पिता
पिता वह आग जो पकाता है घड़े को, लेकिन जलाता नहीं जरा भी। वह ऐसी चिंगारी जो जरूरत के वक्त बेटे को तब्दील करता है शोले में।
पिता वह आग जो पकाता है घड़े को, लेकिन जलाता नहीं जरा भी। वह ऐसी चिंगारी जो जरूरत के वक्त बेटे को तब्दील करता है शोले में।
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