Tuesday, April 20, 2010

तुम ...




शबनम की तरह

तुम जो हलके से

उतर आती थी

मेरे बदन पर हर सुबह

मेरे दिल की नमी के लिए...

वो काफी होता था ..मेरे दिनभर के लिए ..

चांदनी की तरह उतर आती थी तुम

मेरे तन बदन पर हर शाम ..

वो काफी होता था

मेरे रात भर के लिए ..

तेरी खुशबु ..तेरी बाते ..

तेरी मुस्कराहट . ..तेरी बाहे..

काफी होता था

मेरे जिंदगी भर के लिए ..

अब तेरे साये से भी हटने को

दिल नहीं करता ..

खुदा से दुआ मांगता हु के .

तेरे हातो की हिना में मुझे सजाये रख

वो काफी होगा

मेरे आखरी सांस के लिये

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