'माँ, तुम भी ना! बहुत सवाल करती हो? मैं और सुमि तुम्हें कितनी बार तो बता चुके हैं। एक बार ठीक से समझ लिया करो ना! पच्चीसों बार पूछ चुकी हो, रामी बुआ के बेटे की शादी का कार्यक्रम। समय पर आपको ले चलेंगे ना!' भुनभुनाता हुआ बेटा बोले जा रहा था, ''अभी मुझे ऑफिस में देर हो रही है। सुमि! माँ को सारे कार्यक्रम जरा एक बार और बता देना। अब बार-बार मत पूछना माँ! कहते हुए बेटा बैग उठाकर निकल गया।
माँ की आँखें भर आई। आजकल कोई बात याद ही नहीं रहती, पर फिर भी बरसों पुरानी बातें याद थीं। यही मुन्ना दिन में सौ मर्तबा पूछता रहता था- माँ, बताओ ना! तितली का रंग हाथ में क्यों लग गया? क्या वो पीले रंग से होली खेल कर आई है? माँ, हम मंदिर जाते हैं तो भगवान बोलते क्यों नहीं? भगवान सुनते कैसे हैं? बताओ ना माँ?
आँखें भर आने से माँ की आँखें धुँधलाने लगी थी।
Sunday, May 9, 2010
माँ, समूची धरती पर बस यही एक रिश्ता है जिसमें कोई छल कपट नहीं होता। कोई स्वार्थ, कोई प्रदूषण नहीं होता। इस एक रिश्ते में निहित है अनंत गहराई लिए छलछलाता ममता का सागर। शीतल, मीठी और सुगंधित बयार का कोमल अहसास। इस रिश्ते की गुदगुदाती गोद में ऐसी अनुभूति छुपी है मानों नर्म-नाजुक हरी ठंडी दूब की भावभीनी बगिया में सोए हों।
माँ, इस एक शब्द को सुनने के लिए नारी अपने समस्त अस्तित्व को दाँव पर लगाने को तैयार हो जाती है। नारी अपनी संतान को एक बार जन्म देती है। लेकिन गर्भ की अबोली आहट से लेकर उसके जन्म लेने तक वह कितने ही रूपों में जन्म लेती है। यानी एक शिशु के जन्म के साथ ही स्त्री के अनेक खूबसूरत रूपों का भी जन्म होता है।
पल- पल उसके ह्रदय समुद्र में ममता की उद्दाम लहरें आलोडि़त होती है। अपने हर 'ज्वार' के साथ उसका रोम-रोम अपनी संतान पर न्योछावर होने को बेकल हो उठता है। नारी अपने कोरे कुँवारे रूप में जितनी सलोनी होती है उतनी ही सुहानी वह विवाहिता होकर लगती है लेकिन उसके नारीत्व में संपूर्णता आती है माँ बन कर। संपूर्णता के इस पवित्र भाव को जीते हुए वह एक अलौकिक प्रकाश से भर उठती है। उसका चेहरा अपार कष्ट के बावजूद हर्ष से चमकने लगता है। उसकी आँखों में खुशियों के सैकड़ों दीप झिलमिलाने लगते हैं।
माँ के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए एक दिवस नहीं एक सदी भी कम है। किसी ने कहा है ना कि सारे सागर की स्याही बना ली जाए और सारी धरती को कागज मान कर लिखा जाए तब भी माँ की महिमा नहीं लिखी जा सकती। मातृ दिवस पर हर माँ को उसके अनमोल मातृत्व की बधाई।
माँ, इस एक शब्द को सुनने के लिए नारी अपने समस्त अस्तित्व को दाँव पर लगाने को तैयार हो जाती है। नारी अपनी संतान को एक बार जन्म देती है। लेकिन गर्भ की अबोली आहट से लेकर उसके जन्म लेने तक वह कितने ही रूपों में जन्म लेती है। यानी एक शिशु के जन्म के साथ ही स्त्री के अनेक खूबसूरत रूपों का भी जन्म होता है।
पल- पल उसके ह्रदय समुद्र में ममता की उद्दाम लहरें आलोडि़त होती है। अपने हर 'ज्वार' के साथ उसका रोम-रोम अपनी संतान पर न्योछावर होने को बेकल हो उठता है। नारी अपने कोरे कुँवारे रूप में जितनी सलोनी होती है उतनी ही सुहानी वह विवाहिता होकर लगती है लेकिन उसके नारीत्व में संपूर्णता आती है माँ बन कर। संपूर्णता के इस पवित्र भाव को जीते हुए वह एक अलौकिक प्रकाश से भर उठती है। उसका चेहरा अपार कष्ट के बावजूद हर्ष से चमकने लगता है। उसकी आँखों में खुशियों के सैकड़ों दीप झिलमिलाने लगते हैं।
माँ के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए एक दिवस नहीं एक सदी भी कम है। किसी ने कहा है ना कि सारे सागर की स्याही बना ली जाए और सारी धरती को कागज मान कर लिखा जाए तब भी माँ की महिमा नहीं लिखी जा सकती। मातृ दिवस पर हर माँ को उसके अनमोल मातृत्व की बधाई।
आज मातृ दिवस है। यह दिन 'मात्र' दिवस बन कर ना रह जाए, इसलिए शब्दों के गंधरहित फूल और भावनाओं के छलछलाते अर्घ्य
आप हमारे दिल के सबसे करीब होतीं है। इस गहराई का अंदाजा इस बात से लगा सकतीं है कि यह बात हम कभी जुबान पर नहीं ला पाते, और जो बात जुबान पर नहीं आ पाती वही सबसे सच्ची होती है। तो यह हुआ पहला अपराध- हम कभी नहीं कहते कि आप हमारे लिए कितनी स्पेशल है, जबकि सच यही है।
हम उस वक्त कभी फ्री नहीं होते जब आपको हमसे कुछ कहना होता है। हमें हमेशा लगता है कि आपसे तो हम बाद में भी बात कर लेंगे(यह बात और है कि वो 'बाद' कभी नहीं आता) या फिर माँ की बातें हमेशा इतनी एक-सी होती है कि हमें लगभग रट चुकी होती है।
लू से बचने के लिए गुलाब जल मिलाकर रूई के फाहे कान में लगाना, भूखे मत रहना, शाम को जल्दी घर आ जाना, गाड़ी धीरे चलाना, दोस्तों के साथ कहीं बिना बताएँ मत जाना, 'ऐसी-वैसी' आदत मत डालना,दवाई समय पर लेना, तबियत का ख्याल रखना, तुम ठीक तो हो ना, आज परेशान क्यों लग रहे हो, थके हुए क्यों हो?
कहाँ गए थे, कितनी बजे आओगे, किसके साथ जा रहे हो, सबका फोन नंबर देकर जाओ, थोड़ा पढ़ भी लिया करों, ट्यूशन पर देर नहीं हो रही, टेप धीमे चलाया करो, मोबाइल को चुल्हे में डाल दूँगी, रात को इसे बंद क्यो नहीं करते, दिन भर एसएमएस, 24 घंटे लैपटॉप...
हाँ, तो इन सारी हिदायतों के नॉनस्टॉप प्रसारण की वजह से हम आपको लेकर लापरवाह हो जाते हैं लेकिन सारी संतानों की तरफ से मेरा ऑनेस्ट कन्फेशन कि यह सारी बातें हमें आपके सामने कितनी ही बुरी लगे लेकिन अकेले में या शहर से बाहर जब पिज्जा-बर्गर से पेट भरते हैं, या हल्के से जुकाम में भी बेहाल हो जाते हैं तब बेहद शिद्दत से याद आती है। और यकीन मानिए कि गाड़ी चलाते समय आपकी आवाज कानों में गुँजती है और हम गाड़ी की रफ्तार कम कर लेते हैं।
खाना खाते समय आप सामने नजर आतीं है और हम धीरे-धीरे चबा-चबाकर खाना शुरु कर देते हैं। विश्वास कीजिए कि हमारे दिल-दिमाग पर आप ही का असली राज है। अपराध तो स्वीकारना होगा कि हम आपकी बातों को आपके सामने गंभीरता से नहीं लेते।
कभी-कभी हमें लगता है आप हमें शरीर से तो बड़े होते हुए देखना चाहती है लेकिन मन से हमें बच्चे के रूप में ही पसंद करतीं है।
माँ से भी कोई माफी माँगता है भला? ना, माँ तो वह, जो अपनी होती है, बहुत अच्छी होती है और उससे माफी नहीं माँगी जाती इसीलिए तो वह सबसे स्पेशल होती है। क्योंकि वह कभी नहीं रूठती। कभी भी नहीं। दुनिया की सारी मम्मियों, दुनिया के सारे बच्चे आज आपको आई लव यू कहना चाहते हैं। आप सुन रही है ना?
आप हमारे दिल के सबसे करीब होतीं है। इस गहराई का अंदाजा इस बात से लगा सकतीं है कि यह बात हम कभी जुबान पर नहीं ला पाते, और जो बात जुबान पर नहीं आ पाती वही सबसे सच्ची होती है। तो यह हुआ पहला अपराध- हम कभी नहीं कहते कि आप हमारे लिए कितनी स्पेशल है, जबकि सच यही है।
हम उस वक्त कभी फ्री नहीं होते जब आपको हमसे कुछ कहना होता है। हमें हमेशा लगता है कि आपसे तो हम बाद में भी बात कर लेंगे(यह बात और है कि वो 'बाद' कभी नहीं आता) या फिर माँ की बातें हमेशा इतनी एक-सी होती है कि हमें लगभग रट चुकी होती है।
लू से बचने के लिए गुलाब जल मिलाकर रूई के फाहे कान में लगाना, भूखे मत रहना, शाम को जल्दी घर आ जाना, गाड़ी धीरे चलाना, दोस्तों के साथ कहीं बिना बताएँ मत जाना, 'ऐसी-वैसी' आदत मत डालना,दवाई समय पर लेना, तबियत का ख्याल रखना, तुम ठीक तो हो ना, आज परेशान क्यों लग रहे हो, थके हुए क्यों हो?
कहाँ गए थे, कितनी बजे आओगे, किसके साथ जा रहे हो, सबका फोन नंबर देकर जाओ, थोड़ा पढ़ भी लिया करों, ट्यूशन पर देर नहीं हो रही, टेप धीमे चलाया करो, मोबाइल को चुल्हे में डाल दूँगी, रात को इसे बंद क्यो नहीं करते, दिन भर एसएमएस, 24 घंटे लैपटॉप...
हाँ, तो इन सारी हिदायतों के नॉनस्टॉप प्रसारण की वजह से हम आपको लेकर लापरवाह हो जाते हैं लेकिन सारी संतानों की तरफ से मेरा ऑनेस्ट कन्फेशन कि यह सारी बातें हमें आपके सामने कितनी ही बुरी लगे लेकिन अकेले में या शहर से बाहर जब पिज्जा-बर्गर से पेट भरते हैं, या हल्के से जुकाम में भी बेहाल हो जाते हैं तब बेहद शिद्दत से याद आती है। और यकीन मानिए कि गाड़ी चलाते समय आपकी आवाज कानों में गुँजती है और हम गाड़ी की रफ्तार कम कर लेते हैं।
खाना खाते समय आप सामने नजर आतीं है और हम धीरे-धीरे चबा-चबाकर खाना शुरु कर देते हैं। विश्वास कीजिए कि हमारे दिल-दिमाग पर आप ही का असली राज है। अपराध तो स्वीकारना होगा कि हम आपकी बातों को आपके सामने गंभीरता से नहीं लेते।
कभी-कभी हमें लगता है आप हमें शरीर से तो बड़े होते हुए देखना चाहती है लेकिन मन से हमें बच्चे के रूप में ही पसंद करतीं है।
माँ से भी कोई माफी माँगता है भला? ना, माँ तो वह, जो अपनी होती है, बहुत अच्छी होती है और उससे माफी नहीं माँगी जाती इसीलिए तो वह सबसे स्पेशल होती है। क्योंकि वह कभी नहीं रूठती। कभी भी नहीं। दुनिया की सारी मम्मियों, दुनिया के सारे बच्चे आज आपको आई लव यू कहना चाहते हैं। आप सुन रही है ना?
'माँ
'माँ, नहीं जानती
आप मेरे लिए क्या हो
सोच के धरातल पर
कई मील आगे चलती
कर्म-बीजों की गठरी थामें
क्षण-क्षण, कण-कण को संजोती
आप हमारे लिए आस्था-पुँज हो
ऊर्जा का निज स्त्रोत हो
जिसका लेशमात्र भी गर
हमसे विकसित हो पाया
तो वह आपका सच्चा अभिनंदन होगा।
इस दिवस पर सार्थक नमन होगा।'
आप मेरे लिए क्या हो
सोच के धरातल पर
कई मील आगे चलती
कर्म-बीजों की गठरी थामें
क्षण-क्षण, कण-कण को संजोती
आप हमारे लिए आस्था-पुँज हो
ऊर्जा का निज स्त्रोत हो
जिसका लेशमात्र भी गर
हमसे विकसित हो पाया
तो वह आपका सच्चा अभिनंदन होगा।
इस दिवस पर सार्थक नमन होगा।'
Wednesday, May 5, 2010
Subscribe to:
Posts (Atom)