कितनी दूर यह चल सकता है। अपने जीवन में शांति, सुकून और उज्ज्वल भविष्य चाहिए तो अपना जी कड़ा करके एक बार महीना-छह महीना के लिए किसी काम में व्यस्त हो जाएँ। आपको जितनी मानसिक तकलीफ हो, आप उससे संपर्क न करें। अगर उसे सचमुच आपकी दोस्ती और प्यार की जरूरत है तो वह अपनी आदत बदलकर आपसे बात करने की पहल करेगा। अब विचलित और उत्तेजित होने की उसकी बारी है। आप सँभल जाएँ और परिपक्व व्यवहार करें। आपने बहुत प्यार, दुलार, मनुहार लुटाया है अब उसे भी मौका दें। यदि वह पहल नहीं करता है, लौटकर नहीं आता है तो आपको अपने संबंध के भविष्य का जवाब मिल गया। यदि वह समझदारी और सम्मान से पेश आता है तो आप भी उतावलेपन के बजाय थोड़ा धैर्य और समझदारी दिखाएँ। रो-रोकर माँगी हुई भीख से संबंध कितने दिन टिकाऊ और खुशियों भरा हो सकता है, जहाँ दोनों एक दूसरे की भावना का आदर करें और बराबर की चाहत महसूस करे
आप सँभल जाएँ और परिपक्व व्यवहार करें। आपने बहुत प्यार, दुलार, मनुहार लुटाया है अब उसे भी मौका दें। यदि वह पहल नहीं करता है, लौटकर नहीं आता है तो आपको अपने संबंध के भविष्य का जवाब मिल गया।
आप काफी हद तक समझ गई होंगी कि आपका रिश्ता कितना परिपक्व है। कितनी दूर यह चल सकता है। अपने जीवन में शांति, सुकून और उज्ज्वल भविष्य चाहिए तो अपना जी कड़ा करके एक बार महीना-छह महीना के लिए किसी काम में व्यस्त हो जाएँ। आपको जितनी मानसिक तकलीफ हो, आप उससे संपर्क न करें। अगर उसे सचमुच आपकी दोस्ती और प्यार की जरूरत है तो वह अपनी आदत बदलकर आपसे बात करने की पहल करेगा। अब विचलित और उत्तेजित होने की उसकी बारी है। आप सँभल जाएँ और परिपक्व व्यवहार करें। आपने बहुत प्यार, दुलार, मनुहार लुटाया है अब उसे भी मौका दें। यदि वह पहल नहीं करता है, लौटकर नहीं आता है तो आपको अपने संबंध के भविष्य का जवाब मिल गया। यदि वह समझदारी और सम्मान से पेश आता है तो आप भी उतावलेपन के बजाय थोड़ा धैर्य और समझदारी दिखाएँ। रो-रोकर माँगी हुई भीख से संबंध कितने दिन टिकाऊ और खुशियों भरा हो सकता है, जहाँ दोनों एक दूसरे की भावना का आदर करें और बराबर की चाहत महसूस करे
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