हमारे
रोजमर्रा के जीवन में हर दिन कोई-न-कोई ऐसी घटना घटती ही है, जो हमें आहत
करती है, उद्वेलित करती है। बड़ों की टोका-टोकी या छोटों की जिद्द, सहयोगी
की टीका-टिप्पणी, छल या फिर मीनमेख निकालना ऐसी बातें जो होती तो छोटी
हैं, लेकिन दिल से लगा लेने पर ये बड़ी होती चली जाती हैं और मानसिक क्लेश
का कारण बनती हैं।
छोटी-छोटी बातें जो हमें डिस्टर्ब या उद्वेलित कर देती हैं, उन पर यदि 'जाने भी दो' की खाक डाल दी जाए तो हम बहुत सारी भावनात्मक ऊब-डूब से बच सकते हैं। आखिर ये सच है कि जो नुकसान होना था, वो तो हो ही चुका था। अब उस नुकसान को याद करते हुए मजा खराब करने में क्या तुक है? इससे नुकसान की भरपाई तो नहीं की जा सकती है न...! इसकी बजाय ये सोचा जाए कि यदि नुकसान अपनी वजह से हुआ है तो उसकी पुनरावृत्ति से किस तरह बचा जाए? और यदि नुकसान होने में हमारा कोई हाथ नहीं है तो फिर उस नुकसान को कम कैसे किया जाए?
इसलिए अब जब भी कभी कोई मन दुखाने वाली बात सामने आए या कोई आपका अपना मन दुखा कर चला जाए तो एक गहरी सांस लें और खुद से कहें जाने भी दो ना ..
छोटी-छोटी बातें जो हमें डिस्टर्ब या उद्वेलित कर देती हैं, उन पर यदि 'जाने भी दो' की खाक डाल दी जाए तो हम बहुत सारी भावनात्मक ऊब-डूब से बच सकते हैं। आखिर ये सच है कि जो नुकसान होना था, वो तो हो ही चुका था। अब उस नुकसान को याद करते हुए मजा खराब करने में क्या तुक है? इससे नुकसान की भरपाई तो नहीं की जा सकती है न...! इसकी बजाय ये सोचा जाए कि यदि नुकसान अपनी वजह से हुआ है तो उसकी पुनरावृत्ति से किस तरह बचा जाए? और यदि नुकसान होने में हमारा कोई हाथ नहीं है तो फिर उस नुकसान को कम कैसे किया जाए?
इसलिए अब जब भी कभी कोई मन दुखाने वाली बात सामने आए या कोई आपका अपना मन दुखा कर चला जाए तो एक गहरी सांस लें और खुद से कहें जाने भी दो ना ..
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